“पैसा नहीं संस्कार बोलते हैं” – हेमलता गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

देखिए शर्मा जी… आप यह सगाई नहीं तोड़ सकते आप एक बार सोच कर देखिए मेरी बेटी का क्या होगा.. मेरी इज्जत पूरे समाज में मिट्टी में मिल जाएगी मैं इतने बड़े-बड़े लोगों को इस सगाई में लेकर आया हूं उनके सामने मेरी नाक कट जाएगी, आपको पैसे चाहिए ना… बोलिए कितने दूं… 5 लाख 10 लाख 20 लाख, किंतु मेरी बेटी को स्वीकार कर लीजिए!

देखिए त्रिपाठी जी… आप अपने पैसे की  अकड़ किसी और को जाकर दिखाइए मेरे पास भी पैसे की कोई कमी नहीं है मेरा बेटा इंजीनियर है तुम्हारी बेटी के जैसे तो लाखों रिश्ते आए पड़े थे किंतु पता नहीं मेरे बेटे ने आपकी बेटी में क्या देखा हमें तो आपकी बेटी की असलियत पता ही नहीं थी,

हम तो अपने बेटे के आगे झुक गए ,फिर भी हमने जैसे तैसे राजी खुशी इस रिश्ते को मान लिया था किंतु जब हमें आपके ही किसी अपने से पता चला कि आपकी बेटी विदेश में 3 साल तक किसी लड़के के साथ रिलेशनशिप में रहकर आई है तो हम ऐसी लड़की को कैसे अपने घर की बहू बना ले,

आप पैसे वालों की सोसाइटी में यह सब चलता होगा पर अभी हमारे यहां यह सब नहीं चलता और ना ही मैंने अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दिए हैं की शादी से पहले वह किसी भी लड़के लड़की के साथ में जाकर रहे! हां शर्मा जी.. में मानता हूं मैंने यह बात आपसे छुपा कर रखी थी किंतु एक बात बताइए अगर मैं यह बात आपको बता देता तो क्या आप इस शादी के लिए हां करते?

वाह  त्रिपाठी जी… यही सवाल मैं आपसे पूछूं तो.. अगर यह बात शादी के बाद हमें पता चलती तो तब क्या हम आपकी बेटी को अपना पाते ,दोनों बच्चों के आपसी संबंध खराब होते सो अलग, वैसे मेरी राय माने तो बेहतर होगा आप अपनी ही सोसाइटी में और जिन्हें अपने पैसों का बहुत गुरूर हो उन्हीं के घर में जाकर यह रिश्ता कीजिए!

हम आपके जितने आधुनिक विचारों वाले नहीं है हम एक सामाजिक प्राणी है जो समाज के रीति रिवाज का निर्वाह करते हैं और शायद हमारे  समाज में अभी भी किसी भी गैर मर्द या गैर औरत के साथ संबंध रखना नाजायज कहलाता है! त्रिपाठी जी के लाख गिड़गिड़ाने पर भी शर्मा जी का  मन नहीं पिघला और वह सगाई की रस्म तोड़कर वापस अपने घर आ गए और इधर त्रिपाठी जी भी मायूस होकर अपने घर लौट आए!

घर जाकर उनकी पत्नी ने कहा… क्यों जी आपका पैसा काम नहीं आया तोड़ दी सगाई, यह तो होना ही था मैंने आपसे पहले ही कहा था की अपनी बेटी को सुशिक्षित कीजिए और  अपने संस्कार दिजिए किंतु आपने अपने पैसों के गुरूर के आगे मेरी एक न चलने दी आपको लगता था आपके पैसों के दम पर कोई भी तुम्हारे बच्चों के हाथ थाम लेगा,

तुम्हारा बड़ा बेटा जो कुछ नहीं कर पाया उसको आपने अपने पैसों के कारण एक फैक्ट्री डलवा दी किंतु बेटी का क्या करेंगे, आज आप चाहे कितना भी रईस या धनवान बन जाए किंतु कोई भी  सज्जन व्यक्ति ऐसी बेटी को अपने घर की बहू नहीं बनाएगा जो 3 साल तक किसी गैर मर्द के साथ एक ही घर में रही हो,

जब मैंने आपको इन सबके लिए मना किया था तब आपने और बेटी ने मुझे छोटी सोच वाली बोलकर चुप कर दिया किंतु आज क्या हुआ ,यह भारत है हमारा देश, जहां पर शादी से पहले इस तरह की बातें सहन नहीं होती है अब ढूंढते रहो अपनी बेटी के लिए किसी उच्च घराने का संस्कारवान और आपकी नजरों में इज्जतदार बेटा, जिस लड़के के साथ यह 3 साल रहकर आई है

उसने भी इसके साथ शादी करने से मना कर दिया, चलो… अब क्या कर सकते हैं देखते हैं.. कोई ना कोई तो इसके भाग्य में भी लिखा होगा! सुधा की बातें सुनकर उनके पति त्रिपाठी जी बोले… तुम सही कह रही हो सुधा मैं पैसों के गुरुर में इतना अंधा हो गया था कि मैंने अच्छा बुरा देखना भी बंद कर दिया आज जब बेटी के रिश्ते की बात चल रही है

और कोई भी इसके अतीत को जानकार इससे शादी करने को तैयार नहीं है तब मेरा घमंड   टूट गया, आज भी लोग संस्कारवान बच्चों को ही पसंद करते हैं ना की पैसे वालों को, पैसा अपनी जगह है किंतु उसके साथ संस्कार होना बहुत बड़ी चीज है जो शायद मैं अपने बच्चों को नहीं दे पाया! मैं समझ गया आज भी दुनिया में पैसा नहीं संस्कार बोलते हैं!

    हेमलता गुप्ता  स्वरचित .   

    कहानी प्रतियोगिता  #पैसे का गुरुर 

   “पैसा नहीं संस्कार बोलते हैं”

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