पेंशन पार्ट 1 – अरुण कुमार अविनाश

” माँजी , मैं सरला के यहाँ से पाँच मिनट में आ रही हूँ – आप डॉली को खाना खिला दीजियेगा।” – निवेदिता ने कहा और सास की सहमति या असहमति सुने बिना मेन गेट खोल कर फ्लैट से बाहर निकल गयी।

डोर क्लोज़र की मदद से ऑटोमेटिक दरवाज़ा स्वतः बंद हो गया था।

सरला निवेदिता की सगी छोटी बहन थी जो इसी बिल्डिंग में दो फ्लोर नीचें रहती थी। दोनों के पति मुंबई के एक ही कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे।

नोकरी के सिलसिले में दोनों का रोज़ का मिलना होता था – साथ काम करते-करते उनमें दोस्ती हो गयी थी और स्वजातीय होने के कारण घनिष्टता इतनी बढ़ी कि निवेदिता के पति विकास ने गौरव के साथ सरला की शादी करवा दी थी – दोस्त को साढ़ू बना लिया था।

गौरव पहले कहीं पेइंग गेस्ट की तरह रहता था – शादी के बाद विकास ने ही उन्हें इसी बिल्डिंग में 2BHK का एक फ्लैट किराये पर दिलवाया था।



निवेदिता और सरला भी वर्किंग वूमेन थी – दोनों बहनें अलग-अलग स्कूल में शिक्षिका थी।

विकास का फ्लैट 3BHK था जिसे विकास ने खरीद लिया था।

सुमित्रा देवी सहज भाव से तीन साल की पोती डॉली को चम्मच से दाल-चावल खिला रही थी और डॉली निवेदिता के मोबाइल पर कोई गेम खेल रही थी।

एकाएक मिर्ची का बीज मुँह में आने के कारण – डॉली मचली और उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिरा – सुमित्रा देवी मोबाइल को बड़ी मुश्किल से लपक पायी – कई बार हाथ से छूटते-छूटते बचा – इसी क्रम में बार-बार स्क्रीन पर उंगलियों के स्पर्श के कारण मोबाईल का ऑटोमेटेट रिकॉर्डेड कॉल का प्ले सिस्टम ऑन हो गया – वातावरण में पिछला रिकार्डेड कॉल पूरी स्प्ष्टतता के साथ गूंज रहा था।

वार्त्तालाप निवेदिता और सरला के बीच का था।

सरला :- ” दीदी गुड़ मॉर्निंग ।”

निवेदिता :- ” वेरी गुड मॉर्निंग ।”

सरला :-” स्ट्रिप्स से चेक कर ली हूँ – पॉजिटिव है।”

निवेदिता :- ” नाइस – कांग्रेचुलेशन ।”

सरला :- ” मज़ाक मत करो , यहाँ सुबह से ही सोच-सोच कर हालत खराब है कि कैसे क्या होगा ?”

निवेदिता :- “अरी बन्नो,  ये सभी औरतों के साथ होता है – औरत को माँ बनना ही पड़ता है – मैं भी बनी कि नहीं ! – गौरव को बताया  ?”



सरला :- ” हाँ।”

निवेदिता :- ” क्या बोला वो ?”

सरला :- ” वो बहुत खुश हुआ – मुझें तो इतनी जोर से आलिंगन में भिंचा कि मेरी हड्डियां कड़कड़ा गयी।”

निवेदिता :- ” फिर प्रॉब्लम क्या है ?”

सरला :- ” एक हो तो बताऊँ – स्कूल भी जाना है – घर के काम करने हैं – कैसे मैनेज होगा ?”

निवेदिता :- ” ससुराल से किसी को बुलवा लो – ननद या सास को ।”

सरला :- ” दीदी , हर कोई तुम्हारी तरह खुशकिस्मत नहीं होता – तुम्हारा क्या है – मेड़ जैसी सास मिल गयी है – दो रोटियां खाती है – बदले में बच्चें को भी सम्भालती है और घर का पूरा काम भी देखती है – तुम उसे सेलरी क्या दोगी वही तुम लोगों को जब-तब पैसे देती है।”



निवेदिता :- अरे जब माँजी दिल्ली जाती है तब मुझें भी तो मैनेज करना होता है।”

सरला :-” तब  या तो स्कूल छोड़ती हो या जीजाजी घर में बैठते है या डॉली को क्रेच में छोड़ कर जाती हो।”

निवेदिता :- ” बात तो तुम्हारी सही है पर मैं भी क्या करूँ – दोनों भाइयों में ये तय हुआ है कि माँजी छः महीने मेरे पास रहेंगी और छः माह जेठजी के पास – जेठानी भी जॉब करती है – उनके भी बच्चें छोटे-छोटे है – मुंबई की तरह दिल्ली में भी काम वाली बाइयों की दिक्कत रहती है – मैं तो माँजी को वहाँ भेजना ही नहीं चाहती पर जेठ-जेठानी ही नहीं मानते – ऊपर से माँजी को भी दिल्ली में ज़्यादा मन लगता है।”

सरला :- ” दीदी तुम तो अपना ही रोना ले बैठी – मुझें बताओं – मैं क्या करूँ ?”

निवेदिता :- ” मैं डॉली का खाना ठंढ़ा कर रही हूँ – दस मिनट लगेंगे – फिर तुम्हारें पास आती हूँ – वहीं बात करतें है।”

रिकार्डिंग समाप्त हो चुकी थी – अब मोबाइल खामोश था पर सुमित्रा देवी का दिमाग भाँय-भाँय कर रहा था। पाँच मिनट पहले तक – वह विधवा होने के बावजूद खुद को बदनसीब नहीं समझतीं थी। पति बासठ साल की उम्र में एकाएक ह्रदयघात से जब दुनियां से रुखसत हुए थे तब जिम्मेदारी के नाम पर उन्होंने किसी के करने के लिये कुछ नहीं छोड़ा था – मौत भी ऐसे हुई थी जैसे अभी हो – अभी नहीं हो – पति सरकारी अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे – जब तक सेवा में रहें थे अच्छा वेतन और सुविधायें मिलती रहीं थी – सेवानिवृत्ति के पश्चात अच्छा पेंशन मिलता था – पति की मृत्यु के बाद सुमित्रा देवी को फेमिली पेंशन मिलता था जो इतना था कि कइयों को उससे आधी बल्कि चौथाई रकम में भी नोकरी करना मंज़ूर होता। दो बेटे और एक बेटी थी – बेटी डॉक्टर थी और अपने डॉक्टर पति के साथ लन्दन शिफ्ट कर गयी थी – बड़ा बेटा दिल्ली में पर्यावरण  मंत्रालय में अधिकारी था।



बड़ी बहूँ भी दिल्ली में एक निजी संस्थान में उच्च पद एवम वेतनमान की अधिकारी थी – पुरखों की ज़मीन जायदाद भी थी जो उत्तरप्रदेश के एक गाँव में थी। पति लखनऊ में प्रशासनिक अधिकारी थे – सेवानिवृत्ति के बाद पति सिर्फ दो साल तक जीवित रहें थे – लखनऊ में ही एक पॉश कालोनी में उनका दो मंजिला आलीशान मकान था – बड़े बेटे ने ऑफर दिया था कि पापा रिटायरमेंट के बाद अब आपका लखनऊ में रहना जरूरी नहीं है – अब आप मेरे साथ दिल्ली में रहियें – तो छोटे बेटे ने जिद की थी कि नहीं  माँ-पापा अब मेरे साथ मुम्बई में रहेंगें। कितना अच्छा लगा था उस दिन – पर पति समझाते हुए बोले थे – ” जब तक हमारी जोड़ी सलामत है हमें यहीं रहने दो – यहाँ का हर चीज़ अपना लगता है – हर लोग अपने लगतें है – अजनबी शहर में अजनबी लोगों के बीच अटपटा-सा लगेगा हमें – दोनों में से कोई भी एक ऑफ़ हो गया तो चाहें हँस के रखों या रुला कर हमें तुम्हारें साथ ही रहना पड़ेगा – जो जिंदा रहेगा उसे छः महीनें एक भाई रखना और छः माह दूसरा भाई रख लेना।

पति समझदार व्यक्ति थे – गहरी से गहरी बात भी बड़ी सहजता से कह देतें थे – एक बार उन्होंने हँस कर कहा था कि – मैं तुम्हें बिधवा बना कर चला जाऊँगा – तब वह विरोध स्वरूप बोली थी कि लोग औरतों को अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देते है और आप मुझें —! मैं मेरे लालच से बोल रहा हूँ सुमित्रा –विधवा की घरेलू उपयोगिता होती है – घरेलू कामों में मदद कर देती है – पोते-पोतियों को सम्भालती है – स्त्री होने के कारण नैसर्गिक सहनशीलता भी होती है – वहीं विधुर घर वालों पर भार हो जाता है – घरेलू काम मे मदद क्या करेगा – घरवालों को उसके खाने-पीने का – कपड़े-लत्ते का – सोने ओढ़ने का ख्याल रखना पड़ता है। सास बहूँ के काम का बोझ कम करती है जबकि ससुर बहूँ का काम बढ़ा देता है।

पति को याद कर सुमित्रा देवी की पलकें भींग गयी।

” द-आ-दी , लो लही हो।” नन्हीं डॉली तुतलाई।

सुमित्रा देवी पल्लू से अपनी आँखें पोछी – मोबाईल को फिर से गेम मोड़ में सेट कर दी – अब उनका हाथ यंत्र चालित-सा चम्मच से डॉली को खाना खिला रहा था पर दिमाग में तूफान का बवंडर मंडरा रहा था।

” तो ये उपयोगिता है मेरी – इनके बच्चें पालों – इनके घर में मेड की हैसियत से रहों – इनके घर कोई मित्र आ जाये तो मित्रों के लिये चाय-नाश्ता बनाओं – ये कहीं टूर पर जायें तो इनके घर की चौकीदारी करो – मेड और मुझमें क्या फर्क है ? – मेड भी तो वही सब करती है जो मुझसे करवाया जाता है – पर फर्क है ! – मेड तनख्वाह लेती है – मेड को माँजी न कह कर आँटी जी कहते है ये लोग – मेड पसन्द न आये तो बदली जा सकती है – माँ बदली नहीं जाती , भगा दी जाती है – अगर मैं आर्थिक रूप से सुदृढ़ न होती – तो जरूर ओल्ड ऐज़ होम भेज दी जाती।  क्रमश::

 

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