निर्णय – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

तनिशा  हाथ में राखी लिए पारिवारिक फोटो के सामने उदास बैठी आंखों  में आंसू लिए सोच रही थी कि आज राखी है और न तो दोनों बहनों ने न भाई ने और तो और मम्मी ने भी मुझे याद नहीं किया। सुबह से शाम हो गई किसी  का एक फोन भी नहीं आया।सब इकट्ठे हो राखी मना रहे होंगे मेरी किसी को याद नहीं आई।

मम्मी तो दस दिन पहले ही फोन कर चुकी थीं कि बेटा राखी है कविशा और लविशा को राखी पर कुछ देना होगा सो तू कुछ रुपये भेज कर अपने भाई अंशु की कुछ मदद कर दे। मैं तो उनके लिए सिर्फ ए टी एम मशीन हूं जिसमें से जरूरत पड़ने पर रूपये निकल सकें। बस अब  इसके आगे और कुछ नहीं। 

सोचते-सोचते वह अपने जीवन के अठारह बर्ष पहले के जीवन में पहुँच गई। कितना प्यारा था उसका परिवार वह सबसे बड़ी थी सो अपने मम्मी-पापा की ज्यादा ही लाडली थी। अभी वह सत्रह बर्ष की हुई थी और बारहवीं की परीक्षा दी थी कि अचानक उनके परिवार पर दुःखों का पहाड टूट पड़ा।

ऑफिस से लौटते हुए उसके पापा की मोटर साइकिल को  गलत दिशा में तेज गति से आती कार ने सामने से जोरदार टक्कर मार दी।घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। किसी ने उनका फोन लेकर सूचना दी। मम्मी तो सुनते ही होश गवां बैठी। वह  उन्हें छोडकर पडोसी अंकल के पास गई और साथ चलने को कहा।

छोटी बहनों को मां का ख्याल रखने को कह वह अंकल  के साथ फोन पर बताये स्थान पर पहुँची जहाँ भीड लगी थी। पापा लहूलुहान सडक पर पडे थे। कोई मदद करने को तैयार नहीं था। किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी सो कुछ ही देर में पुलिस एम्बुलेंस के साथ आ गई और उन्हें लेकर अस्पताल चली गई।

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वह  भी साथ गई बीच-बीच में उसने मां का  हाल भी बहन से पूछती रही। आवश्यक कार्यवाही के बाद तीन घंटे बाद वह पापा के शव को लेकर घर पहुंची। इन तीन घंटों में ही  वह एक सुकोमल बच्ची से  व्यस्क युवती  बन गई। न जाने कहाँ से उसमें उस समय इतना साहस आ गया कि उसने मम्मी के साथ-साथ तीनों बहन भाई को भी सम्हाला। अब समस्या थी कि बिना आमदनी के काम कैसे चलेगा ।ऑफिस वालों ने  मम्मी को नौकरी

ऑफर की किन्तु कम पढी लिखी होने से बहुत ही निम्न पद के लिए सहायिका के पद पर। जिसे मम्मी ने करने से इन्कार कर दिया। अभी तो पापा के मिले पैसों से काम चल रहा था। कुछ ही दिनों में उसका परिणाम आ गया और बारहवीं पास हो गई। अब घर के खातिर उसने पढ़ाई छोड पापा के ऑफिस में क्लर्क के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली। उसने साइन्स बायो लेकर अच्छे अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण की थी

उसका डाक्टर बनने का सपना पापा के साथ ही चला गया ।वह नौकरी के साथ-साथ प्राइवेट  अपनी  पढाई  करने लगी। साथ ही उसने कम्प्यूटर का कोई  कोर्स भी कर लिया और बैंक में अच्छे पद पर लग गई। इसी बीच कविशा की पढ़ाई भी पूरी हो गई। कविशा की शादी एक सुयोग्य वर देख कर दी गई।उसके लिए जो रिश्ते आ रहे थे उन्हें माँ ने ठुकरा दिया। 

देख तनिशा तू शादी कर चली जायगी तो परिवार का क्या होगा पहले इनसे निबट लें फिर तेरी शादी भी कर देंगे । तू थोडा सब्र कर बेटा।

उसे भी लगा मम्मी सही ही तो कह रहीं है। वह बड़ी बहन है पापा के  जाने के बाद उसके कंधों  पर ही तो परिवार की जिम्मेदारी है वह उससे कैसे मुख मोड सकती है। और वह तब से ही परिवार के लिए ए टी एम मशीन बन गई।

लविशा ने  स्वयं लडका पंसद कर लिया उसकी  शादी की। अंशु इजिनियरिंग कर रहा था अभी उसके दो बर्ष शेष थे। तब तक बीच-बीच में कविशा और लविशा  के बच्चे हुए फैमिली में शादी-ब्याह हुए मम्मी ने दिल खोल कर लेना-देना किया ताकि ससुराल में बेटियों का मान बना रहे।

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भाई अंशु की भी पढ़ाई पूरी हुई और अच्छे पद पर कम्पनी में लग गया। अब मां को अंशु की शादी की चिन्ता होने लगी किन्तु उसकी शादी बारे में किसी ने नहीं सोचा। वह सोचती थी कि भाई की शादी से पहले माँ उसकी शादी की चिन्ता करेंगी  किन्तु ऐसा नहीं हुआ। माँ को उसकी बढती उम्र की चिन्ता नहीं थी। ऐसा लगता  था उनके तीन ही बच्चे हैं जिनका सारा कार्य उन्हें पूरा करना है। वह तो केवल कमा कर देने को ही है।

खैर भाई की भी शादी हो गई ।अब वे भाई के साथ रहने लगीं। अब घर में शादी ब्याह की चर्चा बिल्कुल खत्म हो गई। कोई भी उसकी शादी के लिए चिन्तीत न‌हीं दिखता था सब अपनी गृहस्थी अपने बच्चों के साथ खुशहाल  थे।मम्मी भी अब अपने नाती नातिन,पोते-पोतियों के  बीच  खो सी गई  थीं।सब इतने खुश थे कि कोई नहीं सोच रहा था कि मेरी उम्र भी निकलती जा रही है। अब तो फोन आने, बात करना भी सबने बन्द सा कर दिया. आज राखी के त्यौहार पर भी किसी ने उसे याद नहीं किया। वह अपने परिवार के इस रवैए से बहुत दुःखी थी।

उसके बैंक में अभी दो साल पहले ही नये मैनेजर आए थे। उनकी भी पारिवारिक स्थिति कुछ तनिशा जैसी ही थी। वे भी परिवार को सम्हालने के चक्कर में अभी तक कुंवारे  ही रह गये। केशव जी मन ही मन तनिशा को चाहने  लगे थे। हम उम्र थे, दोनों एक ही परिस्थिती से गुजरे थे सो एक दूसरे का दर्द समझते थे। तनिशा  के मन में भी उनके प्रति सहानुभूति एवं लगाव था। वह भी उनके व्यक्तित्व एवं सुलझे विचारों से प्रभावित थी।

तभी एक दिन केशव जी ने उसे प्रपोज करते हुए कहा तनिशा मेरे प्रस्ताव को अन्यथा मत लेना पर यदि तुम सहमत हो तो क्यों न हम भी अपनी जिन्दगी को एकाकीपन एवं अन्धकारमय भविष्य से निकाल कर खुशहाल कर लें। हमारी उम्र तो अधिक हो गई किन्तु इतनी भी अधिक नहीं है कि विवाह के बारे में सोचें ही नहीं । जल्दी नहीं है सोच समझकर निर्णय लेने के लिए तुम स्वतंत्र हो।  मैं तुम्हारे जबाब का इन्तजार करुंगा। 

 तनिशा भी अपने एकाकीपन एवं परिवार के बदलते व्यवहार से दुखी थी अब उसे भी  लगता था कि कोई साथी तो हो जो सुख -दुख बांट कर आपस में एक दूसरे का सहारा बन सकें। बढती उम्र में अकेले कैसे रहेगी यह सोच कर ही वह कांप जाती। कौन उसे सम्हालेगा। अभी तो मम्मी ही साथ छोड़ गई  जैसे मैं उनकी बेटी ही नहीं।

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आखिर उसने केशव जी का प्रस्ताव मानने का मन बना लिया । उसने अपने परिवार में बहनों  ,भाई, मम्मी को यह खबर दी कि वह शादी करना चाहती है। एक सुयोग्य साथी उसे मिल गया है,आप लोग  इस  कार्य में सहयोग करें।

दोनों  छोटी बहनों ने फोन कर कहा दीदी आपको इस उम्र में  शादी  करने की सूझी है लोग क्या कहेंगे ,हमारे ससुराल वालों को  पता चलेगा तो हमें कितना शर्मिन्दा होना पड़ेगा। क्या जरूरत है हम सब तो हैं न ।

वह कुछ नहीं बोली फोन काट दिया।

 भाई  का फोन आया की दीदी मैं आपसे छोटा हूं क्या कहूं ,  पर मुझे आपके निर्णय  पर शर्म आ रही है  इस उम्र में शादी।सोच भी कैसे लिया कि हम लोग आपको शादी करने की अनुमति दे देंगे। अरे घर में सब हैं बच्चे हैं आपको किस चीज की  कमी है जो यह कदम उठा रहीं हैं। उसने चुपचाप फोन  काट दिया और फफक-फफक कर रो पड़ी। मेरा यह भाई जिसे मैंने बच्चे की तरह पाला आज मुझे अनुमति देने की बात कर रहा है। सब हैं तो मुझे कौन देखता है कि मैं जी रही हूँ या मर रही हूं।

थोडी देर बाद मम्मी का फोन  आया वो उसे समझाते हुए बोलीं -बेटा कुछ तो सोचो  अब क्या तुम्हारी उम्र है शादी करने की। समाज, रिश्तेदार सुनेंगे तो क्या कहेंगे सोचा है तुमने ।तुम्हारे बहन भाई हैं उनके बच्चे हैं उन्हें ही अपना समझो, उन्हें  प्यार दो तो वे ही तुम्हारे हो जायेंगे ।तुम्हें क्या जरूरत है इस सब  झंझट में पड़ने की। मम्मी की बात  सुन वह स्तब्ध रह गई। आज भी मम्मी सिर्फ उसका  दोहन करना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि में सिर्फ उन्हें पैसे देकर उनकी आपूर्ति करती रहूं। मेरे सुख दुःख से उन्हें कोई मतलब नहीं ।

बेटा बोल न  क्या सोच रही है। 

मम्मी  सोच रही हूं कि क्या मैं आपकी सगी बेटी हूँ। कोई सौतेली बेटी के साथ भी ऐसा नहीं करता होगा जैसा आप सब मेरे साथ कर रहे हैं। मैं यहां अकेली पडी दीवारों से सिर फोड़ती रहती हूं कौन आता  है मुझे देखने कि जी रही हूं या मर रही हूं। आपका फोन तभी आता है जब आपको पैसों  की  जरूरत  होती है

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उसके बाद आप बेटे बहू , पोते -पोती के साथ मस्त रहती हैं। कभी सोचा है आपने मुझे कितना अकेलापन लगता है कैसे मेरा समय कटता है। ठीक है आप लोगों को बताना मेरा फर्ज था सो बता दिया आगे क्या करना है आपकी  मर्जी। अभी में मात्र छत्तीस साल की हुई हूं , इतनी बूढी भी नही हो गई।

अब अपने जीवन के बारे में स्वयं  निर्णय लूंगी  आप लोग भूल जाना कि आपके कोई  बडी बेटी भी थी, बहनें भाई को कोई बडी बहन भी थी। मैंने अपना फर्ज निभा दिया  अब मुझसे कोई अपेक्षा  न रखें कह उसने फोन काट दिया और एक निर्णय ले केशव जी को फोन मिला दिया कि मुझे आपका प्रस्ताव  मंजूर है ।

केशव जी बोले तुम  नहीं जानती  कि तनिशा तुमने यह कर मुझे कितना  बड़ा उपहार दिया है।

कल  ही कोर्ट में  चलकर शादी कर लेते हैं।  जैसी आपकी इच्छा ।

दूसरे दिन अपने कलीग्स एवं कुछ दोस्तों की उपस्थिति में कोर्ट मैरिज कर ली एवं साधारण सी पार्टी कर अपने वैवाहिक जीवन  की शुरुआत की।दोनों ने ही अपने परिवार वालों को सूचना नहीं दी।

करीब दो माह बाद  मम्मी का फोन आया तनिशा बेटा पोते का  मुंडन है सो तेरी बहनें भी  आयेंगी। कुछ बड़ा आयोजन है  सो उन्हें  लेना -देना भी करना पड़ेगा अतः पहले तुम  कुछ  पैसे यही करीब चालीस पचास हजार  भेज दो तो भाई को मदद हो   हो जाएगी तुम बाद में  आ जाना।

 नहीं मम्मी अब में आपकी और मदद नहीं कर सकती। अब मेरी भी घर गृहस्थी है मुझे भी  अपने बारे में सोचना है। दूसरों के लिए बहुत जी ली,न मैं आ रही हूं न पैसे भेज रही हूं।

यह सुन मम्मी ने फोन रख दिया और सोचने लगीं कमाऊ चिड़िया उड़ गई अब क्या करें।

तनिशा सोच रही थी कि सब कितने स्वार्थी थे उनका पालन पोषण किया अब वे अपने बच्चों का भार भी उस पर डालकर उन पर खर्च कराना चाह रहे थे सगे रिश्ते भी इतने स्वार्थी हो सकते हैं। सबकी नजर मेरे पैसे पर थी मुझसे कुछ लेना-देना नहीं था।

 अब मैं अपने जीवन में खुश हूँ शायद समय  पर  मैंने सही निर्णय लिया। 

शिव कुमारी शुक्ला 

14/8/24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

साप्ताहिक प्रतियोगिता शब्द ***बहन

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