किससे बात कर रही थी सीमा ? खाना दे दो फिर मुझे बाज़ार जाना है… वो रसोई के केबिन लगवाने के लिये कुछ सैंपल लाने हैं । बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था कि कब तुम फ़ोन रखोगी ।
जी-जी ….. बस अभी सेकी गर्म-गर्म रोटियाँ । वो वीना दीदी का फ़ोन था , पूछ रही थी कि बहू के फ़्लोर का काम पूरा हुआ या नहीं?
मालविका ने अपने पति विनय को खाना परोसते हुए कहा । पंद्रह दिन पहले ही बड़े बेटे माहिर की शादी तय हुई थी । दोनों पति- पत्नी ने कई साल पहले ग्राउंड फ़्लोर पर चार बेडरूम का सुसज्जित मकान बनवाया था ।अपने बेडरूम के अलावा दोनों बेटों के अलग-अलग बेडरूम और एक गेस्टरुम ।
उस समय तो यही सोचा था कि छोटा सा परिवार है, मिलजुल कर रहेंगे । मालविका और विनय खुद अपने सभी भाइयों के साथ पुराने मकान में एक साथ रहते थे । धीरे-धीरे लोगों की सोच बदली और घर के हर एक सदस्य को अपने निजी कमरे की आवश्यकता पड़ने लगी ।
बढ़ता परिवार और छोटे घर को देखकर माँ- बाऊजी ने खुद यह कहकर अलग-अलग मकान बनवाने के लिए कहा कि कल को शादी-ब्याह के लिए रिश्ते आएँगे वरना देवरानी-जेठानी भले ही दबी ज़बान से जगह की तंगी का सामना करती पर माँ-बाऊजी के सामने कहने की हिम्मत किसी की नहीं थी ।
जब पहली बार विनय के बड़े भाई के बेटे ने अपनी माँ से कहा——
मम्मी! मैं एग्ज़ाम की तैयारी कर रहा हूँ । किताबें उठाकर कभी बैठक में, कभी बरामदे में और कभी बाहर आँगन में बैठकर पढ़ाई नहीं होती… कुछ मेरी परेशानी तो समझिए, पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता ।
ओहह…. हम तो कभी पढ़े ही नहीं । ये अनोखा ही महाकवि कालिदास बनेगा । देखो तो दादी, इसके नखरे ।
पर बाऊजी के कानों में पता नहीं कैसे और कहाँ से ये बात पड़ गई और उन्होंने पोते की कही बातों पर गौर किया । बस शायद यहीं से माडर्न जमाने ने उनके घर में दस्तक दे दी । देखते ही देखते साल भर में तीनों भाई अपने-अपने परिवार के साथ अलग-अलग रहने लगे ।
विनय का छोटा भाई माँ-बाऊजी का ज़्यादा लाड़ला था इसलिए विनय और बड़े भाई साहब तो बाल-बच्चों को लेकर नए घर में रहने लगे पर सबसे छोटा नवीन और उसकी पत्नी अंजलि अपनी तीनों बेटियों और बेटे के साथ पुराने मकान में रह तो गए पर अंदर ही अंदर उनके दिल-दिमाग़ में हमेशा यही घूमता रहता कि हम तो माँ- बाऊजी के अधीन है
और वे सब मनमर्ज़ी के मालिक हैं… कैसे भी घूमें , खाए-पिएँ । एक हम हैं कि हर काम पूछकर या बताकर करें ।
हद तो उस दिन हो गई जब कॉलेज जाती नवीन की बड़ी बेटी नताशा को सजधज कर जाती देख दादी ने टोका—-
नताशा! कॉलेज में कोई दावत है क्या ? पढ़ने तो तुम्हारी बुआ भी जाती थी पर इतना सजाधजा तो मैंने उसे कभी नहीं देखा?
क्या है दादी? बुआ का जमाना और था । अब दो चोटियाँ बनाकर , कलफ़ लगे सफ़ेद दुपट्टे की तह बनाकर भला कौन जाता है?
नताशा पैर पटकती चली गई ।
माँ जी, आप भी ग़ज़ब करती हैं । क्या हो गया , सारी लड़कियाँ ऐसे ही तैयार होकर जाती हैं । मेरी ही बेटियों में नुक़्स निकालती हैं । आपकी दूसरी पोतियाँ क़िस्मत वाली है जो यहाँ से पीछा छूट गया ।
दूसरे दिन मालविका और विनय माँ-बाऊजी के पास आए और बोले—-
आज आप दोनों को लेने आए हैं । पहली शादी है , समझ ही नहीं आ रहा कुछ….माहिर और वंशा का फ़्लोर तैयार हो चुका है…..
फ़्लोर? मालविका! ये क्या कर रहे हो तुम ? शादी का मतलब ये नहीं कि बहू- बेटे को अलग कर दो । अरे ! नई बहू को अपने परिवार के तौर- तरीक़े समझाओ , एक- दूसरे को समझो । तुम तीनों देवरानी- जेठानी तो कुछ सालों पहले तक इकट्ठे रहे और अपनी बहू को आने से पहले ही अलग कर दिया ।
हाँ विनय ! तुम्हारी माँ सही कह रही है बेटा ….अगर बच्चों को अलग रहने की आदत पड़ जाती है तो बड़े- बुजुर्गों को बंधन समझने लगते हैं ।
पता नहीं बाऊजी , मालविका को किसने समझा दिया कि आजकल अगर बहू- बेटे के साथ रिश्ते अच्छे रखने हैं तो उन्हें फ़्री रहने देना चाहिए….. जैसे चाहे रहे , खाए-पिएँ ।
मालविका! पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा । पड़ोसियों के साथ औपचारिकता होती है पर बच्चों को उनकी ज़िम्मेदारी समझाना हम बड़ों का कर्तव्य है ।
तुम्हें पता है मालविका, बनवाने को तो हम नवीन और अंजलि के लिए भी ऊपरी मंज़िल पर मकान बनवा सकते थे पर मुझे महसूस हुआ था कि उनके ऊपर ज़िम्मेदारी ना डाली गई तो वे , ख़ासतौर पर अंजलि और बच्चे परिवार से धीरे-धीरे रिश्ते ही ख़त्म कर देंगे ।
मुझे ऐसा लगता था कि मालविका और श्यामा को मैंने परिवार की परंपराएँ बख़ूबी समझा दी है इसलिए तुम दोनों को इस विश्वास और आशीर्वाद के साथ अलग किया कि अब तुम आने वाली पीढ़ी को ज़िम्मेदारी निभाना सिखाओगी ।
देखते ही देखते माहिर की शादी का दिन भी आ पहुँचा । माँ- बाऊजी को भी विनय और मालविका शादी के पंद्रह दिन पहले ही अपने पास ले आए थे । बहुत ही बढ़िया तरीक़े से शादी के सारे रीति- रिवाज निपट गए । वैसे तो मालविका ने सोचा था कि बहू की पहली रसोई का नेग नए फ़्लोर पर नई किचन में करवाएगी पर जब उसने सास से कहा —-
माँजी , किचन में हलवे का सामान निकलवा दिया है, आपकी कुर्सी रसोई में रखवा दी है । आप वहीं बैठ जाइए । वंशा का कुछ सामान गलती से नए फ़्लोर के बेडरूम में रखा है । मैं ज़रा नीचे माहिर के कमरे में रखवा देती हूँ और नए फ़्लोर की सफ़ाई करने को कह दूँ , मेहमान तो सभी जा चुके हैं । अब तो केवल घरवाले हैं।
तो विनय का मुँह खुला रह गया । तभी अंजलि ने मालविका से कहा ——-
दीदी, आज माँ- बाऊजी को भी हमारे साथ भेज देना प्लीज़ । इन बच्चों ने तो फ़रमाइशें कर करके बीस- पच्चीस दिन में मेरी नाक में दम कर दिया । बड़ों की उपस्थिति ही बहुत सी समस्याओं का समाधान कर देती है ।
आज माँ के चेहरे पर संतोष की झलक थी क्योंकि उनकी छोटी बहू अंजलि भी उस बात को समझने लगी थी जो उन्होंने अपनी बड़ी दो बहुओं को समझा दी थी ।
बाऊजी , शादी तो निपट गई । क्या नया फ़्लोर किराए पर दे दें ?
हाँ विनय ! मेरे हिसाब से तो यही ठीक रहेगा । बाक़ी बच्चों से भी सलाह कर लेना बेटे , जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उनके साथ दोस्ताना व्यवहार ही खाई पाटने का सबसे बढ़िया तरीक़ा है ।
करुणा मलिक
# जब बच्चों को अलग रहने की आदत……#
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