मुन्नी बाई – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

      इतना सा गोबर लिपने का कितना लेगी मुन्नी बाई…..?

 200 पूरे ₹200 लूंगी …..

क्या ….200 …?

   बाप रे ….बस इतना सा गोबर लिपने का 200 ….!

    हां मालकिन दिवाली है ना ….साल में एक ही बार तो कमाने का मौका मिलता है ….अभी तो सभी लोग गोबर से जरूर लिपवायेगें…

फिर बाद में तो मैं ही ₹100 में ही लिपती हूं…!

जानती हूं मुन्नी बाई …अच्छी तरह जानती हूं …यही तो एक मौका है जब तुझे मुंह मांगे दाम मिल जाते हैं… वरना लोग थोड़े भी ऊपर नीचे बात करने से नहीं लिपवाने की धमकी भी तो देते हैं… मन ही मन आकृति सोच रही थी…।

   चल ठीक है लगा दे …आकृति और मुन्नी बाई की इस तरह की नोक झोंक चलती रहती थी….।

  आज दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते हुए आकृति पिछली दिवाली की याद कर मुस्कुरा रही थी …..इस बार दीपावली में उसका घर सुना रहा होगा , गोबर तो क्या .. एक दीया भी नहीं जला होगा …..हो सकता है अड़ोसी पड़ोसी शायद मानवता के नाते एकाद दीया जला दिए हो…!

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      धीरे से आकाश ने कहा …अरे कहां खो गई हो आकृति ….?

ठीक तो हो ना …..हां आकाश ठीक हूं…. वो आज दिवाली है ना तो बस पुरानी बातें और मुन्नी बाई की याद आ गई थी …..आकाश एक अभिभावक की भांति सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ….चिंता मत करो अब आगे सब ठीक रहेगा…।

     दरअसल महीने भर पहले ही आकृति ने सिर्फ थकान और टहलते वक्त सीने में दर्द का अनुभव होने पर डॉक्टर को दिखाया था …सारे टेस्ट करा लिये गये …..सब कुछ सामान्य था , डॉक्टर ने कुछ दवाइयां भी दी थी….. पर सब कुछ अनुमानतः ही चल रहा था….. इसके बावजूद भी समस्या कम नहीं हुई थी ….तब डॉक्टर ने एंजियोग्राफी की सलाह दी…!

        परिणाम स्वरुप पता चल पाया कि हार्ट में दो-दो ब्लॉकेज है जल्दी से जल्दी ऑपरेशन की जरूरत है बस फिर क्या था ….अभी तक एक भी दवाइयां नहीं …कोई बीमारी नहीं थी आकृति को ….और अब सीधे ओपन हार्ट सर्जरी …..बच्चों और पति के साथ देश के प्रतिष्ठित संस्थान गुड़गांव मेदांता में डॉक्टर त्रेहान के नेतृत्व में सफल ऑपरेशन हो गया ….इस बार दिवाली गुड़गांव में ही बीता …..।

     आज अपने घर सकुशल लौटने की खुशी आकृति के चेहरे पर साफ झलक रही थी ….घर के सामने कार से उतरते ही आकृति ने देखा ….

     अरे ये क्या ….सामने बगान एकदम साफ सुथरा गोबर से लिपा पुता …..दो चार दीए भी जले हुए रखे थे ….ये किसने किया… शायद अड़ोसी पड़ोसी ने त्योहार को मद्देनजर  रखते हुए इतना कर दिया होगा…। एक ठंडी सांस भरते हुए आकाश आकृति का हाथ पकड़ कर कार से उतार ही रहा था…

    तभी पड़ोसी ने आकर कहा… आ गई आंटी जी…. हां आ गई बेटा …

कैसी हैं आप ….तबीयत कैसी है …?

मैं ठीक हूं ….और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद …मेरे नहीं रहने के बाद भी आप लोगों ने मेरे घर को सुना नहीं रहने दिया ….दीए की ओर इशारा करते हुए आकृति ने कहा ….

      अरे नहीं आंटी जी…. वो मुन्नी बाई …..

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  आइए पहले अंदर आइए….फिर सारी बातें बताती हूं ….पलंग पर आकृति के लेटते ही पड़ोसी जो उम्र में आकृति से काफी छोटी थी.. अभी नई-नई आई थी उस कॉलोनी में ….वो आकृति को आंटी जी कहा करती थी …..उसने कहना शुरू किया….

    जानती है आंटी जी ….वो तो गोबर लगाने वाली मुन्नीबाई है ना …वो इस बार पूरे मोहल्ले में सबसे पहले आपके घर गोबर लगाई है….।

      उसे जैसे ही पता चला आप इस बार दिवाली में यहां नहीं रहेगी और आपकी तबीयत खराब है , आप ऑपरेशन कराने के लिए गई हैं …वो भावुक हो गई थी …बल्कि वो सामने वाली आंटी जी ने एक बार कहा भी…. पहले मेरे घर गोबर लीप दे सुख जाएगा … फिर रंगोली भी बनाना है…. अभी तो आकृति यहां है भी नहीं …..उनके घर बाद में लगा देना ….!

      पर मुन्नी बाई का कहना कि नहीं वो नहीं है तो क्या हुआ… हर साल के समान सबसे पहले उन्हीं के घर से गोबर लिपना शुरू करूंगी… फिर आंटी जी वो आपके घर गोबर लगायी और जाते वक्त मेरे घर में विशेष रूप से बोलने आई थी …

      मेरा घर दूर है इसलिए मैं रात में आ नहीं पाऊंगी नहीं तो मैं ही जला देती …..दो-चार दीए …..पर आप लोग मालकिन का घर सुना मत रहने दीजिएगा…. दो-चार दीया जरूर जला दीजिएगा ….!

     आकृति सोच रही थी.. बिना नोक झोंक के …बिना कोई मोल भाव किए… मुन्नी बाई तू किसी लालच के बिना और मेरे बोले बिना भी ….

      कितनी खूबसूरती से तूने अपना बड़ा दिल होने का परिचय दिया… अरे मैं तो दिल का ऑपरेशन करा के आ रही हूं ….पर तेरी उदारता , तेरा बड़ा दिल ने आज मेरे दिल को खुश कर दिया ….. कृतज्ञता भरी नजर से मुन्नी बाई का बेसब्री से इंतजार करती हुई आकृति की सोच और नजरिया पूरी तरह बदल चुके थे….।

      अब तो हर वर्ष दीपावली आते ही ये संस्मरण याद आ जाते हैं … और घर में दीए जलाने से पहले दिल में ” खुशियों का दीप ” जल जाता है ।

( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # खुशियों का दीप

   संध्या त्रिपाठी

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