मुक्ति (भाग-4) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

Post View 241 ससुराल में आने के बाद कभी-कभी ओसारे में बाबू जी को खाना देने आती थी। वो भी तब जब ये नही होते थे। वो मेरी आखिरी सीमा रेखा थी। लेकिन आज मुझे अपनी कोई भी सीमा रेखा नही याद थी। मैं नंगे पैर ही उधर दौड़ पड़ी जहाँ से गाँव भर की … Continue reading मुक्ति (भाग-4) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi