बेटा, सिमरन मैं तुझे अभी भी समझा रही हूं। पहले भी तूने हमारी बात नहीं मानी कोई बात नही,लेकिन अब मेरी बात मान ले अपना सामान पैक कर और मायके वापस आ जाओ
जिस घर में आत्म सम्मान नहीं है, इज्जत नहीं है उस घर में रहने से कोई फायदा नहीं । सिमरन ने माँ की बात मानी निखिल के लिए पत्र छोड़ा अपना सामान पैक किया
और मायके जाने के लिए बस में बैठ गई। जिस तेज गति से बस चल रही थी उसी तेज गति से सिमरन का मन भी पीछे की घटनाओं की ओर दौड़ने लगा ।
निखिल को पहली बार स्टेज पर भाषण देते हुए सुना था वह दहेज के खिलाफ बोला और उसने ये भी कहा कि लड़के और लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं होता।
समाज को यह भेदभाव मिटाना होगा उसकी इसी अदा पर फिदा होकर सिमरन ने उसके साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। यह दोस्ती धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला ।
जब दोनों ने शादी करने का फैसला किया तो सिमरन के माता-पिता दोनों शादी के खिलाफ थे लेकिन सिमरन ने उनकी एक भी नहीं सुनी और कोर्ट में मैरिज कर ली।
निखिल के माता- पिता को भी कोई एतराज नही था। लेकिन साल बीते बीते सिमरन को समझ आ गया कि भाषण देना और उस भाषण को अपनी जिंदगी में उतार लेना
यह दोनों एक दूसरे से जुदा बातें होती हैं । साल भर बीत जाने के बाद ही निखिल ने सिमरन से कहा कि मैं लड़की और लड़के में कोई भेदभाव नहीं समझता।
इसलिए मैं चाहता हूं तुम अपने मायके से तुम्हारे नाम आने वाली प्रॉपर्टी को अपने नाम अभी से करवा लो । इससे पहले की तुम्हारे मां-बाप सारी प्रॉपर्टी तुम्हारे भाई के नाम लगवाएं ।
पहली बार निखिल के मुंह से ऐसी बात सुनकर सिमरन बहुत परेशान हुई। फिर तो रोज उस पर दबाव बनाए जाने लगा प्रॉपर्टी लेने की बात गाली गलौच और मारपीट पर उतरने लगी ।
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इसी से दुखी होकर एक दिन सिमरन ने अपनी माँ को फोन किया माफी मांगते हुए कहा मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई निखिल को जीवन साथी चुनने में।
अब अगर प्रॉपर्टी मेरे नाम लग जाए तो शायद मेरी जिंदगी पटरी पर आ जाए । मैं शायद सुखी दाम्पत्य जीवन बिता सकूं ।
सिमरन की माँ समझ गई निखिल उसे सरासर धोखे में रख रहा है और सिमरन भी उसकी बातों में आकर प्रॉपर्टी में हिस्सा मांग रही हैं ।
सिमरन की माँ ने कहा, ” हम तेरी प्रॉपर्टी तेरे नाम कर देंगे, हमें कोई एतराज नहीं है परंतु इसके बाद भी अगर निखिल अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो क्या करोगी।
इससे अच्छा हो तुम अपनी प्रॉपर्टी लेकर नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करो। उससे कोई अपना व्यवसाय शुरू करो और एक इज्जतदार जिंदगी जियो।
” माँ की इन बातों को ध्यान में रखकर सिमरन ने वह घर छोड़ने का फैसला किया था और बस में बैठे-बैठे उसने अपने भविष्य के बारे में भी बहुत कुछ सोच लिया था
और यह भी सोच लिया था आत्मसम्मान के साथ जीना सबसे जरूरी है और इसको कैसे वापिस पाना है।
नीलम नारंग मोहाली