भाभी…लगता है रात फिर कहा सुनी हुई है मम्मी जी और पापाजी में…सुबह सुबह पापाजी कहीं निकल गए हैं और मम्मीजी मुंह फुलाए बैठी हैं बालकनी में–छोटी बहू स्निग्धा बड़ी बहू नम्रता से कह रही थी।
तुम नई हो ना स्निग्धा थोड़े दिनों में इन सबकी आदत तुम्हें भी पड़ जाएगी… मैं तो तीन सालों से देख रही हूं… तुम्हें पता है इनकी हमेशा आपस में उलझते रहने की आदत से दोनों ने अपना कमरा भी अलग अलग कर लिया था… पापाजी देवरजी के साथ तुम्हारे वाले कमरे में रहते थे और मम्मीजी अपने कमरे में तो थोड़ी शांति रहती थी घर में…अब तीन महीने से दोनों को फिर से एक ही कमरा शेयर करना पड़ रहा है तो फिर से वैसे ही हालात हो गए हैं।
वही तो मैं सोच रही थी कि दोनों का कमरा तो एक है पर बेड अलग अलग क्यों है…पर भाभी इस उम्र में तो पति-पत्नी में प्यार बढ़ जाता है फिर मम्मीजी पापाजी की इस लड़ाई की वजह क्या है…?–स्निग्धा पूछ ही बैठी
मुझे तो अब तक जो समझ में आया है वो यही कि मम्मीजी और पापाजी पुरानी बातों को ही लेकर लड़ते रहते हैं…मसलन एक दिन पापाजी ने मम्मीजी से कहा।
सुनो ना तुम वो क्या कहते हैं….सूट या नाइटी क्यों नहीं पहनती..साड़ी संभालने में देखता हूं तुम उलझ जाती हो,इस उम्र में गिर गिरा गई तो मुश्किल हो जाएगी!!
फिर तो मम्मी जी उबल ही पड़ी–अरे जब उम्र थी तो पहनने नहीं दिया और अब बात करते हैं..भूल गए मेरे सबसे प्यारे सूट को आपने ही कैंची से काट दिया था और पूछने पर अनजान बन गए थे!!
तो क्या करता…मां बाबूजी को पसंद नहीं था कि तुम वो पहनो…!
अरे तो काटने की क्या जरूरत थी…कभी वो ना रहते तो पहनती या बाहर जाती तो पहनती…!
ऐसी ऐसी ही बातें ले लेकर दोनों लड़ते रहते हैं स्निग्धा…टेंशन मत लो मेरी तरह तुम्हें भी आदत पड़ जाएगी—नम्रता ने समझाया
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मेरे लिए ये सब सच में नया है भाभी…मेरे तो दादाजी और दादीजी भी ऐसे नहीं लड़ते थे और मम्मी पापा को तो आजतक जोर से बात करते भी नहीं सुना…बिना प्यार और त्याग के भला पति पत्नी के रिश्ते में बचता क्या है भाभी??
क्या कहूं स्निग्धा…कभी कभी लगता है समझाऊं दोनों को पर प्रेम और स्नेह समझाने से कहां होता है दिल का काम दिमाग कैसे करेगा भला??
समय के साथ दयाशंकर और उमा के बीच सबकुछ जैसे था वैसे ही चल रहा था… दोनों की खटपट का सिलसिला जारी था।इसी बीच उमा जी के मायके से उनके भतीजे की शादी का न्योता आया…खूब खुश थीं उमा जी…।
मम्मीजी-पापाजी भी जाएंगे ना??-बहू ने पूछ ही लिया।
बिल्कुल नहीं… मैं चैन के आठ दिन गुजारना चाहती हूं अपने मायके में.
नम्रता बेटा कह दे महारानी जी से… मुझे भी कोई शौक नहीं इनके मायके जाने का…जाएं अकेले..राहु केतु इकट्ठे नहीं रहते कभी!
ज्यादा ताने देने की जरूरत नहीं है…मेरा बस चलता तो मैं घर ही अलग ले लेती पर वो करूं तो लोग सास बहू का मसला बना देंगे।
दोनों की किचकिच फिर शुरू हो गई…।
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कुछ दिन के लिए ही सही पर अलग होने की खुशी से शुरू-शुरू में तो दोनों में खूब फुर्ती रही..उमा जी बार बार बाज़ार जातीं अपनी पसंद की चीजें जुटातीं…दयाशंकर भी आने वाली स्वतंत्रता का अनुभव कर आह्लादित होते…पर जैसे जैसे उमा के जाने का समय नजदीक आ रहा था दोनों थोड़े डाउन से दिखने लगे थे…।
स्निग्धा…अपनी मम्मी जी को बोल वो मेरा बड़ा वाला बैग ले ले..अपना वो झोला ले जाकर हमारी बेइज्जती करेंगी क्या?
स्निग्धा को लगा इस बात पर फिर विवाद होगा दोनों में पर इस बार बिना कुछ बोले और विरोध किए उमा जी ने दयाशंकर के बैग में अपने कपड़े रख लिये।
बहू…इनके खाने का ध्यान रखना..शायद आजकल फ्रिज और किचन से चोरी छुपे मीठा खाना चल रहा है…कमरे में मै नहीं रहूंगी तो और भी आराम से खाएंगे..एक दो बारी चक्कर लगा लेना…चिंता लगी लेगी मुझे–जाने के एकदिन पहले किचन में दोनों बहुओं को आकर उमा जी ने कहा तो दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगीं।
मेरे हाथ से तो पैसे लेगी नहीं वो…बहू तुम्हीं दे देना कह कर कि ये विनय ने दिया है…बाहर निकलो वो भी अकेले तो पैसे ही हाथ पैर होते हैं…उसपर से इतने सालों बाद जा रही है मायके मन तो करेगा ना खर्चने का–रात दयाशंकर ने आकर एक मोटा लिफाफा बहू को थमाया और कहा।
पापाजी…आप ही क्यों नहीं दे देते..शायद मम्मीजी को अच्छा भी लगे और आपके संबंध भी कुछ अच्छे हों।
नहीं नहीं… मैं देने गया तो एक तो लेगी भी नहीं और फिर पुरानी बातें निकालेगी कि पहले जब मैं मायके जाती थी तो सौ रूपये भी नहीं पकड़ाते थे,कहते मां बाप के घर में बेटी कहीं खर्च करती है क्या..मानता हूं मैं पहले मैंने बहुत कुछ ऐसा किया है जो नहीं करना था..पर मुझपर भी तो दवाब होता था ना…–दयाशंकर ने मजबूरी जताई तो नम्रता ने लिफाफा रख लिया और उमा को दे भी दिया।
सुनो ना…स्कूटर से रेलवे स्टेशन छोड़ दोगे क्या आप मुझे –जाने वाले दिन सुबह उमा ने हिचकते हुए पूछा
हां हां क्यों नहीं…कहो तो साथ चलता हूं छोड़कर वापस लौट आऊंगा–दयाशंकर ने उमा की बात सुन आश्चर्य से अखबार बगल में रखकर कहा।
नहीं नहीं आपको पूरे दिन की परेशानी हो जाएगी, पांच घंटे जाने और पांच घंटे आने में लग जाएंगे…तबीयत बिगड़ गई तो ?
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तो…कहो तो साथ ही रह जाऊं आठ दिन… ससुराल गए युग बीत गए…और..!
और क्या??
पता नहीं रोज की किचकिच ना हुई तो खाना भी हजम होगा या नहीं!–कहते कहते थोड़े भावुक हो उठे दयाशंकर
अब ऐसे विदा करोगे तो क्या वहां चैन से रह पाऊंगी मैं?शादी का घर है ना खाने पीने में बद परहेजी होने पर तुरंत आपका शुगर बीपी बढ़ जाता है…वरना तो साथ लेते जाती आपको.. मुझे भी तो सब पूछेंगे आपके बारे में…और उससे भी ज्यादा मुझे भी तो आदत पड़ी हुई है आपके तानों की..।देखो..आप अपना ख्याल रखना,टहलना मत भूलना और ठीक से खाना पीना–गला उमा का भी भर्रा आया।
और सुनो ना तुम चार दिन में ही नहीं आ सकती वापस…जब कहोगी तो मैं लेने आ जाऊंगा और सबसे मिलना भी हो जाएगा…।
ठीक है चौथे दिन आप आ जाना पांचवे दिन आपके साथ मैं लौट आऊंगी –कहते हुए भी उमा के मुंह पर प्रसन्नता का भाव हो आया और दयाशंकर को भी मानो संतोष हो गया।
आज तुम्हारे साथ ही पहली बार मैं भी इनके प्यार को देख रही हूं महसूस कर रही हूं…ये दोनों सब दिन ऐसे ही रहें तो कितना अच्छा हो,शायद अलग होने के भाव ने इन्हें एक दूसरे के प्रति प्यार का एहसास दिला दिया है…जुदाई के इन पलों में देखकर कितना अच्छा लग रहा है इनका ये प्यार –किचन में नाश्ता पैक करती नम्रता ने बाहर झांकते हुए परांठे बना रही स्निग्धा से कहा।
क्या कहती हो भाभी… स्टेशन चले क्या हम भी..इस लड़ाई वाले लव का क्लाइमेक्स देखने..जब दोनों हाथ पर हाथ रखेंगे और ट्रेन चलने पर दोनों के हाथ छूटते जाएंगे..एक दम फिल्मी सीन होगा… बड़ा मजा आएगा है ना– स्निग्धा ने मुस्कुराते हुए जेठानी से पूछा।
नहीं स्निग्धा…वो इनका मी टाईम नहीं नहीं वी टाईम होगा ना… चिल्ड्रेन नाॅट अलाउड —कहकर जोर से हंस दी नम्रता
#प्रेम
मीनू झा