‘ पश्चाताप ‘ – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

रोहित और रीना एयरपोर्ट से जैसे ही बाहर  निकले तो उन्हें कैब मिल गई।बिना देर किए दोनों कैब में बैठ गए।कैब बहुत तेजी से सड़क पर भाग रही थी और रोहित के कानों में रह-रहकर माँ के वो आखिरी शब्द गूँज रहे थे..बेटा तेरी बहुत याद आ रही है,हो सके तो एक बार आ जाना..!!

पूरे रास्ते रोहित मौन रहा ना ही कुछ खाया।रीना पति की व्यथा को समझ रही थी पर वो  खामोश थी क्योंकि इन परिस्थितियों के लिए कहीं ना कहीं शायद वो ही जिम्मेदार थी।

दौड़ती कैब जब रोहित के घर के बाहर जाकर रुकी तब उसकी तंद्रा टूटी।घर के बाहर पड़ोसी व रिश्तेदार खड़े थे जो शायद उसका ही इंतजार कर रहे थे।

कैब से उतरकर रीना और रोहित ने घर में जैसे ही प्रवेश किया तो वहाँ उपस्थित सभी रिश्तेदार उनसे गले मिलकर रोने लगे..!! सब यही कह रहे थे..रोहित बेटा,तेरी माँ ने तेरा बहुत इंतजार किया और आखिरकार दम तोड़ ही दिया।रोहित तो पहले से ही पश्चाताप की आग में जल रहा था,ड्राइंग रूम में रखी

माँ की अर्थी से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा-“माँ,मुझे पता है तुम मुझसे बिल्कुल खुश नहीं होगी।यही कह रही होगी..भगवान मेरे जैसा बेटा किसी को ना दे।मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा।तुम हमेशा से यही कहती थी कि मेरा राजा बेटा मुझे बहुत सुख देगा,मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा।तुम्हारा सहारा बनना

तो दूर कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की,कि तुम अकेले कैसे अपना जीवन जी रही हो?पापा के जाने के बाद तुमने दिन रात मेरा ख्याल रखा कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी।मुझे पढ़ा लिखाकर इस काबिल बनाया ताकि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सकूँ।

तुमने कितने धूम धाम से मेरी शादी की थी..बहू को घर लाने के लिए कितनी उत्सुक थीं तुम।यही सोचती थीं कि अब तुम्हारा दुख दर्द बाँटने वाली आ जाएगी।मैं इतना स्वार्थी निकला कि अपनी पत्नी की खुशी के लिए विदेश चला गया।तुम फिर भी कुछ नहीं बोलीं

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क्योंकि तुम्हें हमेशा से मेरी खुशियों का ख्याल था।साल भर बाद जब अपने परिवार के साथ आता था तो तुम कितनी चहक उठती थीं।तुम्हारे चेहरे पे कोई शिकन नहीं होती थी।मैं तो तुम्हें साल भर के खर्चे के पैसे देकर चला जाता और समझता था कि मैंने अपनी सारी जिम्मेदारी पूरी कर दी।

अपने अंतिम दिनों में तुम्हारी इतनी हालत खराब थी तब भी तुमने मुझे नहीं बताया ताकि मैं परेशान ना हूँ।माँ तुम बहुत अच्छी थीं।मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती थीं।मुझे छींक भी आती तो तुम पूरा घर सिर पर उठा लेती थीं।मैं इतना कैसे निर्दयी हो गया कि ये भी नहीं समझ सका मेरी माँ को भी अकेलापन सताता होगा?वो भी मेरे परिवार का हिस्सा है उसे भी कोई दुख तकलीफ होती होगी।माँ मैं कभी अपने को माफ नहीं कर सकता।”

रोहित को यूँ बिलखता देख,रीना उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली-“तुम अपने को यूँ न कोसो रोहित..तुम अकेले ही नहीं मैं भी माँ की गुनहगार हूँ।मैंने ही हमेशा तुम्हें विदेश में नौकरी करने को मजबूर किया था।जबकि तुम माँ के पास रहना चाहते थे।”

“माँ,एक बार अपने बेटे की खातिर लौट आओ मैं वादा करता हूँ अब तुम्हें कभी अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा।”बच्चों की तरह रोहित माँ के मृत शरीर से लिपटा हुआ था तभी पंडित जी ने उसके कँधे पर हाथ रखा और बोले-“बेटा,अब विलाप करने से कोई फायदा नहीं।वैसे ही तुमने घर वापसी में इतनी देर कर दी अब रोना बंद करो और अपनी माँ को खुशी खुशी विदा करो।

रोहित ने माँ की अर्थी को कंधा दिया और भारी मन से उसे अंतिम विदाई दी।

 माँ बाप के जीते जी सेवा का जो मौका मिला है..सेवा कर लें..अन्यथा सिर्फ और सिर्फ पश्चाताप ही रह जाता है।

कमलेश आहूजा 

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वसंत विहार

थाने (मुम्बई)

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