भाभी यह देखो! कांचीपुरम साड़ी….पन्द्रह हजार की ली है। दूसरी साड़ी दिखाते हुए .. यह वाली साड़ी दस हजार की है। इस तरह अपनी साड़ियों की नुमाइश करते हुए दीप्ति अपने मायके में मां और भाभी को अपनी साड़ियां दिखा रही थी। भाभी हाथ लगा कर देखो, इतनी महंगी साड़ियां तुमने कभी देखी नहीं होंगी।
“मम्मी तुम्हारे दामाद जी कहते हैं खूबसूरत साड़ी पहनने के लिए ही तुम बनी हो। इतनी सुंदर साड़ी पहनने के लिए एक खूबसूरत औरत चाहिए।”…. इसीलिए दीपांकर कभी भी सस्ती मद्दी साड़ी मेरे लिए नहीं खरीदते हैं। अप्रत्यक्ष अपनी खूबसूरती की चर्चा खुद ही करती रही।
सुहाना ननद की साड़ियां देखकर बहुत खुश हो रही थी, क्योंकि सचमुच उसे इन सब साड़ियों के नाम मालूम नहीं थे। दीदी इस साड़ी को क्या कहते हैं उसने एक साड़ी देखते हुए पूछा…दीप्ति ने तुरंत हाथ से झटकते हुए साड़ी ले ली!! तुम यह सब जानकर क्या करोगी? क्योंकि तुमको तो खरीदना है नहीं? यह सब हाई क्लास फैमिली की लेडीज़ ही पहनती है। इन सब साड़ियों के बारे में जानकर बेकार में तुम मांँ और भैया से साड़ी लेने की जिद करोगी!!
वह लोग भी सोचेंगे कि दीप्ति ने भाभी को सुंदर-सुंदर साड़ियां दिखाकर आदत खराब कर दी। इसलिए तुम्हें साड़ियों के नाम जानने की कोई जरूरत नहीं।
सुहाना का पति जैसे भी कपड़े लाकर देता वह बिना कुछ तर्क किए खुशी-खुशी पहन लेती… उसने कभी कोई जिद नहीं की- कि उसे ऐसी, वैसी महंगी साड़ी चाहिए। सुहाना की एक खासियत थी, वह चाहे कितने ही कम दाम की साड़ी क्यों न पहने लेकिन उसका पहनने का ढंग बहुत अच्छा था… ऐसा लगता था कि सुहाना के बदन से लिपटकर उस साड़ी की कीमत बढ़ गई है।
सुहाना पता नहीं किस मिट्टी की बनी थी उसे किसी के सामान को देखकर न कभी जलन और न ही दुख होता… बल्कि सब की खुशियां देखकर उसका अंतर्मन खुशियों के हिलोरे खाने लगता।
सुहाना अच्छे खासे, खाते-पीते मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी लेकिन उसका विवाह निम्न वर्गीय परिवार में हुआ। इसी परिवार की बेटी दीप्ति का विवाह रंजन के साथ हुआ जो बिजनेसमैन थे। विवाह के उपरांत दीप्ति के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे सभी के सामने ढोल बजा- बजा कर अपनी अमीरी के किस्से सुनाती रहती।
सुहाना ने कभी अपने मायके की डींगें नहीं हाकी… उसका मानना है कि मायका कितना भी अमीर क्यों न हो लेकिन उसकी असली पहचान इसी घर से है। उसने अपने मायके में सब कुछ देखा था।
धैर्य और संयम और विनम्रता उसके गहने थे जो कभी भी उससे अलग नहीं हुए ।
कुछ दिन के बाद सुहाना ने एक बेटी और दीप्ति ने एक बेटा को जन्म दिया। पूरे परिवार में खुशियां ही खुशियां थी।
सात- आठ माह के बाद दीप्ति मांँ के घर आई। बेटा होने के बाद उसके नखरे ही अलग थे। सुहाना की बेटी बहुत प्यारी गोल मटोल सी थी जिसे देखते ही किसी का मन उसे गोद में लेने के लिए मचल उठता… वही दीप्ति का बेटा दुबला पतला सारा दिन रोता रहता।
एक दिन सुहाना अपनी बेटी गोलू को सरसों तेल से मालिश कर रही थी… इसके बाद उसने दीप्ति के बेटे डिंपू की भी मालिश की। दीप्ति यह देखकर भाभी के ऊपर भड़क गई
अरे! “तुमने यह क्या किया??”
मैंने अपने डिंपू को सरसों के तेल से कभी मालिश नहीं की….तुरंत जाकर एक ब्रांडेड तेल लाकर दिखाने लगी, हम इस तेल से मालिश करते हैं।
सुहाना ने कहा सॉरी दीदी!! मुझे मालूम नहीं था दरअसल मैं गोलू को सरसों के तेल की ही मालिश करती हूंँ इसीलिए…
दोपहर में सुहाना ने गोलू को दाल का पानी पिलाया इसके बाद उसने डिम्पू को भी दाल का पानी दो चम्मच ही पिलाया था….” कि तभी दीप्ति जोर से चिल्लाई।”
अरे नहीं!! भाभी उसको यह मत खिलाना… मैं इस समय बच्चे को जूस पिलाती हूंँ। और हां…जो तुमने खिचड़ी बनाई है वह तुम अपनी बेटी को ही खिलाना, मैं तो डिम्पू को रेडीमेड बना हुआ खाना ही खिलाती हूंँ।
मांँ बोली सुहाना जो बच्चे को खिलाती है वही सब बच्चों को खिलाना चाहिए, इससे बच्चे स्वस्थ रहते हैं विकास भी खूब होता है।
दीप्ति चहककर बोली… वह सब मुझे पसंद नहीं। दीप्ति की हर बात में पैसे का गुरुर दिखता था।
मम्मी!! मेरे डिम्पू को ज्यादा कोई गोदी नहीं उठाता है सारा दिन सभी गोलू को ही गोद उठाकर दुलराते रहते है।
कुछ समय के बाद सुहाना के सुंदर पालन- पोषण से गोलू पर दिखने लगा वहीं डिम्पू हमेशा ही बीमार रहता था । डॉक्टर ने उसे हरी सब्जियां, दालें, फल यह सब खाने की सलाह दी।
डिंपू बड़ा होने लगा उसे बाहर के ही खाने की आदत पड़ गई। घर का खाना वह बिल्कुल पसंद नहीं करता। दीप्ति भी अपने बेटे को मोहवश उसके पसंद का ही खाना मंगा कर देती थी। नतीजा यह हुआ उसके लीवर में प्रॉब्लम रहने लगी।
बड़ी-बड़ी बातें बनाना दीप्ति का काम था। अगर सुहाना अपनी कोई राय रखती तो उसे तुरंत छिड़क कर बोलती… तुम्हें तो कोई आईडिया ही नहीं है यह सब बड़े घराने की बातें है। एक बार मांँ ने दीप्ति को समझाया कि अपनी भाभी के साथ बेरुखी से बात न किया करें वह भी बहुत अच्छे खानदान की बेटी है। उसने भी अपने घर में सब कुछ देखा है…लेकिन उसने यहां कभी अपने मायके का ढिंढोरा नहीं पीटा। मेरी जैसी भी परिस्थिति है उसी के साथ सामंजस्य बैठा लिया।
दीप्ति मुंह बिचकाते हुए सिर्फ हुंह….. बोली।
वक्त का ऐसा पहिया घूमा कि दीपंकर का बिजनेस ठप्प हो गया, इससे उबरने के लिए उसने बहुत कोशिश की लेकिन बिजनेस को बचा न पाया। धीरे-धीरे जमा पूंजी भी खत्म होने की कगार पर आ गई। क्योंकि दीप्ति का हाथ तो खुला था।
दीपांकर को दूसरा बिजनेस खड़ा करने के लिए पैसों की आवश्यकता थी लेकिन… उसके जो गहरे मित्र थे उसे देखते ही कन्नी काटने लगे सोचते कहीं पैसों की मांग न कर दे। दीपांकर अर्श से फर्श पर आ गए।
इन सभी परिस्थितियों का डिंपू पर बहुत बुरा असर हुआ। वह मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गया। दोबारा पढ़ने के लिए आर्थिक व्यवस्था नहीं थी। दीपांकर और दीप्ति अब सोच-सोचकर बहुत परेशान रहने लगे।
कुछ दिनों के बाद दीप्ति अपने मायके आई। घर वालों से उसकी हालत छुपी न रही। सुहाना ने कहा दीदी आप धैर्य से काम लीजिए। जीजा जी से दोबारा अपने बिजनेस को खड़ा करने के लिए कहिए, सब ठीक हो जाएगा। दीप्ति के सब्र का बांध टूट पड़ा और वह भाभी के गले लग कर रोने लगी। अब बिजनेस तो दूर खाने के लाले पड़ गए हैं?
सुहाना को अपनी ननद की ऐसी हालत देखकर बहुत दुख हुआ। वह बोली आप डिंपू की चिंता न करें उसका दाखिला गोलू के स्कूल में ही करवा दूंगी और उसकी पढ़ाई के जिम्मेदारी हम लेते हैं।
दीदी….आप भी तैयार हो जाइए!! आज शाम को गोलू के स्कूल हम सभी को जाना है।
किस लिए?? दीप्ति बोली।
गोलू अपने जिले में पहला स्थान पाई है इसलिए उसके स्कूल में उसको सम्मानित किया जाएगा। स्कूल की तरफ से हम सभी को इनवाइट किया गया है।
दीप्ति सोचने लगी उसने जिंदगी के कितने खूबसूरत हसीन पल #पैसों के गुरुर में ही खो दिए हैं।
काश! वह भी अपने परिवार को सुव्यवस्थित रखती तो शायद आज ऐसी नौबत नहीं आती।
दूसरे दिन दीप्ति वापिस ससुराल जाने लगी तो मांँ बोली कुछ दिन और ठहर जाओ!!
नहीं मांँ… अब मेरी आंख खुल गई है मुझे भी भाभी की तरह अपने परिवार को सहेजना है।
“चलते समय सुहाना ने अपनी ननद की मदद के लिए उसके हाथ में एक लाख दिए और कहा दीदी इन पैसों से शायद कुछ आपकी मदद हो जाए…. ”
दीप्ति को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके मायके में इतनी मोटी रकम भी होगी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह बोली इतना पैसा कहां से आया??
सुहाना बोली- दीदी मैंने थोड़ा-थोड़ा करके गोलू की पढ़ाई के लिए बचाए थे। अभी इन पैसों की उसे जरूरत नहीं है। आगे की पढ़ाई के लिए उसे स्कॉलरशिप मिल गई है और स्कूल की तरफ से उसकी पढ़ाई फ्री कर दी गई है। अभी इन पैसों की आपको आवश्यकता है।
दीप्ति अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थी। भाभी को गले लगा कर रोने लगी…. भाभी मुझे माफ कर दीजिए। आपने मुझे सही सीख देने की कई बार कोशिश की… लेकिन मैं हमेशा आपको दुत्कारते हुए अपने अहंकार में चूर रही।
– सुनीता मुखर्जी श्रुति
लेखिका
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल