नफरत की दीवार – विनीता महक गोण्डवी : Moral Stories in Hindi

सुबह-सुबह मोहल्ले में श्रीवास्तव जी के घर से रोने की आवाज आ रही थी। एक साल पहले ही श्रीवास्तव अंकल ने मकान मेरे मोहल्ले के दूसरी तरफ खरीदा था। मन में बड़ी घबराहट हो रही थी। तभी मेरी कामवाली आई ,तो मैंने उससे पूछा क्या हुआ सरोज….? क्योंकि सरोज श्रीवास्तव अंकल के घर भी  काम करती थी

इसलिए पूछा। सरोज के चेहरे पर भी उदासी थी ।वो बोली …..भाभी अंकल अब नहीं रहे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं…! मैंने सरोज से कहा….. तू काम कर ,मैं अभी होकर आती हूं। सरोज ने कहा  … ठीक है भाभी और मैं श्रीवास्तव अंकल के घर की तरफ चल पड़ी। घर वाले दहाड़ मार के रो रहे थे।

कुछ औरतें कोने में बैठकर कानाफूसी कर रही थी। वो बातें  मैने भी सुनी। देखो कैसे बेटा बहू है कि बाप के मरने पर भी नहीं आए। मुझे अजीब सा लगा ।ऐसे कैसे हो सकता है। लोग तो ऐसे मौके पर दुश्मन के घर भी चले जाते हैं फिर श्रीवास्तव अंकल का बेटा क्यों नहीं आया। मन में अजीब सी जिज्ञासा हो रही थी। आखिर ऐसा क्या हुआ

जो मां-बाप और बेटे के बीच इतनी नफरत की दीवार खड़ी हो गई। यही सोचते सोचते मैं घर पहुंची ।अभी सरोज काम कर रही थी। मैंने सरोज से पूछा…. सरोज वहां औरतें बात कर रही थी कि अंकल आंटी से उनके बेटे की नहीं बनती है और उनका बेटा ऐसे मौके पर भी नहीं आया ।क्या बात है…? तुमसे तो आंटी की अच्छी बनती है।

सरोज ने कहा….हां भाभी उनके बेटा बहू उनसे कोई रिश्ता नहीं रखते। मैंने कहा….क्यों…?  सरोज थोड़ी सी हिचकिचाई ….मैंने कहा मैं किसी से नहीं कहूंगी।बस सुनकर दुख  हुआ इसलिए पूछ रही हूं। सरोज ने कहा….. पहले अंकल आंटी अपने बेटे के साथ ही रहते थे परंतु बेटे बहू का व्यवहार उन दोनों के प्रति ठीक नहीं था

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आए दिन बहू उन्हें ताने देती यह अब हमारा मकान है। हम जैसा कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा ।हमारे सिवा तुम्हारा कौन है….? बेटियां तो अपने घर की हो गई हैं ।अंकल रिटायर हो गए थे अंकल आंटी बहू बेटे के आए दिन के तानों से परेशान हो गए थे ।एक दिन अंकल ने सोचा कि रोज-रोज की चिक चिक से अच्छा है। कि गांव में पड़ी हुई

खेती को बेच करके दूसरा मकान ले ले ।उन्होंने एक दिन अपने बेटे से बिना बताए वो दोनों गांव जाकर के गांव की खेती बेच आए और एक मकान ले लिया लेकिन मकान में रहते नहीं थे सोचा जब-तक चल रहा है चलने दे यही सोच के अभी बेटे बहू के पास ही रहते थे ।एक दिन अचानक बाथरूम में अंकल का पैर फिसल  गया और दुर्भाग्य से सिर में चोट लगने से

  वो कोमा में चले गए। लखनऊ के अस्पताल में भर्ती कराया गया। कई दिनों तक परिवर्तन नहीं होने पर डॉक्टरों ने कहा…. ऑपरेशन करना पड़ेगा ब्रेन का। आंटी और बेटियां लगातार अस्पताल में परेशान हो रही थी। उनका बेटा अस्पताल नहीं आया। ऑपरेशन का दिन भी आ गया अंकल का। ऑपरेशन थिएटर में ले जाने के कुछ घंटे बाद ही उनको थोड़ा सा होश आ गया

और फिर कुछ दिन हॉस्पिटल में और रहने के बाद। डॉक्टरों ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। आंटी अंकल को लेकर घर आ रही थी। अभी  बीच रास्ते में ही पहुंची थी आंटी अंकल, तभी बेटे ने फोन करके कहा…… कि मेरे घर पर आने की जरूरत नहीं है जो मकान आपने खरीदा है उसी मकान में आप जाइए।

आंटी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। आंटी को बहुत दुख हुआ लेकिन क्या करती। और वो नए वाले मकान में आ गई । कुछ दिनों बाद अंकल पूरी तरह से ठीक हो गए परंतु दुर्भाग्य तो पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था अंकल के गले में दर्द रहता था। वह खाना भी ठीक से नहीं खा पाते थे और कोई भी डॉक्टर कुछ भी बाता नहीं पा रहा था ।

कुछ दिनों बाद पता चला कि अंकल को गले का कैंसर हो गया है । अंकल का इलाज चलते-चलते आज अंकल इस दुनिया से चले गए। आज भी दोनों बहनों ने  और रिश्तेदारों ने उसको बहुत समझाया लेकिन उसने कहा……. कि हमारे लिए एक साल पहले ही मां बाप दोनों मर गए थे। हमारा उनसे कोई संबंध नहीं है। समय के साथ नफरत की दीवार इतनी गहरी हो गई थी की बेटा इस घड़ी भी अपने पिता का मुंह देखने के लिए तैयार नहीं था।

 स्वरचित एवं मौलिक 

विनीता महक गोण्डवी

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