नई पौध – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

कुछ दिनों पहले सीमा की बेटी भव्या की दसवीं का परिणाम आया था। भव्या ने विद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया था। इसी खुशी में भव्या का मन रखते हुए सीमा ने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों को पार्टी के लिए आमंत्रित किया गया था। 

“चाँदनी, कल घर में दावत है तो तुम्हें रात नौ बजे तक रुकना होगा। इसके लिए अलग से पैसे दूंगी।” सीमा अपनी गृह सहायिका चाँदनी से कह रही थी। चाँदनी खुशी खुशी हामी भरती हुई अपने काम में लग गई थी।

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सुबह से ही सीमा के साथ चाँदनी दावत की तैयारी में पूरे मनोयोग से लगी हुई थी। सारी तैयारियाँ हो गई थी। शाम के छः बजते ही आमंत्रित अतिथियों का आगमन होने लगा था। डांस, गीत, मज़ाक, मस्ती के साथ पार्टी चल रही थी। बच्चों के शोर के मध्य साढ़े आठ बजते बजते केक कटिंग भी किया गया। अब चाँदनी रह रह कर समय देख रही थी और मन ही मन चाह रही थी कि सबका खाना हो जाए तो वो भी घर जा सके।

सीमा भी उसकी बेसब्री पढ़ रही थी और जब सीमा से नहीं रहा गया तो सीमा चाँदनी के पास आकर पूछती है, “चाँदनी कुछ परेशान लग रही हो। सब ठीक है ना.. बार बार घड़ी देख रही हो। तुम्हारे चेहरे पर चिंता की रेखाएँ भी स्पष्ट दिख रही हैं।” 

“वो दीदी… मैंने अपनी बेटी रीता से पहले ही कहा हुआ था कि आज बाहर ढ़ाबे पर रात का खाना खाएंगे और आइसक्रीम भी खिलाऊंगी। आपने पार्टी के लिए बोला तो मैंने सोचा साढ़े नौ तक घर पहुँच जाऊँगी तो यहाँ भी सम्भल जाएगा और मेरी बेटी भी नाराज नहीं होगी।” सीमा की बात का जवाब देती हुई चाँदनी हिचकती हुई कहती है।

“कुछ खास बात है क्या चाँदनी? रीता का जन्मदिन है क्या?” सीमा चाँदनी से फिर से पूछती है।

“नहीं दीदी.. उसने भी अपने स्कूल में दसवीं में प्रथम स्थान हासिल किया है। इसीलिए दोनों बच्चों की माँग थी कि बाहर खाना खाएंगे।” चाँदनी अपनी साड़ी के ऑंचल के एक कोने को अपनी उंगली में लपेटती हुई कहती है।

ओह माफ करना सीमा, मेरे तो दिमाग से ही निकल गया था कि तुम्हारी बेटी भी दसवीं में है और मिठाई खिलाने के डर से तुमने भी बताना जरूरी नहीं समझा।” सीमा खुद पर थोड़ी दुखित हुई कहती है।

सीमा को प्रतियुत्तर देती चाँदनी जल्दी से कहती है, “नहीं नहीं दीदी.. ऐसा नहीं है”….

“ठीक है.. मैं कोशिश करती हूँ कि सब कुछ जल्दी निपट जाए और तुम घर समय से पहुँच सको, तब तक सलाद काट लो।” सीमा कहती हुई वहां से चली गई।

सारे बच्चे मस्ती कर रहे थे। बड़े बातें करने में लगे थे।

सीमा अपनी बेटी भव्या और उसके पापा को अलग बुला कर कुछ चर्चा करने के बाद अतिथियों और भव्या के दोस्तों को अटेंड करने लगती है। देखते देखते नौ बज गए। अभी तक रात का खाना प्रारंभ नहीं हुआ था। “आज बच्चे जरूर नाराज हो जाएंगे। अभी तो खाना भी नहीं हुआ है, क्या करूं। अब ऐसे में यहां छोड़ कर भी नहीं जा सकती।” अब चाँदनी के चेहरे पर भी झुंझलाहट साफ़ साफ़ देखी जा सकती थी।

अचानक चाँदनी को अपने बच्चों की आवाज़ सुनाई देती है। वो साड़ी से हाथ पोछती रसोई से बाहर जाने लगती है। “बहुत ज्यादा सोच रही हूं, इसीलिए भ्रम हो रहा है”.. सोचकर अपने कदम वापस ले लेती है। पंद्रह मिनट के बाद उसके दोनों बच्चे सुन्दर कपड़ों में रसोई में आकर “माँ” कहते हुए उससे लिपट गए।

चाँदनी उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ जाती है, “तुम दोनों यहाँ कैसे और ये कपड़े किसने दिए?” दोनों बच्चों को सीधा खड़ी करती चाँदनी पूछती है।

चलो बच्चों सबके साथ मस्ती करो। चाँदनी तुम भी बाहर चलो और रीता से केक कटिंग कराओ। सीमा रसोई में आती हुई कहती है।

“लेकिन दीदी आपने ये सब”…. बोलती हुई चाँदनी की ऑंखों में ऑंसू आ गए थे।

“एक तो मैंने गलती की कि तुमसे रीता का परिणाम नहीं पूछा और तुम्हें ये नहीं कहा कि पार्टी के लिए बच्चों को भी ले आना और मेरे साथ तुमने भी रीता का परिणाम बताना उचित नहीं समझा। ऐसे तो दुनिया भर की बातें बताती हो।” चाँदनी के कंधे पर हाथ रखती सीमा उसकी ऑंखों में देखती हुई कहती है।

“संकोच हो रहा था दीदी”… 

दोनों अभी गिले शिकवे कर ही रही थी कि भव्या रसोई में आकर कहती है, “आपलोग आइए ना.. तभी रीता केक काटेगी ना।”

“हाँ हाँ चलो.. अभी आते हैं।” सीमा कहती है।

“दीदी.. बच्चों के ये कपड़े”… चाँदनी बात अधूरी छोड़ कर सीमा की ओर देखने लगी।

ओफ्फो, कितने सवाल करोगी। बच्चों को लेने भव्या और भव्या के पापा गए थे तो बगल वाले मार्केट भी चले गए। छोड़ो ये बातें.. बच्चे इंतजार कर रहे हैं।” सीमा रसोई से बाहर आती हुई कहती है।

बहुत धूम धाम से पार्टी संपन्न होती है। सभी अपने अपने घरों की ओर रवाना हो गए।

“दीदी.. कैसे आप सब का धन्यवाद करुँ.. समझ नहीं आ रहा है।” चाँदनी दोनों बच्चे के खुशी से दमकते चेहरे देखकर भाव विभोर हो रही थी।

इसमें धन्यवाद कैसा चाँदनी। मैंने अपनी गलती की भरपाई ही किया, ये तो मुझे पहले ही करना चाहिए था। सीमा बात को समाप्त करने की चाह में कहती है।

“फिर भी दीदी भव्या बिटिया भी अपनी पार्टी और दोस्तों को छोड़कर साहब के साथ गईं।” चाँदनी भव्या के कमरे की ओर देखती हुई कहती है।

“ये तो नई पौध हैं चाँदन। इन्हें हम जिस ज्ञान से सीचेंगे, उसी तरह ये बढ़ेंगे।” सीमा भी उसी दिशा में देखती हुई कहती है।

“हमें अपने सारे नई पौध को उचित ज्ञान और मार्गदर्शन देना है। बच्चों की पढ़ाई के लिए जब भी किसी सहयोग की आवश्यकता हो, हमें बिना झिझक कहना।” सीमा आश्वासन देती हुई कहती है।

“रात बहुत हो गई है..अब चलती हूँ दीदी।” 

ठीक है, चलो हम पहुँचा आते हैं तुम तीनों को। रात में पैदल जाना सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं है और कल शाम में आना, दिन में आराम कर लेना।” चाँदनी से कहती हुई सीमा अपने पति की ओर देखती है।

“अपने अपने उपहार गाड़ी में तो रखो”, कहकर भव्या अपने उपहार में से कुछ उपहार चाँदनी के दोनों बच्चों को देने लगती है।

एक उचित दिशा में तैयार हो रहे नई पौध को देख सीमा के होंठों पर प्रसन्नता भरी मुस्कराहट आ गई।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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