तुझे खाना ठोकने से फुरसत मील तो बाहर कपड़े पड़े हैं धोने को जब देखो मुहं चलाती रहती है खाने को। न काम की न काज की दुश्मन अनाज की हमारी छाती पे बिठा दी मूंग दलने को। तेरे बाप से तेरे खाने का खर्च पूरा नही हो रहा होगा इसीलिए बिना दहेज के फटाफट धक्का दे दिया हमारे घर मे।
सिमरन की शादी को अभी पन्द्रह दिन ही हुए थे अभी हाथों से मेहंदी भी नही उतरी थी और न ही शादी के सपनो से बाहर आ पाई थी। उसके सारे अरमान दिल मे दबे थे वो अभी परिवार में खुद को ढालने की कोशिश कर ही रही थी कि शादी में दहेज कम लाना उसके लिए आफत बन चुका था। उसकी सास कोई मौका नही छोड़ती सिमरन की ये महसूस करवाने का कि वो एक बुरे सपने की तरह परिवार में आई है
ससुराल वालों के दहेज के सारे सपने धरे के धरे रह गए थे। सिमरन को लगा कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा ये सोचकर वो बातों को सुनकर अनसुना करती रही और भला करती भी क्या उसके पिता ने तो पहले ही दो खेत जमीन बेचकर उसकी शादी की थी जिंदगी भर जो पाई पाई जोड़ी थी वो तो उसके गहनों में ही लग गई थी उसके बाद बारात के खाने पीने की व्यबस्था या अपने सामर्थ्य के अनुसार जो दहेज दिया था वो अपने खेत बेचकर दिया था ये बात सिमरन भली भांति जानती थी।
उसे ये भी पता था कि अगर वो अपने पिता से ये सब बताएगी तो शायद वो अपना घर बेचकर कुछ व्यबस्था और कर दें दहेज की। क्योंकि बेटी के लिए मां बाप कुछ भी कर सकते हैं। मगर सिमरन जानती थी कि घर बेचने के बाद भी जिस तरह की सास की अपेक्षाएं हैं वो कभी पूरी नही होंगी। इसलिए वो सबकुछ सुनकर अंदर ही अंदर घुटती रहती मगर उसने इस बात का पता अपने माँ बाप को नही चलने दिया।
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आज सुबह सिमरन नाश्ता बनाकर झाड़ू पोंछा करके जैसे ही खाने बैठी की सास आ गई और हो गई शुरू महारानी बैठ गई खाने,थक गई, बहुत काम कर लिया चार आदमियों की रोटी बनाकर, तुम्हारा ये हाल है हमारे समय मे पन्द्रह पन्द्रह लोगो का खाना बनता था चार भैंसे दो गाय दो बैल थे उनका गोबर उठाना उनके लिए घास लाना घर का सारा काम मैं अकेले करती थी।
मगर मैने कभी अपनी सास को शिकायत का मौका नही दिया। और एक तुम हो जरा सा काम करके बैठ गई रोटियां फाड़ने। बाहर कपड़े धोने को पड़े हैं वो कौन धोएगा तेरे बाप ने कोई नौकरानी तो भेजी नही है दहेज में जो धो देगी। और न ही इतना पैसा दिया है कि हम कोई नौकरानी रख दें तुम्हारे लिए ।
तुझे खाना ठोकने से फुरसत नही है जब देखो मुहं चलाती रहती है खाने को। न काम की न काज की दुश्मन अनाज की हमारी छाती पे बिठा दी मूंग दलने को। तेरे बाप से तेरे खाने का खर्च पूरा नही हो रहा होगा इसीलिए बिना दहेज के फटाफट धक्का दे दिया हमारे घर मे।
सिमरन चुपचाप सिर नीचा करके सुनती रही खाने की प्लेट ढककर बाहर निकलकर कपड़ों की बाल्टी उठाने लगी तभी उसकी ननद नीलम जो कि दसवीं में पड़ती थी वो बाहर आती है और भाभी के हाथ से बाल्टी लेकर उसे रसोई में लेकर आती है। कई दिनों से वो मां की बातें सुन रही थी मगर आज उसकी सब्र का बांध टूट गया
उसने भाभी को बिठाकर खाना दिया और मां से बोली माँ एक बात बताओ क्या तुम मेरे ससुराल की हर मांग पूरी कर दोगी कर भी दोगी तो हो सकता है अगले दिन उनकी मांगे और बढ़ जाएं तब क्या करोगी? क्या तुम मेरे साथ काम करने के लिए कोई नौकरानी भेज दोगी जो मेरा सारा काम करे? कल को मेरे साथ ससुराल में ऐसा बर्ताब हो तो क्या तुम बर्दाश्त कर लोगो क्या तुम चाहोगी
की तुम्हारी बेटी भूखी प्यासी जानवरों की तरह काम करे? मुझे डर लगने लगा है ससुराल के नाम से माँ मैं कांप उठती हुन ये सोचकर कि अगर मेरी माँ की तरह मेरी सास मुझसे व्यबहार करेगी तो मैं तो जी ही नही पाऊंगी।
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जिस तरह आप अपनी बेटी के लिए अच्छा ससुराल चाहती हैं बैसे ही बहु को भी ये एहसास करवाओ की वो अपने ससुराल में नही अपने घर मे है।अगर आप चाहती हैं कि आपकी बेटी ससुराल में खुश रहे तो आपको पहले अपनी बहू को ससुराल में वो हक देना पड़ेगा जो आप अपनी बेटी के लिए चाहती हो। याद रखो आपकी बहु किसी की बेटी है और आपकी बेटी किसी की होने वाली बहू है इसलिए बहु से वो ही व्यवहार करो जो आप अपनी बेटी के लिए चाहती हो।
सास अपनी बेटी के मुहं की तरफ देख रही थी और बेटी का ये रूप देखकर हैरान थी मगर वो सोचने को मजबूर हो गई कि आखिर बेटी जो कह रही है अगर सच मे मेरी बेटी के साथ ऐसा हो तो हम क्या करेंगे। कमलेश( सास) अब शांत होकर चुपचाप आगे बढ़ी अपने दोनों हाथ जोड़कर बहु के पास गई
उसे बाहों से उठाकर खड़ा किया और गले लगा लिया। अपने किए की माफी मांगते मांगते सास बहू दोनो की आंखों से आंसू एक दूसरे के कंधों पे गिरने लगे। आज सिमरन की ननद ने वो कर दिखाया था जो सिमरन के माँ बाप और अधिक दहेज देकर भी न कर सकते थे उस दिन के बाद सास ने सिमरन को बहु बुलाना बन्द कर दिया वो उसे बेटी बुलाने लगी और हमेशा कहती मेरी एक नही दो बेटियां हैं।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश