काका की मृत्यु के बाद राजेन्द्र अकेला ही दुनिया मे रह गया।बचपन मे ही माता पिता के निधन के बाद काका ने ही उन्हें पाला पोसा था,अब वो भी नही रहे थे।राजेन्द्र की हार्दिक इच्छा थी कि वह काका की खूब सेवा करे,आखिर वह नौकरी कर कमाने लगा था।काका ने राजेन्द्र को कोई मौका दिया ही नही।
अब तक काका और राजेंद्र मिलकर घर गृहस्थी चला रहे थे,गृहस्थी क्या, बस दोनो मिलकर खाना नाश्ता बना लेते थे।अब राजेन्द्र को खुद अपना खाना आदि बनाना पड़ता।इधर कुछ दिनों से उसकी जान पहचान अवनी से हो गयी थी।अवनी का आश्रय स्थल अनाथालय था,वह वही रहती थी,वही रहकर पढ़ाई की,और अब जॉब में नयी नयी आयी थी।
अनजाने में ही राजेन्द्र अवनी की ओर आकर्षित हो गया।दोनो ही एक प्रकार से अनाथ ही थे,दोनो का दुनिया मे कोई नही था।राजेन्द्र के काका भी दुनिया छोड़ चुके थे।लंच टाइम में जब कभी राजेन्द्र और अवनी कैंटीन में चाय पीने जाते तो एक दूसरे का साथ पाकर उन्हें शांति और आत्मविश्वास का अहसास होता,उनका मन मे छाया अकेला पन छट जाता।
दोनो इस परिवर्तन को महसूस तो करते पर एक दूसरे को कह नही पाते।आखिर संकोच की इस दीवार को राजेन्द्र ने ही तोड़ा,अवनी क्या तुम जीवन भर मेरे साथ बंधकर रहना चाहोगी?ये ही वह वाक्य था जिसमे राजेन्द्र और अवनी के समस्त सपने जुड़े थे। शर्माती अवनी ने आंख झुकाकर अपनी सहमति दे दी।
कुछ मित्रो और सहकर्मियों की उपस्थिति में दोनो ने आर्यसमाज में सात फेरे ले एक दूसरे को अंगीकार कर लिया।जीवन मुस्कुरा उठा।स्वर्ग स्वयं ही धरती पर उतर आया।कितना सुख है बंधन में यह राजेन्द्र और अवनी दोनो ही महसूस कर रहे थे। पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी थी विष्णु शरण जी एवं उनकी पत्नी सरोज ने,जो रामदेवरा बाबा की कृपा से पूर्ण हुई थी,सो अपने पुत्र राजेन्द्र को लेकर दोनो रामदेवरा के मंदिर जा रहे थे।
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वापसी में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी।इस भयंकर हादसे में विष्णु शरण जी एवं सरोज दोनो की ही मृत्यु हो गयी,चमत्कारिक रूप से दो वर्षीय राजेन्द्र को खरोंच तक न आयी।तीन दिनों तक बालक राजेन्द्र थाने में ही खेलता रहा,सिपाहियों के लिये एक खिलौना बन गया। तीन दिन बाद एक व्यक्ति जिसे सब काका कहते थे उसने राजेन्द्र को गोद लेने की इच्छा प्रकट की,काका निःसंतान थे,
उन्हें नन्हे राजेन्द्र की शरारती हरकतों ने मोह लिया था।कानूनी प्रक्रियाओ को पूर्ण कर राजेन्द्र को काका अपने घर ले आये।काका एवम उनकी पत्नी के लिये राजेन्द्र ही सबकुछ हो गया था,उसकी परवरिश में काकी का समय कैसे बीत जाता उन्हें पता भी नही चलता।10 वर्ष की अवस्था मे काकी ने भी स्वर्ग की राह पकड़ ली।अकेले काका ने ही राजेन्द्र को बड़ा किया,पढ़ाया लिखाया।जब सुख के दिन आने को थे वे भी काकी का वियोग न सहते हुए उनके पास प्रस्थान कर गये।निपट अकेला रह गया राजेन्द्र,तभी उसके जीवन मे आ गयी अवनी।
अवनी को तो बस अनाथालय में ही यह जानकारी मिली कि कोई उसे अनाथालय के पालने में चुपके से छोड़ गया था, तभी से वह वही रही,पढ़ी लिखी।राजेन्द्र से परिचय हुआ तो दोनो प्रणय सूत्र में बंध गये।राजेन्द्र और अवनी दोनो ही एक दूसरे को बेइंतिहा प्यार करते,दोनो ही एक दूसरे से पूर्ण संतुष्ट थे।जीवन चक्र घूम रहा था,अवनी गर्भवती हो गयी थी,दोनो की खुशी का कोई ठिकाना नही था।बस कभी कभी मन मे आता उनका तो कोई है नही,तो इन दिनों में कौन अवनी की देखभाल और चिन्ता करेगा?इस प्रश्न का कोई उत्तर उनके पास नही था।
कुछ दिन पूर्व ही उनके पड़ोस में एक परिवार किराये पर आकर रहने लगा था।एक दिन एक लगभग 60 वर्षीय महिला उनके यहां फ्रिज का बर्फ लेने आयी, उनका फ्रिज तब तक चालू नही हुआ था।अवनी ने उन मांजी को बड़े ही सम्मान से बिठाया चाय को पूछा।
तभी पता चला कि वे पड़ोस में आयी है,उनका बेटा बाहर विदेश में जॉब करता है, यहां उनकी बहू और वे ही हैं।बहू का वीजा बन जायेगा तब वह भी अपने पति के पास चली जायेगी।कहते कहते उनकी आंखें छलक गयी जिन्हें वे छिपाने का प्रयास करती दीखी।शायद ये भविष्य में होने वाले अकेलेपन का पूर्व अहसास था।
उस दिन के बाद वे कभी भी अवनी के पास आ जाती। गर्भावस्था में रखे जाने वाली सावधानियां बताती।अपने अनुभव शेयर करती।मांजी ने अवनी को कुछ धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ने को दी और कहा बेटी इनसे होने वाले बच्चे को अच्छे संस्कार मिल जाते हैं।सच बात तो ये थी कि मांजी चुपके से अनजाने में ही राजेन्द्र और अवनी की माँ ही बन गयी थी,वे उन्हें परिवार से अलग लगती ही नही थी।
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डिलीवरी का दिन नजदीक ही था,राजेन्द्र ने ऑफिस से छुटियाँ ले ली थी।उस दिन राजेन्द्र अपने ऑफिस की चाबी देने कुछ देर में ही आने को कह चला गया।तभी अवनी को लेबर पेन उठने लगे।दर्द से बेहाल अकेली अवनी सोच रही थी क्या करूँ कि मांजी आ गयी,उन्होंने अवनी की हालत देखी तो उसे संभाल कर बोली चिंता मत करना बेटी,मैं सब सम्भाल लूंगी।
मांजी ने राजेन्द्र को फोन करके सीधे हॉस्पिटल पहुंचने को कहा और टैक्सी बुला खुद अवनी को ले हॉस्पिटल पहुंच गयी।पहली डिलीवरी थी,ऑपरेशन होना था,राजेन्द्र भी इस बीच आ गया।ऑपरेशन से अवनी को पुत्र प्राप्ति हुई।उन्हे हॉस्पिटल में 8-9 दिन रहना पड़ा।मांजी ने सब कुछ जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था,घर से खाना नाश्ता भिजवाना और अवनी के पास बैठना,मांजी सब अवनी को अपनी बच्ची मान कर कर रही थी।
आज हॉस्पिटल से अवनी को ले राजेन्द्र घर पहुंचा तो देखकर दंग रह गया कि मांजी ने घर मे पहले ही सब तैयारी कर रखी थी।अवनी और मुन्ना के स्वागत को मांजी जैसे ही आगे बढ़ी अवनी ने मुन्ना को मांजी के चरणों मे लिटा दिया और बोली माँ लो अपने मुन्ना को आपके आशीर्वाद से ही तो हमे मिला है,आपका ही इस पर पहला हक है।मांजी ने भावविभोर हो मुन्ना को उठा अपनी छाती से चिपका लिया,मानो विदेश से उनका बेटा वापस आ गया हो।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक, अप्रकाशित