पछतावे के आँसू – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

रोनित  , कब  तक तुम छुट्टी लोगे यार …. तुम्हारा और  चंचल भाभी का इतना ही साथ था । जीवन में आगे बढ़ना ही पड़ेगा । मैं और इशिता भारत जा रहे हैं । तुम भी चलो …..

कैसे जाऊँ? एक तो मैंने घर में बिना बताए शादी की । ऊपर से छोटी सी रुमी को लेकर पहुँच जाऊँ और अचानक बता दूँ कि शादी भी हो गई थी और चंचल मुझे छोड़कर चली भी गई । तुम नहीं जानते ….. घरवालों के सवालों का जवाब कैसे दूँगा ।

तो यहाँ बैठकर सब ठीक हो जाएगा? मनमर्ज़ी की शादी के लिए माँ  से माफ़ी माँग लेना , वो तुम्हें ज़रूर कोई न कोई रास्ता दिखाएगी । 

करण और रोनित पाँच साल पहले  पढ़ाई के लिए कनाडा आए थे । यूनिवर्सिटी में रोनित की मुलाक़ात चंचल से हुई थी । तीनों बहुत ही अच्छे दोस्त बन गए थे ।  एक दिन चंचल ने रोनित से कहा –

 पापा ने यहीं कनाडा में नौकरी करने वाले किसी लड़के को मेरे लिए पसंद किया है और अगले हफ़्ते वो मुझसे मिलने आने वाला है अगर लड़के को मैं पसंद आ गई तो पापा अपने दो महीने बाद होने वाले रिटायरमेंट से पहले मेरी शादी करना चाहते हैं । 

पर चंचल … अभी मैं शादी नहीं कर सकता । प्लीज़ अपने पापा से थोड़ा सा इंतज़ार करने को कहो । अभी मैं माँ और भाई को किस मुँह से शादी के लिए कहूँ? 

तुम इंतज़ार की बात कर रहे हो रोनित ! हमारे पास केवल यही हफ़्ता है । पापा ने कभी किसी की नहीं सुनी । बाक़ी जो तुम्हारा फ़ैसला ।

करण और रोनित ने बहुत सोचा और अंत में उन्हें केवल यही एक रास्ता नज़र आया कि जब तक पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती तथा नौकरी नहीं मिल जाती , यह शादी रोनित के परिवार से छिपाकर रखी जाए , उसके बाद रोनित चंचल के साथ घर जाएगा और मासूम सी प्यारी बहू चंचल को देखकर माँ और भाई उन दोनों को माफ़ कर देंगे ।

साढ़े चार साल की पढ़ाई करने के बाद रुमी ही  पिता की नौकरी लेकर आई । लेकिन चंचल  पोस्ट डिलीवरी कॉम्प्लिकेशन के कारण एक महीने की रुमी को बिन माँ की करके चली गई । पंद्रह- बीस दिन तो करण और इशिता ने रोनित और रुमी को सँभाला पर हमेशा तो कोई साथ नहीं दे सकता । ऐसी स्थिति में रोनित को समझ नहीं आया कि वह अपने जीवन में आई उथल-पुथल को घरवालों के साथ कैसे साझा करे । 

करण और इशिता की कोशिश से रोनित रुमी को लेकर

काग़ज़ी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद  भारत आने के लिए तैयार हो गया । घरवालों को आने की सूचना दे दी गई । माँ और भाई- भाभी रोनित का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे ।

जब करण के साथ रोनित अपनी बेटी रुमी को गोद में लिए टैक्सी से उतरा तो परिवार वाले तो क्या पड़ोसियों को भी उसकी हालत समझ आ गई ।

हाय ! ये क्या किया तूने । देख लिया बिना आशीर्वाद के …की गई शादी का नतीजा…. ऐसी शादियों से तो भगवान भी खुश नहीं होते ? कम से कम बता तो देता ….  हमने तो बड़ी बहू की छोटी बहन से रिश्ता भी तय कर दिया था, हम यहाँ माथे हल्दी- चावल लगाने का इंतज़ार कर रहे हैं । वो बेचारी तो कनाडा जाने के काग़ज़ बनवाए बैठी थी । 

माँ ने जी भरकर रोनित को डाँटा । मरी हुई चंचल पर उनके भोले बेटे को फँसाने का आरोप लगाया पर रुमी के रोने की आवाज़ ने उन्हें अहसास दिलाया कि दोष किसी का भी हो , पोती तो उन्हीं की है और उस नन्ही सी जान को सीने से लगाकर वे बहुत रोई । 

रुमी को दादी के रूप में माँ मिल गई और जब एक महीने के बाद रोनित  ने वापस कनाडा जाने की तैयारी शुरू की तो भाभी बोली —-

माँ जी, मेरे मम्मी- पापा को रोनित की हालत देखकर तरस आ गया है । वे अपनी छोटी बेटी का विवाह इस शर्त पर करने के लिए तैयार है कि बच्ची को दादी ही पाल दे । उसके बाद कनाडा में किसी हॉस्टल में छोड़ देंगे । 

पर बीना , मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ बहू ! इस उम्र में बच्ची की ज़िम्मेदारी….. ना-ना कैसे करूँगी? रोनित भी अपनी बेटी के बिना कैसे रहेगा? 

देख लें माँ जी! बेटे का घर बसाना चाहती हो तो रुमी को तो आपको ही सँभालना पड़ेगा । 

माँ, रुमी और आपकी देखभाल के लिए  चौबीस घंटे की नौकरानी का इंतज़ाम कर दिया है….. पैसे भेजता रहूँगा … कोई चिंता मत करना । 

और इस तरह दो दिन में ही सादे समारोह में रोनित और शीना शादी करके कनाडा चले गए । 

धीरे-धीरे समय गुजरता गया । रोनित माँ और बेटी के लिए पैसे तो भेजता रहा , भाई का कारोबार दिन- दूनी रात चौगुनी उन्नति करता रहा पर  रोनित ने कभी आकर नहीं देखा कि उसके भेजे पैसे किसके काम आ रहे हैं । पाँच साल की होते ही चौबीस घंटे की नौकरानी को निकाल दिया गया । उसकी जगह केवल झाड़ू- पोंछा लगाने वाली आने लगी । बीना के दोनों बच्चे शहर के महँगे स्कूल में तथा रुमी का नाम सरकारी स्कूल में लिखवाया गया क्योंकि बीना के मुताबिक़ रुमी मोटे दिमाग़ की थी , अच्छे महँगे स्कूल में उसे दाख़िला दिलवाना पैसे की बर्बादी करना था ….रुमी को तो घर के कामों में लगाना बुद्धिमानी थी …. कम से कम आगे चलकर शादी तो हो जाएगी । 

रुमी दादी से पापा की कहानियाँ सुनती , ख़्यालों में उनकी तस्वीर बनाती और हर सुबह मंदिर की सफ़ाई करती भगवान से कहती—-

ठाकुरजी , मेरे पापा को इतना काम क्यों दिया आपने ? ताऊजी को तो छुट्टी भी मिलती है । ताऊजी तो ताईजी और भाइयों के साथ घूमने भी जाते हैं । मेरे पापा को भी कम काम दो … फिर वे यहाँ आएँगे ….मुझे और दादी को पहाड़ पर घुमाने ले जाएँगे । 

माँ जी! आपको क्या बात करनी है रोनित से ? हमारे और उनके टाइम में अंतर होता है । 

मुझे बता .. वहाँ दिन कब होता है? मैं पूरी रात सोऊँगी नहीं….. ये सुना था कि माँ के मरते ही बाप सौतेला हो जाता है पर मेरा बेटा इसका उदाहरण बनेगा, ये नहीं सोचा था । तुम्हारी आँखों में तो शर्म नहीं । सालों बीत गए….कहते-कहते कि रोनित से मेरी बात करवा दो । ना रोहित सुनता ना तू सुनती और ना तेरे बेटे ..अब मैं तुम्हारे बहकावे में नहीं आने वाली । आख़िर कब तक बच्ची को बहकाती रहूँगी कि तेरे पापा आएँगे और तू कनाडा में पढ़ेगी ।

बीना ने देखा कि सास के आगे आज दाल गलने वाली नहीं  क्योंकि उन्होंने रोना शुरू किया तो रुकने का नाम नहीं लिया । मजबूर होकर  उसने शीना को फ़ोन मिलाकर दे दिया—-

हाँ माँ जी, तबीयत तो ठीक है? रोनित तो आजकल बहुत बिजी है , मुझे बताइए ।

मुझे अपने बेटे और रुमी के पिता से बात करनी है ….. ये पीछे से जो आवाज़ आ रही है रोनित की है…. फ़ोन दे उसे …..अच्छा, तो फ़ोन काट दिया । 

अगले दिन रोनित की माँ ने  उसी टाइम बड़े बेटे रोहित से फ़ोन मिलाने को कहा —- 

पर माँ! बीना तो कह रही थी कि आपने कल ही कनाडा बात की है…..

 हाँ ! बात तो हुई थी कनाडा पर बीना ने अपनी बहन से बात करवाई  अब ज्यादा  मुँह मत खुलवा रोहित ! मुझे रोनित का नंबर मिलाकर दे , नहीं तो …. 

कैसी बात करती हो …..ये लो माँ! बात करो रोनित से …..

तुझे  शर्म नहीं आती? एक दुधमुँही बच्ची को छोड़कर चला गया और पलटकर भी नहीं देखा कि वो ज़िंदा है या मर गई ? मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया । बेटे का घर बसाने के मोह में, पोती से उसका पिता छीन लिया । 

पर माँ, शीना तो बात करती रहती है ना , पैसे टाइम से मिलते हैं ना ? हर रोज़ आप दोनों के बारे में पूछता हूँ पर पता चलता है कि आप सो गई है । 

शीना क्या लगती है रुमी की ? और सुन ,पैसे रुमी के जीवन में बाप की कमी पूरी नहीं कर सकते । तुझे याद है कि भूल गया वो पूरे बारह साल की हो चुकी है । क्या तू चाहता है कि तेरी बेटी अनपढ़- गँवार रहे ? 

अनपढ़- गँवार क्यों रहेगी माँ? शीना से भाभी की बात होती रहती है । 

अच्छा….. किस क्लास में है तेरी बेटी? बता तो सही….

क्लास…. ? माँ बात करवाइए रुमी से । 

नहीं…. फ़ोन पर बात नहीं होगी । यहाँ आ और फिर फ़ैसला करना । अगर तू महीने के भीतर ना आया तो मैं रुमी को लेकर यहाँ से कहीं चली जाऊँगी । उसके बाद मैं कितने दिन रहूँगी , मेरे बाद उसका क्या होगा…. तुम ज़िम्मेदार होंगे । फ़ोन रखती हूँ ।

माँ की कड़क और दृढ़ आवाज़ को सुनकर रोनित समझ गया कि वो जो कह रही है, उस निर्णय से पीछे हटने वाली नहीं हैं । शीना के माता-पिता वहाँ आए हुए थे इसलिए रोनित ने दस दिन बाद की अपनी टिकट बुक कराई और भारत पहुँच गया । उसने अपने आने की निश्चित तिथि घरवालों को नहीं बताई थी और शीना को भी यह बताया था कि वह पहले एक हफ़्ता ऑफिस के काम से जर्मनी रुकेगा फिर इंडिया जाएगा । 

शीना ने सारी जानकारी बीना को दे रखी थी इसलिए शक- शुबहे की गुंजाइश ही नहीं थी कि रोनित इस तरह अचानक आ जाएगा । 

टैक्सी से उतरकर जैसे ही रोनित ने गेट खोला तो क्या देखता है—

माँ बैठी हुई साग काट रही थी , भाई धूप में बैठ अख़बार पढ़ रहे हैं, भाभी हाथ में चाय का कप पकड़े फ़ोन पर बात करती हँस रही है  , एक औरत बरामदे में पोंछा लगा रही थी और छोटी सी बच्ची कोने में ज़मीन पर बैठी टब में भीगे आलुओं की मिट्टी धो रही है ।  गेट खुलने की आवाज़ से भाई- भाभी की नज़रें उठी और वे झटके के साथ खड़े हो गए—-रो….नि…त….

यह शब्द सुनकर  साग काटते माँ के हाथ भी रुक गए — रोनित !

तभी रोनित ने देखा कि दो आँखें माथे पर पड़े उलझे बालों के बीच से उसकी तरफ़ देख रही है । रोनित का कलेजा मुँह को आया —- उसकी रुमी ? हुबहू चंचल , जिसे उसने जान से भी ज़्यादा प्यार किया था । 

उसने हाथों में पकड़े बैग नीचे रखें और रुमी को गले से लगा लिया —

मेरी बच्ची…. रुमी ! माफ़ कर दें अपने पापा को । मैंने अपने भाई- भाभी पर क्यूँ इतना विश्वास किया ? माँ…. आपने मुझे पहले क्यूँ डाँट कर नहीं बुलाया? 

रोनित की आँखों से पछतावे के आँसू  बह रहे थे । मन हल्का कर लेने के बाद रोनित ने कहा —-

माँ, जब मैं रुमी को लेकर आया था तो उसका पासपोर्ट आपको देकर गया था । प्लीज़ बताइए कहाँ रखा है…. मेरी बेटी मेरे साथ जाएगी । काश ! मैंने शीना पर अंधविश्वास ना किया होता । मुझे तो उसी दिन  यह सोचना चाहिए था जब शीना ने रुमी के पालन- पोषण की ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था । ये दोनों बहनें मुझे मूर्ख बनाती रही । भाभी  झूठे वीडियो और ओडियो बनाकर भेजती रही और मैं समझता रहा कि रुमी यहाँ बहुत खुश हैं, सही हाथों में उसकी देखभाल हो रही है । 

मैं फिर कह रही हूँ रोनित ! किसी की गलती मत निकाल, सिर्फ़ तेरी गलती है । बेटी को देखने और मिलने की चाह और तड़प तेरे दिल में उठनी चाहिए थी, शीना के नहीं, पर तू तो अपने परिवार में खुश था । 

माँ, मुझे माफ़ कर दो । मैं चंचल का भी गुनहगार हूँ । माफ़ कर दो । 

काफ़ी भागदौड़ करके एंबेसी के चक्कर लगा- लगाकर और काग़ज़ तैयार करवा कर आख़िर रोनित  ने रुमी के साथ  कनाडा जाने की तैयारी कर ली । 

माँ ने रुमी को रवाना करने से पहले उसके लिए बेसन के लड्डू बनाए , गाजर का हलवा तैयार करवाया, उसके लिए नए कपड़े ख़रीदे और अपने बेटे से  सिर पर हाथ रखकर क़सम खिलाई कि वह रोज़ रुमी से वीडियो कॉल करवाएगा , बिना यह सोचे कि माँ सो गई होंगी । 

कनाडा पहुँच कर शीना ने रुमी के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसी रोनित को उम्मीद थी । पर बिना परेशान हुए रोनित ने खुद  से माँ की कहीं बात दोहराई ——

रुमी तेरी ज़िम्मेदारी है रोनित ! शीना की नहीं । अपनी बेटी के भविष्य के बारे में तू सोच । 

पूरा एक महीना रोनित ने  रुमी को अच्छे स्कूल  में एडमिशन की तैयारी करवाई । एडमिशन के बाद वह रोज़ अपनी बेटी से दिनचर्या पूछता , कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो, दादी- पोती की वीडियो कॉल करवाता और स्कूल में होने वाली पैरेंट्स मीटिंग अटैंड करता । धीरे-धीरे रुमी के खोए आत्मविश्वास के साथ उसका व्यक्तित्व निखर उठा । 

आज  जब माँ ने विशेष रूप से फ़ोन करके रोनित से कहा—-

बेटा , मुझे फ़ख़्र है तुझ पर । तूने दिल को ठंडक पहुँचा दी । भगवान, तुझे ख़ूब तरक़्क़ी दे , आशीर्वाद दे । 

माँ, मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूँ पर बस इतना कह सकता हूँ कि आपने मुझे घोर पाप से बचा लिया वरना मेरी रुमी रुल जाती । वो आ रही है आपसे मिलने, नौकरी ज्वाइन करने से पहले वह आपका आशीर्वाद लेना चाहती है । 

आज माँ ने कई सालों बाद फिर से कड़क और दृढ़ आवाज़ में कहा—-

रोहित ! किसी के हाथ गाजर के हलवे और बेसन के लड्डू बनाने का सामान भिजवा देना, मेरी रुमी आने वाली है ।

करुणा मलिक

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