Moral stories in hindi : माँ, रमित, नकुल और मै अपनी फैमिली के संग गोवा घूमने जा रहे है “तुषार ने कनक को बताया।
“पर बेटे रमित की मम्मी की तबियत खराब है तो वो कैसे जायेंगी “कनक ने थोड़ा परेशान होते हुये कहा। मन ही मन खुश हो रही थी, पति देव से कितनी बार गोवा घुमाने के लिए कहा पर पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उन्हें कभी घूमने का मौका नहीं दिया, चलो बेटा तो कम से कम उनकी इच्छा पूरी कर दे रहा।
“अरे माँ, आप भी ना, रमित का परिवार जा रहा उसकी मम्मी -पापा नहीं, रमित उसकी पत्नी और बेटी यानि उसका परिवार “माँ की अज्ञानता पर तुषार ने खींझते हुये कहा।
“रमित की मम्मी और पापा उसके परिवार में नहीं आते, ये कैसी बात कर रहा तू, परिवार का मतलब माता -पिता, भाई -बहन और पत्नी -बच्चे सब होते है, सिर्फ पत्नी और बच्चे से कब परिवार होने लगा ” कनक ने दुख और क्षोभ से कहा।
“माँ ये आपके जमाने की बात है, आज की नहीं “कह तुषार वहाँ से खिसक लिया। कनक परिवार की नई परिभाषा सुन भौचक्की थी। उसके जमाने में तो वे कहते थे,”हम यहाँ रहते है पर परिवार यानि माता -पिता, भाई -बहन, सब गांव में या दूसरे शहर में रहते है”।
मन अवसाद से भर उठा, ये नई पीढ़ी कहाँ जा रही, सिर्फ मै की ये भूख कब खत्म होगी। एक पल को तुषार से गोवा जाने की बात पर जो कनक ढेरों आशीष दे रही थी, अब उनका मन व्यथित हो गया।अतीत का पिटारा खुल गया, याद आया जब ब्याह कर आई थी तब तुषार के पापा योगेश जी ने उनसे कहा था -कनक मेरा परिवार अब तुम्हारा भी परिवार है,अतः परिवार के दायित्व निभाने का भार अब तुम पर भी है।
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मेरे ऊपर दो छोटे भाई -बहन की जिम्मेदारी है साथ ही बाबूजी और माँ की भी। उन्होंने बहुत कष्ट से मुझे पढ़ाया -लिखाया है, अब मेरा कर्तव्य है उनको आराम देना।”कनक ने पति की बात गांठ बांध ली,कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। दोनों देवर -नन्द को पढ़ा -लिखा कर शादी -ब्याह की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।
सास -ससुर को माँ -पिता समझा, तभी तो वे ढेरों आशीष देते नहीं आघाते। ये उसका परिवार था पर आज बेटे के मुख से परिवार की नई परिभाषा सुनी। मन की बात पति को बताई, वे भी परिवार का नया रूप देख आश्चर्य चकित थे।
कनक को याद आया कुछ दिन पहले बेटी मेहुल आई थी। बातचीत में मेहुल बोली हमारे परिवार का रीति -रिवाज अलग है। बेटी का परिवार अलग है ये तो एक सामाजिक प्रक्रिया है पर जाने क्यों सुन कर उन्हें अच्छा नहीं लगा पर संतोष ये था मेहुल उस परिवार में रच -बस गई थी। अब तक बेटी का परिवार अलग था यहाँ तो बेटे का भी परिवार अलग हो गया।
फिर उनका कौन सा परिवार था। अगर पुराने रीति -रिवाज़ से देखे तो ससुराल का घर उनका परिवार था पर आधुनिक परिवार की परिभाषा में बेटी और बेटे दोनों का परिवार अलग हो गया। जीवन के इस मोड़ पर सिर्फ वे और पति ही परिवार विहीन हो गये।
कनक की उदासी समझ योगेश जी ने समझाया -कनक, नई पीढ़ी कुछ भी कहे,जिस दिन उन्हें परिवार का मतलब समझ में आयेगा, वे अफ़सोस करेंगे अपनी इस सोच पर। समय बहुत बलवान होता है, सबको सीखा कर ही जाता है। देखो बरगद के पेड़ की असंख्य डालियां होती पर जुड़ी सब तने से ही रहती।
सारी डालियां बरगद की ही कहलाती है नीम की नहीं,हमारा परिवार तो आज भी है, अम्मा -बाउजी, बहन -भाई, बच्चे…माने ना माने, वे हमारे परिवार का हिस्सा है और रहेंगे, भले ही वे हमें अपने परिवार का हिस्सा माने या ना माने …। ये उनकी सोच है, हमें अपनी सोच पर खुश रहना चाहिये।
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उनके पास पत्नी और बच्चा है, हमारी पीढ़ी के पास तो पत्नी, बच्चे के साथ -साथ रिश्तेदारों की फौज भी है। हम भग्यशाली है जो हमारा परिवार विस्तृत है। क्योंकि हमारी सोच उनकी तरह छोटी नहीं है। वे मै में जीते है, हम, हम में जीते है। एक दिन नई पीढ़ी भी परिवार का विस्तृत रूप जरूर समझेगी, चाहे उनकी जरूरत समझाये या उनका संस्कार समझाये।
परिवार की इतनी सुन्दर विवेचना सुन कनक मुस्कुरा दी। सही तो कह रहे,। हम भाग्यशाली है, जो कभी अकेलपन नहीं महसूस किये.., क्योंकि हमारे पास परिवार है।कनक का बेचैन मन सुखद अहसास से पुलकित हो गया।
#परिवार
—-संगीता त्रिपाठी