पगली – पूनम शर्मा : Moral Stories in Hindi

सुधा सुबह के भागमभाग भरी दिनचर्या के बाद पति को विदा करने के लिए बालकनी में जा खड़ी हुई। पति ने गराज से मोटरसाइकिल निकालते हुए ऊपर की ओर प्रणय प्रस्ताव की उम्मीद से देखते हैं और सुधा कुसुमित पुष्प की प्यार भरी मुस्कान के साथ हाथ हिलाते हुए, विदा करती है।

पति  सुकुन भरे एहसास के साथ ऑफिस के लिए, सड़क पर आगे बढ़ गए और वह उन्हें दूर तक जाते हुए कौतुक भरी निगाहों से निहार रही थी। पति के ओझल होने पर, वह शिशिर की सुबह में सुकून की उम्मीद से वहीं गुनगुनी धूप सेकने के लिए, कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ने लगी।

वह पन्ने पलट रही थी कि अचानक, उसकी निगाह उस समाचार पर रुक गई, जिसमें लिखा था कि सरकार मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाएगी। यह समाचार अनायास ही उसके अंत:करण को झकझोर देता है इसे पढ़ने के बाद, उसका मन  न जाने क्यों उद्वेलित हो उठता  है

अंतर मन  में तरह-तरह के सवाल उठने लगे, क्या कानून बनाने मात्र से ही, मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा हो जाएगी? क्या वे लोग जो उनके कमजोरी को बोझ, समझते हैं, उनके अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे? वह सोचने लगी कि जहां समझदार व्यक्ति कानूनी दांवपेच से खुद को दूर रखना चाहता है, वहां क्या इस तरह के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ेंगे? 

कानून के लिए यह एक चुनौती न होगा कि इन मानसिक रोगियों की तलाश करना,  क्या कानून उन तक पहुंच कर उन्हें लाभान्वित कर पाएगा?

जाने कितने ही प्रश्न, उसके मानस पटल को झकझोर रहे थें, शायद इसका कारण रहा था  बचपन में मानसिक रूप से कमजोर पगली, हां पगली….…सब उसे इसी नाम से बुलाते थे, जिसे उम्र के इस पड़ाव पर जब तीस दशकों का समय गुजार चुकी है फिर उसे  वह आज तक नहीं भुला पाई है। उसे बचपन की वह घटना आज भी फिल्म की तरह उसके आंखों के सामने एक-एक करके गुजरती है । उस सवेरे जब वर्तिका स्कूल यूनिफार्म पहने हुए उसके घर आकर बोली थी-‘देखो आज बस स्टैंड के शेड में खेलने मत जाना, मैं भी नहीं जा रही, वहां एक पगली बैठी है।’ पगली यह कौन है? हमारे स्टैंड में क्यों आई ?

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वर्तिका से वह पूछ बैठी थी लेकिन मां बीच में ही टोकते हुए रसोई से ही बोली थी-‘वह कौन है, क्या है? इसको छोड़ो, बस इतना याद रखो कि वहां नहीं जाना है. इसके बाद वे दोनों सहेली घर से निकलकर अपने गेट के सामने बस के इंतजार में खड़ी हो गई. दोनों ही दोस्त अपने गेट से ही पगली को देखने की असफल कोशिश कर रही थी,

उसके माथे पर लगा नारंगी रंग का सिंदूर दूर से ही झलक रहा था. वह लाल और हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी। जिस कारण सुधा  के मन में उस वक्त उस पगली के बारे में और जानने की इच्छा हिलोरे लेने  लगी, वे दोनों सहेलियां अनायास ही धीरे-धीरे स्टैंड की ओर बढ़ते हुए पगली के पास पहुंच गई. वहां उन्होंने देखा कि उस पगली के हाथ में मेहंदी लगी हुई थी, पैर में आलता था, कुल मिलाकर उसे देखकर लग रहा था

कि उसकी हाल ही में शादी हुई थी. जिस कारण वह पगली उन दोनों सहेलियों को अपनी और आकर्षित कर रही थी वह अचानक वर्तिका से अपने दोनों हाथों को ठोडी पर रखते भाव भवभोर हो कर बोली-कितनी प्यारी है……यह. बाल मन सवाल कर उठा , इसके घर वाले कहां है? लेकिन वह पगली तो उन दोनों के पास आ जाने से डरी सहमी सी एक कोने में सकुचाई सिमटती जा रही थी, उसकी पथराई आंखें एक टक से निरीह सी वह

उन दोनों सहेलियों देख रही थी। उन दोनों ने उस पगली बारे में कुछ और जानने की कोशिश करती कि उन्हें स्कूल बस का हॉर्न सुनाई दिया. दोनों पीछे मुड़कर देखीं तो बस आ रही थी, अचानक उनका परिदृश्य बदल जाता है वह दोनों दौड़ कर, बाकी बच्चों के पीछे लाइन में खड़ी हो गई , लेकिन  जाते-जाते दोनों सहेलियां मुड़ मुड़ कर उस पगली को ही निहार रही थी.

वह सहेली के साथ बस में सवार हो स्कूल को चली गई परंतु पूरे दिन वह पगली में ही भटकती रही, उसका मन पढ़ने में नहीं लगा। वह बार-बार उसके मन में पगली का ख्याल आ जाता है. क्योंकि वह उस पगली के बारे में और बहुत कुछ जानना चाहती थी. स्कूल से छूटने के बाद जब वह उसके बारे में और बहुत कुछ जानना चाहती थी,

पर घर लौटी तो मां गेट पर ही खड़ी थीं, वह उसके लौटने का इंतजार कर रहीं थीं. अब वह मां के सामने चाह कर भी पगली को देखने नहीं जा सकी थी . वह  मां को देखते ही, पगली से अनजान बनी हुई, चुपचाप अपने घर आ गई, लेकिन उसके बारे में जानने की उत्सुकता से, वह स्वयं को आजाद नहीं कर पाई. वह कपड़ा बदल कर,

जब शाम का नाश्ता करने के लिए टेबल पर पहुंची तो, ना चाहते हुए भी अनायास, वह मां से पूछ बैठी थी-‘मां ! वह पगली,  जो सुबह स्टैंड में थी, वह कहां गई?’  ‘कहां जाएगी बेटी वह वहीं पड़ी है’ मां ने लापरवाही से कहा तब क्या होगा? क्या मां, वह वही पड़ी रहेगी? क्या कुछ खाएगी? आदि कितने प्रश्न सुधा मां से कर बैठी

मां ने सभी प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में देते हुए कहा -‘बेटा जब उसके अपने घर वालों ने ही, उसे अंधेरे में भटकने के लिए छोड़ दिया है, तब बेटा, ऊपर वाला ही उसके लिए कोई रास्ता निकालेगा,  देखो आगे क्या होता है?’  फिर कुछ दिन बाद, उसे मम्मी ने ही यह बताया कि, उसकी स्थिति ऐसी नहीं है,

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कि वह अपने बारे में औरों कुछ बता सके. कुछ दिन बाद वह धीरे-धीरे वहां के लोगों के व्यवहार से स्वयं को सुरक्षित अनुभव करने लगी. वहां के लोग उसे खाना कपड़ा देते और इस तरह उसका दिन गुजरने लगा.वह  खूंखार नहीं थी, उसी स्टैंड में पड़ी रहती. थोड़ा सामान्य होने के बाद भी लोग उससे उसके बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे,

पर वह कुछ बता ही नहीं पाई. अब स्टैंड ही उसका घर था,  वहां के रहने वाले लोग उसके परिवार के सदस्य.  कुछ समय बाद उसके शरीर की बनावट में आने वाले परिवर्तन में, उसके मातृत्व की झलक स्पष्ट होने लगी. जब लोग उससे उसके बच्चे के पिता के बारे में पूछते तो,

वह कालोनी में रहने वाले हरीश  की ओर  ही इशारा करती।  इस बारे में उसकी पत्नी को कॉलोनी की औरतों बताया, तो वह झगड़ पड़ी. पर कुछ दिन बाद हरीश दंपति ने उसे सहारा देने के लिए यह तर्क देकर हाथ बढ़ाया कि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे उसकी संतान को अपनाकर अपने संतान की कमी को दूर करना चाहते हैं

और इस प्रकार उस बच्चे को अच्छी परवरिश मिल जाएगी  और उनको संतान सुख।  कुछ महिलाओं में वह परिवार कानाफूसी का विषय जरुर रहा लेकिन ज्यादातर लोगों उस नि:संतान दम्पत्ति की सराहना कर रहे थें. कुछ समय पश्चात उस पगली को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

खुशियां हरीश के घर में बहार बनकर आई. उस वक्त सुधा को लगा कि कितना अच्छा हैं यह परिवार जो एक बेबस लाचार मां और उसके असहाय संतान का पालन हार बना हैं उनके प्रति सुधा के मन में श्रद्धा उत्पन्न हो गई, लेकिन कुछ समय बाद ही जब वह बच्चा ठीक से चल भी नहीं पा रहा था तभी  वह परिवार  जिस निष्ठुरता का पगली के साथ  दुर्व्यवहार किया उसे देख सुधा हतप्रद रह गई, उसके सारे सुनहरे भ्रम छू मंतर हो गएं वही परिवार  अब उसे खलनायको का कुनबा सा नज़र आने लगा.

जब हरीश ने पगली के कमजोरी का फायदा उठाकर, उससे उसके प्रकृति प्रदत्त सहारा को छीन लिया था. सुधा का बाल मन उससे भी ज्यादा वहां आसपास रहने वाले लोगों से, अधिक दु:की था जिन्होंने ने उसकी पीड़ा को नहीं समझा और न ही उसे उसके बच्चे से दूर करने पर प्रतिकार किया, बल्कि वे सब तमाशा देखने में लगे रहे ।

                                             -पूनम शर्मा, वाराणसी

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