पराए अपने – गीता वाधवानी

आज सृष्टि लगभग साढ़े 5 साल बाद अपनी डॉक्टर बनने की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोटा से दिल्ली लौटी थी। यूं तो वह अक्सर छुट्टियों में आती थी लेकिन इस बार बहुत लंबे समय बाद हमेशा के लिए घर वापस आ गई थी। 

       हर बार पढ़ाई के तनाव के कारण घूमना फिरना नहीं हो पाता था। इस बार उसने अपनी पुरानी सहेलियों के साथ घूमने-फिरने का कार्यक्रम बनाया था। 

       तीनों सहेलियां मोनिका, शिल्पी और सृष्टि सुबह से ही घूमने निकल पड़ी थी। शाम को घर लौटते समय तीनों मंदिर में ईश्वर के दर्शन करने गई। मंदिर से बाहर निकलते समय उन्होंने देखा कि कोई व्यक्ति मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को भोजन बांट रहा था। उन भिखारियों की भीड़ में सृष्टि को एक चेहरा ना जाने क्यों जाना पहचाना लगा। 

तीनों सहेलियां अपने अपने घर चली गई। 

       सृष्टि उस चेहरे को लेकर अभी भी सोच में डूबी हुई थी। उसे बिल्कुल याद नहीं आ रहा था कि उसने वह चेहरा कहां देखा है? 

     सृष्टि ने अपनी मां को यह बात बताई। मां ने कहा-“कभी-कभी हमें ऐसा भ्रम होता है। किसी और पर चेहरा उनसे मिलता जुलता होगा इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है।”सृष्टि को इस बात से भी तसल्ली नहीं हुई। 

      अगले दिन सृष्टि अपनी पुरानी तस्वीरें देख रही थी, तभी अचानक एल्बम बंद करके उसने अपना मोबाइल उठा लिया और शिल्पी, मोनिका को फोन करके तुरंत मंदिर पहुंचने को कहा। थोड़ी देर बाद तीनों सहेलियां मंदिर के सामने खड़ी थी। 



       सृष्टि ने दोनों से सामने खड़ी भीख मांगने वाली औरत को पहचानने को कहा। शिल्पी और मोनिका उन्हें पहचान नहीं पाई। तब सृष्टि ने कहा-“तुम दोनों इन्हें ध्यान से देखो। क्या ये हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका नहीं है, जो हमें 11वीं और 12वीं कक्षा में अंग्रेजी पढ़ाती थी।” 

दोनों बोली-“अरे हां, ये तो वही है। इनकी ऐसी हालत कैसे हुई?” 

     सृष्टि-“मैं तो बहुत सालों बाद इस मंदिर में आई हूं, तुम लोग तो अक्सर आती जाती रहती थी, क्या तुमने कभी ध्यान नहीं दिया?” 

शिल्पी और मोनिका-“नहीं, हमने कभी ध्यान नहीं दिया।” 

     तीनों उस वृद्ध महिला के पास जाकर उनसे बात करने लगी, लेकिन उन्होंने किसी को भी नहीं पहचाना और ना बात की। तीनों ने स्कूल से उनके घर का पता लिया और उन्हें लेकर उनके मोहल्ले में जा पहुंची। 

     वहां उनके घर के आसपास के लोगों ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद इनकी याददाश्त धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। इनके बच्चों ने इनसे प्रॉपर्टी के कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए और इन्हें घर से बाहर निकाल दिया। तब से लेकर इनकी हालत और खराब होती गई और यह मंदिर के बाहर भीख मांगने लगी। तीनों लड़कियों के आंखों में आंसू आ गए। 

     तब सृष्टि ने फैसला किया कि मैं इन्हें अपने घर पर रखूंगी और इनका इलाज भी करूंगी। जितना संभव हो सकेगा, मैं इनकी देखभाल करूंगी। सृष्टि उन्हें अपने घर ले आई, उन्हें नहला धुला कर खाना खिलाया और एक कमरा रहने के लिए दिया। 

     सृष्टि के माताजी और पिताजी सृष्टि का सेवाभाव देखकर बहुत खुश थे और उन्होंने सृष्टि को अपने गुरु की सेवा करने के लिए ढेर सारा आशीर्वाद दिया और सृष्टि से कहा -“इस फैसले में हम तुम्हारे साथ हैं।”शिल्पी और मोनिका ने भी सृष्टि का साथ देने का मन बना लिया था। सृष्टि सोच रही थी कि कैसी है यह आज कल की दुनिया , जहां औलाद रुपए पैसे और जायदाद के लालच में अपनों को ही पराया कर देती है। 

#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे 

स्वरचित , गीता वाधवानी

 

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