राहुल सर पकड़ कर बैठा हुआ था और बहुत रो रहा था। उसे दिन में तारे नजर आ रहे थे। घर में हर कोई उसे समझा कर हार चुका था।
सौम्या जो कि राहुल की मां थी वह एक चाइल्ड काउंसलर थी। और कहते हैं ना कि डॉक्टर कभी अपने घर वालों का इलाज नहीं कर सकता। आज शायद वही बात यहां भी लागू हो रही थी। वह फिर भी प्रयास कर रही थी कि वह राहुल को समझा सके कि सब कुछ यहीं खत्म नहीं हो गया है वह आगे भी प्रयास कर सकता है।
सौम्या भी दुखी थी कि वह चाह कर भी राहुल को वह नहीं समझा पाई जो उसे समय रहते समझना चाहिए था। यहां उसकी दोहरी भूमिका थी वह एक डॉक्टर होने के साथ-साथ मां भी थी।
आज राहुल के 12th बोर्ड का रिजल्ट आया था। उसके 74% बने थे। वैसे तो घर पर रिजल्ट को लेकर किसी को कोई समस्या नहीं थी और राहुल पर भी इस बात का कोई दबाव नहीं था।
राहुल इस बात से दुखी था कि आईआईटी के एग्जाम के लिए उसके 75% होने जरूरी थे और सिर्फ एक परसेंट की वजह से अब वह आईआईटी के एग्जाम्स नहीं दे पाएगा। वह अपने लक्ष्य को गंभीरता से नहीं ले पाया।
जबसे राहुल नौवीं क्लास में आया था, तभी से सौम्या और उसके पति सागर, राहुल को समझा रहे थे कि वह अपनी समय सारणी बनाए और अपना लक्ष्य भी तय करें। मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। ऑनलाइन गेम्स और चैटिंग को कम से कम समय दे। अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें।
सौम्या उसे समय-समय पर कई उदाहरणों के माध्यम से भी समझाने का प्रयास करती थी। सौम्या ने हजारों बच्चों को अपने भविष्य की सही राह चुनने में मदद की थी। पता नहीं क्यों वह राहुल को यह बात नहीं समझा पा रही थी।
वह राहुल से जब भी पढ़ाई या उसकी दिनचर्या को लेकर कोई बात करती, समझाती तो वह चिढ़ जाता था और तर्क कुतर्को के मध्य उनकी बातचीत एक बड़ी बहस का रूप ले लेती थी।
इन्हीं बातों की वजह से सागर ने सौम्या को कुछ समय के लिए राहुल को कुछ भी समझाने से मना कर दिया था और कह दिया था कि कुछ बातों को समय पर छोड़ दो।
पर कहते हैं ना कि इस उम्र में बच्चों को कई बातें समझाने से समझ में नहीं आती है। जब तक की स्वयं अनुभव न हो। आज राहुल को समझ में आ रहा था कि उसने अपना बहुत सा महत्वपूर्ण समय मोबाइल और इंटरनेट, सोशल मीडिया, दोस्तों से चैटिंग में गंवा दिया था। आज जो उसका परिणाम आया है, उसका जिम्मेदार वह स्वयं है।
राहुल वैसे तो एक इंटेलिजेंट बच्चा था। लेकिन उम्र के हिसाब से जो परिपक्वता उसमें आनी चाहिए थी, वह नहीं आ पाई थी । या यूं कहिए कि इस उम्र में अक्सर बच्चे हर चीज को किसी शॉर्टकट तरीके से कर लेना चाहते हैं। परिणाम जल्दी चाहिए होते हैं। मेहनत करने से बचते हैं।
वास्तविकता से परे उनके सपनों की एक अलग दुनिया होती है। वे भविष्य को लेकर बड़े-बड़े सपने तो देखते हैं, बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन उन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जो मेहनत करनी होती है उससे चूक जाते हैं।
कई बार वह छोटी सी चूक कब इतनी बड़ी बन कर इतनी भारी पड़ती है कि उन्हें दिन में तारे नजर आने लगते हैं।
उस समय उन्हें कुछ समझ ही नहीं आता कि अब वह क्या करें और क्या ना करें ? कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन पर वक्त रहते ध्यान नहीं दिया गया तो बहुत ही गंभीर परिणाम आते हैं। परिणाम आने पर उन्हें तुरंत बदलना संभव नहीं होता है।
आज के बच्चों के जीवन में एक बड़ी भूमिका मोबाइल और इंटरनेट की है। मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग के जितने फायदे हैं उतनी हानियां भी है।
सभी बच्चे मोबाइल एवं इंटरनेट का प्रयोग केवल पढ़ाई के लिए ही नहीं करते। ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं।
यह भी एक प्रमुख कारण है बच्चों के अपने लक्ष्य से भटकने का।
आज की पीढ़ी वैसे तो बहुत ही आत्मविश्वास से भरपूर है, और यह आत्मविश्वास कब आती विश्वास में बदल जाता है उन्हें यह पता ही नहीं चलता।
आज के तकनीकी युग में नई पीढ़ी पर जितना प्रतियोगी भाव है, उतना ही तनाव है। उससे जीत पाना इतना आसान नहीं है। उन्हें अपने बड़ों के अनुभवों को समझना होगा। सीख लेनी होगी और अपने भविष्य के लिए प्लानिंग करनी होगी। केवल प्लानिंग करना ही पर्याप्त नहीं है उस पर मेहनत भी करनी होगी और अमल भी करना होगा।
जो आज स्थिति राहुल की है उस तरह की स्थिति से जूझ रहे बहुत सारे बच्चों का भविष्य तभी उज्जवल हो सकेगा।
अभी 10वीं 12वीं बोर्ड के रिजल्ट्स बहुत सारे घरों में आए हैं और बहुत सारे बच्चे एवं उनके माता-पिता इसी तरह की कुछ समस्याओं से रूबरू हो रहे हैं। बच्चों एवं माता-पिता दोनों को ही एक दूसरे का साथ देना होगा और अच्छे भविष्य की कामना के साथ आगे बढ़ना होगा।
मैं यह नहीं कहती कि सभी बच्चे जैसे होते हैं।
स्व रचित
दिक्षा बागदरे
16/5/2024
#दिन में तारे दिखाई देना
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Who is Rahul??