ओछी सोच….. – अमिता कुचया   : Moral Stories in Hindi

शाम का समय था एकदम से रजनी को आया देख मां बहुत खुश हुई ,तब रजनी से आश्चर्य से पूछा -अरे रजनी न फोन, न कोई मैसेज आज अचानक आना कैसे हुआ! तब रजनी बोली -“मां मैनें मौसी जी से भैया की तबियत का सुना तो मुझसे रहा न गया मुझे तो शादी में आना था, तो एक दिन पहले ही आ गयी।राजू भैया की शुगर बढ़ गई ऐसे कैसे अचानक से बढ़ गई?? 

तब उसकी मां कमला जी बोली- रजनी राजू को बहुत अधिक कमजोरी हो रही थी, लगातार तीन- चार दिन बुखार से मलेरिया बिगड़ गया तो डाक्टर साहब ने ग्लुकोज की बाटल चढ़वाई तब से शुगर बढ़ गई। अब क्या करे कंट्रोल तो करना पड़ रहा है। रोज उसी के हिसाब खाना भी बन रहा है। 

उसके बाद रात में भाभी ने सब्जी लौकी बनाई, खाना भी सादा ही परोसा गया,तो रजनी ने देखा बिन बुलाए हम आ गए इसलिए मेरे को कोई महत्व तक नहीं दिया जा रहा है न भाभी ने पापड़ सेंके, न ही सलाद वगैरह बनाई। 

अब वह मन‌ मसोस कर रह गयी। शादी के बाद पहली बार उसने इतना सादा खाना खाया। अब अगले दिन वो कहने लगी.मां हमें जल्दी निकलना है। तो मैं खाना खा कर ही जाऊंगी। तब मां बोली-” हां हां ठीक है….रजनी हम जल्दी ही तेरी भाभी से कह देगें। “

इतना सुनते ही भाभी ने कहा -“आपको शादी वाले घर जाना है तो आप क्या खाओगी। क्योंकि मुझे तुम्हारे भैया की जांच कराने अस्पताल भी जाना है।” तब रजनी बोली – भाभी जो सुविधा हो वो बना‌ दो। तब उसकी भाभी ने फटाफट लौकी की सब्जी और पराठे बना दिए। और ननद रजनी से भाभी बोली- आप दीदी आप खा लेना। हम अस्पताल के लिए लेट हो रहे हैं हमें जाना है। तब वो बोली ठीक है भाभी आप चली जाओ……… 

अब जैसे ही भाभी भैया अस्पताल गये। तो उसने जैसे तैसे पराठे और सब्जी खाई। और मां से कहा-” मुझे बुआ सास के यहाँ शादी में जाना है। हम निकल रहे है वही तुम्हारे दामाद जी मिलेगें। तब मां ने कहा- रजनी तुम ऐसे अचानक ही आई हो और जल्दी ही जा रही हो तुम बुआ सास के यहाँ की शादी करके लौटकर आना।

 तब रजनी बोली -मां तुम्हारे दामाद जी जैसा कहेंगे वैसा करेंगे। तब उसी शहर में शादी वाले घर में रजनी चली गयी। वही उसने शादी के फंक्शन अटैंड किए। वही रजनी की बड़ी मामी मिली, उनकी भी रिश्तेदारी थी। उन्हें बुलाया गया था। तब मामी ने कहा -रजनी तुम राजू की तबियत देखने गयी। कि नहीं…उसकी शुगर बढ़ गई है।

तब रजनी बोली- हां मामी हम कल आ गए थे। तो पहले वहाँ देखने चले गए, हमें मौसी ने बताया था। पर अब तो घर के हालात ही बदल गए।।हमें तो ऐसा लगता हैं कि अचानक से अपने घर भी नहीं जाना चाहिए। इस बार तो हमें बहुत बुरा लगा। न तो मेरे आने की खुशी दिखी ,न ही मुझे रुकने कहा।

खाना भी भाभी ने सादा सा बना दिया इस बार ऐसा लग रहा था कि मैं मायके में पराई ही हो गई हूँ। तब उसकी रंजना मामी बोली ऐसे क्यों कह रही हो। देखो सब तुम्हारे भैया की तबियत की वजह से परेशान होंगे। 

तब भी रजनी बोली मामी,,मेरे लिए उनका पास पहुंचना और न पहुंचना एक बराबर था। जो सब्जी रात को बनी ,वही भाभी ने सुबह भी बना दी। तब रजनी से मामी बोली -तुम तो उस घर की बेटी हो ,तुम ही ऐसी बातें कर रही हो। तब रजनी कुछ न बोल पाई। और वह चुप रह गई। शादी के बाद वह मायके अपने पति साथ न गयी। इस तरह उसके मन में यही भाव थे मैं मायके में कुछ नहीं हूँ। उसके मन में कड़वाहट सी आ गयी उसे लगा बेकार ही घर चले गए। खैर…. 

दिन बीतते गये…….. अब जो भी रिश्तेदार मिलता रजनी उसी से अपने मायके की बुराई करती।

 समय गुजरता गया……. 

अब वो न फोन करती न ही भैया की तबियत की खबर लेती। एक दिन रजनी की बड़ी मामी उसकी मम्मी के घर गई कि राजू अब कैसा है।तबियत देख आए तब वहाँ देखा कि राजू की तबियत में सुधर हो गया है। तब उसकी बहू ने बडे़ अच्छे से चाय नाश्ते कराया। 

तब बातों ही बातों में रंजना भाभी ने बताया कि रजनी तो दीदी आप सब की बहुत बुराई कर रही थी। ऐसी भला क्या बात हो गई!! 

तब रजनी की मां बोली -कोई बात नहीं हुई,पर पता नहीं,,बहुत दिन से रजनी का फोन नहीं आ रहा है। फोन लगाओ तो लगता भी नहीं है। बताओ भाभी क्या करे। 

तब उनकी रंजना भाभी बोली- दीदी लगता है रजनी को आपकी कोई बात का बुरा लगा है। वो तो हमसे कह रही थी हमारे घर जाने से किसी को खुशी नहीं हुई।हमें किसी ने न ढंग से खाना खाने तक न दिया।वोई रात में बनी लौकी बनी और दूसरे दिन भी वही लौकी बन गयी। इस तरह रजनी कह रही थी। 

तब रजनी की मम्मी कमला जी बोली- बताओ तो भाभी जब अपनी बिटिया इतनी मीन मेख निकाले है तो का अच्छो लगत है?हमाई बिटिया होके जा तो खानदान की इज्जत धो के रख दयी है। 

तब रंजना भाभी भी कहने लगी- सही कह रही हो दीदी आप, एक तो रजनी ये नहीं देख रही कि राजू की तबियत ठीक नहीं है। ऊपर से अपना अहम दिखा रही है। 

फिर जब राजू की तबियत ठीक हो गई। तो उसने सोचा चलो राखी बंधवा आए। तब वह रजनी के घर पहुंचा। तब वह सोची भैया आप अचानक आ गए। तब राजू ने कहा-” दीदी तुम्हें तो अपने खानदान की इज्जत की परवाह तो है नहीं, पर हमें है हम तुमसे राखी बंधवाने आ गए।

जो आपने मामी से बताया वो बहुत गलत किया। सबके दिन अच्छे और बुरे आते हैं। आप हमारे दुख में भी अपना मान सम्मान खोजने गई क्या ये सही किया। घर में दो समय लौकी क्या बन गयी आप तो मामी से बताने लगी। 

तब रजनी को अपनी गलती का एहसास हुआ। भैया मैं सही में गलत थी। मैं अपनी ओछी सोच पर बहुत शरमिंदा हूँ।मैं उस घर की बेटी बहन होकर ये सोच बैठी..तेरे जीजा जी कहते तो भी कोई बात होती मैं अपनी गलती मानती हूं, मुझे माफ कर दो। उसकी आंख से झर- झर से आंसू बहने लगे।

उसका पश्चाताप देख कर भाई ने कहा- घर की इज्जत से बढ़कर कुछ नहीं होता। बहन यदि मायके में कोई कमी हो तो किसी को नहीं बताते और ससुराल में भी कोई कमी हो तो कुछ नहीं खोलते हैं। जो लड़की दोनों कुल की लाज बना कर रखती है, वही सबकी प्रिय होती है। और भैया की बात सुनकर उसे समझ आया। 

इस तरह उसने भीगे आंसुओं को पोंछकर भाई को खुशी- खुशी राखी बांधी। 

और दोनों खानदान की इज्जत बनाकर रखेगी भाई से वादा किया। 

स्वरचित रचना

अमिता कुचया

#खानदान की इज्जत

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