निर्मोही मोह – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

 गुलाबो नाम था उसका।पति कॉलरी में नौकरी करते थे,पर पत्नी से अलग मां के साथ रहते थे।जवानी में पत्नी पर बहुत अत्याचार किए थे उसने,तो जब बच्चे थोड़े बड़े हुए ,बगल में अलग कमरा किराया लेकर रहने लगी थी गुलाबो।सालों से लोगों के घरों में काम करती थी।खाली घर में सोने के भी पैसे लेती थी।बड़ी जीवट थी वह।

अपनी कमाई जुए में लुटाकर आने पर रामदीन(पति)सीधा गुलाबो के घर पंहुंचता और चिल्लाने लगता”कहां मर  गई रे!पैसे चाहिए कुछ।राशन लाना है।”गुलाबो भी‌ खिसियाकर जवाब देती “मोरे पास पैसे कहां से आएंगे?तू खुद कालरी की नौकरी करके पुजा नहीं पाता,मैं  घरों में बर्तन साफ कर के कितना कमा लेती हूं?कोई पैसे नहीं‌ हैं मेरे पास।”पत्नी की बातों का एक ही जवाब होता था उसके पास मार।कभी लातों से कमर में,

कभी बाल पकड़ कर पीठ में।जाने कितनी मार सही होगी उसने कि अब झुक सी गयी है।दो बेटियां और एक बेटा था छोटा,जबसे पति ने घर से निकाल दिया था।पास में ही मायका था,बच्चे कहते”चल ना अम्मा मामा के घर रहेंगे।”स्वाभिमानी गुलाबो उन्हें चुप कराते हुए कहती”मेरे मायके में क्यूं अपने बाप का मुंह काला करवाओगे?तुम्हारे नाना और मामा की छोटी सी किराना की दुकान है।वहीं जाकर डेरा जमा देंगें,

तो तुम लोगों के भविष्य का क्या होगा?पति की छोड़ी हुई औरत की इज्जत दो कौड़ी की होती है।दूसरी जगह दो जवान लड़कियों को लेकर रहने में बहुत सारी समस्या है।हम कहीं नहीं‌ जाएंगे।मैं काम करूंगी,तुम लोग बस अच्छे से पढ़ाई करो।

दिन बीतने के साथ गुलाबो के पति की जुए की लत भी बढ़ती गई।पूरी आमदनी जुए में ही स्वाहा हो जाती।तब गुलाबो के पास आकर पैसों की मांग करता।घर में अगर बच्चे होते,तो गुलाबो चुपचाप मना कर देती,वह गाली‌ गलौच कर चला‌ जाया करता था।एक दिन गुलाबो के पति ने आकर गुलाबो से लड़ाई शुरु कर दी पैसों के लिए।गुलाबो ने जैसे ही मना किया,लगा उसे जानवरों की‌ तरह पीटने।दूसरे कमरे में लेटे हुए बेटे से जब सहन नहीं

हुआ,तो बाप की लाई लाठी से ही पीटने‌ लगा उन्हें।बेटे के हांथ से मार खाने से रामदीन की तो इज्जत ही चली गई।गुर्राकर बोला गुलाबो से”मुझे सब पता है,ये जो घर में गुंडा पाल‌  रही है ना,देखना तेरी इज्जत मिट्टी में मिला देगा एक दिन।सर फोड़ दिया है इसने।जाऊंगा थाने, रिपोर्ट लिखवाऊंगा।देखता हूं तेरे सांड को कौन बचाता है?”

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पति के हाथों अनगिनत मार खा चुकी गुलाबो कभी टस से मस नहीं हुई थी,पति के सामने झुकी नहीं कभी,पर आज औलाद के मोह में पति के पैर में गिरकर गिड़गिड़ाने लगी”कैसे बाप हो तुम?अपने ही बच्चे को जेल भिजवाएंगे! शर्म नहीं आएगी तुम्हें।अरे एक ही तो सहारा है मेरा,पुलिस इसे लेकर चली जाएगी,तो मैं‌ दो जवान‌ बेटियों के साथ कैसे रहूंगी?कुछ तो‌ तरस खाओ दीपक(बेटा)के बापू।”

“ठीक है नहीं भेजूंगा थाने,पांच हजार दे दे।”दीपक के बापू व्यापार पर उतर आए।गुलाबो ने बड़ी बेटी की शादी की तैयारी के लिए जोड़े रुपये दे दिए पति  को।

अब तो रामदीन के पास सहारा हो गया।जुएं या शराब में अपनी तनख्वाह लुटाकर शारीरिक जोर से या मानसिक आघात देकर पैसों का जुगाड़ कर लेते।बड़ी बेटी की शादी गुलाबो ने ही तय की,काफी हांथ -पैर मारकर।अपनी औकात से ज्यादा दहेज देकर शादी की थी।शादी के बारहवें दिन बड़ी बेटी आकर रोते हुए बताने लगी”अम्मा,ये मोटरसाइकिल मांग रहे थे।सास भी कहती रहती हैं,कि पिता तो कालरी में है,फिर भिखारियों जैसी शादी क्यों दी?ना बर्तन ढंग के,ना साड़ियां सुंदर।दामाद को‌ एक मोटरसाइकिल भी नहीं‌ दे पाया तेरा बाप।अगली बार  तभी आना जब साथ में मोटर साइकिल हो।”

गुलाबो जानती थी,पति से कुछ सहायता नहीं मिलेगी।दीपक से मनुहार कर किश्तों में गाड़ी उठवा ली। गाड़ी सहित बिटिया को दोबारा ससुराल छोड़ कर आई गुलाबो।वापस जाकर काम और बढ़ा दिया अपना।इधर बेटा और एक बेटी धरे थे शादी करने को।थोड़ा बहुत  जोड़कर तो‌ रखी थी,पर उनसे कुछ होगा नहीं।

इसी सोच विचार में असमंजस की स्थिति में घर से आना और जाना हो रहा था।

एक दिन घर पंहुची तो छोटी बेटी घर पर नहीं थी।बाहर आकर चिल्लाने लगी”रानू!ओ रानू कहां गई? सुबह तो छोड़ गई थी घर में,अचानक ऐसे बिना बताए कहां गई?”गुलाबो की रुलाई सुनकर पड़ोसन ने बताया”तुम्हारे पति उसे ऑटो में बिठाकर ले गएं हैं कहीं।शायद स्टेशन जा रहे होंगें।जल्दी जा,रास्ते में मिल जाएंगे।”गुलाबो के हांथ पैर फूल गए।दूसरी ऑटो में पहुंची उनके पीछे-पीछे स्टेशन।ट्रेन आ चुकी थी,

रानू के पिता बेटी को काम करने पुणे भेजने जा रहे थे।वे लोग पहले यहीं थे साहब।गुलाबो तब वहीं काम करती थी। ट्रांसफर होकर पुणे जा चुके थे।उनके घर का नंबर और पता गुलाबो के पास लिखा था।पति के हांथ वह लग चुका था।रानू ट्रेन में चुपचाप बापू के पास बैठी थी।गुलाबो के पहुंचते ही ट्रेन छूट गई।गुलाबो चिल्लाती रही पर पति ने कोई ध्यान नहीं दिया।गुलाबो के जीवन में अंधकार छा गया।जवान लड़की को इतनी दूर भेजकर ,अब बाप उसकी कमाई खाएगा।

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वापस आकर जहां -जहां काम करती थी,गुहार लगाई।कोई उसकी मदद को आगे नहीं आया,क्योंकि साथ में पिता गया था।एक हफ्ते बाद पिता बेटी को साहब के घर पंहुचा कर वापस आए और बोले”इतनी चिल्ला -चिल्ली करने की जरूरत नहीं।बेटी सुखी रहेगी वहां।बड़े अच्छे लोग हैं, जान-पहचान के भी हैं।साल में एक बार मिलवाने लाएंगे।गुलाबो तो खुद ही उससे घर के काम करवाती थी।अब सही जगह पहुंच गई है वह।”

आज तक गुलाबो ने बेरहम पति की सारी प्रतारणाएं चुप चाप सही थी। सिर्फ औलाद के मोह में।इज्जत कभी बेची नहीं उसने।आज पति के रूप में जानवर दिख रहा था उसे।जवान बेटी को पराए शहर पराए लोगों के पास छोड़ आया,ज़रा भी दुख नहीं हुआ।कल को तो बेच भी देगा,और वह कुछ नहीं कर पाएगी।जोर से एक थप्पड़ जड़ा पति के मुंह में।बेटे को अगले ही दिन छोटी बहन को वापस लाने भेजा।तीन दिन में बेटी आ गई थी सही सलामत।वे वास्तव में सभ्य लोग थे,पर अब गुलाबो को भरोसा नहीं होता किसी पर।गुलाबो अब बेटी को भी साथ लेकर जाने लगी काम पर।छह महीने बीत चुके हैं।पति को ताकीद करवा दी है पुलिस से,कि उसके घर में ना घुसे।

इस बीच कोविड हुआ गुलाबो को।फिर बैल ने धक्का देकर गिराया,पैर टूट गया था,पर हिम्मत नहीं हारी उसने।छोटी बेटी की शादी की तैयारी कर रही थी जोर -शोर से।कुछ दिनों पहले ही बताया ,जिनके घर काम करती थी उन्हें “दीदी आना है ना।अठारह को है शादी।रूखा -सूखा जो मिले खाकर जाना। आशीर्वाद देने जरूर आना दीदी।इस बार कन्यादान मैं करूंगी।उस जाहिल को फटकने नहीं दूंगीं।क्लब में होगी शादी।”

सभी दंग थे गुलाबो का हौसला देखकर।किसी ने कहा इतनी हिम्मती है तो क्यों सहती है पति के अत्याचार?

उसने शायद‌ सुन लिया था हंसकर बोली”दीदी,औलाद के मोह के कारण सब सहती रही।मेरा क्या है।ज़िंदगी अब ज्यादा बची नहीं।मेरे बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में खुश‌ रहें।मेरी तरह दरवाजे-दरवाजे जाकर जूठन ना धोना पड़े।

शुभ्रा बैनर्जी 

#औलाद के मोह के कारण वो सब कुछ सह गई

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