पगला बंदा – श्रीप्रकाश श्रीवास्तव

पगला बंदा को मुन्नीबाई से एकतरफा प्यार हो गया। प्यार तो प्यार भले ही एकतरफा क्यों न हो? सच्चे आशिक को अपनी माशूका की एक झलक ही काफी होती है। वह मुन्नीबाई की एक झलक के लिए ही प्यासा था। खबर लगती कि फंलाने गांव में मुन्नीबाई का नाच होने वाला है। वह बेचेैन हो उठाता। खाना पीना सब छूट जाता। पूरा दिन उसी के बारें में सेाचता। जैसे ही शाम ढलती नंगे पाव उस गांव की तरफ चल पडता। भीड जुटने के पहले ही पंडाल के एक कोनो में तन्हा बैठ अपने दिल की धडकन का इंतजार करता।

जैसे ही मुन्नीबाई के मंच पर आने की आहट होती उसकी धडकन तेज हो जाती। उसे पता ही नहीं चलता कि कब भीड उसे ढकेलकर पीछे कर दी। उसे भीड से कोई शिकायत नहीं थी। दूर से ही सही मुन्नीबाई सामने तो रहेगी। जैसे ही पायलेां की झनकार के साथ मुन्नीबाई मंच पर नमूदार होती भीड में एक शोर उभरता। ऐसे में अपने आप पर काबू पाना पगला बंदा के लिए आसान काम नहीं था। अपनी मोहक अदाओं से सबको वशीभूत कर देने वाली मुन्नीबाई के सब आशिक थंे।

बंदा भी उनमें से एक था। भले ही उसके एकतरफा इश्क में पडकर उसने अपनी दस बीघा जमीन एक एक बेचकर अपनी आशिकी पर लुटा दिया हों तो भी क्या फर्क पडता है एक तवायफ को। किसी और को फंसाएगी। ऐसा ही ख्याल था जमाने को तवायफों के बारें में। उनका न कोई धर्म होता है न ही ईमान। प्यार मोहब्बत तो महज दिखावा होता है। उनका दिल पत्थर का होता है। वे भावनाएं भडकाती है खुद भडकती नहीं। वे आग लगाती है खुद जलती। वे घर तोडती है क्येांकि उनका कोई घर नहीं होता। उनके सब पति होते है मगर वे किसी की पत्नी नहंी होती।

सब कुछ लुट गया पगला बंदा का। न खेत रहा न जमीन। पगला बंदा को यूं ही कोई पगला बंदा नहीं कहता था। माॅ बाप काफी मन्नतों के बाद एक लडका पाया। सोचा लडका रहेगा तो वंश चलेगा। पोता पोती खिलाएगे। मगर पगला बंदा के किस्मत में तो कुछ और लिखा था। माॅ बाप असमय चल बसे। घर में कोई नहीं रहा। खेती मे  कभी मन नहंी लगा। कभी खेत पर जाता कभी नहीं। पेट भरने लायक आनाज मिल जाता था उसे। पेट की भूख पर मन की प्यास भारी पडी। जो पहली बार मुन्नीबाई को अपने गांव में नाचते देखा। तब से उसका  दीवाना हो गया।


एक शाम  खबर लगी कि मुन्नीबाई सूरजपुर गांव में आने वाली है। पगला बंदा तडप उठा। जैसे ही बदन पर फटा शर्ट ओैर नीचे गमछा बांध उस गांव के तरफ जाने के हुआ उसके कदम ठिठक गये। आज वह अपनी माशूका को क्या देगा? सब कुछ तो बिक चुका था। वह खुद  भिखारी हो चुका था। न जेब में फूटी कोैडी न कोई उसे देने वाला। उसका  दिल भर आया। आंखें भींग गयी। मुन्नीबाई उसकी तरफ ताकेगी भी नहीं। यह सोचकर ही उसके दिल में हूक उठी।

पहली बार जब उसने एक बीघा जमीन बेचकर उसपर रूपये लुटाये थे तब खुद मुन्नीबाई उसके पास आयी थी। उसके गालेां पर एक मीठा चुंबन देकर भीड को चकित कर दिया। सब जल भुन कर गये। पगला बंदा आह्लादित था। उसका रोम रोम उसके अधरो का स्पर्श पाकर पुलक उठा। कई दिनों तक वह अपने कपेाल को सहलाता रहा। 

मुन्नीबाई मंच  पर आयीं। पगला बंदा भीड से  अलग एक केाने में बेैठा था। सभी मुन्नीबाई का नाच देखने में मगन थे। तभी अचानक मुन्नी बाई ने नाच रोक दिया। उसकी नजर कोने में बैठे पगला बंदा पर गयी। पहचानती तो थी ही। भला ऐसा आशिक कहंा मिलेगा जिसने अपना खेत जमीन सब उसकी एक झलक के लिए लुटा दिया हो। लुटाया तो बहुतो ने मगर सब के सब जिस्म के भूखे। पहली बार एक ऐसा आदमी मिला जो निस्वार्थ भाव से उससे पे्रम करता था। तवायफों के दिल में भी एक औरत होती है।

उसका औरतपन जागा। पगला बंदा को बुलाया। भीड स्तब्ध। एक से एक कद्रदान झेाली खोलकर बैठे थे। मगर मुन्नीबाई ने बुलाया तो एक अकिंचन को। उसकी पारखी नजर को दाद देनी होगी। भीड की निगाह उसपर टिक गयी। डरा ,सहमा,सकुचाया पगला बंदा अधीर कदमेंा से उसके पास आया। 


’’ये क्या हालत बना रखी है?’ मुन्नीबाई का इतना कहना भर था कि पगला बंदा अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सका। फफक कर रो पडा। भीड अवाक्। चारो तरफ सन्नाटा पसर गयां।

‘‘मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है?खेत जमीन सब बेचकर आप पर लुटा दिया है।’’ मुन्नी बाई पिघल गयी। खूब रूपया कमाया। तालियां बटोरी। भीड को पागल किया। सबकेा अपने कदमों पर गिराया मगर आज पहली बार किसी के कदमों पर गिर कर बिलखने को जी कर रहा था। 

‘‘क्या चाहिए?’’ मुन्नीबाई का  स्वर भींगा हुआ  था।

‘‘आपको हमेशा अपनी निगाहों के सामने रखना चाहता हॅू।’’

क्षणांश चिंतन के बाद मुन्नी बाई बोली।

‘‘शादी करोगे?’’इतना कहना भर था कि पगला बंदा उसकी उॅगलियां अपने हाथों लेकर बेतहाशा चुमने लगा। आज सचमुच में वह पगला गया। ‘‘पगला बंदा’’ भीड से शोर उभरा।

‘‘कौन कहता है कि तुम पगला बंदा हो। जिसके दिल में प्रेम,समर्पण, त्याग हो वह तो ईश्वर का बंदा है।’’ कहकर मुन्नीबाई ने उसे अपनी बाहों में भींच लिया।

श्रीप्रकाश श्रीवास्तव

वाराणसी-221010

      

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