करुणा खुद को विकट मानसिकता से निकालने का प्रयास कर रही थी । क्या आसान था यह? किसी बात की भी हद होती है । कितना कितना सहन किया था ।होश संभालने से लेकर आज तक ।क्या उसकी तकलीफें कभी खत्म नहीं होगी । चारों तरफ देखो लडकियों कितनी सहज जिंदगी जी रही है । माँ का प्यार ;पिता का दुलार ,भाई बहनों का साथ,पढाई लिखाई कहीं कुछ भी तो सामान्य नहीं था। कड़वी सच्चाई, जिसे याद करके रूह कांप जाती है ।
ट्रेन आगे बढ रही थी और शहर पीछे छूट रहा था और पीछे छूट रही थीं वह सारी धुंधली स्मृतियों, उसके जीवन की
अथाह कष्ट पहुंचाने वाली यादें जिनसे दूर जा रही थी वह
चित्र उभर रहे थे एक एक कर के।,,,,,
छोटा सी पाँच साल की बच्ची
अजीब सा वातावरण , माँ संध्या पिता के असहनीय ज़ुल्मों से पीडित चली आईं घर छोड़ कर, नर्स बन कर पैरों पर खडी हो गई थीं ।उनकी सुन्दरता से प्रभावित बहुत बडे उद्योगपति रमा कान्त जी ले गये दूसरी पत्नी बनाकर , अलग घर में ।छोटी सी अवांछित करुणा कैसा उपेक्षित जीवन जीती रही।
देख रही थी माँ का दोहरा जीवन, दिन में सफेद साड़ी में लिपटी पूजाघर में पश्चाताप के आँसू बहाती माँ, रात को रमाकान्तजी की इच्छानुसार शराब में डूबी क्लबों मे उनका साथ देती माँ ।
उसकी कुण्ठा, उसकी वेदना
झुंझलाहट झेलती मासूम करुणा।
ज्यादा दिन नहीं झेल पाई
ये जिंदगी संध्या, दस वर्ष की करुणा के पास चार वर्ष की छोटी बहन जया को छोड़ कर मुक्ति पा ली अपने जीवन से ।
फिर जया के साथ नौकरों के हाथ पल रही करुणा ।
जैसे तैसे समय कट रहा था , तभी जीवन में थोडी सी खुशी बन कर आया उसकी सहेली का भाई नरेन्द्र जो
मेडिकल की पढाई कर रहा था।
वायदा किया था पढ़ाई पूरी कर विवाह करेगा उसके साथ।
उसके दादा जी रमाकान्तजी के मित्र थे उस दिन उन्होंने उनको बुलाया और करुणा को सामने बिठाकर बोले ” यह लड़की अस्पताल जाकर एबार्शन करवा कर आई है आप इसके साथ करेंगे अपने पोते का विवाह?”
” कभी नहीं ।मेरे जीते जी तो बिलकुल नही ।”
उनके जाने के बाद वे करुणा से बोले ” अगर तुम चाहो तो मै तुम्हे आराम से जिंदगी भर यहाँ रख सकता हूँ ।”
उनका घृणित आशय समझ
करुणा तल्खी से बोली’ कोई बेटी
पिता के घर जिंदगी भर कैसे रह सकती है?”
ठीक है कहीँ भी झोंक दूँगा तुझे जो मिलेगा।”गुस्से में कहा उन्होंने ।
करुणा के सब्र का बांध टूट गया था । नरेन्द्र और उसके प्यार को हमेशा के लिये खो देने का अपार दुख, रमाकान्तजी का घृणित व्यवहार, आखिर कब तक कितना सहन करती?
आत्म मंथन के बाद पहुँच गई एक निर्णय पर ।
आज वह अपनी एक अभिन्न मित्र के साथ जा रही थी , मिशनरियों के होस्टल में, जिन्होंने
वायदा किया उसकी जिंदगी को
नई दिशा देने का। छोड़ कर जंजीरों से जकड़ी सामाजिक मान्यतायें ,बंधन , ज़माने की चर्चाओं की परवाह एक नई राह पर नई दिशा में, जो कुछ भी जैसा भी भविष्य मिलेगा इस से तो बेहतर ही होगा यह विचार लिये चल पडी नई दिशा में ।
एक सकूँ की साँस ली उसने इस पुरानी नरक तुल्य जिंदगी से छुटकारा पाने के बाद और नये जीवन ,की ओर कदम बढाने के बाद।
सुधा शर्मा
मौलिक स्वरचित