मुट्ठी भर धूप – सरिता गर्ग ‘सरि’

Post Views: 2  बरसों बीत गए मेरे आँगन में धूप का कोई टुकड़ा नहीं उतरा। टूटी मेहराबों की किसी ने मरम्मत भी नहीं की। कंगूरे झड़ते रहे। कबूतरों की बीट से भरे  दालान गंधाते रहे और मेरी रूह उन गलियारों में अपना वजूद ढूँढती सदियों से किसी मुंडेर पर बैठी मुट्ठी भर धूप खोजती रही। … Continue reading मुट्ठी भर धूप – सरिता गर्ग ‘सरि’