…पिछले 24 सालों में… कई बार अलग-अलग तरीकों से उसने अम्मा और अर्जुन को तैयार करने की कोशिश की… कि चलिए एक बार घूम कर आते हैं…
पर सासू मां का तो बस एक ही कहना था… ” मेरे चारों धाम, तीर्थ, व्रत सब मेरे घर में ही हैं… मुझे कहीं भीड़ भाड़ में नहीं जाना… बस मुझे यही रहने दो…!”
अर्जुन उनका तो जिंदगी का फंडा बिल्कुल मां की तरह…” मां नहीं जाएगी… और तुम्हें जाना तीरथ करने… घर में मन नहीं लगता… पार्क चली जाओ… माॅल जाओ… शॉपिंग करो…
कोई कमी है क्या… अच्छा चलो… इस वीकेंड पिक्चर चलते हैं… ठीक है…!”
इसी तरह साथ पाने के लिए… इतने साल इंतजार किया था नीला ने…
पर इस बार वह अपने मन की कर लेना चाहती थी… बस एक ही साल तो बचे थे… उसे पचास की होने में…
अब तो बच्चे भी अपना-अपना रास्ता बनाने निकल चुके थे… सबकी अपनी जिंदगी… अपनी जरूरत… अपने ख्वाब…
इन सबके बीच में नीलांजना…बस अपना अस्तित्व ढूंढ रही थी…
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उस दिन बनारस घाट पर नहाने के बाद… नीला ने मुझे फोन किया था…
” हां जी अभी बनारस में हूं… एक-दो दिन यहां रहना चाहती हूं… फिर देखती हूं आगे…!”
मैंने भी बेफिक्री से कह दिया…
” ठीक है… जब निकल ही गई हो… तो जो जी में आए करो…!”
नीलांजना दो बेटियों को पाकर खुश थी… पर उनके घर से बाहर… हास्टल चले जाने से… बहुत उदास और अकेली हो गई थी…सही मायने में…मेरे पास घर में समय देने को बिल्कुल भी नहीं था…!
अचानक नागार्जुन के फोन की घंटी बज उठी…
अभिनव दत्ता ने अपना रिकॉर्डर बंद किया…
” हेलो… मैं इंस्पेक्टर सुधीर बोल रहा हूं… आपकी वाइफ का लास्ट मोबाइल लोकेशन ट्रेस हो गया है… हरिद्वार में… मैं वहीं के लिए निकल रहा था…
असल में गंगा के घाटों पर… अक्सर बहुत सारी डेड बॉडीज मिलती रहती हैं… हमें शक है……!”
” नहीं.… नहीं… सर… ऐसा कुछ नहीं होगा…
मुझे पता है… नीला का फोन हरिद्वार में ही गुम हुआ था… उसने बताया था मुझे… वही तो आखरी बात हुई है हमारी… दस दिन पहले हरिद्वार से उसने कहा था… फोन गुम हो गया है… बस एक-दो दिन में आ रही हूं… उसके बाद से कोई खबर नहीं मिली…!”
” ओके मिस्टर राय… हमें कुछ और पता चला तो बताते हैं…!”
अभिनव दत्त ने अपना फोन पॉकेट में डालते हुए कहा…” ठीक है राय साहब… आगे की बातें फिर करते हैं… जैसे-जैसे जरूरत होगी मैं बात करूंगा…
अच्छा नीलांजना जी के टिकट की डिटेल्स मिल सकेगी क्या…!”
” हां उसके सारे टिकट मेरे ही मेल पर आए हैं… मैं भेज देता हूं आपको…!”
” ठीक है… आप चिंता मत करिए… मैं जल्दी पता लगाने की कोशिश करता हूं…!”
***
नीलांजना सबसे पहले बनारस के दशाश्वमेध घाट पर जाकर रुकी थी… मगर वहां की भीड़भाड़ से जल्दी उसका मन भारी हो गया… एक घाट से दूसरे घाट… चलते केदार घाट पर जाकर उसके कदम रुक गए…
यहां बिल्कुल सन्नाटा था… उसने दो घंटे वहीं घाट पर सन्नाटे से बातें करते निकाला… जैसे ही वापस जाने को उठी… तो पंडित की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने उसे रोकते हुए कहा…
” इतनी देर बैठी हो बहन… कुछ देर और घूम लो… तो आरती देख कर ही जाना…!”
नीला ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा… पर रूकी नहीं… वह वापस अपने होटल आ गई…
दो दिन बनारस की गलियों, मंदिरों और घाटों के चक्कर काटने के बाद… 17 अगस्त को वह प्रयागराज के लिए निकल गई…
वहां ज्यादा समय नहीं लगा… एक डुबकी संगम में लगाकर… वापस घर जाना ही चाहती थी नीला… कि बनारस में ट्रेन में जो अम्मा मिली थी… उनसे दोबारा सामना हो गया…
” वाह… देखिए आपसे फिर मुलाकात हो गई… लगता है आप भी बनारस से सीधे यहीं आ रही हैं…!”
” हां… अम्मा आज वापस चली जाऊंगी…!”
” अरे क्यों… हमारे साथ चलिए ना… मेरा बेटा बहू पोता सब साथ हैं… आपको भी अच्छा लगेगा… हम अभी चित्रकूट निकल रहे हैं…!”
” चित्रकूट…नहीं अम्मा अब तो वापस ही जा रही हूं… रात की ट्रेन में टिकट ले चुकी हूं…!”
“जैसी आपकी मर्जी…!”
अम्मा अपने परिवार के साथ चल दी… पर नीला का मन चित्रकूट जाने को डोल गया…
उसने फटाफट में टिकट कैंसिल करवाया… और एक कैब बुक कर चित्रकूट निकल गई… वहां पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी…
नीला ने घाट से लगे एक होटल में कमरा लिया… यहां बनारस जैसी भीड़ और शहरी माहौल नहीं था…
यहीं मुलाकात हुई उसकी कुबेर से… तीन चार बार आया गया…कभी चाय लेकर… कभी पानी और कभी खाना… नीला सब कुछ रूम में ही मंगवा रही थी… और कुबेर हर बार पहुंचा रहा था…
जब खाना लेकर आया… तो नीला का मन उससे कुछ बातें करने को हुआ…
कुबेर की उम्र 16 साल के लगभग थी… दिन भर जब तक नाव पर सवारी मिलती थी… तब तक नाव चलाता था… अपनी नाव थी उसकी…
उसके बाद यहीं होटल में यहां वहां दौड़ भाग का काम करता था…
नीला ने उससे बहुत सारी बातें की… फिर पूछा… “कुबेर… सुबह मुझे चित्रकूट घूमा दोगे… मैं तो पहली बार आई हूं… मुझे तो कुछ भी नहीं पता…!”
कुबेर खुश हो गया… “हां मैं सब सब घुमा दूंगा…!”
नीला ने अर्जुन को फोन लगाया… ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ इतना कहा…
“आज की टिकट कैंसिल करा दी है… देखती हूं कल… या फिर सोचती हूं हरिद्वार होते हुए दिल्ली आऊंगी… जितना हो सके घूम लेती हूं… बड़ा सुकून मिल रहा है… फिर तो घर की चारदिवारी में कैद ही रहना है……!”
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नीलांजना ( भाग-4 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा