सुषमा जी की बेटी कृति आने को है, गर्मियों की छुट्टियों में, अपने दोनों बच्चों संग।बेटी का ससुराल दूर होने के कारण पूरे साल सुषमा जी इस समय का इंतेज़ार करती हैं। अपने उम्र के हिसाब से सुषमा जी काम या व्यवहार में बहू के साथ भी कोई कमी नहीं रखती, वैसे भी बेटा और बेटी दोनों के दो दो बच्चे,
फिर छुट्टियां तो पूरे दिन उठा पटक रखते।पर सुषमा जी महसूस करती कि जबसे बहू ब्याहकर आई है, उसका स्नेह दुलार अपने मायके को लेकर ही ज्यादा रहता।इस से सुषमा जी को कोई दिक्कत भी नहीं थी परन्तु जैसे ही बेटी आती, हमेशा बहू मोहिनी का मायके चले जाना सुषमा जी को अखरता। उन्हें लगता बुआ मामा के बच्चे यहां आपस में खेलेंगे नहीं तो उनका जुड़ाव कैसे होगा आपस में।
कई बार कहा भी उन्होंने बातों बातों में पर बहू का कहना था, मुझे भी तो यही छुट्टियां मिलती हैं जाने को, जबकि उसका मायका पास होने के कारण जो मिल ही लेती थी सभी से।
पर चूंकि वह बेटे के सामने बात नमक मिर्च लगाकर इस तरह से पेश करती कि पूरे घर का माहौल खराब हो जाता तो सुषमा जी अब चुप ही रहती।तिल का ताड़ बनाने में तो माहिर थी मोहिनी, तो सुषमा जी ने ज्यादा कुछ कहना ही छोड़ दिया था।
वैसे भी बहू बड़े घर का अपना दंभ और तल्ख़ मिजाज़ लेकर ही घर में दाखिल हुई थी। मोहिनी अपने घर जाकर भी माता पिता से ही ज्यादा लगाव रखती,उसे कम ही मतलब था अपनी भाभी से, उस से उसे शिकायतें ही रहती थी।यही हाल उसका ननद के साथ था।
पर इस बार छुट्टियों से पहले ही पूछ रही थी मम्मीजी कृति दीदी कब आएंगी?एक बार को तो सुषमा जी को लगा ये जेठ में मेघा कहां से बरसे, फिर कुछ सोचकर बस यही कहकर चुप हो गई कि जून के पहले हफ्ते में ही आने की कह रही थी।
मोहिनी बोली ठीक है फिर मैं अपनी मम्मी को बता देती हूं कि हम उनके आने के 2 दिन बाद दूसरे हफ्ते में आ जाएंगे। सुषमा जी को लगा ये तो वही ठाक के तीन पात हैं,
बेटी तो क्योंकि 1 हफ्ते से ज्यादा कभी रुकती नहीं है। सुषमा जी बोली हां तुम भी जून के पहले दो हफ्ते रह आना क्योंकि कृति तो असल में आखिरी के दो हफ्तों में आने वाली थी। यह कह सुषमा जी मन ही मन मुस्कुरा उठी, बहू तुम डाल डाल तो मैं पात पात, आखिर सास हूं तुम्हारी।
लेखिका
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)