सुरुचि का मन इस समय बहुत विचलित है। रोज शाम को वह अपने बेटे सोनू का इंतजार करती है, लेकिन वह आता है, अपनी माँ को एक हल्की मुस्कान देकर, सीधे अपने कमरे में चला जाता है। सुरुचि को महसूस होता है कि सोनू का ध्यान अब पूरी तरह से उसकी पत्नी की ओर ही रहता है। वह ये सोचकर घबरा जाती है कि उसका बेटा अब उससे दूर हो रहा है। पहले सोनू हर शाम उसके साथ चाय पीता, बातें करता, दिन भर के अपने अनुभव उसे बताता। अब ऐसा कुछ भी नहीं रहा।
एक दिन सुरुचि की पड़ोसी राजो आई और सुरुचि को उदास देख उससे पूछ बैठी, “क्या हुआ अम्मा, कैसी हैं? आज आप कुछ उदास लग रही हैं।”
सुरुचि ने भारी मन से कहा, “पता नहीं, क्यों महसूस होता है कि मेरे लाल के और मेरे बीच में कोई दरार आ गई है। पहले तो सोनू मुझसे बिना बात किए एक पल भी नहीं रहता था, पर अब तो सीधे अपने कमरे में चला जाता है। मुझे लगा कि बहू के आने के बाद हमारे रिश्ते में ये बदलाव आया है। बहू का ख्याल रखना, उसके साथ समय बिताना जरूरी है पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं पूरी तरह से नजरअंदाज हो जाऊं।”
राजो मुस्कुराई और सुरुचि का हाथ पकड़ते हुए उसे दिलासा देने लगी, “आप गलत समझ रही हैं, अम्मा। आपके बेटे की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं, ऊपर से नौकरी का दबाव भी है। आजकल प्राइवेट नौकरियों में इतना तनाव है कि घर लौटने के बाद इंसान सचमुच थक जाता है। शादी के बाद नई जिम्मेदारियाँ भी उसे निभानी पड़ती हैं। यही वजह है कि वह जल्दी अपने कमरे में चला जाता है, शायद वह आपकी परवाह भी करता हो लेकिन थकान के कारण बोल न पाता हो।”
राजो की बात सुनकर सुरुचि को थोड़ी राहत मिली, लेकिन उसका दिल अब भी इस दुविधा में था। उसने खुद को समझाया कि शायद राजो की बात सही हो। वह खुद को समझाने लगी कि उसे अपने बेटे की थकान और नई जिम्मेदारियों को समझने की जरूरत है।
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अगले दिन, शाम को जब सोनू घर आया तो सुरुचि ने पहले की तरह उससे कुछ नहीं कहा। लेकिन इस बार उसने उसके चेहरे पर ध्यान दिया। वह सच में थका हुआ लग रहा था। उसकी आँखों में थकान की लकीरें साफ नजर आ रही थीं। तभी उसने धीमे से आवाज लगाई, “सोनू बेटा, आ जा इधर मेरे पास।” सोनू चुपचाप अपनी माँ के पास आ गया। सुरुचि ने उसके सिर पर अपना हाथ रखा, बालों में उंगलियाँ फिराईं और फिर उसके सिर में तेल लगाने लगी।
सोनू कुछ पल के लिए शांत हो गया, मानो उसके सारे तनाव दूर हो गए हों।
सुरुचि ने कहा, “बेटा, आज मैं खुद तुझे अपने हाथों से खाना खिलाऊंगी।”
सोनू ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ अम्मा, आपके हाथ का खाना तो मुझे हमेशा से पसंद है।” इस पल में सुरुचि को अपने बेटे की वही पुरानी खुशी महसूस हुई, जो वह पहले भी उसके साथ महसूस करती थी। उसने अपने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, और दोनों ने मिलकर रसोई में खाना खाया।
सुरुचि का मन एकदम हल्का हो गया था। वह अब यह समझ चुकी थी कि दरअसल, रिश्तों में कभी-कभी गलतफहमियाँ भी दरार का कारण बन जाती हैं। उसकी बेटे की थकान और नई जिम्मेदारियाँ ही थी, जिसने उसे अपने बेटे के बदलने का भ्रम पैदा किया था।
रिश्तों में समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन जब हम एक-दूसरे की परिस्थितियों को समझते हैं, तो ये फासले मिट सकते हैं।
मौलिक रचना
मीनाक्षी सिंह