नेकराम की जलेबी – नेकराम : Moral Stories in Hindi

स्कूल से छुट्टी करके घर लौटा ही था की अम्मा दरवाजे का ताला लगाकर चाबी पड़ोसन को देते हुए कह रही थी जब नेकराम आए तो उसे चाबी दे देना मगर मुझे देखते ही कहा,, नेकराम तू आ गया,,

बस्ता अपनी कमला आंटी को दे दे और मेरे साथ चल जल्दी

कमला आंटी ने झट मेरा स्कूल का बस्ता अपने हाथों में ले लिया और अम्मा मुझे बताने लगी बस का नंबर तो तुझे पढ़ना आता है अम्मा की बात सुनकर मैंने कहा हां हां स्कूल जाता हूं गिनती पूरी 100 तक आती है थोड़ी-थोड़ी हिंदी भी पढ़ लेता हूं

कुछ ही देर में बस स्टैंड आ गया ,,

एक बस आती हुई नजर आई जिस पर लिखा हुआ था जनकपुरी

मैंने पढ़ कर बता दिया अम्मा बोली इसी बस में चढ़ना है

ड्राइवर ने तुरंत बस रोकी मैं अम्मा के साथ बस के आगे वाले गेट से बस के भीतर पहुंच गया बस में कई सीट खाली पड़ी हुई थी अम्मा ने एक खिड़की वाली सीट  देखी और बैठ गई मुझे भी अपने साथ बैठा लिया

तभी कंडक्टर आया और कहने लगा बहन जी कहां जाना है आपको

तब अम्मा ने कहा जनकपुरी जाना है

कंडक्टर ने कहा ₹10 का टिकट है ,, अम्मा ने अपने बटूए से पैसे निकाल कर कंडक्टर के हाथ में थमा दिए कंडक्टर ने अम्मा को एक टिकट दे दी

इस कहानी को भी पढ़ें: 

क्या मैं बेटी नहीं – सुरभि शर्मा : Moral Stories in Hindi

कंडक्टर मेरी तरफ देखने लगा ,,

तब अम्मा ने कहा यह तो छोटा है सिर्फ 5 साल का अब इसकी क्या टिकट लूं

तब कंडक्टर ने कहा इस बच्चे की आधी टिकट लगेगी ,,

अम्मा ने कुछ और पैसे निकाल कर कंडक्टर को पकड़ा दिए कंडक्टर ने एक टिकट और अम्मा के हाथ में थमा दी और पीछे अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गया

बस अपनी गति से सड़क पर आगे दौड़ी जा रही थी

मैंने अम्मा से पूछा अम्मा हम कहां जा रहे हैं

अम्मा ने बताया हम नानी के घर जा रहे हैं

नानी का नाम सुनकर मैं बहुत खुश हुआ और बोला नानी जी मुझे खाने के लिए जलेबी देंगी मुझे जलेबी बहुत पसंद है और मैं नानी से पैसे भी मांगूंगा नानी मुझे जरूर पैसे देगी ,,

मेरी बात सुनकर अम्मा की आंखों से आंसू निकल पड़े

अम्मा को रोते हुए देखा तो मैंने कहा ,, अम्मा तुम रो क्यों रही हो तुम्हें तो खुश होना चाहिए हम नानी के घर जा रहे हैं

इतना कहते ही अम्मा की आंखों से और तेज तेज झर झर आंसू बहने लगे मुझे लगा शायद मैंने कुछ गलत कह दिया है

तब मैं भी रोने लगा और कहने लगा मैं नानी जी से जलेबी नहीं मांगूंगा

ना नानी जी से पैसे मांगूंगा , मगर अम्मा तुम मत रो ,,

मगर अम्मा के आंसू रुक नहीं रहे थे ,,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बेआवाज लाठी – रीटा मक्कड़

अम्मा के पीछे वाली सीट पर एक महिला बैठी हुई थी उसने जब अम्मा को रोते हुए देखा तो रोने का कारण पूछा ,,

बहन जी क्या बात है आप रो क्यों रही हो क्या हुआ आप क्या कोई मुसीबत में हो ,,

तब अम्मा रोते -रोते उस महिला को बताने लगी ,, जिस बेटी की मां दुनिया छोड़कर चली गई हो वह अपने आंसू कैसे रोके ..

उस महिला को तनिक देर ना लगी समझने में कहने लगी अच्छा तो इस बच्चे की नानी जी का देहांत हो गया है आपकी उम्र तो लगभग 23 साल के आसपास की लग रही है

तो फिर आपकी मां की उम्र भी 40  साल के आसपास  ही होगी  फिर यह सब कैसे हुआ .. क्या आपकी मां बीमार थी

तब अम्मा बताने लगी मुझे नहीं मालूम मेरी मां का देहांत कैसे हुआ

आज से छः बरस पहले मेरी मां ने मेरी शादी  गोपाल नाम के लड़के से कर दी थी विदाई के समय मुझे मेरी मां ने कहा था,, तू ससुराल जा रही है,, तेरी किसी भी तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए उस घर में तेरे सास ससुर है तेरी एक छोटी नंनद है दो देवर है उन सब का ख्याल रखना अपनी मेहनत और ईमानदारी से उन सब का दिल जितना तेरा कर्तव्य है

वैसे भी दुनिया और समाज का यही दस्तूर है मायका कभी बेटी का नहीं होता और ससुराल पर हमेशा उसका हक होता है इसलिए ससुराल की छोटी-छोटी कठिनाइयों से डरना नहीं है हर मुश्किल की घड़ी में अपने पति का साथ देना है

विदा होकर में अपने पति के घर चली आई ,, मां की हर बातों को मैंने ध्यान में रखा और अपना कर्तव्य का पालन किया मगर छोटी-छोटी बातों में कभी-कभी घर के खर्चे के लिए पति से मेरी कभी-कभी अनबन हो जाती थी लेकिन मैं जल्दी ही अपने गुस्से को शांत कर लेती और फिर से अपने काम में जुट जाती

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सुखना – रूद्र प्रकाश मिश्र

पति का काम लगता फिर छूट जाता फिर लगता फिर छूट जाता इसी तरह एक साल बीत गया जब मैं गर्भवती हुई तो मोहल्ले की एक दाई जमुना रानी  ने मुझे जो हमारे ही पड़ोस में रहती थी आंगन में खड़ा देखा तो कहा तुझे थोड़ा आराम करना चाहिए तेरे पेट में नाजुक शिशु पल रहा है कम से कम इसका तो ख्याल रख

मोहल्ले में एक ही नल है और काफी दूर है तू बाल्टी से दिन में दो बार पानी भरकर लाती है घर में तेरे दो देवर है कुछ दिन उनको काम सौंप दे

तब मैंने कहा मैं अपने देवरों से काम के लिए कैसे कह सकती हूं

कहीं मुझे ससुराल वाले कामचोर ना समझे उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए मैं नाटक कर रही हूं गर्भवती होने का

तब ,, दाई ,, ने कहा ,, ठीक है मैं तुम्हारे घर पर आकर बात करती हूं

कुछ देर बाद मोहल्ले की ,,जमुना रानी ,, जिनकी उम्र 60 बरस से ऊपर थी ,, हमारे घर चली आई और हमारी सासू मां को  मेरे गर्भवती होने कि कहानी बताई

तब हमारी सासू मां बोली ,, मुझे भी मालूम है मेरी बहू गर्भवती है ,,

गर्भवती तो मैं भी हुई थी मगर घर का सारा काम करती थी काम करने से सेहत अच्छी रहती है और बच्चा भी तंदुरुस्त पैदा होता है

जमुना रानी ने बहुत समझाया मगर हमारी सासू मां नहीं मानी आखिर में

जमुना रानी निराश होकर चली गई

मैं रोज की तरह वैसे ही घर का सारा काम संभालती चूल्हा चौका करती

ना तो मेरी ननंद मेरा हाथ बटाती ना देवर

एक बार पति से कहने की हिम्मत की तो एक थप्पड़ खाने को मिला

फिर मैंने किसी से कहना ही छोड़ दिया

मायके में मैंने किसी को इस बात की भनक नहीं लगने दी कि मेरा आठवां महीना पूरा हो चुका है और मुझे घर का सारा काम करना पड़ रहा है और ससुराल में कोई मेरा हाथ भी नहीं बंटाता

दिन पर दिन पीड़ा बढ़ने लगी

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बिल्कुल तुम पर गई है – पिंकी नारंग

नल पर पानी भरने जाती तो मोहल्ले की औरतें मुझे टोक देती कहती

तू अपने ससुराल में इतने जुल्म सहती है ,, तू कुछ दिनों के लिए अपने मायके क्यों नहीं चली जाती ,,

तब मैं कहती मायके तो नहीं जाऊंगी रहूंगी तो मैं ससुराल में ही

धीरे-धीरे दिन बीतते चले गए और नेकराम ने मेरी कोख से जन्म लिया

नेकराम को जन्म लिए 2 दिन हो चुके थे ,, सारा काम घर पर जमुना रानी दाई ने ही किया था अपने बच्चें का चेहरा देखकर मैं सब गम भूल गई

घर में सब लोगों से मैंने एक बार कहा भी था मेरे मायके में खबर पहुंचा दो,, मगर मेरी सासू मां ने कहा

एक सप्ताह से पहले कोई खबर नहीं दी जाएगी हमारे घर के यही नियम कानून है,,

और तुझे इस नियम कानून को मानना पड़ेगा

नेकराम को पैदा हुए अभी तीसरा ही दिन था

सासू मां ने आवाज लगाते हुए कहा अब लेटे-लेटे ही खाना खाती रहेगी कुछ काम भी कर ले घर का , घर के सारे बर्तन मैले पड़े हुए हैं घर में एक बूंद पानी नहीं है, नेकराम को पलंग पर लिटाकर

मैं मोहल्ले के नल पर पानी भरने चली गई बाल्टी भी काफी बड़ी थी

पानी भरकर घर की तरफ आ ही रही थी कि सामने से

मेरा बड़ा भाई शंकर न जाने कहां से आ गया और मेरे हाथ से बाल्टी लेकर सड़क पर फेंक दी और मुझ पर गरजते हुए बोला

तेरी शादी की है तुझे बेचा नहीं है मुझे मोहल्ले वालों ने सब बता दिया है

तुझे आराम की जरूरत है और तुझसे ससुराल वाले काम करवा रहे हैं

मैं दिल्ली से बाहर गया हुआ था आज ही दिल्ली लौटा हूं जब मुझे पता चला मैं मामा बन चुका हूं मैं बहुत खुश हुआ और अपने भांजे से मिलने चला आया मगर यहां तेरी ऐसी दुर्दशा देखकर मेरा खून खौल रहा है

तेरे साथ मैंने बचपन बिताया है तुझे कोई दुख ना हो इसलिए हमने तुझे कभी भारी काम नहीं करवाया ऐसे जल्लादों के घर में मेरी बहन का विवाह हुआ है मैं एक-एक को काट डालूंगा

और जीजा जी को भी शर्म आनी चाहिए ,,

मेरा भाई शंकर मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे घर ले गया और नेकराम को गोद में उठाकर बोला,,,  तू एक सेकंड भी यहां नहीं रहेगी,,

अचानक से कमरे के भीतर से नेकराम के पापा निकल आए

उन्होंने कहा तेरी बहन है तू अपनी बहन ले जा मगर मेरा बेटा यही रहेगा

कानूनी तौर पर मेरे बेटे पर मेरा अधिकार है

ऐसे शब्द सुनकर मेरे भाई शंकर का और खून खौल गया

इस कहानी को भी पढ़ें: 

नहले पर दहला – प्रीती सक्सेना

कहने लगा जीजा जी मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी तुम ऐसी बातें करोगे मेरा भाई मेरे दो दिन के नन्हे से बेटे नेकराम को लेकर जैसे ही जाने लगा तो मेरे पति ने नेकराम की दोनों टांगे पकड़ ली और खींचने लगे

मेरे भाई ने नेकराम के दोनों हाथ पकड़ लिए और अपनी और खींचने लगे यह मेरी बहन का बच्चा है

,,, मैं तुझे नहीं दूंगा ,,

आस पड़ोस में भीड़ इकट्ठी हो गई सब तमाशा देखने लगे

गली के कुछ लोग तो बहुत खुश थे  ठीक हो रहा है इस घर में

नेकराम तेज तेज चिल्लाने लगा ,,

तभी मैं अंदर से सब्जी काटने का,, हसिया ,, उठा आई और बोली आज मै नेकराम के दो टुकड़े कर देती हूं एक टुकड़ा मेरा पति ले लेगा और दूसरा टुकड़ा मेरा भाई ले लेगा ,,

मैंने उन दोनों के हाथों से नेकराम को छीन लिया

नेकराम को जमीन पर रखकर मैं उसके दो टुकड़े करने ही वाली थी तभी मोहल्ले के कुछ लोगों ने मुझे रोक लिया

मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करूं फिर मैं अचानक पलटी और

अपने बड़े भाई के पैरों में गिर पड़ी और रोते हुए बोली ,, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो ,, मेरी अब शादी हो चुकी है मुझे यही रहना है

शादीशुदा लड़की का घर ससुराल होता है उसका मायका नहीं

यह जैसे भी लोग हैं मेरा परिवार है इन्हें आज समझ नहीं आ रही है लेकिन कल जरूर समझ में आएगी

तब भाई बोला तू अक्ल से काम क्यों नहीं लेती यह नहीं सुधरेंगे

यह तुझे सिर्फ एक नौकरानी समझते हैं इसके अलावा और कुछ नहीं

मेरा भाई गुस्से में जैसे ही नेकराम के पापा के ऊपर हाथ उठाने लगे

मैं जल्दी से बीच में कूद कर अपने भाई शंकर को एक थप्पड़ मारते हुए चिल्लाते हुए बोली ,, तेरी हिम्मत कैसे हुई ,, मेरे पति को हाथ दिखाने की ,, निकल जा यहां से और कभी अपना मुंह मत दिखाना

इस कहानी को भी पढ़ें: 

नहले पर दहला – प्रीती सक्सेना

भाई की आंखों से आंसू छलक पड़े जब उसने मेरा थप्पड़ खाया और बोला ,, आज एक छोटी बहन ने बड़े भाई को थप्पड़ मारा है मैंने तो सुना था बड़ा भाई पिता समान होता है ,, मगर तूने सारे रिश्ते ही खत्म कर दिए

मोहल्ले में सबके सामने तूने मुझे जलील किया है आज से मैं तेरा भाई नहीं .. ना .. तू मेरी बहन है ,,

बड़ा भाई चुपचाप खाली हाथ लौट गया ,, मेरे सास और ससुर दूर खड़े चुपचाप सारा तमाशा देख रहे थे

मैंने आसपास के लोगों को देखा और कहा यह हमारे परिवार का मामला है सब लोग अपना-अपना काम करो हर घर में झगड़े होते हैं कभी तुम्हारे घर में भी झगड़े हो सकते हैं

सब चुपचाप एक-एक करके खिसक गए

दिन बीतते गए मैं नेकराम की देखभाल करती रही दोनों देवर चुपचाप

बाल्टी में पानी भरकर लाने लगे मैंने 15 दिन तक आराम किया सासू मां खाना पकाती रही और मेरी देखभाल भी करती रही

मगर नेकराम के नाना नानी की तरफ से कोई नहीं आया मुझे देखने के लिए ,,

शायद बड़े भाई ने यहां होने वाली घटना का विवरण वह बता दिया होगा ,,

दिन महीने और साल तेजी से बीतते चले गए पूरे 5 साल बीत गए

मैंने अपनी मां का ना चेहरा देखा ना उनसे कभी बात हुई शायद मैं उनके लिए मर चुकी थी यही सोचकर मैं अपने ससुराल में चुपचाप पड़ी रही और अपने ससुराल को आगे बढ़ाने के लिए रात दिन मेहनत करती रही

इन बीते 5 सालों में मेरी मेहनत रंग लाई मेरे सास ससुर मेरे देवर और नंनद और मोहल्ले वालों ने एक सबक सीखा कठिनाइयों को देखकर भागना नहीं चाहिए उसका मुकाबला करना चाहिए आज मैं अपने ससुराल में सबसे बड़ी बहू हूं और वहां मेरा ही राज चलता है मैं जो कहती हूं वही होता है मेरी सासू मां भी मेरा कहना मानती है और मेरे पति भी

लेकिन दिल में एक ठेस सी हमेशा रहती थी नेकराम के नाना नानी की बहुत याद आती थी जब भी रक्षाबंधन आता तो बड़े भाई की बहुत याद आती थी बड़े भाई ने मेरे छोटे भाइयों को भी यहां नहीं आने दिया

फिर भी मेरा मन नहीं मानता था इसलिए मैं मोहल्ले के बिश्नोई काका जी के हाथों राखी भिजवा देती थी ,,

उनका जनकपुरी में आना-जाना रहता था

लेकिन आज बिश्नोई काका जी ने मुझे बताया ,, तुम्हारी मां का देहांत हो गया है और मैं रोती गिरती पड़ती भागी चली जा रही हूं अपनी मां के मृत शरीर के अंतिम  दर्शन करने के लिए ,,

इस कहानी को भी पढ़ें

बात ऐसे बनी – गीतांजलि

मुझे समझ नहीं आ रहा है मैं गलत हूं या  मैं सही हूं

मुझे लगता है मैंने हीं अपनी मां को मार डाला है

तभी कंडक्टर ने आवाज लगाई जनकपुरी आ गया है ,,

उस महिला ने बताया जनकपुरी आ गया है आप यही उतर जाइए  शायद बस भी यही खाली होगी

सभी यात्री एक-एक करके उतरने लगे मैं अम्मा का हाथ पकड़े धीरे-धीरे सड़क पर चलने लगा

अम्मा समझ रही थी मैं बच्चा हूं मुझे कुछ नहीं मालूम लेकिन मैं समझ चुका था नानी जी मर चुकी है ,, मैंने नानी को कभी नहीं देखा था

ना नाना जी को देखा था ,, ना मामा जी को देखा था ,,

थोड़ी देर में एक बड़ा सा घर दिखाई दिया ,, गली में एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था ,,

अम्मा ने उस मकान को देखकर कहा नेकराम यही है तेरी नानी का घर

अम्मा ने घर के भीतर प्रवेश किया मैं पीछे-पीछे चल रहा था

रसोई घर से छोले की सब्जी और पूरी की खुशबू आ रही थी घर एकदम सजा हुआ था

रसोई घर में अम्मा ने झांका तो एक महिला साड़ी पहने हुए खड़ी हुई थी

अम्मा उससे लिपटकर रोने लगी वह महिला कहने लगी

कितने सालों बाद मेरी नंनद आज घर आई है और साथ में नेकराम को भी लाई है

तब उस महिला ने मुझे देखा और कहा मैं तेरी मामी हूं

चल मैं तुझे तेरी नानी जी से मिलवाती हूं तेरे नाना भी छत पर बैठे हैं

अम्मा दौड़कर छत पर गई और मैं भी पीछे पीछे चल पड़ा

इस कहानी को भी पढ़ें

सफर – अनुज सारस्वत

छत पर मुझे एक शख्स दिखाई दिया जिसे मैं पहचानता था मैंने तुरंत कहा अंकल जी आप यहां कैसे आप तो मुझे गली के बाहर चॉकलेट देकर जाते थे

तभी अंकल जी बोले मैं अंकल नहीं तेरा बड़ा मामा हूं तेरी मां के डर से मैं तुम्हारे घर नहीं आता था लेकिन मैं तुमसे बहुत प्यार करता था इसलिए तुम्हें चॉकलेट देकर जाता था

तब अम्मा बोली अच्छा तो यह बात है नेकराम की नानी का देहांत हो गया ऐसी झूठी खबर फैला कर मुझे यहां धोखे से बुला लिया

गन्ना खाती हुई उस महिला ने मुझे सीने से चिपका लिया और कहा मैं तेरी नानी हूं मैं तुझे अच्छी तरह पहचानती हूं तेरे नाना भी तुझे पहचानते हैं हम चुप-चुप कर तुझे देखने आते थे,,

अम्मा ,, नानी जी के सामने रोने लगी ,, कहने लगी आप सब लोग मुझे और नेकराम से मिलने आते रहे मगर मुझे तनिक भी खबर नहीं हुई

मुझे तो लगता था अब कभी मायके में जाना नहीं होगा अब कभी मैं अपने माता-पिता और भाई  से नही मिल पाऊंगी

नानी जी ने समझाते हुए कहा ,,, एक शादीशुदा स्त्री क्या कर सकती है

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे मोड़ आ जाते हैं उस समय कुछ समझ नहीं आता

हमें भी यह सुनकर बुरा लगा था हमारी बेटी के साथ ससुराल में अत्याचार हो रहे हैं और तूने अपने ही बड़े भाई को थप्पड़ मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया वह बेचारा तो तेरी मदद करने गया था

हम भी कई महीनो तक गुस्से में थे लेकिन फिर बाद में जब हमारा गुस्सा शांत हुआ तब हमें समझ में आया कि तूने अपने उजड़ते हुए परिवार को फिर से बसाया है ,,

नानी जी ने मुझे अपनी गोद में बिठाते हुए कहा बोल क्या खाएगा

मैंने तुरंत कहा मुझे कुछ पैसे चाहिए। और मैं जलेबी खाऊंगा

नानी जी मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी

और तुरंत मेरे लिए जलेबी मंगवाई गई ……

मैं जलेबी खाते-खाते सोच रहा था अगर मेरी नानी मर जाती तो मुझे जलेबी कौन खिलाता

लेखक : नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!