आज मोहन जी अपने बड़े भाई गोपाल जी के गले लगकर रो पड़े। फिर भाभी के भी पैर छूकर आशीर्वाद लिया। अपने भतीजों को भी गले लगाया।आज इतने बरसों बाद सबको सामने देख कर मोहन जी के आंसू नहीं रूक रहे हैं। कुछ बोलना चाह रहे थे लेकिन गला बार बार रूंध जा रहा था।मन में खुशी तो थी अपने बड़े भाई के परिवार को सामने देखकर पर कुछ कह नहीं पा रहे थे। लेकिन एक पश्चाताप भी था कि इतने बरसों से एक नफ़रत की दीवार हम दोनों भाइयों के बीच में बेमतलब ही खड़ी थी ।
और कोशिश भी तो नहीं की गई थी दोनों तरफ से उस दीवार को गिराने की ।उस दीवार को आज गिरता देखकर मोहन जी और गोपाल जी के भी आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था। बड़ा कमजोर है गया है ये तू तो मोहन अपना ख्याल नहीं रखा ठीक से , हां भइया।उस बात को छोड़कर इतने में मोहन जी बोले भाभी आज आपके हाथ का खाना खाना है मुझे,
लेकिन तुम्हें तो सब खाने पीने को मना है न देवर जी।हां मना किया है सब डाक्टर ने लेकिन इतना अच्छा मौका अब मैं जाने नहीं देना चाहता। मरना तो है ही एक दिन मेरी जो स्थिति है उसमें मैं ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहूंगा । इसलिए तो कह रहा हूं भाभी अपने हाथ की वो बैंगन की सब्जी बना कर खिला दो ।आज मैं फिर से पच्चीस साल पहले की दुनिया में चला जाना चाहता हूं जब हम सब लोग साथ साथ रहते थे ।
दरअसल राम प्रताप जी का बड़ा परिवार था। जिसमें उनकी पत्नी जमुना दो बेटे मोहन और गोपाल और चार बेटियां थीं। सबकुछ बढ़िया से घर में चल रहा था । समस्या तो तब आने लगी जब छोटे बेटे मोहन का विवाह हुआ। मोहन को ससुराल से काफी अच्छा दहेज मिला जिसमें उस जमाने में मोटरसाइकिल ,फ्रिज ,और गैस का चूल्हा मय सिलिंडर से आया।ये तो आधुनिक समय की चीजें थीं इससे पहले ये सब सामान घर में नहीं था और इसके साथ ही बर्तन बहुत सारे कपड़े और सोफे और भी जरूरत का सामान था।
लेकिन उसमें फ्रिज ,गैस,और मोटरसाइकिल बहुत मायने रखती थी ।उस समय ऐसी चीजें लोगों के घर कम हुआ करती थी । सभी लोगों के लिए ये बहुत बड़ी बात थी कि घर में गैस आ गई और फ्रिज आ गया।और साइकिल से चलने वालों को अचानक से मोटरसाइकिल मिल गई। सभी सामान को घर में सभी के इस्तेमाल के लिए रख दिया गया था।गैस भी रसोई में रख दी गई कि इसे भी इस्तेमाल किया जाए और जरूरत के मुताबिक कोयलें का भी इस्तेमाल हो।
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मोहन के बड़े भाई गोपाल के तीन बच्चे थे । सबसे बड़ा बेटा राजू करीब सोलह साल का था।घर में मोटरसाइकिल आने से वो सबसे ज्यादा खुश था। दिनभर चाचा से चाभी लेकर इधर उधर दौड़ाता रहता था । हां आती नहीं थी चलाने तो सीख लिया इस उम्र में सबकुछ आसानी से सीखा जा सकता है।और घर के और छोटे बच्चे फ्रिज से बर्फ निकाल निकाल कर खूब ठंडा शरबत बना कर पीते रहते । बेटियों के बच्चे आते तो वो भी साथ मिलकर खूब मस्ती करते।गैस भी दिनभर इस्तेमाल होती । कोयलें की भट्टी छोड़कर अब गैस पर खाना बनाना आसान लग रहा था।
मोहन की पत्नी सीमा को ये सब अच्छा नहीं लगता था उसको लगता ये सब हमारा सामान है मेरे मायके से मिला है और सब लोग इस्तेमाल करते रहते हैं ।उसको बड़ा गुस्सा आता था जब बड़ी भाभी के बच्चे बार बार फ्रिज खोलकर दिनभर बर्फ निकालते तो । ऐसे ही एक दिन दोनों भतीजे खेलते खेलते
फ्रिज के दरवाजे से जा टकराये तो सीमा ने गुस्से में भतीजे को एक थप्पड़ मार दिया और बोली पहले कभी देखा है फ्रिज ।ये हमारा फ्रिज है पता है न तुम लोगों को।जाहिल कहीं के ।इतने में सास जमुना वहां आ गई और वो बोली ये क्या बहू ऐसे बच्चों से बर्ताव किया जाता है ।इस घर में तेरा मेरा कुछ भी नहीं है जो सामान आ गया वो सबका है। लेकिन मां जी मेरे मायके से आया है ये सब तो ये सिर्फ मेरा है इतना कहकर सीमा अपने कमरे में चली गई।
दूसरे दिन फिर सीमा ने बड़ी भाभी से कहा क्या भाभी आप तो सारा काम गैस पर ही करने लगीं पहले तो कोयलें की भट्टी लगाती थी अब भी लगाया करिए न , थोड़ी गैस मेरे लिए भी रहने दिया करिए मुझे आदत नहीं है भट्टी पर काम करने की । इसी तरह रोज ही कुछ न कुछ बात लेकर सीमा घर में बखेड़ा खड़ा करती रहती।अब घर में तनाव का माहौल बनता जा रहा था।जमुना और राम प्रताप जी भी परेशान रहने लगे ।
शादी ब्याह सबके निपट चुके थे । बेटियां अपने ससुराल की हो चुकी थी।राम प्रताप के बड़े बेटे गोपाल तो घर के बिजनेस में हाथ बंटाते थे लेकिन मोहन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी तो उनका मन बिजनेस में नहीं लगता था वो ज्यादा समय घर पर रहते थे । नौकरी इस लिए नहीं करने दिया
रामप्रताप ने कि घर का इतना बड़ा बिजनेस है उसे ही संभालो।और जबसे मोहन की शादी हुई तब से तो और भी बिजनेस से मुंह मोड़ लिया था ।इस बीच मोहन जी को भी एक बेटा है गया और घर में खींच तान मंच गई । मोहन की पत्नी सीमा मोहन जी को अलग रहने के लिए बाध्य करने लगीं कहती चलो कहीं बाहर नौकरी करों और घर का बंटवारा करवा लो जो मिलेगा उसको बेचकर हम कहीं बाहर सिफ्ट हो जायेंगे।
घर में दो मकान थे रामप्रताप ने पहले ही तय कर रखा था कि एक मकान बड़े को और एक मकान छोटे को दे देंगे।एक दिन जमुना जी ने कहा पति से कि देखिए जी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है अपने सामने ही मकान का बंटवारा कर देते हैं छोटी बहू के लछंन हमें ठीक न लग रहे हैं।अलग तो रहना ही है आगे दोनों साथ-साथ रह पाएंगे ऐसा मुझे लगता नहीं है। रामप्रताप जी बोले हां तुम सही कह रही हो। दोनों मकान एक एक दोनों के नाम करवा दिया वकील बुलाकर।और बिजनेस तुम दोनों साथ-साथ ही करोगे ।यह बात केवल पत्नी जमुना को ही मालूम थी ।और एक दिन अचानक से रामप्रताप जी के सीने में दर्द उठा और हदयाघात से उनकी मौत हो गई।
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रामप्रताप के जाने के बाद घर का माहौल सीमा की वजह से बिगड़ने लगा क्योंकि रामप्रताप जी थोड़ा सख्त थे उनकी बात वो घर में चलती थी लेकिन अब तो वो रहे नहीं।घर में रोज ही देवरानी जेठानी में तू तू मैं मैं होने लगी ।आज तो हद ही गई सीमा ने गैस का चूल्हा उठाकर अपने कमरे में रख लिया।जब ये बात जमुना को पता लगीं तो वो बहुत नाराज़ हुई लेकिन सीमा ने साफ शब्दों में कह दिया कि मांजी आप हमारा बंटवारा कर दें अब हम साथ नहीं रह सकतें । ठीक है बहूं जमुना ने पति द्वारा बनाए गए मकान के कागज दोनों बेटों को दे दिया ।
अब मोहन कहने लगा मांजी ये तो मकान का बंटवारा है और बिजनेस का क्या बंटवारा हो सकता है वो भी करिए।बेटा तुम दोनों भाई साथ साथ काम करो जो प्राफिट होगी उसका आधा आधा ले लो । तभी बीच में गोपाल आ गए कैसे बिजनेस का आधा आधा कर लें दिनभर मेहनत मैं करता हूं ये मोहन घर में आराम करता रहता है । बिजनेस का कोई बंटवारा नहीं होगा मोहन जितना काम करेगा उस हिसाब से पैसे उसको मिल जाएंगे।इस बात को लेकर दोनों भाइयों में मतभेद इतना बढ़ा कि छोटे भाई मोहन ने गोपाल की कालर पकड़ ली और मारपीट पर उतारू हो गए। जमुना जी बोली पिताजी के जाते ही तुम दोनों ने अपना रंग दिखा दिया।शांत हो जाओ तुम दोनों ऐ दिन देखने से पहले मैं मर क्यों नहीं गई।एक तो पति के जाने की वजह से जमुना जी वैसे ही दुखी थी और फिर बेटों का रवैया देखकर वो ऐसी बीमार पड़ी की फिर ना उठ सकी ।
अब दोनों बेटों का खाना अलग अलग बनने लगा । मोहन बड़े भाई से नफ़रत पाल कर बैठे रहे बोलचाल बंद हो गई । मां-पिता के न रहने पर मोहन जी ने अपने हिस्से का मकान बेचकर सीमा के मायके कानपुर में बस गए आकर। फिर कभी वापस लौटकर न कभी बड़े भाई से मिलने आए न अपने शहर आए और नहीं भतीजों की शादी ब्याह में आए । हां गोपाल जी ने भी कभी शादी ब्याह में नहीं बुलाया और न उन्होंने ने ही छोटे भाई से मिलने की कोशिश की ।इस तरह एक नफ़रत की पक्की दीवार दोनों भाइयों के बीच खड़ी हो गई।
पच्चीस साल हो गया मोहन जी को अपना गृहनगर छोड़े हुए । अ ब मोहन जी बीमार है दोनों किडनी खराब हो चुकी है । डायलिसिस पर जिंदा है । उम्र के ा
आखिरी पड़ाव पर है मोहन जी की उम्र 73 हो गई है और गोपाल जी भी 77 के हो गए हैं लेकिन गोपाल जी शरीर से स्वस्थ हैं । हां बड़ी भाभी का कैंसर का आपरेशन हो चुका है ।अब मोहन जी डायलिसिस पर आ गए हैं कुछ करने लायक नहीं है बस लेटे रहते हैं ।अब मस्तिष्क में पुराने रिश्ते, पुराने लोग और अपनी जन्म स्थली शिद्दत से याद आ रही है ।सबसे एक बार मिलने की इच्छा बलवती हो रही है ।आज मोहन की बहनों ने बड़े भाई गोपाल को खबर दी कि भइया छोटे भाई मोहन की हालत बहुत नाज़ुक है आप लोगों को ब बहुत याद कर रहे हैं ।एक बार मिलने की इच्छा है ,सारे गिले-शिकवे छोड़कर मिल आइए भइया।गिरा दीजिए इस नफरत की दीवार को। छोटे भाई बस कुछ दिन के ही मेहमान है एक बार आपसे मिलना चाहते हैं ।
बहन के बहुत कहने पर बड़े भाई गोपाल जी राजी हुए तो बोले मैं अकेले चला जाता हूं तो बहन ने कहा नहीं भाभी भतीजों सबसे मिलना है उनको ।बहन के बहुत कहने पर गोपाल जी ने एक गाड़ी की और सबको लेकर मोहन से मिलने गए। आखिर पच्चीस साल से खड़ी नफरत की दीवार आज गिर गई।
दोस्तों खून के रिश्तों में बहुत मजबूती होती है ।चाहे कितना ही वक्त बीत जाए पर मिलते ज़रूर है ।और ये खून के रिश्ते फिर एक हो जाते हैं ।जब नफरत की दीवार को एक दिन गिरना ही है तो इस दीवार को इतनी ऊंची उठने ही न दे कि गिराने में इतनी देर लगे नफरत में यदि लडाई झगडे हो भी गए हैं तो समय रहते ही समाप्त कर दें ज्यादा लम्बी न खींचे ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
10 अप्रैल