सरला आज बेहद परेशान थी। अपने ही कोख जाये के कृत्य से वह शर्म से गड़ी जा रही थी। उसे लगा कि उसके अपने ही बेटे ने उसे वस्त्रहीन कर दिया है।
जगदीश के पिता कामता प्रसाद रामपुर गॉव में पोस्ट मास्टर थे। अजय और जगदीश का बचपन साथ ही बीता था। कक्षा आठ तक जगदीश और अजय साथ पढ़ते रहे लेकिन गॉव में आगे पढाई की व्यवस्था न होने के कारण जगदीश को गॉव छोड़ना पड़ा। उसको पढ़ाई के लिये उसके मामा के घर भेज दिया गया। अजय की आर्थिक स्थिति के कारण उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
कामता प्रसाद को वह गॉव इतना पसन्द आया कि वह सेवा निवृत्त के बाद उसी गॉव मे स्थाई रूप से रहने लगे। जगदीश एक बार गॉव से बाहर निकले तो पहले पढ़ाई फिर नौकरी के कारण बाहर के ही होकर रह गये।
समय भले ही बीत रहा था लेकिन जगदीश और अजय की दोस्ती वैसी ही थी बल्कि समय के साथ और भी मजबूत होती जा रही थी। जगदीश जब भी गॉव आते सारा दिन अजय के साथ घूमते रहते।
समय बीतने के साथ सरला और ज्योति में भी जगदीश और अजय जैसी ही मित्रता हो गई। प्रसव के लिये सरला ने ज्योति को पहले से ही अपने पास बुला लिया था।
नन्हीं सी अजिता को पहली बार सरला ने गोद में लिया था, उसी समय कह दिया था कि इसे अपनी बहू बनाऊॅगी। कामता प्रसाद की मृत्यु के बाद जगदीश का गॉव जाना समाप्त हो गया।
विवाह के पहले दोनों बच्चों की राय लेकर जगदीश और अजय ने बच्चों को एकसूत्र में बॉध दिया। सरला के घर में सुखी दाम्पत्य की खनक बिखरी रहती। अजिता की हॅसी के स्वर जगदीश और सरला के हृदय को शीतल करते रहते। विवाह के तीन साल के अन्दर सजल और अजिता के दाम्पत्य की बगिया में शुचित के रूप में सुन्दर फूल खिल गया।
शुचित दो वर्ष का हो गया। अचानक जगदीश और सरला ने अनुभव किया कि अजिता बहुत उदास रहने लगी। उन्होंने अजिता से जानने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन उसने हर बार यही कहा कि कोई बात नहीं है, सब ठीक है। उन दोनों को लगा कि शायद अजिता सजल के देर से घर आने और टूर पर अधिक जाने के कारण उदास रहने लगी है। अजिता को खुश रखने का वे दोनों भरपूर प्रयास करते।
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आखिर उसे फैसला लेना ही पड़ा। – चाँदनी झा : Moral Stories in Hindi
जगदीश और सरला के विवाह की वर्षगांठ पर उन तीनों ने कहीं बाहर चलकर खाना खाने का कार्यक्रम बनाया। सजल तो दो दिन पहले ही टूर के लिये जा चुका था। रेस्टोरेंट के अन्दर घुसते समय उन तीनों की नजर एक साथ एक टेबल पर बैठे जोड़े पर पड़ी, सभी की ऑखें आश्चर्य से फटी रह गईं -” सजल तो एक सप्ताह के लिये टूर पर कहकर गया है, फिर यह ••••••।” उन दोनों ने सिर झुकाकर बाहर निकलती अजिता की ओर देखा तो उन्हें इतने दिनों से अजिता की उदासी समझ में आ गई।
घर आकर –
” अज्जू, बेटा। अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है। सच बताओ, यह सब क्या है?”
बिलख बिलख कर रोते हुये अजिता ने सब कुछ बता दिया। सजल के अपनी सहकर्मी उर्मि से इतने घनिष्ठ संबंध हो गये हैं कि अब उर्मि सजल के बच्चे की मॉ बनने वाली है। इसीलिये अब वह सजल से विवाह की जिद कर रही है। यही कारण है कि सजल घर भी देर से आता है और टूर के बहाने उसी के साथ उसके घर में रहता है। सजल चाहता है कि अजिता खुद उसे तलाक दे दे और शुचित को लेकर अपने मायके चली जाये जिससे वह और उर्मि अपने बच्चे के साथ इस घर में आकर रह सकें।
जगदीश और सरला के तो जैसे होश उड़ गये – ” तुम इतने दिन सजल की यह ज्यादती सहन करती रहीं, कम से कम हमें तो बताना चाहिये।”
” कैसे बताती मम्मी जी? सोंचती थी कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा। मुझसे न सही कम से कम शुचित का प्यार तो उन्हें वापस लौटा ही लायेगा। इस उम्र में मैं अपने कारण आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहती थी।”
जगदीश और सरला ने सोंचा भी नहीं था कि उनके विवाह की वर्षगाॅठ ऐसी ऑसुओं में डूबी मनेगी और घर में खाना तक नहीं बनेगा।
दो दिन बाद सजल आया तो घर में एक अजीब सा दमघोंटू सन्नाटा छाया था। आज अजिता भी मम्मी पापा के समक्ष सामान्य होने का नाटक नहीं कर रही थी। कोई उससे बात नहीं कर रहा था। समझ गया कि अजिता ने सब कुछ बता दिया है, यह तो होना ही था। सजल आने वाले तूफान के लिये अपने आप को तैयार करने लगा लेकिन किसी ने उससे कुछ नहीं कहा। बिना कुछ कहे अजिता पूर्ववत घर के सारे कार्य कर रही थी। सजल को अब परिस्थिति का सामना करना आवश्यक था लेकिन वह खुद अपनी ओर से पहल नहीं करना चाहता था।
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इसी वातावरण में पूरा दिन बीत गया। सुबह दरवाजे की घंटी बजते ही अजिता ने दरवाजा खोला। सजल को कमरे में ही पता चल गया था कि उसके सास ससुर आये हैं –
” अच्छा, मुझे एक साथ घेरकर आक्रमण की तैयारी है ? अच्छा है, एक बार में ही सारी बातें साफ हो जायेंगी। वैसे भी अब अधिक देर नहीं की जा सकती। उर्मि को जब से गर्भवती होने का पता चला है, वह बराबर उस पर दबाव डाल रही है कि अब सजल स्थाई रूप से उसके साथ रहे। सजल जानता था कि सब कुछ जानकर अजिता के स्वाभिमानी माता पिता एक क्षण के लिये भी अपनी बेटी को इस घर में नहीं रहने देंगे। अजिता और शुचित चले जायेंगे तो मम्मी -पापा कुछ दिन तक तो नाराज रहेंगे लेकिन इकलौते बेटे से कब तक नाराज रह पायेंगे ? जैसे ही वह अपने और उर्मि के बच्चे को उनकी गोद में लाकर रखेगा, बच्चे के मोह में ये लोग सब भूल जायेंगे।”
अपनी मनचाही कामयाबी पर भीतर ही भीतर खुश होते हुये सजल ऊपर से गंभीर बना रहा।
” विक्की, बैठक में आओ, तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। “
सजल बैठक में आया तो वहॉ उसके माता-पिता के साथ अजिता स्वयं उपस्थित थी। सजल आकर उन सबसे अलग हटकर बैठ गया। कुछ देर सन्नाटा रहा। सब एक दूसरे को देख रहे थे कि कौन शुरुआत करे ? अजिता का सिर झुका हुआ था, उसकी आंखों से लगातार ऑसू बह रहे थे।
आखिर जगदीश ने ही शुरूआत की – ” विक्की, तुम टूर का बहाना बना कर जो कर रहे हो, हमें पता चल गया है। दो दिन पहले हम सबने होटल डायमण्ड में प्रत्यक्ष सब कुछ देख लिया है, वरना अज्जू पता नहीं कब तक मानसिक प्रताड़ना सहती रहती और कभी न बताती। अब तुम बताओ क्या सच है, हम लोग तुम्हारे मुॅह से सुनना चाहते हैं।”
सजल चौंक गया। इसका मतलब इतना सब होने के बाद भी अजिता ने कुछ नहीं बताया है। कुछ देर तक जब सजल कुछ नहीं बोला तो सरला आगे बढ़ी और सजल के गाल पर एक थप्पड़ मारते हुये कहा – ” बेशर्म! अब चुप क्यों हो ? बोलो, क्यों किया तुमने ? शादी के इतने साल बाद एक बच्चे के पिता होकर ऐसी नीचता करते शर्म नहीं आई तुम्हें ?”
” सरला।” जगदीश ने सरला को पकड़ कर अपने बगल में बैठा लिया – ” विक्की, हम तुम्हारे मुॅह से सच्चाई सुनना चाहते हैं। “
सजल ने बोलना शुरू किया – ” पापा, अब मैं अज्जू के साथ नहीं रहना चाहता। एक इण्टर पास लड़की को अपने साथ लेकर कहीं जाने में मुझे शर्म आती है। यह आपकी बहू बनने के लायक तो है लेकिन मैं अब इसे अपनी पत्नी के रूप में बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूॅ। मुझे इससे तलाक चाहिये। मुझे उर्मि जैसी स्मार्ट और मार्डन लड़की चाहिये जो मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सके।”
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” अज्जू में क्या खराबी है? शादी के समय हम सबने तुम दोनों की राय ली थी। अगर तुम्हें अज्जू पसंद नहीं थी तो तुम मना कर देते। तुमसे किसी ने जबरदस्ती तो की नहीं थी।” अब अजय को बोलना पड़ा।
” मम्मी -पापा के कारण मना नहीं किया था। बचपन से एक ही गाना सुनता आ रहा था कि अज्जू उनकी बहू बनेगी। एक बार भी नहीं सोंचा कि अपने इंजीनियर बेटे के लिये उसके समकक्ष बहू लायें। रामपुर गॉव की गंवार इण्टर पास लड़की मेरे पल्ले बॉध दी। इतने साल से इस सम्बन्ध को ढो रहा था लेकिन अब मुझसे इसकी उपस्थिति सहन नहीं हो रही है। आप अज्जू और शुचित को यहॉ से ले जाइये। तलाक के कागजात पहुॅच जायेंगे, इसके हस्ताक्षर करवा दीजियेगा।”
” शादी के इतने सालों बाद तुम्हें यह सब याद आ रहा है। शादी को क्या बच्चों का खेल समझ लिया है जो ऐसे टूट जायेगा? उस लड़की ने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट कर दी है जो अपने हाथों अपना घर बरबाद कर रहे हो।”
” बुद्धि भ्रष्ट नहीं हुई है बल्कि उर्मि को पाकर ही तो मेरी ऑखें खुल गई हैं। एक बात बता रहा हूॅ कि मैंने उर्मि से शादी कर ली है। आज के बाद जब तक यह घर में रहेगी, मैं घर नहीं आऊॅगा। यह तलाक दे या न दे।”
” तुम्हें पता है ना कि एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह अवैध होता है। कानून इसकी इजाजत नहीं देता है।” ज्योति के स्वर में क्रोध था।
” हॉ तो मना किसने किया है? अपनी बेटी को यहॉ से ले जाइये और पुलिस, थाना, मुकदमा, कचहरी जो करना हो करते रहियेगा।”
सजल जानता था कि अजय के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपनी बेटी के प्रति अन्याय के लिये न्यायालय का द्वार खटखटा सकें। न्याय तो आजकल सबसे आसानी से विक्रय की वस्तु बन गया है।
” ऐसा अनर्थ मत करो विक्की। मेरी बेटी पर न सही तो अपने बच्चे पर तो रहम करो। मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूॅ।” रोती हुई ज्योति ने सजल के समक्ष हाथ जोड़ दिये।
सजल ने ज्योति की ओर देखा भी नहीं। उसने बड़ी बेशर्मी से जगदीश और सरला से कहा – ” आप लोग निर्णय कर लीजिये कि आपको किसका साथ देना है?”
सब अवाक से देखते रह गये और सजल घर से बाहर चला गया। अजय की ऑखों से भी ऑसू बहने लगे – ” यह क्या हो गया जगदीश? तुम बताओ मैं क्या करूॅ? अज्जू की तो जिन्दगी बरबाद हो गई।”
फिर उसने अजिता से कहा -” जाओ, बेटी, अपना और शुचित का सामान बॉध लो। हम आज ही रामपुर चलेंगे।”
” अजय भइया, आप और ज्योति मुझे क्षमा कर दीजिये। शायद मैंने अज्जू को बहू बनाने का निर्णय लिया था।” सरला ने दोनों हाथ जोड़ते हुये कहा – ” क्ष वह हमारी भूल थी जो आज मेरे बेटे ने हमें इतना शर्मिन्दा कर दिया है कि हम अपने सामने ही सिर नहीं उठा पा रहे हैं। आज अज्जू को निर्णय करने दीजिये। उसका जो भी निर्णय होगा, हमें स्वीकार करना चाहिये। केवल इतना कहना चाहूॅगी कि आज से मेरे और जगदीश के जीवन से विक्की का नाम हमेशा के लिये मिट गया है। अज्जू कहीं भी रहे वही मेरी बहू है और शुचित ही मेरा कुलदीपक है।”
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” मम्मी जी- पापा जी , यदि आप लोग विक्की और उसके परिवार को अपनाना चाहें तो मैं अभी अपने बच्चे को लेकर पापा के साथ चली जाती हूॅ लेकिन न कभी कानूनी कार्यवाही करूॅगी और न विक्की को तलाक दूॅगी।”
” विक्की को हम दोनों ने हमेशा के लिये त्याग दिया है। यहॉ तक हमारी मृत्यु के बाद हमारे अंतिम संस्कार का अधिकार विक्की का नहीं तुम्हारा होगा। कहीं भी रहना उस समय आकर अपना कर्तव्य पूरा कर देना।” जगदीश का ग्लानि में डूबा स्वर।
” मैं आप लोगों को छोड़ कर कभी नहीं जाऊॅगी लेकिन यदि कभी आप लोग सजल और उसके परिवार को अपनाना चाहेंगे तो एक बार मुझसे कह दीजियेगा, मैं अपने बच्चे को लेकर चली जाऊॅगी। मैं सजल को दुबारा अपने जीवन में प्रवेश का अधिकार कभी नहीं दूॅगी।”
अजय और ज्योति का बिल्कुल मन नहीं था कि अब अजिता वहॉ रहे – ” जिससे सम्बन्ध जोड़ कर तुम इस घर में आई थीं जब वह सम्बन्ध ही समाप्त हो गया तो अब यहॉ रहने की क्या जरूरत है? मेरे साथ चलो, तुम्हें और शुचित को अभी सम्हाल सकता हूॅ मैं।”
” मेरी शादी के पहले से हमारा आपस में सम्बन्ध था। हमें विक्की के अपराध का दंड मम्मी जी – पापा जी को देने का क्या अधिकार है?”
फिर उसने अजय और ज्योति से कहा – ” मम्मी – पापा, विक्की की यह बात रिश्तेदारों और गॉव में पता नहीं चलनी चाहिये। “
” हॉ अजय, जब अज्जू तलाक या कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करना चाहती और मेरे पास ही रहेगी तो इस बात का प्रचार करने से क्या फायदा? हमारी समस्या को कोई नहीं सुलझायेगा, बल्कि मजाक बनायेंगे।”
सरला ने अजिता को सीने से लगा लिया – ” जब भी तलाक या कानूनी कार्यवाही करने का ख्याल आये, बता देना हम तुम्हारा साथ देंगे।”
बहुत दुखी मन से अजय और ज्योति चले गये। उन्होंने सोंचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा। जगदीश और सरला ने सबसे पहला काम यह किया कि अपना मकान बेंच कर दूसरी जगह पर नया मकान ले लिया। यहॉ सबको यही पता था कि अजिता उन लोगों की बेटी है और
पति के विदेश में नौकरी करने के कारण वह अपने माता पिता के पास बच्चे के साथ रहती है क्योंकि वह बुढ़ापे में उन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहती।
नये घर में आकर सरला और जगदीश ने अजिता का कालेज में एडमिशन करवा दिया। हालांकि पहले अजिता इसके लिये तैयार नहीं हो रही थी – ” पढ़ाई छोड़े बहुत दिन हो गये, अब मुझसे नहीं होगा। जो होना था, हो चुका है। अब इस सबसे क्या फायदा?”
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” हम लोगों की खुशी के लिये तुम्हें आगे बढ़ना है।” कालेज जाने के पहले सरला ने अजिता से कहा – ” बिछुये और मंगलसूत्र उतार कर भगवान के सामने रख दो और अब से सिन्दूर लगाने की आवश्यकता नहीं है। जिसके लिये यह पहना जाता है जब उसने ही साथ छोड़ दिया तब तुम भी इन प्रतीक चिन्हों को ढोना बन्द कर दो।”
” लेकिन मम्मी, यह तो मेरा धर्म है। ईश्वर को साक्षी मानकर •••••
” विक्की ने जो किया, क्या वह उसका धर्म था? जब उसने खुद इस रिश्ते को समाप्त किया है तब तुम ही इन सबको धारण करके विवाहित होने का ढिंढोरा क्यों पीटो? ईश्वर को साक्षी मानकर विक्की ने तुम्हें यह सब पहनाया था तो ईश्वर को ही सौंप दो।”
अजिता सरला के गले लग गई – ” काश! हर लड़की को आप जैसी सास मिले।”
” मैं तो खुद शर्मिंदा हूॅ अपने बेटे की नीचता पर जिसने मेरी निरपराध बहू को अपने जीते जी विधवा बना दिया। मुझे कभी अपनी सास मत कहना, नफरत हो गई है इस शब्द से। अब न मैं तुम्हारी सास हूॅ और न तुम मेरी बहू। हम मॉ- बेटी हैं।”
कालेज और पढाई में व्यस्त होने के बाद अजिता के अधरों पर मुस्कान खेलने लगी। सब लोगों ने सजल को पूरी तरह भुला दिया और बेमन से दिखावे के लिये ही सही घर में एक बार फिर शुचित की बाल क्रीड़ाओं के साथ सबकी खिलखिलाहटें गूॅजने लगीं।
एक दिन अजिता कालेज से वापस आई तो घर में जगदीश और सरला के साथ एक दम्पति बैठे थे। सरला ने अजिता को भी बैठक में ही बुला लिया। उसे पता चला कि ये दम्पति अपने बेटे के पास चेन्नई जाना चाहते हैं लेकिन उनके सामने समस्या यह है कि उन्होंने नेस्कैफे की जिस एजेंसी को अपनी मेहनत और लगन से पाला पोसा है, उसे किसी विश्वसनीय व्यक्ति को सौंपना चाहते हैं।
” अज्जू, हम दोनों जगदीश को इतनी देर से मनाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस एजेन्सी का काम वह करे लेकिन यह मान ही नहीं रहा है।”
” सच तो कह रहे हैं पापाजी, यह अंदर से इतना टूट गये हैं कि अब इनसे जिम्मेदारी सम्हालते नहीं बनेगी।”
” तभी तो कह रहा हूॅ कि मस्तिष्क को किसी काम में लगाये, नहीं तो अन्दर ही घुलते रहने से कोई न कोई भयंकर बीमारी पाल लेगा।”
” पापाजी अंकल बात तो सही कह रहे हैं। हम लोग अपने नींचे के खण्ड में यह काम कर सकते हैं। घर में रहने के कारण आपको परेशानी भी नहीं होगी। अंकल के सारे अनुभवी कर्मचारियों को ही नौकरी पर रहने दीजियेगा।”
” ठीक है, तुम और सरला भी मेरा साथ देने का वादा करो तो मैं तैयार हूॅ।”
मकान के ऊपर के खण्ड में सारा सामान पहुॅचाकर नीचे एजेन्सी का सारा सामान आ गया। अब किसी के पास फालतू समय ही नहीं था। जगदीश के अलावा सरला और अजिता ने भी बहुत उत्साह से काम सम्हाल लिया।
अजिता ने स्नातक पूर्ण करने के बाद अपना सारा समय एजेन्सी के कामों को देना शुरू कर दिया साथ ही अपने काम को पूरे शहर में फैला दिया ।
धीरे धीरे सात साल बीत गये। शुचित नौ वर्ष का हो गया । उसे भी पता था कि उसके पापा नौकरी के लिये आस्ट्रेलिया गये थे लेकिन न कभी वापस आये और न उनकी कोई खबर ही उन लोगों के पास है।
सरला, जगदीश, अजय और ज्योति भी बूढ़े हो रहे थे। वे सब अजिता के सामने तो कुछ नहीं कहते लेकिन उन्हें यह चिन्ता बराबर सताती रहती कि हमारे बाद क्या होगा इसका?
इस घर से जाने के बाद सजल अपना और उर्मि का स्थानान्तरण करवाकर कहॉ चला गया कोई नहीं जानता था।
सरला और जगदीश शाम की चाय पी रहे थे तभी तन्मय हिसाब किताब लेकर आ गया। अजिता दो दिन के लिये मायके गई थी। अजिता की अनुपस्थिति के कारण वह जगदीश और सरला को सब कुछ बताने के लिये आ गया।
तन्मय जब जाने लगा तो जगदीश ने उसे रात के खाने के लिये रोंक लिया।
तभी तन्मय ने कहा – ” अंकल मुझे आपसे कुछ कहना है, अजिता जी के सामने कहने का साहस नहीं हुआ।”
” हॉ बोलो बेटा।”
संकोच के कारण तन्मय बोल नहीं पा रहा था – ” निश्चिंत होकर जो कहना हो कहो।” सरला ने उसे प्रोत्साहित करते हुये कहा।
” आंटी।” तन्मय ने एक नजर सरला की ओर देखा और सर झुका लिया। उसने अनुभव किया कि चार जोड़ी उत्सुक ऑखें उसकी ओर ही देख रही हैं।
” अंकल, मैं आपकी बेटी को पसंद करने लगा हूॅ क्या आप मुझे अपना दामाद स्वीकार कर सकते हैं?”
सरला और जगदीश हतप्रभ रह गये। सुख की एक लहर उनके शरीर में दौड़ गई। वे तुरन्त कुछ बोल नहीं पाये और तन्मय अपने बारे में सब कुछ बताता जा रहा था। वह एक अनाथ बच्चा था, उसे अपने माता पिता के नाम पर सिर्फ अनाथालय के संरक्षक का नाम पता था। प्यार में धोखा खाने के बाद उसने कभी शादी न करने की शपथ ली थी लेकिन जब से अजिता से मिला है, उसे चाहने लगा है।
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” क्या, अज्जू को यह बात पता है? तुम अज्जू के बारे में सब कुछ जानते हो?”
” आप लोगों का आशीर्वाद मिल जायेगा तभी अजिता जी से बात करूॅगा क्योंकि आप और आंटी का प्यार भी चाहिये। मेरे तो माता पिता हैं ही नहीं और मैं किसी से उसके माता-पिता को अलग करने का अपराध कैसे कर सकता हूॅ?”
” मैं तुम्हें अज्जू के बारे में सब कुछ बताता हूॅ, उसके बाद कोई निर्णय लेना।”
जगदीश और सरला ने तन्मय को सब कुछ बता दिया। सरला और जगदीश की ऑखों में जैसे सजल जैसे बेटे को पैदा करने के कारण पश्चाताप के ऑसू थे।
तन्मय ने उनके पैरों पर हाथ रख दिया – ” आप जैसे माता पिता तो बंदनीय हैं जिन्होंने अपने बेटे की बजाय बहू का न केवल साथ दिया बल्कि उसे अपनी बेटी ही बना लिया लेकिन मेरा अब भी वही निर्णय है। मैं आप लोगों का बेटा बनना चाहता हूॅ।”
सरला ने उसे गले से लगा लिया – ” तुम नहीं जानते कि तुमने आज मुझे क्या दे दिया है? अपने बेटे के कुकृत्य के कारण हम भीतर ही भीतर पश्चाताप के ऑसुओं को पीने के लिये विवश थे।”
” लेकिन क्या अजिता जी मुझे स्वीकार करेंगी?”
” इसकी तुम चिन्ता मत करो।”
तन्मय चला गया तो जगदीश और सरला जैसे खुशी के समुद्र में डूब गये। उन्होंने तुरन्त अजय को फोन किया और कहा कि अजिता के साथ वह और ज्योति भी आये कुछ जरूरी काम है।
अजय और ज्योति को जब उन्होंने सब कुछ बताया तो ज्योति तो कुछ बोल ही नहीं पाई लेकिन अजय ने भर्राये स्वर में इतना ही कहा – ” जगदीश, वह तुम्हारी बेटी है। उसके सम्बन्ध में तुम जो निर्णय करोगे कभी गलत नहीं होगा लेकिन बिना सजल से तलाक हुये क्या यह विवाह उचित होगा?”
” क्यों? सजल ने शादी करने के पहले अज्जू को तलाक दिया था? सात साल हो गये उस बात को। हमें पता ही नहीं है कि वह कहॉ है? सात साल बाद तो सरकार भी लापता व्यक्ति को मृत घोषित कर देती है।”
” ठीक है, हमारे जीते जी यदि अज्जू और शुचित को सहारा मिल जाये तो हम शान्ति से मर सकेंगे।”
पहले तो अजिता मान ही नहीं रही थी – ” अब विश्वास ही नहीं रहा इस सम्बन्ध पर। हम सब ऐसे ही खुश हैं।”
” लेकिन हम सब तुम्हें ऐसे देखकर खुश नहीं रहते हैं। अपने लिये नहीं तो हम सबके और अपने बच्चे के लिये मान जाओ।”
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बहुत समझाने पर वह राजी हो गई – ” आप लोगों और अपने बच्चे की खुशी के लिये तो मैं प्राण भी दे सकती हूॅ।”
दूसरे ही दिन जगदीश ने तन्मय को बुला लिया। आज अजिता एक बार फिर दुल्हन की तरह तैयार हुई थी। उसे तैयार देखकर सरला और ज्योति की ऑखें छलक आईं। पूजा घर में भगवान के समक्ष खड़े थे अजिता और तन्मय।
” बच्चों, मंत्र और वचन तभी फलीभूत होते हैं जब उन्हें पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाया जाये और मेरे अपने बेटे ने उन्हें नकारकर हम सबकी ऑखों में पश्चाताप के ऑसू भर दिये थे । इसलिये आज हमने कोई बाह्य आडंबर नहीं किया है क्योंकि हम समझते हैं कि सम्बन्ध हृदय से जुड़ते हैं। जिसको निभाना होगा वह बिना किसी बाहरी दिखावे के निभायेगा वरना सारी परम्परायें और संस्कार अपना अस्तित्व खो देते हैं।”
फिर जगदीश ने दोनों के सिर पर हाथ रखा और अजय को इशारा किया। अजय ने भगवान के गले में पड़ी दो मालायें उतारकर जगदीश को दे दीं जिसे उन्होंने अजिता और तन्मय की ओर बढा दिया – ” एक दूसरे को इन्हें पहनाकर भगवान का आशीर्वाद स्वीकार करो।”
सरला ने जो मंगलसूत्र और बिछुये अजिता से सात साल पहले उतरवा कर भगवान के चरणों में रखवा दिये थे उन्हें ही निकाल कर तन्मय को सौंप दिया – ” लो बेटा, अपने हाथों से इसे पहना दो।”
फिर अजिता से कहा – ” एक बेटे के कारण ये सब तुमसे अलग हुये थे और दूसरे बेटे के कारण वापस मिल गये हैं। लो, ईश्वर ने तुम्हारी अमानत तुम्हें वापस कर दी है।”
पूजा की थाली में रखा सिन्दूर प्रसाद स्वरूप अजिता के बालों में जगमगाने लगा।
तन्मय और अजिता ने एक साथ सबके चरणों में झुककर आशीर्वाद लिया। इस समय वहॉ पर केवल आठ व्यक्तियों ( जगदीश, सरला, अजय, ज्योति, तन्मय और अजिता के अतिरिक्त घर के दो नौकरों) के सिवा कोई नहीं था।
तभी शुचित बोल पड़ा – ” अंकल क्या आज से आप मेरे पापा बन गये हैं। मैंने तो अपने पापा को कभी देखा ही नहीं है।”
तन्मय ने उसे गोद में उठा लिया – ” अब से मैं तुम्हारा पापा हूॅ।”
आज बहुत दिनों बाद अजिता के चेहरे पर लाज की लाली थी और सबकी ऑखों में दुःख और पश्चाताप के ऑसू के स्थान पर सुख और प्रसन्नता के ऑसू थे।
तभी अजिता ने कहा – ” पापा, आज मुझे आपसे कुछ चाहिये, मना मत करियेगा।”
” अरे बेटा, सब कुछ तुम्हारा ही तो है। बोलो क्या चाहिये?”
” अब हम सब यहॉ पर एक साथ रहेंगे। आप चाहिये तो गॉव का घर और खेत वगैरह देख रेख के लिये किसी दूसरे को दे दीजिये, जब मन हो जाकर देख आइयेगा लेकिन अब आप लोग अकेले नहीं रहेंगे।”
अजय के कुछ बोलने के पहले ही जगदीश और सरला बोल पड़े – ” इससे अच्छी बात तो अज्जू तुमने आज तक कही ही नहीं। अजय अब तुम और भाभी कुछ नहीं कहोगे। तुम्हें हम सबकी यह बात माननी ही पड़ेगी।”
अजय ने ज्योति की ओर देखा तो उसने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर