आज लगभग दो वर्षों के बाद अपने घर में सभी भाई -बहन इकट्ठा हुए थे।शादी के बाद ऐसा कम ही होता था कि,तीनों बहनें एक साथ मायके आ पाएं।साल में एक बार आते तो जरूर थे,पर अपनी और बच्चों की सुविधा अनुसार।सुमन पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी।लगभग बत्तीस साल हो गए थे शादी को।
दोनों बच्चे अब नौकरी कर रहे थे।मंझली बहन की शादी अठारह वर्ष पूर्व हुई थी।मां की ठीक उसी के अगले साल मृत्यु हो गई ।पिता तो बहुत पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे।सुमन से चार साल छोटा एक भाई(राजा),उसके बाद मंझली बहन(शिखा),फिर एक भाई(बंटू)और सबसे छोटी बहन थी रिंकी।मां के जाने के बाद छोटी बहन को सुमन अपने पास ही ले आई थी।
सुमन की सास ने मां का प्यार दिया उसे।मंझली बहन अपने ससुराल में थी।अब राजा और रिंकी की शादी की जिम्मेदारी सुमन पर ही थी।छोटा भाई (बंटू) यथासंभव मदद करता था।रिश्ते देखते-देखते ऐसा संयोग बना कि मंझली बहन को भाई (राजा)के लिए एक अच्छी लड़की की खबर मिली।आनन फानन में लड़का-लड़की ने एक दूसरे को देखा।लड़की के माता-पिता
ने अपनी बेटी के साथ जाकर होने वाले दामाद का घर,नौकरी देख कर रिश्ते के लिए हामी भर दी।यहां छोटी बहन की भी शादी सुमन की सास के प्रयासों से प्रायः पक्की ही हो गई। छोटी बहन के ससुराल वाले एक साल बाद शादी करना चाह रहे थे,और राजा के ससुराल वालों को जल्दी थी।सुमन की सास ने बहुत बार समझाया सुमन को”बहू,पहले बहन की शादी कर दो
,फिर भाई की करना। तुम्हारी शादी में तो देखा है ना तुमने।पता नहीं कैसे तुम्हारे ससुर जी के रिटायरमेंट का पूरा पैसा खर्च हो गया।ब्याह योग्य तो थी,तुम्हारी छोटी ननद।मैंने ही जिद ठान ली थी कि पहले बहू लाऊंगी,तब बेटी विदा करूंगी।उस भूल की सजा मेरे बेटे और तुम्हें भुगतनी पड़ी।हमने बेटे की शादी में चादर
से ज्यादा पैर फैला दिए, खुशी-खुशी।बाद में तुम लोगों के ऊपर छोटी की शादी की सारी जिम्मेदारी आ गई।मैंने देखी है तुम लोगों की मजबूरी।अब वही गलती तुम मत दोहराना।पहली शादी में तादाद से ज्यादा ही खर्च हो जाता है।रिंकी के लिए अगर पैसे नहीं बचे,तब तुम कैसे संभालोगी?सासू मां की बात शत प्रतिशत सही थी।
सुमन ख़ुद भी नहीं चाहती थी राजा की शादी हो पहले।पर ससुराल वालों के सामने सीधा-सीधा दामाद कमजोर पड़ गया।तीन फरवरी २०११को शादी हुई।शादी क्या भव्य शादी हुई।राजा शुरू से शौकीन तबीयत का।ऊपर से सुमन के पति हां में हां मिलाने वाले।अगर मां होती तो,बहू के लिए जो भी करती,जो भी देती मुंहदिखाई में,
सारी चीजें सुमन को करनी थी।बड़ी थी ना सबसे।सुमन के पति ने भी कभी कंजूसी नहीं की।छोटा भाई बैंगलुरू में काम करता था।बहुत सारा खर्चा उसने भी किया।खैर राजा- महाराजा की तरह ही हुई राजा की शादी।अगले नवंबर में रिंकी की शादी होना तय हुआ था।
सुमन ने बड़ी बहन होने के नाते दोनों भाईयों और मंझली बहन से अपनी तरफ से क्या कर पाएंगे पूछा।मंझली बहन की स्थिति उतनी ठीक नहीं थी तो,उसने छोटा -मोटा कोई सामान देने की बात बताई।छोटा भाई पहले ही हार बनवा चुका था।ऊपर से दो लाख रुपए भी जमा कर चुका था।राजा ने अपने हांथ खींच लिए।
मजबूरी उसकी भी थी। गार्ड की नौकरी में ज्यादा तनख्वाह तो मिलती नहीं।पी एफ फंड से लोन की एप्लिकेशन लगा रखा था।बाकी के खर्च के लिए और रिश्तेदारों के पास जाकर खाली हांथ ही लौटे थे सुमन और बंटू।
तब सुमन ने आखिरी निर्णय लेते हुए सभी के सामने कहा”रिंकी घर की सबसे छोटी लड़की है,तो उसकी शादी में सभी की जिम्मेदारी है।अब यदि कोई नहीं कर पा रहा है तो,घर से लगी हुई जो जमीन है,उसे बेचकर ही शादी हो सकती है।वह जमीन छोटी बुआ के नाम करवाई थी दादा जी ने।छोटी बुआ अपनी मृत्यु के पहले वह जमीन भतीजे -भतीजियों के नाम कर गई थीं।वही जमीन हमारा आखिरी सहारा था
खरीदने वाला भी हमारे मायके का ही पड़ोसी था।बिना ज्यादा समय लगे जमीन लगभग पांच लाख में बिकी।अब सुमन ने मंझली बहन से कहा”देख यह जमीन हम सबकी थी।ज्यादा हक तो भाईयों का ही है,पर रिंकी की शादी का खर्च कोई भी वहन नहीं करना चाहता ,तो इस जमीन के पैसों से ही रिंकी की शादी होगी , धूमधाम से।दोनों भाई,भाभी,रिंकी सभी सहमत थे सुमन की बात सुनकर।
आखिरकार रिंकी की शादी धूमधाम से हो गई।अब सुमन भी निश्चिंत हुई।एक भाई और बचा है,उसकी भी एक दो साल में शादी करके ,वह अपनी मां की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी।राजा ,शिखा और रिंकी अपनी गृहस्थी में खुश थे।एक साल होते ही राजा का ट्रांसफर पैतृक निवास में हो गया।अंधा क्या चाहे -दो आंख।राजा बहुत खुश था
क्योंकि यह उसके दादा का बनाया हुआ घर है।यहीं पढ़ाई पूरी हुई थी।अब राजा ने फोन किया बंटू को “,मैं ड्यूटी पैदल तो जा नहीं पाऊंगा।एक मोटरसाइकिल खरीदनी है।”, बंटू ने कुछ पैसे तुरंत भिजवा दिया। सेकेंड हैंड गाड़ी खरीदकर राजा ने अपनी नौकरी शुरू कर दी।खाने में शौकीन और दिल का बहुत सीधा था राजा।सभी भाई-बहनों को एक साथ एक जगह करने की हमेशा जिद करता था।
बंटू इसी बीच लीबिया चला गया नौकरी में।घर बहुत बड़ा था,पर सिस्टम सही था घर बनवाई का।बंटू अक्सर जब भी आता ,बाहर से।कुछ ना कुछ नया काम करवाता रहता था।राजा के पास तो पैसे बचते ही नहीं थे
राजा और बंटू में बहुत प्रेम था।शायद इसीलिए राजा कभी संकोच नहीं किया ,बंटू से पैसे मांगने में,और ना ही बंटू कभी पैसों पर ताना देता।
अब इस बार जो हम चार भाई बहन इकट्ठा हुए,राजा की अचानक हार्ट अटेक से मौत हो गई थी।सुमन ,शिखा ,रिंकी सभी पहुंच गए थे।देर थी बंटू के आने की।बंटू के लिए राजा भाई नहीं पिता था।लीबिया से कैमोर पहुंचने में ढाई दिन लग ही जाएगा।सबकी सहमति से बर्फ में रखा गया राजा को।बंटू के आते ही अंतिम संस्कार का कार्यक्रम संपन्न हुआ।
श्मशान से आकर सुमन से लिपटकर रोते हुए बोला बंटू”दीदी मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है।जब जब मैं एक मोटी रकम घर बनवाने में खर्च करने को सोचता हूं,तभी ये सब दुखद घटनाएं हमारे सपनों को तोड़ देती हैं।अभी कोई उम्र थी उसके जाने की।अभी हम लोगोंने क्या क्या प्लानिंग की थी,छत पर टैरेस बनाएंगे।रूम निकलवाना था। बहुत रो रहा था सुमन समझा ही सकती है,धीरज धरने को।
सुमन का मायके में बहुत सम्मान था।शादी से पहले स्कूल में शिक्षिका थी,और घर पर छह बैच पढ़ते थे।अंतिम संस्कार की तैयारी से लेकर श्राद्ध के आयोजन की तैयारी भी बंटू और राजा के दोस्त ही कर रहे थे।राजा की पत्नी,(जॉली)से हमेशा बात नहीं हो पाती थी।सुमन बड़ी ननद कम जॉली के लिए मां हीं थीं।
दो दिन देखते बीत गए।सभी एक साथ बैठकर आगे की कार्यवाही के बारे में बात कर रहें थे।जल्दी सो जाते थे सब,सुबह उठकर लकड़ी की आग में ही मृत व्यक्ति की पत्नी या भाई एक मिट्टी के बर्तन में केवल चांवल पकाएगा,जिसमें आलू और घी डालकर खाया जाता था। लकड़ियां यदि सही नहीं जलीं तो बहुत दिक्कत होती थी।सुमन आग जलाने में मदद करती थी,ताकि भाई की सद्ध विधवा को परेशानी ना हो।
दिन भर सुमन अपनी बहनों के पतियों से और बंटू से राजा की विधवा पत्नी के लिए यथासंभव सहायता करने की बात कर रही थी।आख़िर इतनी कम उम्र में पति को खोया था उसने।छोटा भाई बंटू ,जो कि अपनी भाभी को मां समान स्नेह करता था सहमत था।भाई के श्राद्ध समारोह में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था वह।
कार्ड छप कर आ चुके थे।बंटू ने राजा की पसंद के खाने का जिक्र करते हुए पूछा भाभी से”भाभी,आप बताइये, क्या-क्या बनेगा?गुलाब जामुन या रसगुल्ला?दीदी कह रहीं थीं दहीबड़ा।ठीक है ना लिस्ट ,देख लीजिए।”भाभी ने हूं में जवाब दिया।मुखाग्नि बंटू ने ही दी थी।अभी तीसरा ही दिन बीता था।
सभी राजा की फोटो के सामने बैठक में दरी में बैठे हुए थे।अचानक से जॉली (राजा की पत्नी )ने सुमन को संबोधित करते हुए कहा “दीदी,अब तो मैं अकेली हो गई हूं।अब बंटू जब मर्जी तब यहां आ नहीं पाएगा।आप कमरों का भी बंटवारा कर दीजिए,अभी।पीछे के दो कमरे काफी होंगे उसके लिए।
जो खाली आंगन है,वहां पर वह बाथरूम बनवा सकता है ना।”इस अप्रत्याशित वार्ता के लिए ना तो उचित समय था,और ना ही विषय।सभी सकते में आ गए।सुमन ने बंटू की तरफ देखा तो,
उसकी आंखें गीलीं दिखीं।बात यहीं खत्म नहीं हुई थी।जॉली ने अगले पिछले सारे हिसाब लगाने शुरू कर दिए।बंटू ने हंसकर बड़ी शालीनता से कहा”भाभी,मैं तो अब जो जाऊंगा,साल भर बाद ही आऊंगा।आप आराम से रहना।अभी दादा का काम शांतिपूर्ण ढंग से हो जाने दो।हम बाद में बात कर लेंगें।”
यह वार्ता देवर और भाभी के बीच थी जब तक ,सुमन कुछ नहीं बोली।मंझली और छोटी बहन का भी मुंह उतर गया।किसी के अचानक आ जाने से मजबूरी में जॉली को विषय समाप्त करना पड़ा।
शाम को बंटू के साथ बात कर सुमन ने समझाया”तू बुरा मत मानना रे।एकदम से अकेली पड़ गई है।एक औलाद भी नहीं है।शायद असुरक्षित महसूस कर रही होगी।काम खत्म होने के बाद हम बहने एन ओ सी में दस्तखत कर देंगें।तू बनवा लेना ना पीछे अपने लिए कमरे।तेरे सिवा तो और कोई नहीं है उसका।”
छोटा होकर भी उसने मुझे पहली बार समझाया”दीदी, तुम्हारी सोच जहां खत्म होती है ना,भाभी की वहां से शुरू होती है।इस घर के बंटवारे की बात वो दादा के रहते भी कई बार कर चुकीं हैं।दादा ने हमेशा परिवार को बांधे रखने की बात कहकर चुप कराया है इन्हें।आज देखो,दादा की अनुपस्थिति में आपके
सामने इतने साहस से कह दीं भाभी ने बंटवारे की बात।मैं तो उन्हें मां मानता था, उन्होंने मुझे पराया पुरुष ही समझा बस।शादी के बाद से दादा और भाभी की हर जरूरत मैं खुशी-खुशी अपनी मर्जी से पूरी करता था।यही सोचता कि दादा की आमदनी ज्यादा नहीं है।हम दोनों भाइयों में कभी बैर नहीं हुआ।भाभी ने आज अपना असली रूप दिखा दिया।”
सुमन ने बंटू को ही समझाया शांत रहने के लिए।उसी रात लगभग ग्यारह बजे फिर से जॉली ने वही प्रकरण शुरू किया।बंटू के ऊपर तेज-तेज आवाज में चिल्लाने लगी,तो सुमन ने सिर्फ इतना कहा”जॉली,अभी यह सही समय नहीं है।राजा का श्राद्ध हो जाने दो।तुम्हारे साथ हम में से कोई भी अन्याय नहीं करेगा।
मैं समझती हूं,पति खोने का दर्द।तुम धीरज रखो और विश्वास करो हम पर।”वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी।सुमन की बात बीच में ही काटकर बोली”दीदी की बात छोड़ो बंटू।तुम अपनी बात करो।मेरा क्या होगा?राजा का पूरा हिस्सा मुझे चाहिए।मुझे और किसी से कुछ लेना देना नहीं है।”
उसकी इस बदतमीजी पर सुमन से रहा नहीं गया,बोल ही पड़ी “जॉली,इस घर की हर ईंट में हमारी मां का त्याग और पांचों भाई -बहनों का दुख लगा हुआ है।बड़ी होने के नाते,इस घर और घर वालों की जिम्मेदारी दीदी ने ही उठाई है।मां को कैंसर होने पर रिंकी ने सेवा की ताकि भाईयों को ज्यादा छुट्टी ना लेना पड़े।
राजा और तुम्हारी शादी की तैयारी में मंझली दीदी पूरा महीना इस घर में रही।तुम्हारी शादी में बंटू ने लाखों रुपए खर्च किए,मेरे पति ने पिता बनकर तुम्हें इस घर में गृहप्रवेश करवाया।घर ईंट और पत्थर से नहीं बनता।राजा कभी जिम्मेदार नहीं था और ना ही बनने की कोशिश भी की।तुम्हारे आने के बाद होना तो यह चाहिए था
कि रिंकी तुम लोगों के साथ रहे,पर तुम लोगों ने कभी ऐसा नहीं किया।रिंकी की शादी मुझे अपने घर से करनी पड़ी,बड़े भाई -भाभी के रहते।मुझे इस बात का कोई दुख भी नहीं,पर हिस्सेदारी की बात करने से पहले जिम्मेदारी की बात भी करनी चाहिए।”
वह तो जैसे भरी हुई थी”रौ में बोलती गई”आपका क्या है?हमेशा भाई -बहनों को अपने इशारे पर नचाया।आपके भाई ने भी झूठ बोलकर शादी की। सेमी प्राइवेट नौकरी बताया था,पर प्राइवेट थी उनकी नौकरी।”उसकी बात पूरी होने के पहले ही मंझली बहन ने रहस्योद्घाटन किया”भाभी,
आपके पापा ने तो नौकरी की बात जानकर शादी से मना कर दिया था,तब आपने ही जिद करके दादा से शादी की थी ना?”सुमन को इस बात का पता नहीं था।जॉली ने बहन की बातों का उत्तर देते हुए कहा”हां,यह तो सही बात है।मैंने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी थी।
जब आई थी मां-बाबा के साथ तो बगल में खाली पड़ी जमीन देखकर यही तसल्ली हुई थी कि भविष्य में बना लेंगे आधुनिक मकान।घर में सास -ससुर भी थे नहीं।मुझे शुरू से ऐसे ही घर में शादी करनी थी,जहां कोई मेरे सर पर ना खड़ा रहे।शादी के तुरंत बाद दीदी ने बिकवा दी वह जमीन।तुम्हारे दादा तो कुछ बोल नहीं पाए।अब मुझे घर में पूरा आधा हिस्सा चाहिए।”
स्वयं के मुंह से धन -संपत्ति पर मोह दिखाने वाली अभी -अभी विधवा हुई अति साधारण औरत का यह विशिष्ट रूप देखकर दंग रह गई थी सुमन।इतना दिमाग लगाकर शादी की इसने,और हम सब भाई के कम रोजगार की भरपाई करने की ही सोचते रहे हमेशा।इस घर पर बंटू ने लाखों रुपए खर्च
कर दिए सिर्फ यही सोचकर कि भाई -भाभी खुश रहें,सुविधाओं से वंचित ना हों।अभी जॉली की बातें ख़त्म नहीं हुई थीं।वकील बुलाने,खसरा दिखाने का भी इरादा जता रही थी वह।सुमन का बहुत सम्मान करते थे भाई -बहन।सुमन के सामने जॉली का इस तरह चिल्लाना बर्दाश्त से बाहर था,पर सुमन ने अभी सब को चुप करा दिया।अगले दिन अस्थि विसर्जन के लिए मां नर्मदा जाना था जबलपुर।वहीं राजा की ससुराल भी है,पर जॉली ने
शारीरिक कारण से जाने से मना कर दिया।सुमन ने पड़ोस में रहने वाली पुरानी परिचिता से आग्रह किया कि वे उसके साथ रहे,जब तक जबलपुर से वापस नहीं आ जाते।अस्थि विसर्जन के समय चारों
(तीन बहनें और एक भाई)रो रहे थे नाव में बैठकर।राजा की हमेशा इच्छा रहती थी कि सब मिलकर खाएंगे,घूमने जाएंगे,घर में रामायण करवाएंगे ,पर आज वही नहीं था।लौटते हुए मन बहुत दुखी था।दो दिन बाद ही श्राद्ध भी हो जाएगा।छोटा भाई विदेश चला जाएगा।हम बहनों को बुलाने वाला मायके में अब कोई नहीं बचेगा।
वापसी में एक ढाबे में चाय पीते समय सुमन के पास सुब्रता(परिचिता)का फोन आया”सुमन ,ये जॉली पागल हो गई है क्या?तब से सिर्फ घर के बंटवारे की बात कर रही है।कुछ भी बोलने जा रही हूं तो चुप करा देती है।मेरे पति से तरफदारी करने की बात कह रही थी।वो क्या पागल हैं,जो इसकी अनर्थक बातों का समर्थन करेंगें।
मैं वापस जा रही हूं।तुम जब लौटना ,तो आना मुझसे मिलने।सुमन का मन और दुखी हो गया।सोचने लगी, अधीर होकर आज जॉली ने कितनी बड़ी ग़लती कर दी।अरे,उसे तो आस-पड़ोस से सहानुभूति ही मिलती,पर पति के जाने के तुरंत बाद घर का क्लेम बाहर वालों के सामने प्रकट कर खुद की ही छवि बिगाड़ दी।
शाम को लौटकर सुब्रता से मिली।सुब्रता के पति सुमन के टीचर और पिछले कई वर्षों से पड़ोसी हैं।सुमन के पापा की मृत्यु के बाद से परिवार की हर विपत्ति को सुमन को झेलते देखा था उन्होंने भी और सुब्रता ने भी।सुब्रता ने बताया”जॉली को हम सभी मोहल्ले वाले शांत और सुलझी हुई समझते थे।
जब से राजा गया है,घर से उसी के चिल्लाने की आवाज आ रही है।हम लोग क्या बेवकूफ हैं?आज तो हद ही कर दी उसने,तुम्हारे भैया से ही घर के बंटवारे में मदद मांगने लगी।मुझसे उसके पक्ष में बात करने के लिए कहा।मैंने समझा दिया है उसे,घर का पांच हिस्सा होगा ना कि दो।तीनों बहनों का भी हिस्सा होता है।
उसे सिर्फ एक बटा पांच ही मिलेगा(राजा का हिस्सा।वह चाहे तो मूल्यांकन करवा के अपने हिस्से के तीन या चार लाख ले ले हम से।मेरी बात सुनते ही सकते में आ गई है वो। बिल्कुल शांत हो गई।बाह रे!त्रिया चरित्र।तुम्हारे भैया हमेशा उसी की सराहना करते थे,शायद उसकी मदद भी कर देते,पर आज उसने अपने लोभ के वश में अपना असली रूप दिखा दिया।”
सुमन क्या कहे?अभी तो ऐसे बहुत से नए रूप देखने बाकी हैं।फिलहाल भाई का काम अच्छे से निपट जाए।छोटा अपने काम पर वापस चला जाए।आज यह तो सिद्ध हो गया कि धन-संपत्ति अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर सकती है।
शुभ्रा बैनर्जी
ये धन संपत्ति ना -अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है