Moral Stories in Hindi : मेरा नाम मुरली है । कुछ महीने पहले मैंने एक गेटेड कम्यूनिटी में अपना घर बनवाना शुरू किया था । वह शहर से दूर था परंतु मेरे ऑफिस के लिए नज़दीक है और मेरी नई नई शादी हुई थी तो हमने वहाँ घर बनाने का निर्णय लिया और जल्दी जल्दी घर बनाने लगे लगभग सात आठ महीने में मेरा इंडिपेंडेंट विला तैयार हो गया था । मेरे भाई बहन और दूसरे रिश्तेदार गृहप्रवेश में आए थे । अभी पूजा ख़त्म हुई ही थी कि नहीं एक महिला दनदनाते हुए घर के अंदर आई और कहने लगी कि मुझे नहीं बुलाया मैं तुम्हारे पिछवाड़े में रहती हूँ । कोई बात नहीं है मैं खुद ही आ गई हूँ कहते हुए मेरे हाथ में गिफ़्ट पकड़ाया और सबसे मिलकर ऐसे बातें करने लगी जैसे वह हमें सालों से जानती हो ।
उनका नाम सुहासिनी है ।
थोड़ी देर के बाद वे हम सबसे विदा लेकर चली गई । घर में सब हँसते हुए कह रहे थे कि तूफ़ान जैसे आकर चली गई है पर बहुत ही अच्छी मिलनसार स्वभाव की हैं । मैं पत्नी के साथ घर में शिफ़्ट हो गया था । उन्होंने दो दिन तक अपने घर से हमारे लिए खाना पीना चाय नाश्ता सब भेजा । इतना तो शायद हमारे अपने भी नहीं करते होंगे ।
वहाँ उस कोलोनी में आने के बाद मुझे पता चला कि सुहासिनी जी उस कोलोनी की जान हैं । सब लोग उन्हें मामी कहकर पुकारा करते थे । वे बड़े बूढ़े छोटे बड़े सबके लिए मामी बन गई थी ।
उनके कारण ही वहाँ लोग मिल-जुलकर रहते थे । हर इतवार को कोई ना कोई प्रोग्राम रखती थी जैसे पेड़ लगाना सफ़ाई अभियान सब हँसते गाते काम पर लग जाते थे । अभी कुछ दिन पहले ही सर्वे में पता चला था कि झाड़ पेड़ों के कारण हमारे यहाँ के तापमान में और शहर के तापमान में बहुत अंतर है । त्योहार हो या किसी के घर में फ़ंक्शन हो या बीमारी हो हर हालत में वे उनकी मदद के लिए पहुँच जाती थी ।
उनके पति एक सरकारी दफ्तर में नौकरी करते थे । एक ही बेटा है पूरब । मामी इतने लोगों की मदद करने के बावजूद अपने पति या बेटे के लिए अपना समय देना नहीं भूलतीं थीं ।
सब दिन एक समान नहीं होते हैं। एक दिन मामी के पति की एक्सिडेंट में मृत्यु हो गई वे दसवीं भी पास नहीं थी इसलिए उन्हें पति के ऑफिस में नौकरी नहीं मिली । पूरब उस समय दसवीं की परीक्षा दे रहा था । मामी पति के पी एफ के पैसे और पेंशन से ही किफ़ायती से अपना घर चला रहीं थीं ।
बेटे की दसवीं होते ही बारहवीं के साथ साथ उसे आई आई टी कोचिंग में दाखिल कर दिया । वे अपने बेटे से कहतीं थीं कि तुम्हें आई आई टी में इंजीनियरिंग करके अमेरिका में एम एस करने जाना है । पूरब बचपन से माँ के मुँह से यही बातें सुनता आ रहा था । वह वैसे होशियार था ऊपर से कोचिंग के कारण अच्छे अंक लाने लगा ।
मामी इधर अपने सेवा कार्यक्रमों में और भी ज़्यादा भाग लेने लगी जैसे वे अपने आप को व्यस्त रखना चाहती हो ।
पूरब को मुंबई आई आई टी में सीट मिल गई देखते देखते वह अमेरिका में एम एस करने के लिए चला गया था ।
मामी के पड़ोस में उनके मुँह बोले भाई भाभी रहते थे । जब मामी अपने पति के साथ यहाँ आई थी उसके एक साल पहले ही राघवेंद्र जी अपनी पत्नी सुवर्णा के साथ यहाँ रहने के लिए आए थे । दोनों परिवारों में बहुत ही मेलजोल बढ़ गया था कभी कभी एक दूसरे के घर खाना खाने भी लगे थे । राघवेंद्र जी को सुहासिनी भाई कहकर पुकारती थी । पूरब भी उन्हें मामा कहता था । आज जब सुहासिनी अकेली है तो उनका ही सहारा था ।
मैंने लोगों के मुँह से सुना था कि मामी अपनी और पूरब तथा पति के जन्मदिन या किसी भी अवसर पर अनाथों को खाना खिलाया करती थी ।
उन्होंने कॉलोनी वासियों को सिखाया था कि अनाथों या वृद्धाश्रम में कुछ कपड़े लत्ते दिया करें । ज़रूरत मंदों की सहायता करना सबने उनसे ही सीखा था ।
हमारा कॉलोनी शहर से दूर था इसलिए भिखारी भूले भटके से आते थे । कभी भी कोई आता है तो मामी उसे खाना खिलाकर अपने घर के बाहर के पलंग पर थोड़ा सा आराम करने के लिए कहती थी ।
पूरब राघवेंद्र जी को खत लिखता था उनसे फोन पर बातें करता था । लेकिन माँ से सिर्फ़ हाय हेलो का ही रिश्ता रखा था कारण किसी को नहीं मालूम था ।
मैं एक दिन सुबह से ही सुहासिनी जी को नहीं देखा तो मुझसे रहा नहीं गया । मैं सीधे उनके घर में चला गया तो मुझे किसी के सिसककर रोने की आवाज़ सुनाई दी मेरे कदम धीरे-धीरे उस तरफ चलने लगे । मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने सुहासिनी जी को रोते देखा । मुझे देखते ही उन्होंने आँसू पोंछा और पूछा कुछ चाहिए है क्या?
मेरे ना में सर हिलाने पर उन्होंने हाथ हिलाकर मुझे बाहर जाने के लिए कहा । मैं बाहर आ गया पर एक प्रश्न मेरे दिमाग़ में घूम रहा था कि हमेशा हँसते हुए रहने वाली मामी के दिल में क्या दर्द है?
उस दिन के बाद से वे बाहर कम दिखाई देतीं थीं । हम सबको उन्हें इस तरह देख बुरा लगता था । एक दिन हम सब की प्यारी मामी नींद में ही चल बसी थी । कामवाली बाई ने बताया था कि जब वह आई थी तो उन्होंने ही दरवाज़ा खोला था । हर रोज़ वे चाय हम दोनों के लिए बनाती थी । मैं बर्तन माँजते हुए चाय के लिए मामी के बुलाने का इंतज़ार कर रही थी जब बहुत देर तक उन्होंने नहीं बुलाया था तो मैं उनके कमरे के पास गई देखा तो वे कमरे में आँखें खोलकर पड़ी हुई थी । उसके बताने पर हम सब उनके घर पहुँच गए थे । राघवेंद्र जी ने पूरब को फोन किया आकर उन्होंने सबको बताया था कि पूरब नहीं आ रहा है । उसे छुट्टी नहीं मिलेगी हमें ही सारे कार्यक्रम निपटाने को कह रहा है। अगर हो सके तो दसवें दिन आने की कोशिश करूँगा ।
सबको बहुत बुरा लगा लेकिन उनके चाहने वाले बहुत हैं सबने उनका अंतिम संस्कार धूमधाम से किया। वह दसवें दिन भी नहीं पहुँचा ।
सुहासिनी को गुजरे एक महीना हो गया था । हम सब उनकी यादों से बाहर निकल कर अपने जीवन में आगे बढ़ रहे थे ।
एक दिन सुबह मैं नहाकर बाथरूम से बाहर निकला ही था कि राघवेंद्र जी का फ़ोन आया था कि जल्दी से मेरे घर पहुँच ।
इतनी भी क्या जल्दी है ऐसा सोचते हुए मैं कपड़े पहनकर उनके घर पहुँचा । जैसे ही मैंने बैठक में पैर रखा राघव खड़े होकर कहने लगा नमस्ते अंकल कैसे हैं ?
पूरब गोरा और थोड़ा मोटा भी हो गया था । वह बहुत ही खुश नजर आ रहा था लेकिन उसके चेहरे पर माँ को ना देख सकने का गम नहीं दिख रहा था । वह राघवेंद्र से कह रहा था कि मैं अपने घर को बेच कर जाना चाहता हूँ । मुझे अब यहाँ आना ही नहीं है । ( जैसे जब माँ थी तो हर साल आ जाता था )
राघवेंद्र ने कहा पूरब तुम्हारी माँ की अंतिम इच्छा क्या थी तुम्हें मालूम है?
पूरब ने कहा मामा आपको तो मालूम है ना कि मैं अपनी माँ से ज़्यादा बात नहीं करता था । मेरी ज़्यादा आपसे ही बातें होती थी । उसने तो मुझसे मेरा बचपन ही छीन लिया था । जब देखो तब पढ़ो पढो कहते हुए मुझे दोस्तों से भी नहीं मिलने देती थी ।
मैं तो परेशान हो गया था । मेरा बचपन जवानी सब पढ़ाई करते हुए ही बीत गए थे । उनसे छुटकारा पाने के लिए ही मैं हॉस्टल से नहीं आता था । मैं यहाँ आता भी तो बोर हो जाता था इसलिए पढ़ाई का बहाना बनाकर वहीं रह जाता था ।
मैं अमेरिका गया तो दो तीन बार माँ से कहा भी था कि मेरे साथ चल परंतु वे नहीं मानी इसलिए मैंने भी उन्हें यहीं छोड़ दिया है ।
हम उसकी बातों को आश्चर्यचकित हो सुन रहे थे ।
राघवेंद्र जी ने कहा कि पूरब आज अपनी ज़िंदगी इतने आराम से बिता रहे हो और इतना पैसा कमा रहे हो यह सुहासिनी की देन है । बचपन से तुम्हारी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया होता तो तुम कहाँ रहत थे बोलो?
एक राज की बात बताऊँ जो यहाँ किसी को भी नहीं मालूम है ।
पूरब एक दिन तुम्हारी माँ रात के समय एक फ़ंक्शन से आ रही थी तो तुम्हें एक कचरे के ढेर पर रोते हुए देखा उनका दिल पिघल गया और वे तुम्हें पिता के मना करने पर भी ले आई । तुम्हें अपने बच्चे के समान पाल पोसकर बड़ा किया तुम्हें एक पहचान दी ।
आज तुम उसी माँ के लिए इतनी बातें कर रहे हो ।
पूरब उनकी बातों को सर झुकाए हुए सुन रहा था । बेटा बचपन में वे तुम्हें अनुशासन में नहीं रखती तो तुम ऐसे नहीं रह सकते हो । जिन्होंने तुम्हारी इस समाज में पहचान बनाई है उनकी कद्र करो चाहे वे तुम्हारे सगे माता-पिता ही क्यों ना हो । पूरब ने आँखों में आँसू भरकर कहा मामा जी माँ की अंतिम इच्छा बताइए मैं पूरी करूँगा ।
राघवेंद्र जी ने कहा कि तुम्हारी माँ चाहती थी कि इस घर को अनाथालय को दे दिया जाए
पूरब ने उसी समय राघवेंद्र जी की सहायता से अपनी कॉलोनी के पास जो छोटा सा अनाथालय था उसके ट्रस्टी से मिलकर अपने घर में उन सबको शिफ़्ट करा दिया था क्योंकि वह बहुत ही छोटा सा था । सुहासिनी जी पर जो प्यार था उसके कारण सब ने उस अनाथालय का दिल से स्वागत किया उनके कारण कॉलोनी के लिए एक पहचान भी थी ।
के कामेश्वरी