जब आज संजना को अपनी तीनों बेटियों में सबसे छोटी बेटी पंखुरी का ज्यूडिशरी का रिजल्ट पता चला तो उसकी आंखों से खुशी के साथ-साथ वक्त और अपनों ने दिए जख्मों को याद कर मिश्रित आंसू की झड़ी लग गई। वह दौड़कर घर में बने मंदिर में सिर नवाकर ईश्वर का धन्यवाद कर रोने लगी।
उसने तुरंत ही अपने पापा को फोन करा और उन्हें उनकी धेवती के रिजल्ट के बारे में बताया और कहा पापा यदि आप उस दिन मुझे ना समझाते तो मैं बहुत बड़ा गुनाह एक बार फिर कर जाती, जिसके लिए शायद ही भगवान मुझे माफ कर पाता और मैं भी तिल तिल उसे गुनाह की अग्नि में जलती रहती।
संजना याद करती है उस वक्त को जब दो बेटियों को जन्म देने के बाद उसे तीसरी बार दिन चढ़े तो किस तरह सभी ने उस बच्चे के लिंग जांच करवाने की सलाह दी पहले तो वह नहीं मान रही थी पर क्या करती ना ही उस समय उसकी उम्र ज्यादा थी और ना ही जिंदगी के लिए कोई अनुभव। अपनी सास और जेठानी की बातों को ही सही समझ कर डॉक्टर के पास अपने बच्चे की लिंग जांच के लिए चली गई।
होना तो वही था जिसका डर उसे और पूरे परिवार को था। लगभग उसे चार महीने चढ़ चुके थे , धीरे-धीरे बच्चे का विकास हो रहा था, छोटे-छोटे हाथ पैर अल्ट्रासाउंड में दिखने लगे थे मानो देखने में लगता कि कोई परी पानी में अपना जीवन तलाश कर रही हो।
उसका ह्रदय ममता और वात्सल्य से उमड़ आया पर कोई फायदा नहीं, घर वाले और उसके पति ने उसे समझाया कि तीन-तीन बेटियों की परवरिश लालन पोषण और फिर उनकी शादी ब्याह इस महंगाई के जमाने में अच्छे-अच्छे धन्ना सेठों के बस की बात नहीं है ,हम तो फिर भी मामूली मध्यम वर्गीय परिवार से हैं, तो बेहतर यही होगा कि यदि हम उसे बच्ची की सही परवरिश ना कर सके तो इस उसे इस दुनिया में ही ना आने दे।
संजना बहुत टूटी रोई पर समय की रेत के साथ-साथ वो बह गई और उसकी वो नन्ही परी इस दुनिया में आने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गई । संजना ने जब अबॉर्शन के बाद उस बच्ची को देखा तो मानो ऐसा लगा जैसे कि किसी ने उससे उसकी आत्मा ही छीन ली।
उसकी रूह कांप गई ,वो बच्चे क्या थी चार महीने में भी इतना बड़ा भ्रूण था ऐसा लगा मानो कि जैसे ईश्वर ने उसे किसी खास मकसद से भेजा हो। नर्स ने भी बताया कि बच्ची बहुत स्वस्थ थी और अबॉर्शन करने में इसी लिए बहुत समय लगा।
संजना महीनो इस गम से उबर नहीं पाई और अपने पति से दूर रहने लगी ।बस जरूरत भर खाती और बोलती। उधर जेठानी पर दो बेटे थे, ननदों पर भी एक-एक बेटा था, तो सास चाहतीं थी कि उसके छोटे बेटे नवीन पर भी एक बेटा हो जो उसका वंश चलाएं उसका वारिस बन सके।पता नहीं क्यूं इस समाज में बेटों की मां को ही सम्मान जनक दृष्टि से देखा जाता रहा है,शायद पितृसत्तात्मक सोच ही इसके लिए जिम्मेदार रही होगी।
पर संजना अब बस अपनी दोनों बेटियों को ही अपनी दुनिया मान चुकी थी। पर सास ननदें, जेठानी सभी ने उसे एक बार फिर किस्मत पर भरोसा करने के लिए कहा । उसकी ननद कोई दवाई लेकर आई थी, उन्होंने कहा भाभी इस दवाई से शर्तिया बेटा ही होता है
एक बार और अपने आप को मौका देकर देखो। संजना ने बहुत मना किया, इस पर उसकी ननद बोली, हम सब की खातिर, भैया की खातिर और अपनी दोनों बेटियों की खातिर एक मौका और दो।
बेटियों की मां संजना खुद भी चार बहनों में सबसे छोटी थी , कोई भाई नहीं था, तो उसे एक बार फिर महसूस हुआ कि शायद सभी उसके भले के लिए कह रहे हैं। पर ईश्वर की लीला को तो कोई नहीं समझ सका है, उसके आगे किसकी चली है आखिर बंद कोठरी में कौन झांक सका है। बेटे होने की शर्तिया दवाई के बाद भी जांच में लड़की ही आई। संजना तो गश खाकर गिर पड़ी हफ्ता दस दिन ऐसे पड़ी रही।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या ना करें, किससे कहे कहे कि वो अब अबॉर्शन नहीं चाहती। दिन ऊपर चढ़ रहे थे ज्यादा समय बीतने पर खुद उसकी जान को जोखिम था आखिर एक बार फिर सभी ने उसे अबॉर्शन के लिए मना लिया।
आज शुक्रवार को दोपहर का समय अबॉर्शन के लिए डॉक्टर से ले लिया गया था। संजना ने देवी मां की पूजा की कि मां मुझे रास्ता दिखा। संजना बस रोते जा रही थी, उसकी दोनों बेटियां संजना से पूछती ,मां आप क्यों रो रही हो तो वह सीने से दोनों बच्चियों को लगाकर और जोर से रोने लगती।
तभी संजना के पापा का उसके मायके से उसके लिए फोन आया। उन्होंने संजना से पूछा कि तू कैसी है, क्या बात है, तेरी मां ने मुझे बताया कि तू बहुत परेशान हैं, इतना पूछना था कि दिल का दर्द संजना की आंखों से बहने लगा जवान लड़खड़ाने लगी, कहने लगी पापा क्या मैं ठीक कर रही हूं? मुझे नहीं पता पर मैं बच्ची को गिराना नहीं चाहती ।पहले ही बच्ची के अबॉर्शन के बाद पश्चाताप की अग्नि में आज तक जल रही हूं पर अब मैं दोबारा उस पीड़ा को सहन न कर पाऊंगी।
संजना जब अपने दिल का दर्द सब अपने पापा से कह चुकी तब उन्होंने उससे कहा बेटी तू क्या चाहती है पहले वह समझ,तेरा दिल क्या कहता है पहले वह जान ले । एक मां से बढ़कर उसके बच्चे के लिए फैसला लेने का हक किसी को नहीं है।
तुझे याद हो कि कभी मैंने और तुम्हारी मां ने तुम चारों बहनों की परवरिश अच्छे से ना कि हो, कोई कमी छोड़ी हो।जब हम तुम चारों बहनों को पाल सकते है, शादी ब्याह सब कर सकते हैं ,तो क्या तू आज के समय में भी पढ़ी-लिखी होकर तीसरी बेटी को नहीं पाल सकती क्या मैंने तुझे इस लायक नहीं बनाया।
बेटी आज बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है। कल यही तीनों बेटियां तेरा नाम रोशन करेंगी ,और तू उनके नाम से जानी जाएगी, अपने पापा की ये बात लिखकर रख लेना । सिर्फ दुनिया की खातिर अपनी औलाद को मत मार।
बस इतना सुनना था, फिर क्या था संजना ने दृढ़ निश्चय लिया और अडिग निर्णय लिए आंखों से बहते आंसू को पौंछा, और बैठक में आकर सबसे कह दिया कि वह इस बच्ची को नहीं गिराएगी ,चाहे जो हो जाए । चाहे मैं स्कूल में पढ़ाऊंगी ,चाहे सिलाई करुंगी या अपना बुटिक खोल लूंगी, पर एक बार फिर से उस गुनाह की भागीदार मैं नहीं बनूंगी। चाहे कुछ भी हो जाये पर अपनी बच्ची को इस दुनिया में लाकर रहूंगी।
बैठक में बैठे घर के सभी लोग अचरज से उसका मुंह देखने लगे, पर किसी में भी उसको फिर से कुछ कहने की हिम्मत ना हुई ।सभी को लगा साक्षात दुर्गा आज अपनी बच्ची की रक्षा की खातिर संजना के रूप में सामने खड़ी है ।पास ही दोनों बेटियां पलक और पाखी खेल रही थी ,जो कुछ ना समझते हुए भी अपनी मां से लिपट गई ।
आज पूरे चौबीस बरस बाद वह तीन होनहार बेटियों की मां है और उसे बहुत गर्व है बेटियों की मां होने पर,आज उसकी बेटियों ने वो कर दिखाया जो घर के सभी बेटे ना कर सके,आज उसकी बेटियों ने उन सबका गुरुर तोड़ दिया जिन्हें बेटे पाकर बहुत गुरुर था।
बड़ी बेटी पलक बैंक में मैनेजर, उससे छोटी पाखी इंजीनियर और सबसे छोटी बेटी जिसका उसने नाम पंखुड़ी रखा था पर उसे हमेशा प्यार से पंख ही कह कर पुकारा क्योंकि वो शायद अपनी बेटियो को उड़ान देना चाहती थी,उसने तो आज जज की प्रतियोगिता पास कर पूरे शहर में अपने परिवार के साथ-साथ अपनी मां का नाम भी रोशन कर दिया था।
संजना आज मन ही मन बचपन में पढ़ी कविता गुनगुना रही थी..
मत काटो पंख बेटियों के,
उन्मुक्त गगन में उड़ने दो।
क्या कुछ वो कर नहीं सकती,
बस एक स्वछंद गगन तो दो।
मौलिक स्वरचित
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
#गुरुर