गंगा शांत बह रही थी | वातावरण शांत, सुखद और मनमोहक था | एक नाव गंगा की लहरों पर मंद गति से तैर रही थी | नाव पर सेठ मनोहरलाल बैठे थे | सामने अपनी पत्नी उमा की एक बहुत सुंदर तस्वीर रखे थे | तस्वीर पर एक बहुत खूबसूरत हार चढा था और सामने एक छोटा केक और मिठाई का एक डब्बा रखा था |
तस्वीर में उमा बहुत सुंदर लग रही थी | वह थी भी बहुत सुंदर, सरल और संस्कारी | तस्वीर इतनी जीवंत लग रही थी मानो उमा सामने बैठी मुस्कुरा रही हो | मनोहरलाल एकटक देखे जा रहे थे | उन्हें लग रहा था मानो उमा उनके सामने बैठी हो और उनसे कुछ कहना चाह रही हो,पर कह नहीं पा रही हो |
मनोहरलाल उसके मुख से कुछ सुनना चाह रहे थे पर अब वो कुछ बोलने वाली नहीं थी | जब वह बोलने लायक थी और उनसे कुछ कहना चाहती थी, तब तो उन्होंने न तो उसपर कोई ध्यान दिया, न उसकी बातों पर | उनके लिए उसका और उसकी बातों का कोई महत्व नहीं था | सदा अपनी और अपनी बातों को ही महत्व दिया |
सच है जबतक कोई पास हो उसका महत्व समझ में नहीं आता,जब दूर हो जाता है, तभी उसका महत्व समझ में आता है | यही हाल मनोहरलाल का था |
सारी जिंदगी जिसकी कद्र न की, जिसका महत्व न समझा, जिसकी बातों पर ध्यान नही दिया उसकी सारी बातें याद आ रही थी | उसका महत्व समझ आ रहा था, उसकी बेहद याद आ रही थी | आंखों के आगे उसकी सूरत , उसकी हंसी, उसकी बातें, उसके साथ बितायी जिंदगी चलचित्र की भांति घूम रहे थे |
मनोहरलाल अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे | पिताजी शंकरलाल शहर के एक बडे बिजनेसमैन थे | घर सुख, सौभाग्य, समृद्धि और सम्मान से परिपूर्ण था | बचपन से ही उनकी प्रत्येक इच्छा,
प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखा गया था | मुंह से बात निकली नहीं कि इच्छा पूरी की गई | यही कारण था कि जब उन्होंने पढाई के लिए विदेश जाने की इच्छा जाहिर की तो उन्हें सहर्ष विदेश भेजा गया |
उनकी सारी इच्छायें पूरी की गई, बस एक शादी को छोड़कर | वे उमा से शादी नहीं करना चाहते थे, पर उनके पिताजी सेठ शंकरलाल ने उन्हें बाध्य किया कि वे उससे शादी करें | हुआ ऐसा था कि सेठ शंकरलाल बडे धार्मिक विचार के थे और दान पुण्य करते रहते थे | कई स्कूल, कालेज, अस्पताल में वे नियमित पैसे भेजा करते थे |
ऐसे ही एक कालेज में वे मुख्य अतिथि बनकर गये थे | वहाँ उन्होंने उमा द्वारा गाये सरस्वती वंदना को सुना | वे उसकी सुंदरता, सादगी और गायन से बहुत प्रभावित हुए और उसके बारे में पता करवाया | वह एक मध्यमवर्गीय परिवार की लडकी थी और उसके घर का स्तर शंकरलाल के घर से बहुत कम था,
पर उनके घर पैसों की कोई कमी नहीं थी, उन्हें तो बस एक योग्य कन्या चाहिए थी, जो उनकी नजर में उमा थी | उमा, उन्हें अपने घर की बहू बनाने के एकदम उपयुक्त लगी और उन्होंने मनोहरलाल को समझा बुझा कर शादी के लिए राजी कर लिया | मनोहरलाल अपने पिता का ज्यादा बिरोध न कर पाये |
इसका कारण कुछ उनके संस्कार थे और कुछ बात न मानने पर पिता द्वारा संपत्ति से बेदखल कर दिये जाने का डर क्योंकि उनके पिता बडे उसूलों वाले थे | साथ ही उमा की सुंदरता उन्हे भी भा गई थी और इसतरह उनकी शादी उमा से हो गई | उमा में एक अच्छी बहू और अच्छी पत्नी बनने के सारे गुण थे |
उसने अपने व्यवहार से घर, परिवार, सास- ससुर सबका मन जीत लिया | सब उससे खुश थे और उससे स्नेह करते थे | मनोहरलाल को भी वह शिकायत का कोई मौका नहीं देती थी, पर वे उसपर और उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे |
उसके दो पुत्र हुए सूरज और दीपक | वह अपने घर और बच्चों में व्यस्त रहती और अपने आप को खुश रखती | जबतक सास-ससुर रहे, वह ज्यादा खुश थी, क्योंकि वे लोग उसका ध्यान रखते थे, स्नेह करते थे |
उनके जाने के बाद मनोहरलाल को उससे ज्यादा मतलब नहीं रहता था | वे अपने बिजनेस में उलझे रहते और बाकी का समय दोस्तों, पार्टियों में | उन्हें दिखावा बहुत पसंद था | हर छोटी छोटी बात में पार्टी करना , अपना, अपने धन – वैभव का दिखावा करना और दोस्तों के हर पार्टी में शामिल होना उन्हें बेहद अच्छा लगता था |
उमा चाहे या न चाहे वे पार्टी जरूर करते और पार्टी में जरूर जाते| जहाँ एक ओर मनोहरलाल को तडक- भडक, दिखावे की जिंदगी बेहद पसंद थी वहीं उमा को यह सब ज्यादा पसंद न था | वह दिखावे से ज्यादा स्नेह, प्यार , भावनाओं और पारिवारिकता पसंद करती थी |
उसे मनोहरलाल के साथ, परिवार के साथ समय बिताना अच्छा लगता था | ऐसे ही एकबार उसने अपनी शादी की सालगिरह नदी में नौका विहार करते हुए सिर्फ मनोहरलाल के साथ मनाने का बहुत आग्रह किया था, पर मनोहरलाल ने उसकी बात का बहुत मजाक उडाया और हर साल की तरह शादी की सालगिरह की शानदार पार्टी दी,
उसे मंहगी रेशमी साड़ी,हीरो ं का सेट भेंट किया | हमेशा की तरह अपने प्यार, धन, वैभव का खूब दिखावा,प्रदर्शन किया पर उमा को स्नेह, प्यार के साथ समय न दे पाये, उसकी वह इच्छा पूरी न कर पाये जो कि उमा ह्रदय से चाहती थी | घर में सुख सुविधा के सारे साधन उपलब्ध थे |
वे उमा को मंहगे कपड़े, गहने, उपहार देते और पार्टियों में उसका प्रदर्शन करते | उमा उनके साथ अपनी खुशियाँ मनाना, समय बिताना चाहती थी,पर उनके पास इन सब बातों के लिए न इच्छा थी,न समय और नहीं वे इसकी जरूरत समझते थे | उमा इन सब बातों की अभ्यस्त हो गई थी | धीरे – धीरे उसने अपनी इच्छाओं से समझौता करना,
उन्हें दबाना सीख लिया और अपनी घर गृहस्थी में मगन रहने लगी | समय के साथ दोनों बेटे बड़े हो गये, उनकी शादी हो गई, उनके भी बच्चे हो गये | मनोहरलाल की उम्र हो गई | अचानक एक दिन उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और वे बुरी तरह धायल हो गये | छ महीने तक वे बिस्तर पर पडे रहे |
दिखावे की जिंदगी के साथी और सारे परिवार ने औपचारिकता दिखाकर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर ली,पर उमा ने जी जान से उनकी सेवा की | वे ठीक हो गये, पर पूर्णत स्वस्थ नहीं हुये | पार्टियों में जाना और पार्टी करना बहुत कम हो गया | स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने लगा तो उन्होंने अपने बिजनेस की जिम्मेदारी दोनों बेटों को सौप दी |
बेटे – बहु उनके सामने तो कुछ न बोलते पर उनके व्यवहार का फर्क उन्हें दिखने लगा था | घर, परिवार, समाज में उनका महत्व कम और बेटे बहू का महत्व बढता गया | जो लोग कल तक उनकी पार्टियों में शामिल होते, उनके रहन – सहन, धन – वैभव की प्रशंसा करते, वाहवाही करते, उनके आगे – पीछे लगे रहते,उनका आदर – सम्मान करते थे,
वे सब अब धीरे – धीरे उनसे किनारा करने लगे थे | उन्हें दिखावे की जिंदगी की सच्चाई समझ आने लगी थी |साथ हीं पत्नी का स्नेह, समर्पण, साथ का महत्व सब कुछ समझ आने लगा था | उमा अभी भी उनका पूरा ध्यान रखती और उनकी हर जरूरत को पूरा करती,पर उमा की तबियत भी ठीक नहीं रहती थी |
वह अपने स्वस्थ्य के प्रति शुरू से लापरवाह थी, तो स्वास्थ्य तो कमजोर होना ही था | वह बिमार पडी और दवा इलाज के बाबजूद उसका स्वास्थ्य गिरता गया | मनोहर लाल के ह्रदय में उसके लिये स्नेह, प्यार जाग चुका था और जीवन में उसे समय न दे पाने, उसकी इच्छाओं को पूरा न कर पाने का पछतावा भी था |
वे ईश्वर से उसके स्वस्थ होने की प्रार्थना करते हुए मन में यह विचार कर चुके थे कि इसबार शादी की सालगिरह वह उमा की इच्छा के अनुसार नौकाविहार करते हुए ही मनायेंगे | उन्होंने अपनी इच्छा के बारे में उमा से कुछ नहीं कहा | वे उसे सालगिरह के दिन ऐसा करके उसे सरप्राइज देना चाहते थे ,पर उसके पहले हीं उमा ने उन्हें सरप्राइज देते हुए
अचानक एकदिन अपनी आंखें सदा के लिए मूंद ली | उसके आंखें मूंदते ही मनोहरलाल को उसकी कमी बेहद खलने लगी | कलतक जो जीवन बेहद आसान था, सारी आवश्यकतायें समय से पूरी हो रही थी वो अब मुश्किल हो गया था | छोटी छोटी बातों पर परेशानी का सामना करना पडता, बेटे बहू की उपेक्षा सहना पडता, ताना सुनना पडता | जीवन नौकरों के भरोसे गुजर रहा था |
उमा के गुजरने के छ महीने के बाद उनकी शादी की सालगिरह आई | मनोहर लाल इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे | मनोहरलाल की तबियत कुछ ठीक नहीं थी फिर भी उन्होंने उमा की एक तस्वीर बैग में ली एक पुराने सेवक सरयू को साथ लिया और पार्क तक जाने की बात कह घर से निकल पड़े |
एक बेहद खूबसूरत फूलों का हार , एक छोटा केक और एक डब्बा मिठाई खरीदा और गंगा किनारे पहुंच गये | वहाँ एक नाव किराये पर लिया और उसपर बैठ गये | सामने उमा की तस्वीर रखी, हार पहनाया और केक पर मोमबत्ती जलाकर रख दिया | उमा की तस्वीर को मिठाई खिलाया और उससे बातें करने लगे |
” देखो उमा आज मैं तुम्हारी इच्छा नुसार नौकाविहार करते हुए हमारी शादी की सालगिरह मना रहा हूँ | अफसोस तो यह है कि मैं सारी उम्र दिखावे की जिंदगी जिता रहा और तुम्हारी इच्छा,तुम्हारी भावनाओं , तुम्हारे प्यार को समझ न पाया, तुम्हें समय न दे पाया | काश समय रहते मैं इसे समझ पाता और तुम्हारे साथ ,तुम्हारी इच्छानुसार इसतरह अपनी शादी की सालगिरह मना
पाता , पर फिर भी तुम आज भी मेरे साथ हो, मेरे दिल में, मेरी यादों में, मेरे अहसासों में हो | मुझे माफ कर दो | आज मुझे बहुत पछतावा हो रहा हैं कि जीते जी मैने तुम्हारी कद्र न की,तुम्हारीभावनाओं,इच्छाओं को न समझा,न महत्व दिया ,जबकि तुमने सदा मेरा साथ दिया | जब तुम थी तो मुझे तुम्हारा महत्व समझ न आया और जब समझ आया तो तुम न हो |
” इतना कहते हुए मनोहरलाल की आंखों से आंसू बहने लगे -” उमा तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता |तुम्हारी बहुत याद आती है | बहुत अकेला हो गया हूँ | अब जीने की इच्छा नहीं करता है | तुम्हारे पास आना चाहता हूँ | ” मनोहरलाल उमा की तस्वीर के सामने सिर झुकाकर रोने लगे | थोड़ी देर बाद वे शांत हो गये |
” मालिक, आपकी तबियत खराब है | ज्यादा मत रोयें अब घर चलिए | ” सरयू उन्हें उठाते हुए बोला | मनोहरलाल का सिर एक ओर लुढक गया |
” मालिक ” सरयू जोर से बोला और रोने लगा | उसने उनके बेटों को फोन कर सारी बातें बताई | वे लोग आकर उन्हें डाक्टर के पास ले गये ,पर वे उमा के पास जा चुके थे | उनलोगों को सारी बातें जानकर बहुत दुख और अफसोस हुआ | साथ ही उन्हें भी समझ आ गया कि अपने जीवन में दिखावे से ज्यादा परिवार के स्नेह, प्यार, अपनापन को महत्व देना चाहिए ताकि भविष्य में पछताना न पडे |
# दिखावे की जिंदगी
स्वलिखित और मौलिक
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |