रमा काकी मोहल्ले की चलती फिरती विविध भारती थी । पूरे मोहल्ले की बहू बेटियों की खबर रखती थी । कुछ लोग तो उन्हें नारद मुनि कहते थे । प्रीति मि. शर्मा जी की छोटी बेटी थी । बड़ी बेटीऔर बेटे की शादी हो गयी थी । प्रीति बहुत समझदार और शिक्षित लड़की थी । वह अक्सर आफिस के बाद अपने ही साथी अर्पित के साथ उसकी बाइक से घर आती थी । अर्पित उसे बहन मानता था । रमा काकी के भी एक बेटी थी जिसका नाम लाजवंती था । रमा काकी उसे लाजो के नाम से पुकारती थी । जब भी रमा काकी प्रीति के घर आती बस एक ही बात कहती शर्माइन तुमने प्रीति को बहुत छूट देदी है। देखो रोज उस लड़के की मोटर साइकिल पर पीछे बैठ कर आती है। अब उसकी शादी की चिन्ता करो । मेरी लाजवंती को देखो बस 12 वीं करके पूरे घर का काम संभालती है। मजाल है कि बाहर भी कभी दिखाई दे जाये । प्रीति की मां हमेशा कहती जिज्जी जब उसके पापा और बड़े भाई को कोई आपत्ति नहीं तो मै क्या बोलूं उनके सामने रही उसकी शादी की बात वह भी उसके पापा और बड़ा भाई जाने । यह कह कर वह रमा काकी से पल्ला छुड़ाती ।
एक दिन प्रीती ऊपर छत्त पर रात को टहल रही थी । रमा काकी का मकान बिलकुल सटा हुआ था । अंधेरे में उसे लगा काकी की छत्त पर कोई है। उसने सोचा लाजो होगी वैसे भी प्रीति बहुत अधिक किसी से बोलती नहीं थी । अचानक एक छोटा पत्थर नीचे से किसी ने फैंका वह प्रीति के पैर में आकर लगा वह जब तक देखती नीचे अन्धेरे में कोई छिपता दिखाई दिया बराबर की छत्त भी खाली दिखाई दी । उसने वह पत्थर उठाया और नीचे कमरे में आगयी । उस पत्थर पर एक कागज लिपटा हुआ था । खोल कर पढ़ा लिख रहा था इन्तजार करना रात को मिलूंगा । उसने कागज फाड़ कर फैंक दिया और बिस्तर पर आराम से सो गयी । रात के एक बजे एक दम शोर हुआ वह उठी और मां मां कहती कमरे से बाहर आई देखा नीचे पूरा मोहल्ला इकठ्ठा था । रमा काकी चीख रही थी अरे ऊपर कमरे में कोई चोर हैं उनके घर में सब बाहर गये थे बस लाजो और काकी थी । सबने ऊपर जाकर दरवाजा पीटा पर वह अन्दर से बन्द था । सबने सोचा चोर ने डर के कारण दरवाजा बन्द कर लिया है। काकी चीखी दरवाजा तोड़ दो लाजवन्ती नीचे कमरे सो रही इस चोर को बाहर निकालना जरूरी है। सबने मिल कर दरवाजा तोड़ा तब देखा मोहल्ले का ही आवारा लड़का दीनू और लाज से सिमटी लाजवंती कमरे के अन्दर थी । शर्माइन बड़बड़ाती उतर कर आई और बोली अब काकी की लाजवन्ती की लाज कहां गयी बहुत दूसरे की बहू बेटियों को उपदेश देती थी ।
” पर उपदेश कुशल बहुतेरे ” ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल
अलीगढ़