परिवार – डाॅ संजु झा

 कचहरी परिसर में वकील ने सीमा से कहा-” मैडम!तलाक के कागज पर हस्ताक्षर कर दीजिए और इस रिश्ते से स्वतंत्र हो जाइए। “

तलाक के कागज पर हस्ताक्षर करते हुए सीमा का मन बेचैन  था ओर उसके हाथ काँप रहे थे।सच ही कहा गया है कि जब व्यक्ति के पास  प्यारा परिवार रहता है,तब उसे उसकी कद्र नहीं रहती है।उसकी गलतियों के कारण जब परिवार बिखर जाता है तब पश्चाताप के सिवा  व्यक्ति के हाथों में कुछ नहीं रह जाता है।

यही हाल  अब सीमा का हो गया है।

उसके पास भी तो भरा-पूरा परिवार था।प्यार करनेवाला पति था,परन्तु अपने अहं और अभिमान  के कारण  आज सब खो चुकी है।

आज उसके चिर-प्रतीक्षित तलाक का फैसला आ गया है।कानूनी रुप से वह अपने पति सोमेश से अलग हो चुकी है।एक समय ऐसा था जब उसे सोमेश से  किसी तरह तलाक  लेने की धुन सवार थी।आज तलाक  मिलने पर भी उसे खुशी क्यों नहीं है?उसका चित्त प्रफुल्लित क्यों नहीं है?यह सवाल  सीमा खुद से बार-बार पूछ रही है।उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक तलाक मिलने में उसकी जिन्दगी  के बहुमूल्य  पन्द्रह वर्ष अदालत के चक्कर लगाते हुए  बीत जाऐंगे।आज तलाक के कागज पकड़ते हुए  उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे,पर अब इन आँसुओं की परवाह किसे थी?




सीमा ने नजरें उठाकर  कनखियों से पति और पुत्र की ओर देखा।दोनों उसकी ओर से बेखबर खुश नजर आ रहे थे।पुत्र बिल्कुल पिता का ही प्रतिरूप था। इन पन्द्रह  वर्षों में  उसका पुत्र  बच्चा से किशोर बन चुका था।उसकी आँखों में माँ के लिए प्यार की जगह उपेक्षा का ही भाव था।जिसका कारण वह खुद थी,जिसने दुधमुंहे बच्चे को निर्मोही की भाँति छोड़ दिया था।पति सोमेश का शरीर जरुर थोड़ा भर गया था।कनपटी के बालों में थोड़ी सफेदी आ गई थी,परन्तु उसके चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास नजर आ रहा था।हो भी क्यों न!आज वह एक बड़े बैंक  में मुख्य-प्रबंधक के पद पर प्रतिष्ठित है।उड़ती खबर यह भी है कि उसने एक महिला से गुपचुप मन्दिर  में काफी पहले शादी भी कर ली है।तलाक के बाद कानूनी रूप से उससे शादी भी करनेवाला है।वही महिला उसके बेटा और परिवार को प्यार के धागे में बाँधे रखती है।आज सोमेश के पास भरा-पूरा परिवार  है और उसकी जिन्दगी में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है।

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सीमा ने तलाक के कागज को कसकर हाथ में पकड़ लिया है,मानो उसकी जिन्दगी के पन्द्रह वर्ष की भाँति यह कागज भी न उड़ जाएँ।उसका दिल चाह रहा था कि अदालत  परिसर में ही चीख-चीखकर लोगों को बताएँ कि यह तलाक उसी की जिद्द का परिणाम है,परन्तु ‘अब पछताए होत क्या,जब चिड़ियाँ चुग गई खेत’।

परेशान-सी सीमा अपने एक कमरे के घर में आ जाती है।सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ती है और हाथ से छूटे हुए तलाक के कागज को घूरती है।अनायास ही उसकी यादों में अतीत के पन्ने परत-दर-परत खुलने लगते हैं।




सोमेश छोटे शहर से  आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आया था।उसके चेहरे पर आत्मविश्वास और आँखों में गजब की कशिश थी,जो लड़कियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। उसका आकर्षक चेहरा और स्मार्टनेस किसी का दिल चुराने के लिए काफी था।कई लड़कियाँ उस पर जान छिड़कती थीं,परन्तु सोमेश किसी भी लड़की की ओर आँखें उठाकर नहीं देखता।उसका लक्ष्य बस अपने भविष्य सँवारने पर केन्द्रित था।

पहली ही नजर में सीमा का दिल सोमेश पर आ गया।सीमा भी खुबसूरत और आधुनिक लड़की थी।परिवार में किसी तरह का कोई अभाव  न था,इस कारण  जिद्दी भी काफी थी।पिता और भाई का बड़ा कारोबार  था।सीमा धीरे-धीरे पढ़ाई के बहाने सोमेश के नजदीक आने लगी।सोमेश भी उसकी खुबसरती के जाल में उलझने लगा। एक-दूसरे को देखकर  दोनों के दिलों की धड़कनें तेज हो जातीं।चोरी-छिपे एक-दूसरे को निहारते,जब नजरें आपस में टकरा जाती तो अजीब-सी सिहरन और मदहोशी का एहसास  होता।यही तो प्यार था।सीमा सोमेश के प्यार में बिल्कुल अंधी हो उठी।वह हर हालत में सोमेश को अपना बनाना चाहती थी।

पढ़ाई पूरी होते ही सोमेश की सरकारी बैंक में ऑफिसर की नौकरी लग गई। अब दोनों ने शादी करने का फैसला किया।सीमा ने अपने परिवार से सोमेश से शादी की बात की,परन्तु उसके भाई और पिता ने उसे समझाते हुए कहा -“सीमा!दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग है।तुम स्वछंद व आजाद ख्यालों की लड़की हो।उसके साथ तुम्हारा निर्वाह संभव नहीं है।”

 परन्तु सीमा  की आँखों पर सोमेश की चाहत की पट्टी बँधी थी। जिस प्रकार सावन के अंधे को केवल हरा ही दिखता है,उसी प्रकार  सीमा को उस समय सोमेश के सिवा कुछ नहीं सूझता था।सोमेश भी अपनी चाहत को रिश्ते का नाम देने को तैयार था।आखिर सीमा की जिद्द के आगे उसके परिवार  ने उसकी शादी सोमेश से कर दी।

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सीमा सोमेश की दुल्हनियाँ बनकर उसके घर आ गई। आरंभ में सोमेश जैसा प्यार करनेवाला पति पाकर वह काफी खुश थी।सोमेश के पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था।माँ-बहन की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।कुछ दिनों तक तो सीमा पति के प्यार की खुमारी में डूबी रही,परन्तु जल्द ही सपनों की दुनियाँ से निकलकर वास्तविकता के कठोर धरातल से उसका सामना हुआ। अब उसे एहसास होने लगा कि उसने सोमेश से शादी कर बहुत  बड़ी गल्ती कर ली।सोमेश की सीमित आय ने उसके मनमाने खर्चों पर रोक लगा दी।सोमेश की माँ-बहन उसे फूटी आँख नहीं सुहाती।सोमेश उसे समझाने की कोशिश करता तो उसके अहं को ठेस पहुँचती।ऐसा नहीं था कि सोमेश उसे प्यार नही करता था ।एक तरफ उसकी आँखों में सीमा की प्रीत के रंगों की लालिमा थी तो दूसरी तरफ परिवार  की जिम्मेदारी और बहन के सपनों की चमक थी,जो सीमा को बिल्कुल  पसन्द नहीं थी।सोमेश  सीमा को समझाते हुए कहता -” देखो!सब दिन ऐसा नहीं रहेगा।बस बहन की शादी तक धैर्य रखो।”

पर सीमा किसी बात को मानने को तैयार नहीं थी।उसे महसूस होता कि दोनों की विचारधारा बिल्कुल विपरीत है।अब ऐसी परिस्थिति में उसका  यहाँ निर्वाह मुश्किल है।कुछ ही समय में उनके प्यार  की मिठास, गर्माहट, अपनापन खत्म होने लगा।न चाहते हुए  भी वह एक बेटे की माँ बन गई ।मातृत्व उसे बंधन लगने लगा।उसे अपने पिता के पैसों का बहुत  घमंड था।उसने कहा -” सोमेश!कब तक इस बैंक की सीमित आयवाली नौकरी में घिसटते रहोगे?तुम भी मेरे पापा का बिजनेस ज्वाइन कर लो।वहाँ अच्छे पैसे मिलेंगे।यहाँ मेरा दम घुटता है।”

सोमेश ने सीमा को अपनी भावनाओं से रुबरु कराते हुए कहा-“मैं अपना आत्मसम्मान खोकर तुम्हारे पापा की नौकरी नहीं कर सकता।वहाँ मैं तुम्हारे पिता और भाई का गुलाम नहीं बन सकता।”

सीमा-“सोमेश!इस नौकरी में भी तुम किसी के गुलाम ही हो न!”




सोमेश ने एक बार फिर से सीमा को अपनी बाँहों में समेटते हुए  प्यार से कहा -“मैं अपनी नौकरी से संतुष्ट हूँ।कुछ तो मेरी भावनाओं की कद्र करो।”

सीमा ने अचानक से सोमेश की बाँहों को झटकते

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 हुए कहा-“तुम मध्यम वर्ग  लोगों की यही तो खराबी है कि जो मिला उसी में संतुष्ट हो जाते हो।आगे बढ़ने की सोचते ही नहीं हो।मैं तुम्हारे साथ इस माहौल में घुट-घुटकर मर जाऊँगी।मुझे इस रिश्ते से आजाद कर दो।तुम अपनी माँ की पसन्द की लड़की से शादी कर खुश रहना।” 

सोमेश -” सीमा!हमारे बेटे का क्या होगा?”

सीमा -” तुम्हारी माँ-बहन उसे पाल लेंगी।”

सोमेश की माँ-बहन ने भी सीमा को काफी मनाने की कोशिश  की,परन्तु उनलोगों का अपमान कर गुस्से में दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर मायके वापस आ गई। उसने अपने पिता का बिजनेस ज्वाइन कर लिया और अपनी मर्जी से स्वच्छंद जीवन जीने लगी।उसकी उन्मुक्त जीवन-शैली में कोई बंधन नहीं था।इस बीच सोमेश ने उससे मिलने की कई बार कोशिश की।मिलना तो दूर उसने  सोमेश का फोन ही ब्लाॅक कर दिया।उल्टे उसने सोमेश को तलाक की कानूनी नोटिस भिजवा दी।

सीमा की माँ की अनुभवी आँखें बेटी की नादानियों को अच्छी तरह देख और समझ रही थी।एक दिन माँ ने उसे समझाते हुए कहा-“बेटी!सोमेश बहुत अच्छा लड़का है।उससे तलाक मत लो।पति-पत्नी के रिश्ते बहुत नाजुक डोर से बँधे होते हैं और इस डोरी को टूटने से बचाने के लिए  बहुत समझौते करने पड़ते हैं,तभी परिवार  बसता है।”




पर सीमा तो अपने पिता की संपत्ति के नशे में चूर थी।उसने  दो-टूक जबाव देते हुए कहा-” माँ! मैं सोमेश के साथ उस परिस्थिति में नहीं रह सकती।”

वह तो शुरु से ही जिद्दी थी।अब उसकी जिद्द थी कि हर हाल में सोमेश से तलाक लेना।तलाक की अर्जी भिजवाने  के बाद वह स्वच्छंद जीवन जीने लगी।आए दिन दोस्तों संग पार्टियाँ होने लगीं।उसे महसूस  होता कि उसके चाहनेवाले बहुत हैं।इनके सामने सोमेश की क्या बिसात?धीरे-धीरे उसके तलाक का केस अदालत में लम्बा खींचने लगा,इस कारण उसके दोस्त उससे कटने लगें।सभी दोस्तों की शादियाँ हो गईं,उनका परिवार बस गया।दोस्तों की पत्नियाँ उससे अपने पति को दूर रखने का प्रयास करने लगीं।अब सीमा को अकेलेपन का एहसास होने लगा।कहते हैं कि ‘सबै दिन रहत न एक समान’।यही सीमा के साथ भी हुआ। पिता की हृदयाघात से मृत्यु के बाद अचानक से उसकी जिन्दगी बदल गई। बिजनेस की बागडोर भाई-भाभी के हाथों में आ गई। वह अब मात्र एक कर्मचारी बनकर रह गई। माँ तो बस एक मूकदर्शक भर थी।भाई-भाभी के व्यवहार से आहत होकर वह एक रुम के  किराए  के घर में आ गई। जिस स्वच्छंदता की उसे चाह थी,वही अब घुटन बनकर रह गई है।उसने कभी नहीं सोचा था कि तलाक का केस इतना लम्बा खींचकर उसकी जिन्दगी पर ग्रहण लगा देगा।

अचानक से दरवाजे पर काॅलबेल की घंटी बजने से उसकी तन्द्रा भंग हुई।दरवाजा खोलने पर खाना बनानेवाली मेड ने बल्व जलाते हुए कहा -” दीदी!शाम हो गई ,इतना अंधेरा क्यों कर रखा है?

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सीमा उसे अपने दिल का दर्द क्या बताती!परिवार के अभाव में बाहर  छाया घना अंधकार उसके सीने  में भी जम गया है।मन में छाया अंधेरा अब डूबती शाम का घनेरा बनकर इसकी जिन्दगी में उतर आया है।जिस आजादी के लिए उसने अपने हँसते-खेलते परिवार  को छोड़ा था,अब वही आजादी परिवार के अभाव  में घुटन बनकर उसके मन को आत्मग्लानि से झिंझोड़ रहा है।

उसने डूबते सूरज को बोझिल दृष्टि से एक पल को निहारा,मानो परिवार के अभाव में उसकी दृष्टि सूरज नहीं अपितु खुद को अस्त होते हुए देख रही है।

समाप्त। 

#परिवार 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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