ओ री चिरैया, अँगना में फिर आजा रे – पल्लवी विनोद

आज पाखी की विदाई है। मनोहरलाल जी शादी की तैयारियों के बीच रह-रह कर एक नजर पाखी की तरफ देख रहे हैं जैसे वो इस पल को अपनी आँखों में बसा लेना चाहते हैं।

चिड़िया की तरह घर आँगन में फुदकने वाली पाखी आज उन्हीं का आँगन छोड़ कर चली जायेगी। कैसे जिएंगे उसके बिना! उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। जाने कितने लड़के देखे थे उन्होंने, तब जाकर आकाश पसन्द आया था। आकाश सरकारी इंजीनियर था तो मनोहर लाल जी ने भी शादी में जी खोलकर खर्च किया था।

पाखी उन्हें छोड़ ही नहीं रही थी। उनके सीने से लगी रोई जा रही थी। उसके मामा उसे समझाते हुए कहा रहे थे, “पाखी ! बेटा,कब तक रहेगी पापा के आँगन में! एक दिन तो अपने घर जाना ही था, आज वो दिन आ गया बेटा।”

पग फेरे पर आई पाखी फिर सबको उतना ही रुला गयी। धीरे-धीरे उसके बिना रहने की आदत पड़ने लगी। सब अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त होने लगे। मनोहरलाल जी जब भी उससे बात करते तो कहते,”पाखी सबको खुश रखना अब वो लोग ही तुम्हारे अपने हैं। वही तुम्हारा परिवार है और पाखी ‘जी पापा’ कह कर फोन रख देती। कभी-कभी उन्हें लगता कि अब पाखी की  आवाज में वो चहक नहीं रह गयी। उनकी चुलबुली पाखी अब गम्भीर होती जा रही है पर इस अंतर को उन्होंने नई जिम्मेदारियों की वजह समझ पाखी से कभी कुछ नहीं पूछा।

कुछ महीनों बाद पता चला कि आकाश बहुत गुस्सैल स्वभाव का है और वो पाखी को बहुत नियंत्रण में रखता है। पाखी ने यह सब अपनी माँ को बताया  तो माँ ने उसे समझाते हुए कहा,”बेटा नई-नई शादी में एक दूसरे को समझने में दिक्कत होती है तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा। मनोहर लाल जी ने कहा,”तू तो मेरी सयानी बिटिया है देखना एक दिन तू सब ठीक कर देगी” और  सब ठीक होने के इन्तेजार में पाखी हर रोज सयानी होती रही।



अब पाखी एक बिटिया की माँ बन चुकी थी। अपनी नातिन के होने पर भी मनोहर लाल जी सामर्थ्य से बढ़-चढ़ कर खर्च किया। उन्हें लगा ये सब देख कर दामाद जी खुश रहेंगे और उनकी बिटिया को भी खुश रखेंगे लेकिन पाखी की परेशानियाँ और बढ़ती जा रही थीं। उसे आकाश की बदचलनी की खबर भी सुनाई देने लगी जिसके चलते उसका मन एकदम टूट चुका था।आकाश और उसके बीच की दूरियाँ बढ़ती जा रही थीं।आकाश अपनी गलतियाँ कभी नहीं मानता था बल्कि वो पाखी को ही गलत बोलता और उस पर गंदे इल्जाम लगाता। पाखी अपनी बेटी के साथ आकाश की हर नाइंसाफी सह रही थी। वो जानती थी कि अब वो माँ-पापा और भाई के पास वापस लौट कर नहीं जा सकती है। जिस घर में वो पली बढ़ी आज उसी घर पर उसका कोई हक नहीं था।

धीरे-धीरे उसकी शादी के दस साल बीत गए। आकाश की ज्यादतियों ने उसे अवसाद ग्रस्त कर दिया था। स्थितियाँ बद से बदतर हो रही थीं। पाखी इस शादी से मुक्त होना चाहती थी लेकिन हर बार उसे खानदान की इज्जत की दुहाई देकर रोक दिया जाता था। हर बार उससे कहा जाता,” समय के साथ सब कुछ बदल जाता है एक दिन आकाश भी बदल जायेगा। अब उसे अपने नहीं अपनी बेटी के बारे में सोचना है।बिना बाप की बेटी इस दुनिया में सिर उठाकर कैसे रहेगी।” और पाखी अपनी बेटी के खातिर खुद को और मजबूत करती।

एक दिन रात दो बजे मनोहर लाल जी के पास सिटी हॉस्पिटल से फोन आया कि पाखी की तबियत बहुत खराब है वो लोग जल्दी से जल्दी वहाँ आ जायें। वो लोग तुरंत निकल गए, मनोहर लाल जी अपने बेटे को कार और तेज चलाने को कह रहे थे वे अपनी पाखी के पास तुरंत पहुँचना चाहते थे लेकिन जब तक वो लोग पहुँचे पाखी एक लंबी उड़ान पर निकल चुकी थी।उसने जहर खा लिया था।पाखी के पड़ोसी जो उसे यहाँ लेकर आये थे उन्होंने  मनोहर लाल जी को एक चिट्ठी पकड़ाई और बोले ये कि ये उसने आपको देने को कही थी।

पापा,

आप सबको मेरा आखिरी प्रणाम, मुझे पता है जो मैं करने जा रही हूँ वो गलत है लेकिन पापा अब इसके अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है।आकाश के बदलने के इन्तेजार में मैंने अपनी जिंदगी के बारह साल इस रिश्ते को दे दिए लेकिन आंसुओं और जिल्लत के सिवा मुझे कुछ नहीं मिला।मैंने जब भी अपनी तकलीफ आप लोगों से बाँटनी चाही इसका कोई हल निकालना चाहा,आप लोगों ने अपनी इज्जत अपने संस्कारों का वास्ता दे कर मुझे ही सब सहने को कहा।यकीन मानिए पापा, मैंने बहुत कोशिश की सब कुछ ठीक करने की। आकाश मेरा पति था। एक आम लड़की की जिंदगी में उसका पति ही उसकी मोहब्बत, उसका सम्मान होता है लेकिन आकाश …….मेरे शरीर से भी ज्यादा घाव उसने मेरी आत्मा को दिए हैं। मुझे लगता था कि कभी तो आप कहेंगे,”पाखी मेरा बच्चा! तू लौट आ। आजा तेरा पापा अभी जिंदा है, वो सब सम्भाल लेगा।” पापा कभी तो आप कहते कि बेटा, ये आज भी तेरा ही घर है! तेरा बचपन आज भी इस आँगन में लुका-छिपी खेलता है। तू जब चाहे यहाँ आ सकती है। हम सब मिलकर फिर से सब ठीक कर देंगे !लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं अंदर ही अंदर टूटती रही। पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। पापा मैंने आपसे एकबार कहा था कि मैं आप पर बोझ नहीं बनूँगी। आपने मुझे इतना पढ़ाया-लिखाया है कि अपना और अपनी बेटी का खर्चा निकाल लूँगी तो आपने कहा कि बात पैसे की नहीं सम्मान की है, बिना पति के औरत की कोई इज्जत नहीं होती है। लेकिन पापा, जब पति के होते हुए भी औरत हर रोज बेइज्जत होती रहे तो कैसे जिये?

पापा अपनी बेटी की आखिरी इच्छा पूरी करेंगे? चिया दस साल की हो चुकी है उसे किसी अच्छे बोर्डिंग में डाल दीजियेगा। मेरे गहने और कुछ सेविंग्स बैंक में हैं। वो सब उसकी पढ़ाई और कैरियर पर खर्च कर दीजियेगा। उसे कभी मत बताइयेगा कि उसकी माँ उसके पापा के अत्याचारों की वजह से नहीं बल्कि उसके नाना के संस्कारों की वजह से मरी हैं। उससे कहिएगा कि वो अपनी माँ की तरह दूसरों की सलाह पर चलने वाली नहीं बनेगी अपने जीवन के फैसले खुद लेगी और इस जिंदगी को भरपूर जियेगी। मेरे हिस्से की भी जिंदगी जियेगी मेरी चिया।



अब जा रही हूँ पापा, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा और सब अंकल लोगों से कहिएगा कि वो अपनी बेटियों को दहेज की जगह उनके घर का एक छोटा सा कोना दे दें कि विषम परिस्थितियों में उनकी पाखी अपने आँगन में फिर से लौट सकें। एक बात और पापा मेरी अंतिम विदाई आप अपने हाथों से ही करिएगा और इस बार बिल्कुल मत रोइयेगा। यकीन मानिए जिस जिंदगी को मैं जी रही थी उससे बहुत आसान है अपनी मृत्यु स्वीकारना।आपकी पाखी बहुत थक गई पापा अब उसे आराम चाहिए।

मम्मी को समझा दीजियेगा, उनकी पाखी उनसे मिलने जरूर आएगी। भाई ,तुम भी मुझे माफ़ कर देना और हो सके तो मेरे हिस्से का प्यार मेरी चिया को देते रहना।

पाखी…

दोस्तों यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है।यह सच है उन हजारों पाखियों का जिनकी शादी के बाद उनका अपने ही घर पर कोई हक नहीं रह जाता। यह दर्द है उन अनगिनत आँखों का जो अपनी शादी को सिर्फ इस मजबूरी में ढो रही हैं कि बाहर वालों की गाली और गंदगी झेलने से अच्छा है, अपने पति की गाली और गंदगी झेलो। उन सबकी जिंदगियों का हश्र सिर्फ मौत ही होता है किसी का शरीर मरता है तो किसी की आत्मा। मैं हर माँ-बाप से यह विनती करती हूँ कि अपनी बेटी की शादी में खर्च करने के बजाय उसे लायक बनायें। महँगे गिफ्ट्स देने के बजाय उसे यह आश्वासन दें कि चाहें कुछ भी हो जाये आप उसके साथ हैं अन्यथा ये परकतरी पाखियाँ अपने ही आँगन का दरवाजा उनके लिए बंद देख कर तड़प-तड़प कर मर जाती हैं।

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कॉपीराइट @ पल्लवी विनोद

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