“ देख रचित कहे दे रहा हूँ…कान खोलकर सुन ले…जब मैं बड़ा हो जाऊँगा ना मम्मी पापा हमेशा मेरे साथ रहेंगे…. तेरी बीबी तो झगड़ालूहोगी वो रहने ही नहीं देगी साथ में।” बचपन में अक्सर रंजन अपने छोटे भाई से कह कर लड़ता रहता था
“ ये देखो सुमिता हमारे बच्चे अभी मेरे कंधे तक ना आए और ब्याह की बात कर रहे हैं….।” बृजेश जी हंसते हुए कहते
“ अजी ये सब ना राशि के साथ गुड्डे गुड़ियों के खेल खेलते और टीवी देख ऐसी बाते करते रहते… लाख समझाया तो कहते है अरे माँ हमतो खेल रहे हैं थोड़ी ना तुम दोनों को कहीं छोड़कर जाने वाले…।”सुमिता जी हँसते हुए कहती
“अच्छा ये तो बताओ ये तुम्हारी लाडली कहाँ है?” राशि को आसपास ना देख सुमिता जी चिढ़ाते हुए कहती क्योंकि बृजेश जी का राशि से विशेष लगाव था या यूँ कहिए बेटियाँ तो पापा की जान होती है
“ ज़रूर कुछ पका रही होगी अपने मिट्टी के बर्तन में…आएगी ही लेकर देख लेना।” कहते हुए बृजेश जी ने राशि को जैसे ही आवाज़दिया वो अपने छोटे छोटे बर्तन में चाय नाश्ता बना कर ले आई
“ पापा मम्मी ये लो।” कहते हुए राशि ने उन्हें बर्तन पकड़ा दिया
“ वाह वाह क्या बनाया है मेरी लाडो ने… मजा आ गया..।” बृजेश जी नो कहा तो राशि पापा के सीने से लगते हुए बोली,“ ये तो झूठमूठका है एक दिन सच्ची वाला बनाकर खिलाएगी आपकी बेटी।”
पापा बेटी का मिलन देख रंजन और रचित दौड़ कर आ पापा से चिपक गए
“ किसी की नजर ना लगे… मेरे इस प्यारे से घर को ।”सुमिता जी मन ही मन बड़बड़ाते हुए नजर उतार लेती
“ अजी हम सब ऐसे ही साथ साथ रहेंगे ना… वो बड़के भैया के बच्चों की तरह ये सब भी हमें छोड़ कर तो नहीं चले जाएँगे ना।” सुमिताजी अक्सर पूछती
“ सुमिता….जब बच्चे बड़े हो जाते अपना दाना पानी चुगने अपने घोंसले से दूर तो जाते ही है ना… तुम अभी से क्यों सोच रही हो… पगली मैं हूँ ना तुम्हारे साथ हमेशा ।” बृजेश जी कहते हुए सुमिता जी की हथेली पर अपने सुदृढ़ हाथों के दबाव से सांत्वना दे दिया करते
सुमिता जी ना जाने कितनी देर से इन्हीं सब ख़्यालों में खोई हुई थी कि बेटी की आवाज़ सुन उसकी ओर देखने लगी..जाने कितनी देर सेरो रही थी कि आँसू भी सूख चुके थे ।
‘‘ माँ तुम यहां बैठ कर क्या सोच रही हो…अंदर चलो ना…ठंड भी बढ़ रही है तबियत ख़राब हो जाएगी तुम्हारी….देखो ना सब लोग चलेगए है…निकुंज भी जाने की तैयारी कर रहे हैं… वो सब आपसे मिल कर जाना चाहते हैं इसलिए आपको खोज रहे है।’’राशि ने कहा
राशि अपनी माँ को खोजते हुए उनके कमरे में आई तो देखती है सुमिता जी कमरे से सटे बरामदे में बैठ कर आसमान में अपने घर की ओर जाते पंख पखेरू को देख रही थीं और आँसुओं की धार बहकर गालों पर सूख चुके थे ।
‘‘ कुछ नहीं बेटा बस तुम सब का बचपन याद कर पापा की बातें याद कर रही थी कहते थे ना हमेशा साथ रहेंगे…. पर कहाँ रह पाएँ…छोड़ कर चले गए…और ये आसमान में देख ना शाम होते ये पंख पखेरू अपने अपने आशियाने की ओर चल दिए पता नही ये भी अपनेमाँ बाप की देखभाल करेंगें और नहीं?’’ सुमिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा
‘‘ ऐसे क्यों बोल रही हो माँ?….हम सब तुम्हारे साथ ही तो है… सब तुमसे बहुत प्यार करते हैं….ऐसे बोल कर क्यों जी दुखाती हो।‘‘ राशि उदास स्वर में बोली
‘‘ अच्छा दामाद जी के साथ तू भी जा रही है क्या?’’कहते हुए सुमिता जी उठ कर अंदर हॉल में आ गई जहां कुछ और लोग भी उनकाइंतजार कर रहे थे।
‘‘ सुमिता बहन आप अपना ध्यान रखिएगा, हम सब आपके साथ है….किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है…जब भी जरूरत होएक आवाज दे दीजिएगा…हाजिर हो जाएंगे…जाने वाले की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता पर जिन्दगी उनके साथ खत्म तो नही होजाती हैं ना… आपके तीनों बच्चों का भरा पूरा परिवार है वो सदा आपके साथ रहेंगे…अच्छा अब हमें आज्ञा दीजिए हम भी निकलतेहैं….ट्रेन का समय हो रहा है।’’ राशि की सासु माँ ने सुमिता जी से कहा जो राशि के पापा के गुजर जाने को बाद यहाँ उन्हें सांत्वना देनेऔर सँभालने आई हुई थी।
‘‘ जी बहन जी, सब चले जाएंगे तो अकेले कैसे जिन्दगी कटेगी ये सोच कर अंतरात्मा छलनी हुए जा रहा…एक तो पति के साथ छोड़जाने का गम अंदर ही अंदर तोड़ देता है….ऐसे में… खैर किस्मत में इतना ही साथ लिखा कर आई थी….अच्छा आप लोग ठीक सेजाइएगा।‘‘ सुमिता जी कह कर सबको बाहर दरवाजे तक छोड़ने आई
‘‘ राशि तेरा सामान बेटा?’’सुमिता जी ने रोते रोते पूछा
‘‘ बहन जी राशि को आपके पास छोड़े जा रही हूं…निकुंज की छुट्टी बहुत दिन की हो गई है नही तो वो भी रूक जाता…फिर उसके पापाकी तबियत भी आजकल ठीक नहीं रहती इसलिए मुझे साथ जाना पड़ रहा है….आपकी जिम्मेदारी आपके बच्चे बखूबी निभाएंगे चिन्ताना करें….राशि की सास समधन के हाथों पर आश्वासन का हाथ रख कर बोली
सब के चले जाने के बाद सुमिता जी के दोनों बेटे भी अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ निकलने की तैयारी कर रहे थे।
‘‘ अच्छा माँ हम चलते है….अपना ध्यान रखना।’’हर बार की तरह वही बात कहकर दोनों बेटे निकलने लगे ।
बेटे बहू ने झुककर प्रणाम किया और घर से निकल गए।
‘‘ राशि तू भी अपने घर चली जा.. तू क्यों मेरी फिक्र कर रही है बेटा…तेरा भी तो अपना घर परिवार है उसको देख।’’सुमिता जी बोलतेबोलते फूट फूट कर रोने लगी।
‘‘ माँ ऐसे क्यों बोल रही हो? ….सबने बहुत छुट्टियां ले रखी थी…इतने अच्छे जॉब में वो तुम्हारी वजह से ही तो गए है ना….तुमने हमेशाउन्हें उड़ना सिखाया, आगे बढ़ना सिखाया वो बढ़ गए….अब वो पीछे मुड़कर नही देख सकते…..सबका अपना अपना आशियाना है, येसब तो तुम्हारी ही सीख है ना ! तुम भी तो अपने ही आशियाने में रहना ज्यादा पसंद करती हो….मैं इसमें उनको दोष नही दे सकती हूँ….अब छुटियां खत्म हो गई तो वो क्या कर सकते हैं…..कहा तो सबने हमारे साथ चलो तो तुम तैयार ही नही हुई….कुछ दिनों बाद बड़ीभाभी आ जाएगी…. वो बस भैया के लिए सारा इंतजाम करने गई है।’’राशि माँ को समझाते हुए बोली
‘‘ सब समझ रही हूं बेटा, वो आसमान में पंख पखेरू अपने अपने आशियाने की तरफ जाते है वैसे वो भी अपने आशियाने में चलेगए….पीछे सब कुछ छोड़ छाड़ कर।’’हताश स्वर में सुमिता जी ने कहा
सुमिता जी वहीं कुरसी पर बैठकर सोचने लगी…बीस दिन पहले तक सब कितना अच्छा था…पति के साथ मजे से इस घर में रह रही थी…अचानक वो मनहूस सुबह उनकी जिन्दगी में आई, बाथरूम गए उनके पति वही गश खाकर गिर पड़े…दिल का दौरा भी कहा बता करआता है …आया और उनको अपने साथ ले गया….बच्चों को खबर भिजवाई सब आनन फानन में आ गए थे। आखिर नौकरी वाले लोगकितने दिन रूक सकते थे। इसलिए काम क्रिया खत्म होने के बाद सब चले गए।वो तो राशि की सास ने बहू की माँ की दशा देखकर राशि केभाईयों को कहा भी कि अब माँ को अपने साथ ले जाओ पर वो राजी ना हुई। इतने सालों से संवार के रखा आशियाना छोड़ कर जानाउनके लिए असम्भव था।तब यह तय हुआ कि बारी बारी से सब आकर माँ के इस आशियाने के साथ माँ को भी संभालेंगे।
कुछ दिनों तक सब सिलसिलेवार चलता रहा था।पर सब कितने दिनों तक ऐसे कर सकते थे। बहुएं आती तो बच्चों की पढ़ाई कानुक़सान होता। ऐसे में सबने बहुत कहा माँ अब हमारे साथ रहने चलिए। सुमिता जी किसी तरह मन मार कर कुछ दिन पहले अपने बड़ेबेटे के पास रहने चली गईं थीं पर अपने आशियाने से दूर जाने का गम उन्हें अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा था…..वो बीमार रहनेलगी।
‘‘ बेटा ऐसा लग रहा है तेरे पापा मुझे अपने पास बुला रहे हैं, तुम मुझे मेरे घर ले चलो वो वहां अकेले है… कभी उनको छोड़ कर नहीं रहीहूं ना तो मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है….तू जल्दी से मुझे उनके पास ले चल।’’ सुमिता जी दुःखी होकर बोली
बेटा जानता था माँ कभी घर छोड़ कर नहीं रही है इसलिए तबियत खराब हो गई है वो भी बिना वक्त गंवाए माँ को घर ले आया।
अपने घर आकर सुमिता जी पति को हर कोने में खोजते खोजते अचानक गिर पड़ी।
बेटा भागकर माँ के पास आया पर वो तो पति के पास चली गई थी।
अपने आशियाने को छोड़कर जाना वो कभी नहीं चाहती थी। पति के साथ साथ जिन्दगी के सब रंग देख चुकी थी। बच्चों को बहुतलायक बना दिया था। सब अपनी डगर पर निकल चुके थे। सुमिता जी के लिए जीवनसाथी के बिना चलना मुश्किल हो गया थाइसलिए वो भी उस डगर चल पड़ी जिस डगर उनके पति चले गए थे। खुले आसमान में दो पंख पखेरू मिले और आसमान में विचरणकरते हुए आंखों से ओझल हो गए।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#5वाँजन्मोत्सव (पहली रचना)
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