पागल स्त्री और उसकी अस्मिता – मंजू तिवारी

आज इस बात को लगभग  26 साल बीत गए हैं। लेकिन मेरे मानस पटल पर जस के तस अंकित है। 

मुझे आज भी उसका गोरा चेहरा इकहरा बदन पतली नाक,,,,, कुल मिलाकर बहुत ही खूबसूरत महिला,,,,, जब मैंने और मेरी सहेली ने उसे पहली बार देखा तब वह बहुत ही खूबसूरत थी,,,,, हम दोनों सहेलियां बड़े भ्रम में थे यह ऐसे क्यों सड़क के किनारे घूमती रहती है सब से मांग कर खाती है।,,,,,, यह पागल है कि पागल होने का नाटक कर रही है।,,,,,, देखने से ऐसा लग रहा था की वह अपने परिवार से  भटक गई हो या उन्हें कोई परिवार वाला ही रोड पर भटकने के लिए छोड़ गया हो,,,,,,, उनकी हरकतों से ऐसा लगता था कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है।,,,,,, हम दोनों सहेलियां अपने साइकिल से स्कूल जाते थे वह हमें अपने स्कूल के रास्ते में कहीं ना कहीं दिख जाती थी कहीं कचहरी पर चाट पकड़ौ के ठेले के पास खड़ी हुई,,,, तो उनको कोई ना कोई सज्जन कुछ खाने को दे देता वह  वही खा पीकर अपना पेट भर लेती,,,,,,,

 हमारे देखते ही देखते उनके उजले कपड़े जो उन्होंने अपने तन पर पहन रखे थे बहुत गंदे होने लगे,,,,,,, और देखने में भी बहुत गंदी लगने लगी शायद नहाना धोना तो उनके लिए बहुत दूर की बात थी,,,,,,,

 अपने साथ बहुत सारा सामान हमेशा पकड़े रहती डिब्बे प्लास्टिक बोतलें बोरी पता नहीं ना जाने उनके पास क्या-क्या होता,,,,,,

सारे सामान को अपने साथ ही लेकर चलती थी,,,, उमर भी ज्यादा ना रही होगी,,,,,,, हम दोनों सहेलियां भी किशोरावस्था  में थे,,,,,, 

जब वह महिला अपने उल्टे सीधे सामान को अपने सिर पर रखकर चलती है वह भी बिना हाथ पकड़े,,,,, दोनों सहेलियां हंसते कि इनकी गुरुत्व आकर्षण बहुत अच्छा है ।कैसे सिर पर बिना पकड़े सारा सामान लेकर चल लेती है।,,,, 

सर का इतना बैलेंस कोई पागल आदमी कैसे बना सकता है। मैंने अपनी सहेली तनु से कहती तनु हो ना हो यह पागल तो नहीं है।,,,,,, 

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हम दोनों ही सहेलियों को उनसे सहानुभूति होने लगी थी,,,,,,  स्कूल   जाते  समय भी हमारी नजर उस महिला पर रहती जब हम लौटते स्कूल से तब भी एक नजर हम उन्हें जरूर देख लेते हैं।,,,,

 ऐसे उन्हें देखते देखते हमें दो साले निकल चुके थे हम नौवीं क्लास से 11वीं क्लास में आ गये,,,, सड़क पर रहते रहते संतुलित भोजन के अभाव में वह गोरी चिट्टी सुंदर महिला का शरीर अब जर्जर होता जा रहा था जो जवान ही थी बाल एकदम काले थे,,, शरीर की बनावट भी बहुत अच्छी थी 

जब उन्हें हमने पहली बार देखा तो किसी अच्छे घराने की लग रही थी,,,,,, एक दो बार हम दोनों का उनसे बात करने का मन हुआ,,,,,

 पता नहीं क्यों डर लग रहा था कहीं पागल हुई तो हमें कहीं मारने ना लगे हम भी  बच्चे थे ‌,,,,,,  

हमारी परीक्षाएं चल रही थी परीक्षा सुबह 7:30 बजे से होने थी इसलिए हम घर से बहुत जल्दी निकल गए,,,,, उस दिन वह महिला कहीं हमें नहीं दिखाई दी जैसे ही हम अपने कॉलेज के पास पहुंचे,,,,, कॉलेज के पीछे वाले गेट पर वह महिला सो रही थी,,,,,, सोने के लिए उस महिला ने बड़ी अच्छी व्यवस्था कर रखी थी अपने बचाव में,,,,, बीच में लेटी  थी चारों तरफ कटीले लकड़ियां लगा रखी थी जिससे उसे कोई रात में क्षति ना पहुंचाएं,,,,,

अब तो यह विषय हमें सोचने के लिए मजबूर कर रहा था अगर यह पागल है तो यह कैसे जानती हैं कि हमें इस तरह से अपने आप को सुरक्षित करना चाहिए,,,,,

 एक महिला इस तरह से अपने आपको कटीली झाड़ियों के बीच में लेटी थी जिससे जानवरों से  बचा जा सके,,,,, जो आदमियों के बीच में नर पिशाच घूम रहे हैं उनसे भी बचा जा सके,,,,,, 




बात आई गई हो गई सोचा और हम उसको भूल गए,,,,,,, 

बस हमें वे अब   खाती पीती  नजर में आ जाती थी कॉलेज जाते हुए

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 एक दिन हम लोगों ने देखा कि उनका शरीर तो बिल्कुल जर्जर हो गया है। लेकिन उनका पेट ऊपर की तरफ गोलाकार उभार लेता जा रहा है।,,,, उनकी फटी ऊंची गंदी साड़ी ,,,,, गर्मियों में भी स्वेटर पहनना,,,,,,

 कुछ लोगों  कपड़े दे देते उनको उल्टा सीधा वह पहन लेती थी,,,, अपना उल्टा सीधा कबाड़ बोरियों में भरकर सिर पर रखकर हाथों में भी कबाड़ पकड़े,,,,, निकला हुआ पेट,,,, उनकी यह छविआज भी मेरी आंखों के सामने घूम जाती है।

 जर्जर होता शरीर लेकिन पेट में किसी अनजान घृणित व्यक्ति का अंश लिए वह घूम रही थी,,,, ना कोई देखने वाला ना कोई मदद करने वाला,,, 

किसी नर पिशाच ने मानसिक रूप से  उस पागल महिला का पूरा फायदा उठाया था,,,,

 ट्यूशन के बाहर जब हम छात्राएं खड़े होते तो उनकी चर्चा करते,,,,,, उनका क्या होगा  सोचकर हम परेशान हो जाते,,,, अब मैं यह तो समझ ही चुकी थी वह पागल थी कुछ ना कुछ बड़बड़ती रहती थी,,,लेकिन अपनी अस्मिता की कीमत समझती थी तभी तो  वह झाड़ियां अपने चारों तरफ लगाकर सोती थी,,,,,  फिर भी अपनी अस्मिता ना बचा पाई,,,,

मेरा कॉलेज बदल गया वह महिला भी मुझे कभी नहीं देखी आज भी मेरे मन में प्रश्न उठता है कि उनका क्या हुआ होगा उनका बच्चा किसी ने लिया होगा वो इस दुनिया में है या चली गई उनका प्रसाव कैसे हुआ होगा,,,, 




लेकिन उनकी इस स्थिति को देखकर,,,,,,

मेरे मन में समाज के लिए घृणा पैदा हो गई कि समाज में कुछ गंदे लोग भी हैं जो पूरा समाज गंदा कर रहे हैं।

 कैसा समाज है,,, न शर्म है लाज है।,,,

नारी  ही मूल्य है नारी ही ब्याज है।,,, 

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किसी की यह पंक्तियां आज भी चित्रार्थ  हो रही है समाज में,,, बहुत कुछ अभी नहीं बदला है।,,,,,

समाज में वह पागल इकलौती महिला नहीं थी जो इनके साथ ऐसा हुआ हो ना जाने कितनी हुई होंगी जिन्हें आपने देखा होगा या उनके बारे में सुना होगा,,,,,, आए दिन स्टेशन फुटपाथ सड़क पर यह घटनाएं घटती रहती हैं।,,,,

मेरी किशोरावस्था थी इस प्रकार की घटना मेरे मस्तिष्क पटल पर अमिट छाप छोड़ गई सोचकर व्यथित हो जाती हूं।,,,,,

अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें,,,,, लिखते हुए मन बड़ा भावुक हो उठा,,,,,,

मंजू तिवारी गुड़गांव

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