नमित को आज तरक्की मिली थी कंपनी का CEO बन गया था, उसकी शान में पार्टी रखी हुई थी, सब बहुत खुश नजर आ रहे थे बुके का ढेर लगा देखकर नमित थोड़ा अनमना सा हो गया था, जाम पर जाम टकराए जा रहे थे पार्टी पूरे शबाब पर थी पर नमित का ध्यान बार बार बुके के ढेर पर जा रहा था,
अचानक से उसने पार्टी से जाने की बात कही जिससे सभी के मूड ऑफ हो गए पर नमित ने आगे कहा you guys carry on, 2 दिन बाद बंगलौर जाना है बहुत तैयारी करनी है,
सभी उसकी बात से सहमत दिखाई दिए और नमित पार्टी से घर चला आया।
माधुरी उसके जल्दी आने की वज़ह से हैरान रह गयी क्यूंकि ऐसी पार्टियों से नमित रात भर घर नहीं आता था,
दूसरा झटका उसको लगा जब नमित के कदम बाउजी के कमरे की ओर बढ़ते देखे,,
नमित उस कमरे में पिछले 17 सालों से नहीं गया था यहां तक कि उसकी राह देखते देखते बाउजी दुनिया से ही अलविदा ले चुके थे बाउजी को गए 12 साल बीत गए थे।
20 साल की शादी मे उसने कभी भी नमित का कोई अच्छा रिश्ता अपने बाउजी के साथ के नहीं देखा था क्यूँ नाराज था अपने बाउजी से नमित ,किसी को नहीं पता। ।
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उधर नमित अपने पापा के कमरे मे गया और उनकी तसवीर के सामने खड़ा हो गया इस कमरे मे अब उसके बच्चे रहते थे पिया और अंकुश।
तस्वीरे देखते देखते कब उसकी आँखों के कोर गीले हो गए उसको नहीं पता चला और भूली बिसरी यादो मे खो गया,
महेश जी को सब बाउजी बोलते थे और नमित ने जब बोलना सीखा तो ना जाने कैसे पर उन्हें पापा बोलता था, सभी ने नमित को समझाने की सिखाने की बहुत कोशिश की यहां तक कि झूठे गुस्से से महेश जी ने भी बाउजी बुलवाने की बहुत कोशिश की पर नमित ने हमेशा पापा बोला, धीरे-धीरे सब को आदत पड़ती गयी,
गांव मे बाउजी की बहुत धाक थी बड़े बड़े झगडे भी चुटकियो मे सुलझा देते थे, उन्हें पेड़ों से फ़ूलों से बहुत प्यार था,
उनके जन्मदिन पर नमित ने फूल तोड़कर इकट्ठे किए और अपने पापा को देने चला गया, 12 साल के अबोध नमित ने सोचा पापा पेड़ पौधों और फ़ूलों से प्यार करते हैं तो आज पापा उससे बहुत खुश हो जाएंगे,,
फ़ूलों को देखते ही महेश जी की आंखे गुस्से से लाल हो गयी पर सुनीता यानी नमित की माँ ने उन्हें इशारा करते बताया ये नमित लाया है तो बाउजी ने नमित को हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया और कहा बेटा फूल अपनी डाली पर खिलखिलाते अच्छे लगते हैं उन्हें तोड़कर तुमने फूलों को पौधों को और मुझे दुखी किया है आगे से फूल को उसकी डाली से कभी अलग मत करना,
नमित अपने पापा को खुश करना चाहता था पर वो मायूस आँखों से उन्हें देख रहा था,,
जब भी वो अपने पापा को खुश करने की कोशिश करता उसके पापा हर बार उसको समझा देते थे नमित पर इसका उल्टा असर होने लगा था, नमित 15 साल का हो गया और अब चुप चुप रहने लगा था
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एक बार स्कूल ना जाकर गली के लड़कों के साथ खेलने लगा उसी दिन उसके पापा घर जल्दी आ गए और लड़कों के साथ खेलते देखकर अपना आपा खो बैठे और उस दिन पहली बार नमित को बाउजी ने बहुत मारा माँ बचाने आयी तो माँ को भी डांट दिया गली के आवारा लड़के नमित को उसके पापा के खिलाफ भड़काने लगे थे इसीलिए अब नमित अपने पापा से दूर जाने लगा था विद्रोही मन बगावत पर उतर आया,
सुनीता जी सब देख समझ रही थी उन्होंने महेश जी से बात की और महेश जी ने सुबह उठकर ऐलान कर दिया कि नमित अब वंहा उनके साथ नहीं रहेगा दिल्ली जाकर हास्टल में रहेगा और बाकी की पढ़ाई वहीं करेगा,
सुनीता जी का दिल कांप उठा सभी घरवालों ने गांव वालों ने बहुत समझाने की कोशिश की पर महेश जी ने अपना फैसला नहीं बदला ।और नमित दिल्ली चला गया एक गुस्सा भरकर अपने मन मे,
हर महीने महेश जी दिल्ली जाते नमित से मिलने पर नमित उनसे मिलने को मना कर देता,
छुट्टियों मे भी घर नहीं आया तो महेश जी ने सुनीता जी को अपने भाई के साथ भेजा उसको लेने के लिए,,माँ से नमित मिला पर घर आने के लिए आनाकानी करने लगा फिर माँ ने कसम दी और नमित घर आया, पापा ने उसको देखा तो आँखों मे आंसू आ गए नमित कुछ देर देखता रहा फिर माँ के कहने से पापा के गले लगा,,सबको लगा सब सही हो रहा है,
नमित अब कॉलेज के अंतिम वर्ष मे था जब उसको पता चला कि बाउजी ने रंजना अपनी बड़ी बेटी का रिश्ता पक्का कर दिया था और बेटे अमित का भी,,,
नमित अपने भाई बहन के विवाह मे एक मेहमान बना रहा उसके पापा भाग भाग कर सब काम कर रहे थे, उम्र की थकावट चेहरे पर दिख रही थी पर नमित से क्या कहते वो देखकर अनजान बना हुआ था, माँ ने बहुत बार दोनों से कहा पर बाउजी ने कहा बहुत दिनों बाद वो खुश है उसको कुछ मत कहो मैं कर लूँगा सभी काम फिर सभी लोग तो हैं ही आस-पास काम देखने के लिए।
जब सब दोनों ब्याह से फ्री हुए तब नमित ने जैसे धमाका कर दिया ये बोलकर कि” मैं रवीना से प्यार करता हूं उससे ही शादी करूंगा “
बाउजी ने कुछ नहीं कहा उनकी खामोशी से नमित चिड़ गया,
अगले दिन माँ ने कहा लेकर आ रवीना को हम देख लें पहले
नमित दिल्ली आया और रवीना को सब बताया लेकिन रवीना ने कहा ” शादी,,,,,,, तुम पागल तो नहीं हो गये हों शादी के लिए बहुत समय है और तुम गांव के हो तुमसे तो शादी किसी हाल मे नही कर सकती “
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3 महीने हो गए थे नमित को दिल्ली आए कोई खबर नहीं मिलने पर बाउजी माँ के साथ दिल्ली आ गए और नमित से मिले,,3 महीनों मे नमित जैसे मुर्झा कर रह गया था दोनों नमित को घर ले आए और माँ ने धीरे-धीरे सारी बातें मालूम कर ली थी।
बाउजी ने 6 महिने बाद ही नमित का विवाह माधुरी से करवा दिया, नमित ने बहुत हाथ पैर मारे पर माँ के आगे उसकी एक ना चली,,कहीं ना कहीं वो वो इन सब के लिए अपने पापा को ही जिम्मेदार मानता था,,
महेश जी ने दिल्ली मे ही उसकी एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी लगवा दी थी एक बड़ा सा घर खरीद दिया था,,
नमित ने अपनी माँ को दिल्ली आने के लिए बोलना शुरू कर दिया और जब ममता हारने लगी तो उन्होंने नमित से कहा मैं तेरे बाउजी को छोड़कर नहीं आ सकती, तो माँ के लिए ना चाहते हुए भी नमित अपने पापा को भी ले आया और जो कमरा पापा को दिया उसमे जाना बंद कर दिया, महेश जी बहुत चाहते कि नमित उनके पास आए उनसे बात करे, पर वो दिन कभी नहीं आया एक दिन सुनीता जी से मन की बात करते हुए बाउजी ने आखिरी हिचकी ली और संसार से विदा हो गए। ।।।।
खबर सुनकर अमित रंजना सभी आए पर नमित दूर दूर ही रहा सभी रस्मों से,,
उसके पापा जा रहे थे सबसे दूर,
माँ को अमित अपने साथ ले गया
नमित को वंहा खड़े खड़े कितना समय बीत गया कुछ अहसास नहीं था होश मे आया जब माधुरी ने उसके कन्धे पर हाथ रखा रोने से लाल हो चुकी थी नमित की आंखे। ।
माधुरी के पूछने से पहले ही नमित ने एक पेज पकड़ा दिया था माधुरी को, माधुरी ने सवालिया आँखों से देखा तो नमित ने कहा आज मिला है अपने सर्टिफिकेट की फाइल मे।
उसमे नमित के लिए उसकी माँ ने लिखा था “बेटा बहुत गुस्सा है ना अपने पापा से, तूने फूल तोड़कर पापा को दिए थे तो उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी बच्चे को उसके माता-पिता से दूर कर दिया, तू गली के बेकार बच्चों से दोस्ती कर बैठा था इसीलिए ना चाहते हुए भी तुझे खुद से दूर भेजा और रात भर सो नहीं पाए तेरे पापा, तूने जिस लड़की से शादी की बात की उसके फोटो देख चुके थे हम तेरे फोन मे वो घर के लिए और तेरे लिए बिल्कुल सही नहीं थी, पर तेरी खुशी के लिए तेरे पापा मान गए थे, ,,पर तेरी खबर ना मिलने से तेरे पापा परेशान हो गए थे, तो उन्होंने अपने कलेक्टर दोस्त की बेटी से तेरा विवाह करवा दिया तू माने या ना माने पर माधुरी सच मे हीरा है, तेरी नौकरी नहीं लग रही थी और तुझे दिल्ली मे ही रहना था तो उन्होंने तेरे चाचा से ये कम्पनी खरीदवाई और अपने दोस्त को मालिक बनाकर भेजा जिससे तू खुश रहें बेटा,तेरी जिद और तेरे पापा की इच्छा के लिए मैं तेरे पास आयी पर तेरा व्यवहार अपने पापा के लिए कभी सही नहीं हो पाया ,
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आज तेरे पापा तुझसे मिलने के लिए तुझे देखने के लिए छटपटा रहे हैं मुझे उन्होंने कसम दिल्ली रखी है इसीलिए तुझे बुलाने नहीं आ पाई, , चिट्ठी पढ़ते ही एक बार सिर्फ एक बार अपने पापा के पास चला आ”
तेरी माँ
माधुरी ने तारीख देखी तो चौंक गयी 12 साल पहले जब बाउजी दुनिया से विदा हुए उससे एक दिन पहले की थी।
पर नमित ने तब से अब तक फाइल ही नहीं खोली थी,
नमित ने रोते हुए कहा ” माधुरी मेरे पापा सच कहते थे कि फूल एक बच्च होता है और डाली उसके माता-पिता,,,, फूल टूट जाए तो ना फूल खिला रह सकता है ना डाली ,
पापा कभी नहीं जताते पर वो परिवार की रीढ़ होते हैं, बच्चों के लिए , क्या कुछ नहीं कर जाते बिना कोई अहसास दिलाए, ,,पापा हों तो जिन्दगी की धूप का भी पता नहीं चल पाता, और हम बच्चे अपने सिर की छत्रछाया को कभी नहीं समझ पाते,
और जब समझ आता है तब बहुत देर हो जाती है इतनी देर कि कोई माफी भी उन तक नहीं पहुंच पाती “
माधुरी नमित का पश्चाताप देख रही थी पर कर भी क्या सकती थी सच मे देर तो बहुत हो गयी थी। ।।।
इतिश्री
शुभांगी
ये सचमुच विचित्र है।बेटी मां की पक्की सहेली बन जाती है बड़ी हो कर वहीं उम्र के साथ पिता पुत्र में संवाद हीनता और दूरियां बढ़ती जाती है।
Never, on marriage, girls are sent in their in-laws’ house, and there they are kept before they become a widow, after which they are supposed to return back to their parents’ house