सुरेश बाबू घर आते ही खुशी से अपनी पत्नी को बताने लगे ‘’ तुम्हें मालूम है आज अपने शो रूम में कौन
आया था।‘’ इतनी उत्सुकता देखकर उनकी पत्नी आशा तेजी से उनकी ओर आई और आंखों से ही सवाल
करने लगी1 ‘’ अपना मानू माइक्रोवेव खरीदने आया था।‘’
भला वो करनाल में कैसे वो तो आपने बताया था कि कहीं विदेश में सेटल हो गए थे।‘’
हॉ वही तो हैरानी हो रही थी मुझे। मैं पहले तो पहचान नहीं पाया मगर वह काफी देर से मेरे सेल्समैन से
बहस कर रहा था तो मुझे अपने केबिन से बाहर आना पड़ा तो देखा मानू था। वो पिछले दो सालों से अपने
परिवार के साथ अपने पुश्तैनी बंगले में रह रहा है।
मानू सुरेश बाबू के बचपन का सहपाठी और जिगरी दोस्त था दोनों इसी शहर के स्कूल में एक ही क्लास
में पढते थे मानू जिसका पूरा नाम मानवेन्द्र था स्कूल के बाद अपने मामा के पास लन्दन पढ़ने चला गया
और फिर भारत आकर शादी करके धीरे धीरे पूरा परिवार वहीं चला गया। सुरेश बाबू ने इसी शहर में अपनी
पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना इलैक्ट्रिानिक उपकरणों का सुन्दर शोरूम बना लिया था जहां उनके सेल्समैन
और दूसरे कर्मचारी उनके व्यापार की अच्छी देखभाल कर रहे थे।
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सुरेश बाबू अपनी पत्नी आशा से कई बार अपने बचपन की शरारतों में अपने जिगरी दोस्त मानू का जिक्र
कर चुके थे इसलिए आाशा ने उन्हें देखा भले ही न था मगर यह नाम उसके लिए परिचय का मोहताज नहीं
था।
शाम तक सुरेश बाबू की दोनों बेटियों सुमन और सुरभि को भी अपने पापा के 33 वर्ष पुराने मित्र मिलन खुशी
की खबर मिल गई थी। पूरे परिवार ने यही तय पाया कि उन्हें सपरिवार खाने पर निमंत्रण दिया जाए।
मोबाइल के जमाने में यह कौन सा कठिन काम था इसलिए दो दिन बाद रविवार था। देरी न करते हुए सुरेश
बाबू ने अभी चार घंटे पहले सेव किए मोबाईल नंबर पर गर्मजोशी से निमंत्रण दे डाला।
रविवार को आाशा और उसकी दोनों बेटियों ने प्यार से भोजन की तैयारी की। समस्या केवल यही थी कि
बड़ी बेटी सुमन जो शहर के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल में नर्स थी उसकी उसी दिन दोपहर की ड्यूटी थी। पर
तरह से छुट्टी लेने को तैयार नहीं थी क्योंकि उसकी ड्यूटी कार्डियोलोजी वार्ड में थी जहों जरा सी लापरवाही
या स्टाफ की कमी मरीज के लिए जानलेवा हो सकती है। यही तय पाया गया कि सुमन उस दिन अपनी
ड्यूटी रात्रि पारी की करवा ले ताकि उनके साथ आराम से लंच करने और जाने के बाद अस्पताल भी जा पाए।
मानवेन्द्र जी अपनी पत्नी रीमा, बेटी प्रज्ञा और बहन रमा के साथ आए। उनका लंदन में जन्मा पला बेटा
सुजय कारोबार के सिलसिले में बाहर होने के कारण साथ नहीं आ पाया। सुरेश बाबू के साथ लंच का मजा
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लेते हुए अपने मित्र के साथ पुरानी यादें ताजा करते हुए उसके ठाट बाट की भी तारीफ किए बिना नहीं रह
सके। इसी बीच बच्चों की चर्चा होने लगी तो सुरेश बाबू ने बताया कि उनकी दो बेटियों में बड़ी बेटी एक
अच्छी नर्स है और बातों बातों में उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार उन्हें दिल का दौरा पडा था तो
उनकी इस बेटी ने कैसे अपने सेवा भाव का परिचय देते पूरा कारोबार और एक नर्स की तरह अपने पिता को
हर मुश्किल से उबार लिया था। तभी से उन्होंने ठान लिया था कि अपनी इस बेटी को नर्स बनाएंगे ताकि वह
औरों की भी सेवा करे। उन्होंने यह भी बताया कि आज मानवेन्द्र जी की मेजबानी में उसने अपनी ड्यूटी
बदलवाकर रात की ड्यूटी पर जाना उचित समझा।
मानवेन्द्र जी की पत्नी तुरंत बोल उठी भाई साहब अब जब आप इतने सम्पन्न है तो बेटी को नौकरी
करवाना कहां तक ठीक है। इस पर सुरेश जी ने सफाई देते हुए कहा कि पैसा सब कुछ नहीं होता भाभी जी
जब बच्ची की सेवा कईयों की प्राणरक्षा कर सकती है जैसे मेरी हुई थी तो क्या हर्ज है। पर मानवेन्द्र जी
की मुंहफट बहन चुप नहीं रही उसने कहा कि नर्सों की ड्यूटी तो रात रात भर भी रहती है और भले घर कर
लड़कियां निशाचरी बन कर घूमें यह कोई अच्छा थोड़े ही लगता है। मानवेन्द्र जी की कॉलेज में पढ़ने वाली
आधुनिक विचारों वाली लड़की ने भी उनकी हॉ में हॉ मिलाई तो सुरेश जी की पत्नी को उनकी बात बहुत ही
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नागवार गुजरी। सुमन तो जैसे आहत ही होकर रह गई। सुरभि के तो मानों गुस्से के मारे चेहरे के भाव ही
बदल गए।
माहौल में भारीपन तो आ चुका था लेकिन एक अच्छे मेजबान की तरह सुरेश बाबू के पूरे परिवार ने उन
सबको बड़े आदरमान से विदा किया।
उनके जाते ही आशा ने बडबड़ाना शुरू कर दिया छि: कैसे लोग हैं निशाचरी भला यह भी कोई शब्द हुआ यह
तो गाली से भी गंदा लग रहा है मुझे। मेरी प्यारी सी नाइटिंगेल के लिए इतनी भद्दी भाषा ……..
अरे भई उन्होंने तो वैसे ही कह दिया बेवकूफी में फिर यह बात उन्होंने सभी के लिए कही है सिर्फ सुमन को
कुछ नहीं कहा गलत अर्थ मत लगाओ।
पापा मुझे भी बहुत खराब लगा है सुमन भी रूआंसी सी होकर बोली
सुरभि बोली पापा आप भी कई सालों में दोस्त से मिले है इसलिए भावुक हैं और उनका पक्ष ले रहें हैं पर
बद्तमीजी तो बद्तमीजी होती है। सबकी एक राय देखते हुए सुरेश बाबू भी उनसे सहमत हो गए।
अभी एक सप्ताह भी नहीं गुजरा था कि मानवेन्द्र जी का फोन आया और उन्होंने कहा कि क्यों न दोस्ती
को रिश्तेदारी में बदल लिया जाए उन्होंने उनकी बेटी का हाथ अपने बेटे सुजय के लिए मांग लिया। सुरेश
बाबू हैरान हुए और कहने लगे लेकिन आपको तो हमारी बेटी का नौकरी करना पसंद नहीं और मेरी बेटी अपना
काम नहीं छोड़ेगी।
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नहीं यार वो तुम्हारी निशाचरी बेटी नहीं हम छोटी बेटी की बात कर रहें हैं। मानवेन्द्र की ऐसी बात सुनकर
सुरेश का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया लेकिन अपने स्टाफ के सामने अपने मनोभाव छिपाते हुए बोले
ठीक है घर बात करूंगा।
सुरेश बाबू ने घर आकर रात को खाना खाते समय मानवेन्द्र के फोन की चर्चा की तो आशा का तो मानों
ब्लड प्रेशर बढ़ गया। सुमन चुपचाप उठकर चल दी सुरभि दांतो से सलाद की जगह नाखून चबाने लगी। उन्हें
लगा उन्हें किसी को बताना ही नहीं चाहिए था चुपचाप न कह देनी चाहिए थी।
आशा रात भर कुढ़ती रही सुरभि को भी नींद नहीं आई सुरेश बाबू खुद कश्मकश में थे। रात भर उदास सी
सुमन जल्दी उठकर तैयार होकर बिना कुछ खाए पिए अपनी सुबह की पारी के लिए ड्यूटी पर निकल चुकी
थी। अनमने ढंग से नहा धोकर सुरभि ने नाश्ता बनाया। तीनों जब नाश्ते की टेबल पर बैठे तो नाश्ता
खत्म करते ही सुरभि बोली पापा अभी उठिएगा नहीं मुझे कुछ कहना है। आशा ने उसकी ओर प्रश्नसूचक
निगाहों से देखा तो उसने कहा कि मम्मी पापा आप मानवेन्द्र अंकल को मेरे लिए हॉं कह दीजिए मैं इस
रिश्ते के लिए तैयार हूं। आशा को लगा कि वह सुरभि के इस फैसले से गश खाकर गिर जाएगी। सुरेश बाबू
बोले बेटा यह क्या तमाशा है कल तक तो तुम भी गुस्से में थी। मैंने कहा न आप उन्हें उनके बेटे के साथ
फिर से बुला लीजिए। अपनी बहन का तो सोचो उस पर क्या गुजरेगी। चाहे जो हो आप उन्हें बुला लीजिए
एक उनका लड़का देखने में क्या बुराई है। यह उनकी अमीरी पर मर रही है उनकी गंदी सोच पर ध्यान नहीं
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दे रही आशा जी चिल्लाकर बोली। सुरभि ने कहा आप चाहे जो समझें पर मुझे उनकी इस बात पर कोई
ऐतराज नहीं है।
सुरभि अपना फैसला सुना कर किचन में बर्तन रखने चली गई। आशा जी बोली यह किस लालच में हॉ कर रही
है उसके लंदन में पढ़ा लिखा होने, बड़ा कारोबार होने, यह लड़की तो मेरी समझ से ही बाहर होती जा रही है।
सुरेश बाबू सोच रहे थे काश मेरी मानवेन्द्र से मुलाकात ही न हुई होती।
सुरेश जी ने कहा ठीक है शाम को सुमन के घर आने पर चारों मिलकर फैसला करते हैं। शाम को सुमन जब
घर आई तो उसने सुरभि का फैसला सुना तो सकते में आ गई। लेकिन संयम से काम लेते हुए बोली मम्मी
पापा आप ही तो कहते हैं कि रिश्ते संजोग से होतें हैं। हो सकता है इसके संजोग ऐसे ही बंधे हों। आखिर
सुमन ने सबको मना ही लिया। सुरभि खुश तो नहीं पर आशवस्त लगी। हांलांकि सुमन भीतर ही भीतर से टूट
गई थी कि इतना प्यार करने वाली छोटी बहन को उसकी भावनाओं का जरा भी ख्याल नहीं।
मानवेन्द्र जी अगले ही रविवार सपरिवार फिर से सुरेश बाबू के घर पर उनकी छोटी बेटी के रिश्ते के लिए आ
गए थे। ड्यूटी न होने के कारण सुमन ने अपने कमरे से निकलना उचित न समझा 1 आशा समझ गई थी
सुमन लड़के का सामना ही नहीं करना चाहती थी। वैसे भी सुमन रंग रूप कद काठी गुणों में सुरभि से बीस
नहीं कही पच्चीस ही बैठती। कहीं ऐसा न हो कि वह फिर अपना इरादा बदलें और फिर से हमारा दिल
दु:खाएं।
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सुरभ्रि ने कनखियों से देखा महंगे सूट बूट में सजा धजा सुजय देखने में ठीक ठाक था। बातों बातों में
मानवेन्द्र जी की बहन बोली अरे बच्चों को आपस में भी तो बात कर लेने दीजिए। सुरभि की आंखें चमक
उठीं वो मानो इसी प्रतीक्षा में थी। आशा जी ने यह बात नोट की उन्हें सुरभि की यह उतावली बिल्कुल
अच्छी नहीं लगी। पर मन मसोस कर रह गईं।
सुरभि सुजय को अपना घर दिखाने के बहाने बाहर लॉन में ले गई। इससे पहले सुजय बात शुरू करता सुरभि
ने उससे पूछा आप लंदन में पढ़ने के बाद वहीं सेटल होने के बजाए इंडिया क्यों आ गए।
दरअसल पापा मम्मी चाहते थे कि हम लंदन में नहीं बल्कि इंडिया चलकर इंडियन लड़की से शादी करें।
लंदन में भी तो इंडियन लड़कियां होंगी।
सो तो है पर उनमें भारतीयों जैसे संस्कार नहीं है। हम वहां रहकर भी भारतीय सोच ही रखते रहे वहां की
लड़कियां गर्ल फ्रेंड्स तो बन सकती हैं अच्छी पत्नी नहीं और फिर आपने देखा नहीं हम तो आपकी बड़ी बहन
की रात की ड्यूटी करने के कारण उसे भी पसंद नहीं कर रहे। जबकि बुआ जी ने बताया कि वह बहुत ही सुंदर
है मगर हम एकदम सीधी-सादी घरेलू लड़की चाहते हैं।
सुरभि का तीर निशाने पर बैठा फिर आप किसी गांव की लड़की को क्यों नहीं बहू बनाते वो तो पूरी की पूरी
घरेलू और सीधी सादी होगी।
नहीं ऐसा भी नहीं शहरी पढ़ी लिखी हो पर भारतीय लड़कियों की तरह पति से दबकर रहने वाली हो ज्यादा
बाहर जाने वाली या फिर कोई निशाचरी नहीं।
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इस शब्द से पहले से आहत सुरभि अब अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो बैठी बोली आप लंदन में रहकर भी
भारतीय बने रहना चाहते हैं और भारत में सेवा भाव रखने वाली लड़की को जो कई लोगों के दिलों का ख्याल
रखकर उनका जीवन बचाती है उसको आप अपनी दिल तोड़ने वाली पिशाच जैसे सोच रखने वाले लोग
निशाचरी की संज्ञा दे डालते हैं चलिए अंदर चलिए मैं अब आपसे सबके सामने ही बात करूंगी। सुजय इससे
पहले कुछ समझ पाता सुरभि तेज कदमों से ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गई जहां दोनों परिवार बैठे थे।
अंदर जाते ही सुरभि सुरेश बाबू से बोली पापा मुझे तो लंदन में पढ़लिखकर बड़ा होने वाला और पत्नी को
दबाकर रखने वाली दूसरों का दिल दु:खाने वाली पिशाच जैसी मानसिकता वाला पति और परिवार बिल्कुल
नहीं चाहिए इस पिशाचिनी सोच वालों से कहें कि मैं इस घर परिवार में शादी करने की बजाए आजीवन कुआंरी
रहना पसंद करूंगी। साथ ही वह भागकर सुमन को उसके कमरे से बाहर निकालकर ले आई और उसे गले से
लगाकर बोली निशाचरी नहीं बल्कि मेरी प्यारी फलोरेंस नाइटिंगेल ।
मानवेन्द्र जी के परिवार को ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी। सभी सकते में आ गए। सुजय तो आवाक सुरभि
को देख रहा था और सुरेश बाबू और आशा मानों अपनी बेटी के इस निर्णय पर गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे।
लेखिका
पूनम सुभाष