नफ़रत की दीवार – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

सेठ भगवान दास जी का आढ़त का व्यापार है । वह अनाज के थोक विक्रेता हैं । वह बहुत ज्यादा सेठ नहीं है । मध्यम वर्गीय सेठ है । सेठ तो उनके दादाजी ने उनका सरनेम दिया हुआ था । भगवान दास जी की पत्नी सरला जी व्यवहार कुशल और सामाजिक महिला है । उन दोनों के तीन बच्चे हैं दो बेटे एक बेटी ।

तीनों बच्चों की शादियां हो गई हैं । बड़ा बेटा अमन छोटा बेटा रमन दोनों विदेश में अपने-अपने परिवार के साथ रहते हैं । बेटी की ससुराल सूरत में है । उनका बहुत बड़ा कपड़ों का व्यापार है । तीनों बच्चे अपने-अपने परिवार में खुशहाल हैं । सरला जी के मधुर व्यवहार से आने जाने वालों के मान सम्मान में रिश्तेदारी में सब में हंसते मुस्कुराते दिन व्यतीत होता पता नही चलता है ।

कभी किसी जरूरतमंदों की हेल्प अपने घरेलू हेल्पर से करवा देती हैं ।

सेठ जी का सारा दुकान का काम उसकी देखरेख हिसाब किताब लेना-देना सब काम कृष्णा जी ही करते हैं । वह बहुत मेहनती ईमानदार व्यक्ति हैं कृष्णा जी की पत्नी गांव में रहती हैं ।

उन दोनों का एक बेटा है हरसू वह वहीं रहकर अपनी पढ़ाई करता है ।वह पढ़ाई में ठीक-ठाक है । उसने गांव के स्कूल से ही दसवीं क्लास करके अपने पिताजी से कहा मेरा आगे पढ़ने का मन नहीं है । मैं तो तुम्हारी तरह ही काम करना चाहता हूं । कृष्णा जी ने उसको बहुत समझाया देख पढ़ाई अच्छी करके सेठ जी के दोनों बेटे विदेश में खूब पैसे वाले हो गए हैं । तू मेरी तरह काम करके इतना नहीं कर पाएगा । जिससे आराम की जिंदगी जी सके । मुझे ज्यादा पैसा नहीं कमाना है  बापू । तुम्हारी तरह मेहनत करके उतना ही कमाना है । सुखपूर्वक अपने सब का जीवन खुशियों से भरा रहे 

हरसू अपने पिताजी के साथ सेठ जी की दुकान में काम करता रहता है । धीरे-धीरे उसने अपने पिता की तरह अच्छा व्यावहारिक हर चीजों का ज्ञान प्राप्त कर लिया ।

जब एक दिन छुट्टी में दोनों गांव गए तो उसकी मां शारदा ने अपने पति से हरसू की शादी के बारे में बात की । वह बोले ठीक है अगली छुट्टी में आएंगे तब कोई लड़की तुम्हारी निगाह में देख कर रखना । जब अगली बार आए तो शारदा जी ने बताया अपने गांव के हुए राम प्रसाद जी हैं । उनकी लड़की मुझे बहुत पसंद है । आप बात करके देखो । दूसरे दिन दोनों पति-पत्नी राम प्रसाद जी के घर गए । उन दोनों को देखकर वह सच में पड़ गए क्या बात है ।

तब कृष्णा जी ने बात शुरू की । हम आपकी बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं । राम प्रसाद जी ने कहा यह तो हमारी बेटी का सौभाग्य है । पर हम दान दहेज नहीं दे पाएंगे ।कृष्णा जी ने कहा हमें कुछ नहीं चाहिए । हमें तो पारिवारिक और संस्कारिक लड़की चाहिए । दोनों परिवारों की राजा मंदी से शादी पक्की हो गई ।अगले हफ्ते हरसू की शादी रानी से हो गई ।

अब कृष्णा जी की उम्र भी शारीरिक दस्तक दे रही थी  उनसे ज्यादा काम नहीं हो पा रहा था । जबकि हरसू बहुत काम संभालता था । फिर एक दिन काम करते-करते कृष्णा जी को चक्कर आ गया । वह गिर गए । हरसू ने उनको डॉक्टर को दिखा दिया ।पता चला बीपी के कारण तबीयत खराब हो गई थी । डॉक्टर साहब ने कहा चिंता की कोई बात नहीं है ।

दवाई से ठीक हो जाएंगे । पर ज्यादा काम ना करें । हरसू सेठ जी का सारा काम अच्छे से करने लगा था । अब उसने अपने पिताजी को गांव में रहने को कहा । वह अकेला सारा काम संभालता । सेठ जी भी उसे खुश रहते । निस्वार्थ भाव से दुकान का सारा काम करता । एक दिन उसकी पत्नी रानी का फोन आया । उसने कहा पिताजी की तबीयत खराब है ।

यह सुन हरसू सेठ जी से छुट्टी कहकर गांव आया । पिताजी को देख तुरंत शहर लेकर आया । डॉक्टर को दिखाया । उन्होंने बताया इलाज थोड़ा लंबा चलेगा । हरसु ने सेठ जी को सारी कंडीशन बताकर एक हफ्ते की छुट्टी ले ली । अच्छे से पिताजी का इलाज करवाया । हरसू की सारी जमा पूंजी खत्म हो गई ।

उसने सेठ जी से एडवांस में अपनी तनख्वाह के पैसे भी ले लिए । डॉक्टर साहब ने कहा अब काफी ठीक है । अब घर ले जाओ । अब पैसों की और जरूरत पड़ी तो सेठ जी से पैसों के लिए कहा । उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया हरसू ने कहा मैं आपके पैसे लौटा दूंगा गांव की जमीन बेचकर । परंतु वह नहीं माने । अब हरसू के दिल दिमाग में सेठ जी के प्रति नफरत की दीवार खड़ी हो गई । उसने गांव के किसी किसान भाई से पैसे लेकर पिताजी का पूरा इलाज होने पर अपने गांव आ गया ।

गांव में उसने मन लगाकर अपनी जमीन पर अच्छे से खेती करना शुरू कर दिया । उसकी पत्नी रानी भी पति के साथ काम में लगी रहती । दोनों मिलकर खूब मेहनत करते । सेठ जी के पैसे भी लौटा दिए । गांव की ताजी आबो हवा से अब पिताजी कृष्णा जी भी ठीक हो गए थे ।

सेठ जी का कई बार फोन आता हरसू को बुलाने के लिए । उसके मन में सेठ जी के प्रति नफरत की जो दीवार खड़ी हो गई थी वह नहीं टूटी । चारों लोग खुशी-खुशी गांव में रह रहे थे । हरसू के मन में सेठ जी के प्रति ऐसा नफरत का पेड़ बनकर खड़ा हो गया जिसकी जड़े उसके मन और मस्तिष्क पर पूरी तरह फैल चुकी थी ।

जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन निस्वार्थ भाव और लगन से सेठ जी के व्यापार में लगा दिया । उस आदमी के इलाज के लिए पैसे देने को मना कर दिया ।

लेखिका

सरोजनी सक्सेना

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