ननद को भी भाभी की जरूरत होती है। – चाँदनी झा : Moral Stories in Hindi

मधु, कुटिली मुस्कान के साथ,….सोचती है। मुझे ऐसे क्यों भाभी इग्नोर(अनदेखा) करेगी। मैं भला कभी क्यों मायके में रहूंगी? पर आज रंजू के दिल से निकली बददुआ, सच हो गयी माँ। माँ ये मेरे ही कर्मों का फल है, मेरे अहंकार, और मन में भरी कुलिष्ता का बदला है। मैंने रंजू का दिल दुखाया था, इसलिए तो आज मेरी भाभी की आंखों में मैं गड़ती हूं।

 माँ ने मधु के आँसू पोछे, और बोली, पगली, न तुम तब गलत थी, न आज गलत है। सब समय का खेल है। मधु,… माँ की ओर देखती है, अपने आसूं पोंछ मुस्कुराती है। मधु जानती है, ये माँ की ममता है मेरे लिए,…जो मुझे किसी भी परिस्थिति में गलत न समझती। पर…. मधु भींगी-पलकों के साथ अतीत में चली जाती है। जब उसकी शादी,…सुमन के साथ हुई थी। माँ-बाप की दुलारी मधु, बहुत धूम-धाम से उसकी शादी हुई थी। मधु अपने दो भाइयों की एकलौती और सबसे बड़ी बहन थी। मधु के पति सुमन तीन भाई और एक बहन रंजू थी।

रंजू, सुमन से छोटी थी, उसकी शादी छः साल पहले रमन के साथ हो गयी थी। रंजू के पति एक ही भाई थे,…और तीन बहन, रंजू को चार साल का एक बेटा भी था। शादी के इतने दिनों के बाद भी रंजू मायके में ही रहती थी। वह नाममात्र ससुराल जाती थी। एकलौती बहु थी रंजू, पर न जाने क्यों ससुराल में रहना नहीं चाहती थी। ऐसी भी कोई बात नहीं थी कि, मायके में रंजू कोई काम न करती थी। रंजू के बड़े भाई (मधु के जेठ) जॉब के कारण बाहर रहते थे, तो बड़ी भाभी(मधु की जेठानी) भी उनके साथ ही रहती थी।

घर में रंजू के माता-पिता, सुमन, सबसे छोटा भाई पवन, दादी, चाचा-चाची, और दो छोटी चचेरी बहन रहती थी। रसोई सहित अन्य काम अपने चाची के साथ रंजू ही करती थी। सुमन की शादी मधु के साथ हुई,…मधु ससुराल आई, तो उसके कामों में भी हाथ बंटाती थी रंजू। पर रंजू की बड़ी भाभी जो शादी में यहां आई थी, और मधु दोनों आपस में व्यंग्य करती, हम तो ससुराल में रहते या,…अपने पति के साथ रहते हैं, लेकिन हमारी ननद रानी ससुराल जाने का नाम ही न लेती।

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ये यहीं (मायके में ही) ज़िंदगी गुजारेंगी। कुछ दिनों बाद मधु की जेठानी अपने पति के साथ शहर चली गयी। मधु भी खुद को पति और ससुराल में रमाने की कोशिश करने लगी। मधु के पति सुमन गांव के थोड़ी दूर शहर में ही बैंक में पोस्टेड थे। पति (सुमन) का डेरा भी था पास के शहर में। पर मधु  की सास की अनुमति के बिना, सुमन की हिम्मत न थी पत्नी को अपने साथ रखने की। कुछ समय बाद, मधु गर्भवती हुई तो,..सुमन ने अपनी माँ से कहा, माँ मैं इसे अपने साथ शहर ले जाता हूं, वहां डॉक्टर आदि की भी सुविधा होगी,

और इसे काम भी दो लोगों के लिए ही करना होगा। ऐसे हालत में गांव में अच्छी सुविधा भी नहीं है, इसे दिक्कत होती है। माँ ने मना कर दिया,…। माँ ने कहा, हमने भी यहीं गाँव में ही बच्चे पैदा किए हैं। तुम्हारी बीबी कुछ अलग नहीं करने जा रही है। सुमन चुप हो गया। क्या करता आखिर, शादी के तुरंत बाद माँ के खिलाफ जाने की हिम्मत भी तो नहीं कर पा रहा था। और मधु की परेशानी से भी अवगत था। गांव में बैठकर इतने लोगों के लिए रोटी बनाना, कुंए से पानी निकलना, बड़े से बर्तन से माँड़ पासना। और ससुराल भी है,..

.सबका आदर-सत्कार भी करना है। सबसे पहले जागना, और सबसे बाद में सोना। पहले समय की बातें और है, और अभी के समय में प्रेग्नेंसी ज्यादा ही परेशान करती है। समझता था सुमन। और बात ये भी थी कि, मधु ने कभी इतने लोगों के लिए काम न किया है। मधु के मायके में, ज्यादातर काम माँ ही करती थी। मधु का ज्यादा समय पढ़ाई-लिखाई और खेल में बीतता था। वैसे पढ़ाई के साथ-साथ मधु घर के हर काम में दक्ष थी। पर अभी जो उसका समय था, अपनी माँ के पास जाना चाहती थी, या पति के साथ अकेले रहना चाहती थी।

मधु की माँ ने कई बार मधु की सास से फोन कर मधु को आने देने के लिए कहा। उसने मधु के चाचा को लिवाने भी भेजा। पर…मधु के सास ने कहा, हम यहां ठीक से ध्यान रख रहे हैं। दरअसल मधु के भाई और पिताजी काम के सिलसिले में बाहर शहर में रहते थे। बस इसी बात के लिए मधु की सास कहती, न इसके पिता है, वहां, न भाई, ऐसे परिस्थिति में,..घर में मर्द का होना जरूरी है। और आपकी बेटी वहां जायेगी तो बार-बार मेरे बेटे को वहां जाना पड़ेगा, इसलिए यहीं ठीक है। मधु की माँ ने कई बार सुमन से भी कहा, बेटा,

उसे अभी सबसे ज्यादा मेरी जरूरत है, उसे मायके पहुंचा दो। मधु, प्रेग्नेंसी के कारण, चिड़चिड़ी, और मूड स्विमिंग के कारण सुमन पर झल्लाती, माँ से भी फोन पर कहती, मैं यहीं ठीक हूँ। मधु मन ही मन अपने सास पर भी कुढ़ती, अपनी बेटी को मायके में रख रखा है, और मुझे अपनी माँ के पास जाने नहीं देती। जब सुमन की माँ ने नहीं ही माना, कि मधु मायके या पति के पास जाए,…।तो  मधु को डॉक्टर के पास ले गया था सुमन, चेकअप के लिए। तो वहीं (डॉक्टर के यहां)मधु की माँ आ गयी,

और मधु को अपने साथ लेते गयी। माँ की ममता और मधु की जरूरत देखकर सुमन कुछ नहीं बोल पाया। पर जब सुमन, मधु के बिना घर आया, तो सुमन की माँ ने कहा, उसे डॉक्टर के पास चेकअप के लिए ले गया था या मायके पहुंचाने? तुम दोनों पति-पत्नी की मिली भगत होगी, कि डॉक्टर के बहाने मायके जाने का। सुमन की माँ ने सुमन से कहा, तुमने मेरे साथ धोखा किया, अब तुम्हारी बीबी और तुम मुझसे बात न करना। जबकि सुमन अपनी जिम्मेदारियों और मजबूरी की दुहाई दे रहा था।

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कि माँ, मधु की माँ आई, जिसने उसे इक्कीस वर्ष से पाला-पोसा, अपनी बेटी को अपने साथ ले गयी। माँ अभी मधु को हमसब से ज्यादा उसकी माँ की ही जरूरत है। भावनात्मक रूप से वह माँ के साथ ज्यादा खुश रहेगी। और माँ कई बार मधु की माँ ने तुमसे भी कहा था, मैने भी कहा, अपने पास ले जाता हूँ, वहां भी ले जाने से तुमने मना कर दिया। माँ दिक्कत होती थी यहां मधु को। और माँ अपने माँ के पास ही गयी है ना, इसमें नाराज होने की क्या बात है? पर सुमन की माँ के अहंग को ठेस पहुंची थी,…

वह मधु और सुमन से नाराज ही रही। सुमन से तो हां, ना कर बात कर भी लेती थी पर मधु से बिल्कुल नहीं। मधु फोन करती भी तो, सास बात न करती थी। सुमन ने मधु को मना कर दिया, छोड़ दो तुम फोन ही मत करो। मधु,…मायके में आकर खुश थी, माँ के पास….उसे इस अवस्था में भी,…सुकून मिलता था। उसे ससुराल में जो भी परेशानी महसूस होती, यहां सब छू मंतर हो गया। सुमन भी शनिवार, रविवार को मधु से मिलने आता था। मधु माँ बनने वाली थी, माँ के पास थी,…पति भी खूब प्यार करता था।

मधु खूबसूरत एहसासों के साथ सातवें आसमान पर रहती थी। पति जब प्यार करता ही था, तो उसे ससुराल वालों की क्या जरूरत थी? वह न ननद से बात करती, न और किसी से। उलटे चिढ़ती रहती ननद से कि मायके में बैठी रहती है। एक दिन,…रविवार का दिन था,…मधु अपने पति के साथ पास के प्रसिद्ध मंदिर आई थी। वहीं अचानक से उसकी सास और ननद भी मिल गयी। औपचारिकतावस सास बहु में बातें हुई। मधु थोड़ी डरी, थोड़ी घबराई, और खुश भी थी,… कि कोई विरोध में हो, पर पति तो मेरे साथ खड़ा है।

सभी पूजा करने के बाद एक होटल में खाना खाने बैठे। वहीं मधु की ननद, रंजू ने अपनी भाभी मधु से कहा,…भाभी माँ आपसे बात नहीं करती, ये आपके और मां के बीच की बात है। पर आप न मुझे फोन करते, न हाल-चाल पूछते। जबकि बड़ी भाभी बराबर मुझे फोन करती है। भाभी आप आज मुझे नहीं पूछती हैं न, कल आपको भी दो भाई है, आपकी भी भाभी होगी,…आपको भी नहीं पूछेगी, तब समझ में आयेगा भाभी। ननद-भाभी का रिश्ता,…बहुत खूबसूरत होता है, पर आपने न जाने क्यों इस रिश्तों को अहमियत ही नहीं दिया कभी।

सुनकर मधु अंदर ही अंदर मुस्कुराई, और धीरे-धीरे अपने पति सुमन से कहती है, हमें इस तरह मायके में रहने की जरूरत ही न होगी, न रहूंगी, ज्यादा मायके में, (बच्चा होने के बाद, मधु और सुमन का प्लान था,…सुमन के साथ शहर में रहने का।)और दूर रहूंगी भाई-भाभी से जब, तब फोन करेगी ही, और न भी करे तो क्या फर्क पड़ना है। हम अपने में ही खुश रहेंगे, मायके पर न ज्यादा निर्भर रहना है, न भाभी से कोई उम्मीद रखना है। सुमन और मधु रंजू के प्रेम, या प्रेम भरी उम्मीद को बेवकूफी समझ रहे थे। रंजू का कहने का अंदाज था,

..जैसे भाभी माँ से ही सिर्फ मायका नहीं होता, भाभी के प्यार और चाहत की भी हर ननद को जरूरत होती है। पर मधु अपनी ही दुनिया में खुश, कहां समझ पा रही थी,…रंजू की भावनाओं को। मधु घर आ गयी, और अपनी माँ से भी हंस-हंस कर रंजू की बातों का मजाक उड़ा रही थी। माँ मुझे जरूरत ही क्या होगी, भाभियों की? और हाँ माँ, मैं न रहनेवाली मायके में।

और माँ, मैं अच्छी ननद रहूंगी, अपनी भाभियों की, अपनी ननद रंजू की तरह नहीं। (न जाने क्यों रंजू न भाती थी मधु को) समय पूरा हुआ, मधु ने बेटे को जन्म दिया। हॉस्पिटल में ही, सास-ननद, औपचारिकतावस मिलने आई। बच्चे को लेकर अस्पताल से मधु मायके ही आ गयी। जब बच्चा कुछ बड़ा हो गया तो, सुमन, मधु को और बच्चों को लेकर अपने साथ शहर लेते गया। कुछ दिन बाद बदकिस्मती से किसी  महामारी के कारण सुमन की मौत हो गयी। बेचारी, मधु,…..तो जैसे पत्थर हो गयी। मधु की माँ, बेटी के इस ग़म से अधमरी हो गयी।

पर नाती और बेटी को संभालना भी था। सुमन के अचानक चले जाने से,…सुमन का परिवार भी बेसुध हो गया था। सुमन की माँ, रंजू सभी इस अनहोनी से  सम्भल न पा रहे थे। इधर मधु बिन सपनों के बेजान सी माँ के साथ मायके ही रहने लगी। मधु के जीने की वजह, उसका बेटा सुमित था। समय के साथ किस्मत ने कुछ साथ दिया और  मधु की सरकारी नौकरी हो गयी। माँ के मनाने के बाद, सुमन की मौत के चार साल बाद एक अच्छे लड़के (ब्रजेश) के प्रस्ताव आने पर, मधु ने ब्रजेश  के साथ दूसरी शादी कर ली।

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मधु एक बच्चे की माँ थी, और विधवा, समाज आसानी से कहाँ अपनाने वाला है। ब्रजेश ने कोर्ट मैरेज किया था, मधु के साथ। पर ब्रजेश के माता-पिता ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए, मधु को अपने घर की बहु मानने से इनकार कर दिया। और ब्रजेश से भी सब तरह का नाता तोड़ लिया। ब्रजेश एक भाई और एक बहन है। ब्रजेश की बहन मीनू की शादी हो गयी थी, और वो अपने पति के साथ शहर में रहती थी। मधु की जिंदगी तो चार साल पहले ही उजड़ चुकी थी, उसकी सारी खुशियां, सारी भावनाएं मर चुकी थी,

बस जैसे-तैसे अपनी ज़िंदगी काटने की कोशिश करती। ब्रजेश के साथ मधु अपनी जिंदगी को सामान्य बनाने की कोशिश कर रही थी। वैसे ब्रजेश भी मधु का बहुत ख्याल रखता, और मधु की भावनाओं को समझता भी था। सुमित को मधु की माँ अपने साथ रखने लगी। समय के साथ मधु के दोनों भाईयों की भी शादी हो गयी। मधु नौकरी करती थी और ब्रजेश के साथ कुछ हद तक सामान्य हो चुकी थी। मधु ने एक बेटी को जन्म दिया। पर कहा जाता है न, समय न जाने कब, कौन रंग दिखाए? मधु की पहली शादी के जैसे एक साल बाद ही

उसकी पति की मौत हो गयी थी, वैसे ही दूसरी शादी के पाँच साल बाद मधु की नौकरी पर, विभागीय परेशानी के कारण उसे सेवामुक्त कर दिया गया। ब्रजेश भी कुछ ज्यादा नहीं कमाता था,….वो तो मधु की नौकरी थी, तो किराए का मकान और सारी खर्चे निकल जाता था। अब मधु और ब्रजेश को दिक्कतें होने लगी।

सुमित की पढ़ाई का खर्चा, एक छोटी बेटी, ब्रजेश और मधु सभी का खर्चा मुश्किल हो गया। मधु की माँ अपने बेटों के पास ही गांव से शहर आ गयी थी। क्योंकि, एक तो  गांव में अकेली वो क्या करती, और दूसरी बात बड़े शहर में सुमित की शिक्षा-दीक्षा भी अच्छे से हो पायेगी। मधु की माँ अपने पति, दोनों बेटे,

दोनों बहुओं के साथ रहती थी। मधु की माँ ने मधु से कहा, बेटा जब तक न्यायालय से तुम्हारी नौकरी का सकारात्मक फैसला नहीं आ जाता, तब तक ब्रजेश के साथ तुम यहीं आ जाओ। ब्रजेश को यहां बड़े शहर में कुछ काम भी मिल जायेगा, और तुम्हें खाने-पीने के लिए यहां सोचना नहीं पड़ेगा। माँ के समझाने के बाद मधु अपनी माँ और भाभियों के पास आ गयी। आखिर मधु के पास इसके सिवा और रास्ता भी क्या था?

मधु को अच्छा लग रहा था, अपनी माँ और बेटे के पास बहुत समय बाद लगातार रहने का मौका मिला है। वैसे नौकरी के बाद तो बस छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए मायके आ पाती थी मधु, भाभी सब पर बहुत सारा प्यार लुटाकर, भतीजी को ढेर सारा दुलार कर, भाइयों से ढेर सारी बातचीत कर, अपने बेटे को सीने से लगाकर, माँ-पिता का ख्याल कर लौट आती थी मधु। पर अब परिवार में सभी के साथ मधु आनंदित हो रही थी। पर…धीरे-धीरे आनंद, ग़म में बदलता जा रहा था। मधु की दोनों भाभियां,

चिढ़ी रहती मधु से, घर का अधिकतर काम मधु पर छोड़ देती थी। मधु की माँ की कौन सुनता है, यहां मधु के दोनों भाई भी अपनी पत्नी का ही पक्ष रखते थे। मधु की मां अपनी बहू से कहती, मेरी बेटी की बदकिस्मती उसे तुम्हारे दरवाजे पर ले आई है,….इतना अपमान न करो। पर मधु की भाभियां, न जाने क्यों मधु का यहां रहना पसंद न करती थी। कितने ताने सुनाती, कितना व्यंग कसती मधु पर। मधु अपमान का घूंट पीकर,…सोचती, मैं कितना प्यार करती हूँ, अपनी दोनों छोटी भाभियों को,….

अपनी बहन समान मानती हूँ। दोनों भाभी से बड़ी हूँ, मेरा सम्मान न करे, तो कम से कम अपमान तो न करे। मधु दिल की अच्छी थी,…पर समय के खेल को कहाँ समझ पायी थी मधु। उसने रंजू की भावनाओं को ठेस पहुंचाया था। उसकी उम्मीद को मजाक समझा था। रंजू भी तो दिल की बुरी नहीं थी। रंजू ज्यादातर अपने मायके ही क्यों रहती थी, मायके का प्यार उसे ससुराल में टिकने नहीं दे रहा था या,…उसके ससुराल वाले और पति रंजू को नहीं समझते थे? क्या कारण था रंजू का यूं मायका रहना?

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बड़ी भाभी होने के नाते, मधु ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं किया। और कभी भी रंजू को अच्छे नजर से न देखती, उसे बुरी समझती, क्योंकि, वह मायके रहती, और रंजू का जो भी भला-बुरा ससुराल में हुआ, सास के तरफ से हुआ, फिर रंजू की क्या गलती थी? रंजू सही थी या गलत इन सब बातों को जानने के बजाय, मधु उसे नापसंद करती थी।

शायद सास के मनमाने व्यवहार के कारण, या अपने पति के प्यार के कारण, कभी मधु को ये एहसास नहीं हुआ था कि रिश्तों में एक ननद को अपनी भाभी की भी जरूरत पड़ सकती है।  माँ के प्यार के साथ-साथ भाभी के प्यार की भी उतनी ही जरूरत है। अब समझ आ रहा था मधु को। माँ लाख ममता लुटा दे, पर भाभी न पूछे तो बुरा लगता है, मधु महसूस कर पा रही थी।

भाभी अपने में खुश रहती, मधु से अनजानों जैसा व्यवहार करती। साथ ही ये भी एहसास कराती, कि जैसे वो अपने दोनों भाईयों पर बोझ हो। मधु कुंठित रहती थी। मधु सोचती

 वक्त कब, किसको, कहां किसकी जरूरत का एहसास करा दे कोई नहीं जानता। इसलिए किसी बात का न कभी घमंड करना चाहिए, न ही किसी को बिना जाने-समझे गलत समझना चाहिए। उसकी ननद मीनू (ब्रजेश की बहन) का फोन आया तो मधु, अतीत से बाहर आई। दरअसल, ब्रजेश के माता-पिता तो ब्रजेश और मधु से बातचीत नहीं करते थे,

पर उसकी ननद मीनू कभी-कभार अपने भाई-भाभी से बात कर लेती थी। कैसी हैं भाभी, भैया और बच्चे कैसे हैं?  अपनी आंसू को छिपाती , मुस्कुराने की कोशिश करती हुई आवाज में, मधु ने कहा, सब ठीक है यहां, आप अपना बताइए? आप अपना ख्याल रखती हैं न? अच्छा लगता आपसे बता कर, ससुराल के नाम पर तो बस आप ही तो हैं। आप ननद कम दोस्त ज्यादा हैं। बहुत देर तक ननद-भाभी ने फोन पर बातें किया।

वैसे…जबसे मधु को अपनी भाभी के प्यार की जरूरत महसूस हुई थी, मीनू से खूब मधुरता से बात करती थी। मधु अपने बीते पल से बाहर आना चाहती थी, पर….उसका खुद का घमंड, और अपनी काबिलियत पर झूठा भरोसा, उसे तोड़ रहा था। वह समझ रही थी, अनजाने में या जानबूझकर उसने रंजू का दिल दुखाया है। इसलिए समय उसे मायके में रहने को मजबूर कर रहा है। और भाभी का बर्ताव उसके साथ, उसके ही कर्मों का फल है। अपनी कमियां, अपना अहंग, अपनी गलतियां, या अपनी बीती बात किससे कहती?

कौन समझता उसे, उसके पश्चाताप को? बस एक माँ ही थी जो सब पढ़ लेती थी, और मधु के साथ हर परिस्थित में खड़ी थी। पर मधु समझ रही थी, मैंने रंजू को नहीं समझा, तो आज अपनी भाभियों से कैसे उम्मीद कर सकती हूँ? पर हां, ये भी सच है कि मैं अपनी भाभियों के लिए बददुआ या बुरा न सोचूंगी। मैं बस अपने सारे रिश्तों के साथ वक्त के साथ, न्याय कर सकूं, सभी के दिल में जगह बना सकूं, बस यही चाहती। मधु आसूं पोंछ,…घर के कामों में लग गयी।

चाँदनी झा 

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