ओल की चटनी – संजय सहरिया

योगिता को देखने लड़के वाले आ गए थे.ड्राइंग रूम में योगिता के पापा ,ताऊजी और भैया उनकी खातिरदारी में लगे हुए थे.

योगिता को तैयार करने उसकी दो सहेलियां आयी हुई थी.मां लगातार हिदायत दे रही थी बेटी को.योगिता एक पढ़ी लिखी और समझदार लड़की थी.पर माँ तो माँ होती है.वो छोटी छोटी बाते भी समझाने में लगी थी योगिता को.

मां को पता था कि योगिता की सबसे बड़ी कमजोरी ये थी कि उसे रसोई का काम बिल्कुल नही आता था.पढ़ाई लिखाई के चक्कर मे वो रसोई से कभी जुड़ ही नही पायी थी.

वो इसी बात को लेकर चिंतित थी कि इसी मुद्दे पर कही इतना बढ़िया रिश्ता हाथ से न निकल जाए.इकलौता लड़का, सरकारी नोकरी और बड़ा सा अपना मकान.आखिर एक साथ इतनी खूबियां मिलती कहाँ हैं.

योगिता सज धज कर तैयार हो गयी थी.अब उसे सबके सामने जाना था.मां ने अंतिम और सख्त हिदायत देते हुए समझाना शुरू किया “देख बेटी वो लोग ये तो जरूर पूछेंगे कि क्या क्या व्यंजन बना लेती हो.तो तीन चार आइटम जैसे पाव भाजी, छोले भटूरे, आटे के लड्डू, ,बेसन की कचौरिया वेगेरे बता देना ताकि बात न बिगड़े.”


योगिता ने मां को मुस्कुराते हुए भरोसा दिया कि वो बात बिगड़ने नही देगी.

योगिता हॉल में आ गयी थी.औसत रंग रूप की योगिता इतने लोगो के सामने पूरे विश्वास से बैठ गयी थी.

सब लोग योगिता से कुछ कुछ पूछ रहे थे.साथ मे हंसी मजाक भी कर रहे थे ताकि वो तनाव में न आ जाये.

फिर एक सवाल रसोई को लेकर लड़के के दादाजी की तरफ से आ ही गया.योगिता के घर वाले इसी सवाल से घबरा रहे थे.पर मां को यकीन था कि उसने जिन व्यंजनों का नाम बताया है उनका नाम बताकर योगिता इस सवाल का जवाब दे देगी.इतने बड़े काम के लिए बगैर किसी को नुकसान पहुंचाने वाला छोटा सा झूठ बोल देने में कुछ भी गलत नही था.

“मुझे रसोई में बस एक ओल की चटनी के अलावा कुछ भी बनाना नही आता है”

योगिता ने बेहद विनम्रता से सब कुछ सच सच बता दिया था.

योगिता की माँ ने तो सर पकड़ लिया था.”इस लड़की का सच से इतना ज्यादा प्रेम आज भारी पड़ने वाला है.” वह बड़बड़ाये जा रही थी.

पर उम्रदराज अनुभवी दादाजी ने सारी परिस्थितियों को भांप लिया था.दो क्षण रुककर वो उठे और योगिता के पिता के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए थे.


“महावीर प्रसाद जी आप से हाथ जोड़कर आपकीं बेटी को अपने पोते के लिए मांगता हूं.इंसान रसोई का काम तो कभी भी सीख सकता है पर कठिन हालात में भी सच बोलने का साहस उसे जन्म और घर के संस्कार ही दे सकते है.”

स्वभाव से बेहद सख्त माने जाने वाले दादाजी को मासूमियत भरी सच्चाई ने पिघला दिया था.

दादाजी की बातों ने पूरे माहौल को भावुक बना दिया.मां ने बेटी को गले लगाया तो सास और ननद भी भाग कर योगिता के पास आ गयी थी.

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