न रहने पर ही इंसान की कीमत समझ में आती है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

कई दिनों बाद आज सरस्वती से मुलाकात हुई, हालांकि वो रहती हमारे मोहल्ले में ही है लेकिन मैं अपने बेटे के पास पूना गई थी चार महीने बाद लौटी हूं ।मिलते ही गले लगकर रोने लगी (दोस्ताना व्यवहार था मेरा सरस्वती के साथ) बड़ा अकेलापन हो गया है

जिंदगी में कोई आगे पीछे नहीं है, क्या करूं कुछ खाने पीने को भी बनाने का मन नहीं करता। मैंने समझाया , तसल्ली दी उनको यही तो जीवन है सरस्वती, जीवन मरण तो ईश्वर के हाथ में हैं दो लोग साथ में रहते हैं तो एक को तो पहले जाना ही है न ,अब अकेले हो गई हो तो क्या जीना तो पड़ेगा ही न । हां तुम सही कह रही हो सरस्वती बोली।

                    दरअसल सरस्वती जिसके पति की अभी छै महीने पहले मृत्यु हो गई थी।दो बेटियां और एक बेटा है । सरस्वती अपने नाम के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं है ।एक दर्जे की लड़ाका और बहश करने वाली औरत है । मोहल्ले में अपने व्यवहार की वजह से काफी चर्चा में रहती हैं ।

बहस करने में सबसे आगे सभी उनसे बचना चाहते हैं । हालांकि बाहर वो अपने व्यवहार को अच्छा रखने की कोशिश करती है लेकिन यदि कोई बात हो जाए तो वो बहस करने में पीछे नहीं रहती ।

वे अपने पति अरूण को भी कुछ नहीं समझती । रेलवे में र्गाड की नौकरी से रिटायर थे । पैसे रूपये की कोई कभी न थी । लेकिन पति को उंगलियों पर नचाती थी ।सब पैसा रूपया बैंक के कागजात वगैरह सब अपने कब्जे मे रखती थी।

दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी , बड़ी बेटी संयुक्त परिवार में थी तो वहां जाकर रहना नहीं हो सकता । छोटी बेटी बैंगलोर में है वो नौकरी करती है वहां भी कभी कभी ही जाना होता है।रहा बेटा तो उसने लव-मैरिज की है और बेटे की मां से पटती नहीं है । लव-मैरिज की वजह से बहूं को भी नहीं अपनाया इसलिए बहू बेटे का घर आना जाना नहीं है।तो उसके पास जाकर रहने की तो कोई बात ही नहीं है।

                 पति अरूण को उंगलियों पर नचाती थी । घर में मात्र दो लोग हैं लेकिन किसी भी समय घर से जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें आने लगती है ।झगड़ा होने लगता है ।आस पड़ोस के लोग घर से बाहर निकल कर देखने लगी जाते हैं ।

फिर पड़ोसी बोलते हैं दो लोग तो है घर में फिर पता नहीं क्यों दिनभर लड़ते रहते हैं । फिर गुस्से में आकर पति अरूण भी गाली गलौज करने लगते हैं । लेकिन रहते घर में ही है और कहां जाएंगे ।पति की एक न चलती आखिर में वो ही शांत हो जाते हैं ।

                         ऐसे ही एक दिन भयंकर लड़ाई झगडे की बीच अरूण जी चक्कर खाकर गिर गए डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि ब्रेन हैमरेज हो गया है अरूण जी के आधे हिस्से को लकवा मार गया था । रेलवे में भर्ती कराया हमने कहा अरे किसी अच्छे अस्पताल में ले जाओ तो जल्दी ठीक हो जाएंगे तो सरस्वती बोली अरे रेलवे हम लोगों को सुविधा देती है फ्री का इलाज होता है तो पैसा क्यों खर्च करो । फिर महीनों अरूण जी अस्पताल में पड़े रहे ।

            छुट्टी होकर घर आए तो चलने फिरने में असमर्थ हो गए । फिजियोथेरेपी से कुछ दिन बाद थोड़े ठीक हुए तो छड़ी लेकर चलने लगें । थोड़ा थोड़ा चल लेते थे । ऐसे में भी बाजार भेज देती थी सामान लाने को वो किसी तरह घसीटते हुए चले जाते थे

फिर एक दिन बाजार से लौटते समय फिर गिर पड़े अरूण जी तो कंधे की हड्डी टूट गई । फिर आपरेशन हुआ रेलवे में तो आपरेशन सक्सेज नहीं हुआ । अरूण जी को बराबर दर्द बना रहता था । इसी बीच छोटी बेटी के पास बैंगलोर गये तो बेटी ने अच्छे अस्पताल में दिखाया तो पता चला कि आपरेशन सही नहीं हुआ है

कंधे में जो प्लेट गली है वो जरा सी बाहर निकलीं है इसी से दर्द हो रहा है और वहां पर घाव भी बन रहा है बेचारे का फिर से आपरेशन हुआ । फिर ठीक हुए । हमने कहा प्राइवेट अस्पताल में दिखाओ तो जल्दी ठीक हो जाएंगे महीनों पड़े रहते हैं रेलवे के अस्पताल में तो सरस्वती बोली अरे वहां फ्री का इलाज होता है तो क्यों पैसा खर्च करना सुनकर मैं निरूतर हो गई ।

              अरूण जी  ठीक तो हो गए लेकिन पहले जैसे नहीं रह गए ।छड़ी के सहारे थोड़ा लंगड़ा कर चलते हैं ।अरूण जी काफी समझदार थे कोई कुछ कहता तो कहते क्या करूं अब इस उमर में कहा जाए।बस ऐसे ही लड़ते झगड़ते जिंदगी बीत जाएगी।और जब मैं नहीं रहूंगा तब उसको मेरी कीमत समझ में आएगी ।इस पड़ोस के सभी लोग कहते थे कि इतनी टेंशन में कैसे रहते हो यारों बस हंसकर टाल जाते थे अरूण जी।

              अरूण जी अपनी मर्जी से कोई काम नहीं कर सकते थे एक पैसा नहीं खर्च कर सकते थे । क्या खाना है क्या पीना है कैसे रहना है सबकुछ पर वर्चस्व सिर्फ सरस्वती का था। मां के इस तरह के व्यवहार से बेटा भी घर नहीं आता था।

            आज जब चार साल की बीमारी से जूझते हुए अरूण जी को    हार्ट अटैक आया तो वो सुबह उठे ही नहीं । डाक्टर को बुलाया तो पता लगा कि हार्ट अटैक से दो घंटे पहले यानी सुबह पांच बजे के आसपास उनकी मृत्यु हो गई ।

            अब बची सरस्वती अकेले बेटे को कोई मतलब नहीं है और बेटियों के पास जाकर रहना नहीं चाहती ।वो अपने घर की यहां आकर रह नहीं सकती । हां सरस्वती छोटी बेटी के पास जाकर रह सकती है लेकिन जिसका इस तरह का स्वभाव है

वो ज्यादा दिन कहीं नहीं रह सकती ।सो आज अपने अकेलेपन से घबराकर मुझसे शिकायत करने लगी। मैंने कहा सरस्वती जब भाई साहब थे तब तो तुमने उनकी कद्र नहीं की अब अकेले पन से घबरा रही हो ।कम से कम दो लोग थे

तो खाना पीना तो ढंग से हो जाता था।और भाई साहब बाहर भीतर का काम भी कर देते थे।और घर में थोड़ी रौनक भी रहती थी । हां तुम ठीक कह रही हो सरस्वती बोली । हमने उनकी कीमत नहीं समझी । क्यों इतना लडती थी हमने पूछा , अरे वो काम ही ऐसा करते थे कि हमें गुस्सा आ जाता था।अरूण जी तो ऐसे नहीं थे मैंने मन में सोचा। तुम्हारी ही लड़ने की आदत थी।

           फिर भी अब पछताने से क्या फायदा जबतक इंसान सामने होता है उसकी कीमत का अंदाजा हमें नहीं होता उसके न रहने पर ही उसकी कीमत समझ में आती है ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

19 जून

#कीमत 

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