पिता जी की तबियत ठीक है ना मां बड़ा बेटा दीप फोन पर पूछ रहा था और मां सोच में पड़ गई कि क्या जवाब दूं।सही सही बता दूं या….!!
ऐसे क्यों पूछ रहा है बेटा उसीके प्रश्न को घुमा दिया था मां ने।
नहीं वो क्या है ना पिताजी से कई दिनों से बात नहीं हो पा रही है वैसे तो वो खुद ही लगा लिया करते थे पर अभी कई दिनों से उनका भी फोन नही आया और मैं भी कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया था नए प्रोजेक्ट में दीप की आवाज में अपराध बोध था।
नहीं बेटा यहां सब ठीक है तू कोई चिंता मत कर अपना नया प्रोजेक्ट पूरा कर मन लगा के इस पर तेरा प्रमोशन निर्भर करता है .. मां ने बात संभाल ली।
मां पिता जी आस पास हों तो बात करा दो दीप फिर भी आशंकित ही था।
वो हां हां अभी तो सो गए हैं उठते ही बात कर लेंगे तू बिलकुल चिंता ना कर दीपा ने बेटे की आकुलता और चिंता दोनो महसूस कर ली थी।
ठीक है मां जरूर करा देना फिर मैं अभी रखता हूं दीप ने आश्वस्त होकर कहा था।
कई दिनों से तबियत सुस्त लग रही थी सुबोध जी की।उच्च रक्तचाप तो चिंता की ही परिणिति होता है।चिंता इसकी जननी होती है। वैसे ऐसी कोई चिंता वाली बात सुबोध जी की जिंदगी में थी ही नहीं।तीन पुत्र है तीनों का शादी ब्याह सब बढ़िया हो चुका है।सबसे छोटे पुत्र के साथ रहते हैं।बड़े दोनों बेटे बड़ी कंपनियों में काम करते हैं बहुत दूर रहते हैं।सबके परिवार सुव्यवस्थित हैं नाती पोते सब हैं सब सुविधा संपन्न हैं … लेकिन अब चिताएं तो अकारण ही आ जाती हैं ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बुजुर्ग अवस्था तो जैसे चिंता के पुराण ही रचती रहती है।जिस बच्चे के साथ रहते हैं उसकी छोड़ उन सब बच्चो की चिंता गाहे बगाहे सोते से जगा देती है जो दूर हैं।फिर अपने बच्चो से मिलने की जो हूक उठती रहती है उसका इलाज तो मिलकर ही संभव हो पाता है।
सुबोध जी के साथ भी यही हो रहा था। बीपी बढ़ा नही कि नाना प्रकार की आशंकाएं चौतरफा घेरने लगती हैं। कहीं मेरा अंतिम समय तो नही आ गया है ।अगर बीपी कंट्रोल नही हुआ तो हार्ट अटैक आ जायेगा ।अपने बेटों से बिना मिले अंतिम सांस कैसे ले सकूंगा…. उद्विग्न हो रहे थे अधीर हो रहे थे लेकिन बेटों को बुलाने की बलवती होती जा रही इच्छा को दबाने में लगे थे।
अगर बच्चो को मेरी तबियत के बारे में बताओगी तो सब चिंता करने लगेंगे अपना ऑफिस काम धाम छोड़ छाड़ कर भागते हुए आ जायेंगे ये मुझे गवारा ना होगा कोई मेरे लिए परेशान हो मुझे नही अच्छा लगता तुम दीप और अनुदीप किसी को मेरी तबियत के बारे में बिल्कुल नही बताओगी अपनी अर्धांगिनी दीपा से चिंतित स्वर में कहते पति को डपट दिया था पत्नी ने।
आप भी अजीब बात करते हैं अपने ही बच्चे हैं हाल चाल तो बताना ही चाहिए आखिर हम भी तो उन सबका हाल चाल लेते रहते हैं।आपकी तबियत ठीक नहीं है बीपी बढ़ गया है इतना ही बताने से वे लोग दौड़े नही आयेंगे।पर बता तो देना चाहिए कल दीप भी तो बता रहा था बेटी प्रिया स्कूल में गेम्स पीरियड में गिर गई थी चोट लग गई थी डॉक्टर के पास ले गए थे।अब इसमें चिंता करने वाली कोई बात है क्या !! क्या हम लोग दौड़े जा रहे है उसके घर मिलने।
हां ठीक याद दिलाया तुमने प्रिया के कारण वे लोग वैसे ही परेशान है उस पर मैं भी अपनी तबियत का रोना लेकर बैठ जाऊं.. नही नहीं ये उचित नहीं होगा।मेरा क्या है अरे बुढ़ापे में तो तबियत ऊपर नीचे होती ही रहती है सुबोध कह उठे।
बिचारा चिंता कर रहा था पिता जी से बात नहीं हो पाई है बात करवा दीजिएगा कह रहा था आप बात क्यों नहीं कर लेते दीप से दीपा जी ने जोर देकर कहा।
हां हां कर लूंगा कर लूंगा..! मैं डरता हूं दीपा कहीं मेरी किसी भी बात से मेरी आवाज में उसे मेरी चिंता या मेरी तबियत के बारे में अंदाजा ना हो जाए इसलिए थोड़ा संभल कर बात करना चाहता हूं।एक कप गरमागरम चाय पिला दो तो शांत मन से बात कर लूंगा।
अभी ही तो चाय पी थी आपने वैसे भी ज्यादा चाय तो मना है ना आपको…
अरे मेरी बात तो मानो मुझे इस समय तुम्हारे हाथ की दालचीनी वाली चाय की ही जरूरत है मुस्कुरा कर हठ कर बैठे थे सुबोध ।दीपा बिना किसी प्रतिवाद के उठ कर गई और चाय बना लाई।
लीजिए पीजिए चाय आप मानेंगे तो है नहीं चाय का कप उन्हें पकड़ाते हुए बोल पड़ीं।
इस कहानी को भी पढ़ें:
संतान तो संतान होती है – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi
चाय पूरी खत्म भी नही हो पाई थी और सुबोध जी को अचानक चक्कर सा आ गया और हाथ से कप छूट कर गिर पड़ा टूट गया।
दीपांशु दीपांशु जल्दी आ देख पिता को क्या हो गया है दीपा तो बदहवास सी हो गईं।छोटा बेटा दीपांशु जो ऑनलाइन मीटिंग कर रहा था मां की पुकार सुन दौड़ते हुए आया ।पिता की हालत देख घबरा तो गया फिर फौरन पत्नी गौरी को डॉक्टर को फोन करने के लिए बोला और तुरंत कार निकाल कर मां को हिम्मत देता पिता को डॉक्टर के पास ले गया।डॉक्टर ने हालत देखते हुए तुरंत उन्हें भर्ती कर लिया और इलाज शुरू कर दिया।
उधर पिता जी का फोन नहीं आने पर बड़ा बेटा दीप आशंकित हो उठा कि पिता जी की तबियत सही नही है और मुझे बता नहीं रहे हैं।उसने तुरंत अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया।आप अचानक कहां जा रहे है कोई मीटिंग है क्या?? पत्नी नेहा चकित हो उठी।
नेहा मुझे लगता है पिता जी की तबियत ठीक नहीं है मेरे कहने के बाद भी मां ने पिता जी से मेरी बात नही करवाई मैं अभी गाड़ी से निकल जाता हूं चार घंटे में पहुंच जाऊंगा ।पिता जी से मिलकर आ जाऊंगा दीप अधीर हो उठा था जाने के लिए।
मैं और प्रिया भी चलेंगे नेहा बोल उठी।
अरे नहीं नेहा प्रिया को चोट है तुम यही इसके साथ रूको मैं मिल कर आ जाऊंगा दीप ने जोर देकर कहा।
सुनिए मुझे चिंता हो रही है मैं जानती हूं पिता जी की हम सब लोगो से मिलने की इच्छा हो रही होगी पर संकोच में बोल नही रहे हैं प्रिया गाड़ी में पैर ऊपर करके आराम से लेट जायेगी उसे देख कर पिता जी की तबियत एकदम अच्छी हो जायेगी मैं अभी दस मिनट में तयारी कर लेती हूं आप रुकिए।
नेहा की बात दीप को सटीक लगी पिता जी को सबसे मिलकर अच्छा लगेगा।उसने छोटे भाई अनुदिप को भी फोन कर दिया सारी बात बता कर पिता जी के पास पहुंचने बोल दिया।
घर पहुंचने पर ताला लगा देख कर दीप आशंकित हो उठा।किसी ने किसी को फोन नहीं किया था।मां ने इसलिए नहीं किया कि पिता जी ने मना किया था बेटे परेशान हो जायेंगे। बेटो ने इसलिए नहीं किया कि हम लोग आ रहे हैं बता देने पर पिता जी अधीर हो उठेंगे अचानक पहुंच जाते हैं अपने घर ही तो जा रहे हैं।
दीपांशु कहां हो तुम लोग दीप ने तुरंत फोन लगाया मां को नहीं छोटे भाई को।
इस कहानी को भी पढ़ें:
ज़िंदगी जरूरी है या स्पीड – प्राची अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
भैया आप कहां हैं उधर से दीपांशु पूछ रहा था।
घर के सामने है भाई और यहां ताला लगा है दीप उद्वेलित था।
भैया आप लोग तुरंत हॉस्पिटल आ जाइए.. दीपांशु ने इतना ही कह फोन काट दिया था।
हॉस्पिटल..!! क्या हो गया पिताजी की तबियत इतनी खराब हो गई मुझे यही डर लग रहा था सोचते कहते दीप ने तुरंत गाड़ी हॉस्पिटल की तरफ बढ़ा दी थी।
पिता जी का पल्स रेट घट ही नही रहा है भैया डॉक्टर भी चिंतित हो गए हैं दीपांशु गेट पर ही खड़ा मिल गया बहुत घबड़ा रहा था।
कहां है पिता जी चलो मुझे ले चलो उनके पास तुम चिंता मत करो भाई सब ठीक हो जायेगा दीप ने स्वयं की घबराहट छिपाते हुए छोटे भाई को हिम्मत बंधाई।
दीप अनुदेप दोनो बहुएं और बच्चे सब पिता जी के पास पहुंच गए।मां तो सबको अचानक आया देख कर ठगी सी रह गई। दीप बेटा आ गया तू कहती रोने ही लग गई।
पिता जी कैसे हैं आप कैसी तबियत है आपकी दीप ने बिस्तर पर आंख बंद किए पड़े पिता जी का शिथिल हाथ मजबूत स्नेह से पकड़ते हुए पूछा।
बेटा अभी ये कुछ नही कह पाएंगे डॉक्टर ने कहा है दो घंटे में अगर स्थिति नॉर्मल नही हुई तो कहीं बाहर ले जाना पड़ेगा मां का गला रूंध गया था बेटे का संबल पाकर मानो सब्र का बांध टूट गया था।
कोई किसी से कुछ नही कह रहा था।सभी पिता जी के चारो तरफ दुआएं मांगते बैठे थे खड़े थे… !
लगभग एक घंटे बाद ऐसा लगा पिता जी कुछ कह रहे हैं.. दीप के हाथ पर पिता जी के शिथिल हाथों की पकड़ मजबूत हो उठी थी।
पिता जी आप ठीक तो है ना.. दीप ने आकुल होकर कहा।
मना किया था तेरी मां को बताने से पर इसे भी चैन नहीं है बता दिया तुम सबको ।देखा सब बिचारे कैसे भागे भागे यह आ गए हैं… पिता जी के चेहरे पर मुस्कान थी ।
दौड़ कर डॉक्टर को बुलाया गया।डॉक्टर ने आकर चेक अप किया .. सब ठीक है अब खतरे की कोई बात नही है।
डॉक्टर के कहते ही सबके मुरझाए चेहरे खिल उठे ।
डॉक्टर साहब क्या हम पिता जी को घर ले जा सकते हैं अनुदीप्प ने जल्दी से आगे बढ़ कर पूछ लिया।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जी हां आधे घंटे में हम इन्हें डिस्चार्ज कर देंगे।
दादाजी घर कब चलेंगे मुझे आपके साथ चेस खेलना है नन्ही प्रिया ने कहा तो सुबोध जी खिल उठे।
अरे हां हां मेरी गुड़िया प्रिया को भी चोट लगी है तो छुपा छुपाई तो खेल नहीं पाएंगे लेकिन हां हम दोनो लेटे लेटे चेस तो बड़े आराम से खेल सकते हैं क्यों भाई…. दादाजी प्रिया के साथ हंस पड़े तो सभी लोग खिलखिला उठे थे…. कुछ देर पहले पसरा डर भरा सन्नाटा गायब हो चुका था।
थोड़ी ही देर में सभी लोग पिता जी के साथ हंसी खुशी घर की ओर रवाना हो रहे थे…!
सबके इकठ्ठे हो जाने से सम्मिलित दुआओ का असर है जिसने इन्हे स्वस्थ कर दिया सच है #हर बीमारी का इलाज दवा नही होती दीपा जी ईश्वर को हाथ जोड़ रही थी।
मां आप भी हद करती हैं पिता जी की तबियत खराब है इस बारे में एक भी शब्द आपने मुझसे क्यों नहीं कहा जबकि मैं बार बार पूछ रहा था अरे ठीक है काम है नौकरी है व्यस्तता है लेकिन इन सबसे ऊपर आप दोनो हैं हम लोगो के लिए जैसे आपको हम सबकी चिंता रहती है वैसे ही अगर आप लोग स्वस्थ हैं तभी हमे भी सुकून मिलता है दीप और नेहा आते समय रास्ते भर मां का हाथ पकड़ आत्मीयता भरी शिकायतें करते रहे थे….!
बिना किसी के बताए बिना किसी के कहे मेरे बेटे मेरी तबियत की चिंता करते खुद ही दौड़े चले आए ……!!सुबोध जी नन्ही प्रिया को बगल में बिठाए आश्चर्य में पड़ गए और मन ही मन पिता की इतनी परवाह करने वाले अपने बेटों बहुओं पर गर्व मिश्रित आल्हाद महसूस कर रहे थे।
लतिका श्रीवास्तव