आज रमेश फूट-फूट कर रो रहा था,-बडे पापा, मैंने आपको क्या समझा और आप?
क्या हुआ रमेश? क्यों रो रहे हो,-बडे पापा सिर पर हाथ फेरते हुए बोले।
पापा आपने मेरी मां,पापा मेरे भाई को नहीं मारा था?-वह बिलखते हुए पूछा था।
अरे वे मेरे परिवार थे, तुम्हारे पापा मेरा छोटा भाई था?
भला मैं क्यों ऐसा करूंगा।-वे हैरानी से पूछे थे।
“दौलत के लिए “-वह सुबकने लगा था।
कौन सी दौलत? मैं खुद कमाता था।-वे सहज भाव से बोले।
अरे वह घटना एक हादसा थी जिसमें तुम्हारे पापा, मां,तुम्हारी ताई,बड़ी बहन सभी गुजर गये।वह शादी का अवसर था जिसमें सभी गये थे। अचानक आकाशीय बिजली गिरी और सब खत्म हो गया।उसी में तेरी ताई और चचेरी बहन टुनिया भी नहीं रही।
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तू एक साल का अबोध था।जबकि तेरी मौसी शादीशुदा और एक बेटी की मां थी। उनके पति भी खत्म हो गये थे। पूरा परिवार खत्म हो गया था। मैं किसके सहारे जीता और तुम्हें कैसे पालता?उधर तुम्हारी मौसी बेसहारा और बदनाम थी, परिणाम मैंने चादर डाल दिया।तुम दोनों की परवरिश की।
हम दोनों दुखी पति पत्नी दोनों बच्चों के साथ इलाहाबाद आ गये। यहां अल्लाह पुर में तीस साल से डेयरी चलाना, मजदूरी करना,सारे काम हमने किये।मगर परिणाम सामने है।आज तुम डाक्टर हो वही तुम्हारी बहन की शादी भी अच्छे घर में हुई।-वे रोते हुए पूरी बात बता रहे थे।
“अच्छा,तुमने इसी कारण अपनी शादी खुद से की और हमें खबर तक नहीं किया?-
हां पापा-,वह रोता हुआ बोला था।
वैसे ठीक किया आपने, हालात ऐसे ही थे और तुम अबोध।तुम्हारा परिवार खत्म हो गया,जिसने जो कहा ,तुमने मान लिया।
आज तुम एक श्रेष्ठ डाक्टर हो, अच्छे बुरे की पहचान है।तेरी बहन भी शादीशुदा सुखी जीवन व्यतीत कर रही है, और हमें क्या चाहिए -वे समझाते हुए बोले।
‘ताऊजी आपने हमारा पालन-पोषण किया,पढ़ाई कराकर डाक्टर बनाया, हमारे लिए मौसी से शादी की।-वह रो रहा था।
यह मेरा फ़र्ज़ था,ताऊ औलाद का पालन करता है मैंने किया,तेरी बहन का भी पालन पोषण किया,सभी मेरा कर्तव्य था।सो मैंने किया।
मगर मैं अभागा यह समझता रहा कि आपने मौसी से शादी हेतु परिवार खत्म किया-वह बोलते हुए सुबक रहा था।
बेटा सच यह है कि मेरा परिवार हादसे में खत्म हो गया था सो समाज के जोर देने पर मुझे चादर डालनी पड़ती।-अबकी बार मौसी मां बोली।
एक भी रूपया कोई छोड़ नहीं गया था।दिन रात काम कर पैसे जोड़े और पूरा परिवार चलाया।
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आपने मुझसे झूठ क्यों कहा कि ये पैसे पापा ने आपको दिए हैं -वह आश्चर्य से पूछा।
ताकि तुम्हारी पढ़ाई खराब न हो, तुम मन से पढो।कोई एहसान की भावना न रहे।
वैसे कितने ख़र्च हुए,—
हमने कोई हिसाब नहीं रखा। तुम्हें पढ़ाना मेरा काम था जो मैंने किया।तेरी बहन की शादी कराना फ़र्ज़ था ,वह भी किया।-अबकी मां की जबाब से यह पानी पानी हो गया था।#नफरत की दीवार ढह गयी थी।आज यह पत्नी के साथ ताऊजी का पांव पकड़े रो रहा था।
ताऊजी हमें माफ करो।
अरे मुझे रूलायेगा क्या?जा
अपना काम कर कहते आशीष से दोनों के सिर पर हाथ फेरने लगे और पांच पांच सौ के दो नोट दोनों के हाथ में रख दिए।
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
रचना मौलिक और अप्रकाशित