मम्मी ,मामा आ गए  – मीनाक्षी सिंह

मम्मी मामा ,आ गए ,आप सुबह से इंतजार कर रही थी ! लो बांध लो राखी अब मामा को ! मामा आप इतना लेट हो गए ,देखो रात के  8 बज गए हैँ ! आप हर बार इतना लेट क्यूँ आते हो ! मैने तो मम्मी से कह दिया था खाना खा लो अब ! मामा नहीं आयेंगे शायद अब ! पर मम्मी को तो विश्वास रहता हैँ हमेशा कि आप ज़रूर आओगे ! 10 साल की मासूम दिव्या बीटिया बोली !

प्रतिमा (दिव्या की माँ ) – तू भी पागल हैँ री दिव्या ! तुझे पता हैँ तेरे मामा ने भी अभी तक कुछ नहीं खाया होगा ! जब राखी बन्धवां लेगा तभी खायेगा मेरा विशु !तो मैं कैसे खा सकती हूँ कुछ !  ए रे विशु ,,तू हर बार इतना लेट क्यूँ  हो जाता हैँ रे ! मन घबरा जाता हैँ ! चल ये सब छोड़ ,चल हाथ मुंह धो ले ,राखी बंधवां ले फिर तेरे कान खिंचती हूँ !

विशु हाथ मुंह धोकर आया ! प्रतिमा ने विशु की कलाई पर राखी बांधी,,टीका किया ,मिठाई खिलायी ! विशु ने थाली में सोने की कान  की बालियां रखी ! बाली देखकर दिव्या चहकती हुई बोली – मम्मी ये तो आपकी बाली हैँ ना ,मैने एक फोटो में देखी थी ,जब आप नाना के यहाँ रहती थी ? हैँ ना ??

हाँ ,लग तो वहीं रही हैँ ,पर तू कहाँ से ले आया इसे ??




विशु – दीदी ,पूरा दिन इसी में तो चला गया मेरा ,आपने  बापू के ईलाज के  समय इन्हे गिरवी रख दिया था ,,हर साल थोड़ा थोड़ा पैसा जोड़ता था कि इस साल तो दीदी की बाली छुड़वां लाऊंगा! पर हर  बार पैसे कम पड़ ज़ाते और सोना महंगा होता जाता ! पर अबकी बार दिन रात ट्रक चलाया ! मालिक ने खुश होकर पांच सौ रूपये ज्यादा दे दिये ! इसलिये दिव्या के लिए ये फरॉक भी लाया हूँ ! दीदी तू खुश तो हैँ ना ,मुझे अच्छा नहीं लगता था तू नंगे कान रहती हैँ ! जीजा जी का साथ नहीं मिल पाया तुझे ,,पर आपका भाई हैँ ! बोलता हुआ विशु भावुक हो गया ,अपनी कोहनी से

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आंसू पोंछने लगा !

प्रतिमा ने अपने भाई को गले लगा लिया ,धत पगले ,राखी के दिन कोई रोता हैँ ! तेरे और दिव्या के लिए ही तो जी रही हूँ अब !

ब्याह कर ले अब ,मैं भी फिर तेरी फिकर कम  करूँ ,कोई फिकर करने वाली आ जाए तो ! विधि अभी भी तेरे बारे में पूँछती रहती हैँ ,हर  दिन किसी ना किसी बहाने से आ जाती हैं तेरा हाल जानने ! अब तो हाँ कर दे रे उसे ! उसने अपने बापू से भी झगड़ा कर लिया हैँ कि ब्याह करूँगी तो विशु से नहीं तो कुंवारी ही मर जाऊंगी !

क्या दीदी आप भी ,कहाँ से खिलाऊंगा उसे ! खुद का ही अता पता नहीं हैँ मेरा !

तू चुप कर ,मन ही मन उसे पसंद करता हैँ ,पर ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता उसकी ! लाखों में एक हैँ ,तेरे साथ बराबर सहयोग करेगी तेरी हर समस्या में !

ठीक हैँ ,दीदी अगली बार देखता हूँ बात करने की ! अभी चलता हूँ ,खाना तो खिला दे य़ा बातों से ही पेट भरेगी !

रुक ज़ा ,लायी रे ! खाना खाकर विशु झोपड़ी से बाहर आया ,विधि बाहर ही खड़ी थी ,प्रतिमा ने विशु का हाथ विधि के हाथ में रख दिया ! उन  दोनों ने एक दूसरे के हाथ की पकड़ मजबूत कर ली ! अब प्रतिमा निश्चिंत हो गयी कि अब उसे कुछ भी हो जाए उसे चिंता नहीं ! उसकी लाईलाज बिमारी उसे धीरे धीरे खत्म कर रही थी !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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