. सोसायटी के एक टावर के नीचे खड़े व्यक्तियों की भाव भंगिमा से ही प्रतीत हो रहा था कि कोई दुःखद घटना है।ज्ञात हुआ कि एक 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला का निधन हो गया है।उन्ही की अंतिम यात्रा की तैयारी चल रही थी।आकाश नाम का युवक,सब उसे इसी नाम से पुकार रहे थे,सारी तैयारी करा रहा था।
मृत महिला के 80 वर्षीय पति देशराज जी गुमसुम अवस्था मे एक ओर बैठे थे।मैंने सोचा आकाश इस दंपत्ति का पुत्र ही होगा।देशराज जी को मैं प्रतिदिन सोसायटी में घूमते हुए देखता था,इस अवस्था मे उनकी सक्रियता मुझे उत्साहित भी करती थी और आकर्षित भी।मैं उन्हें सांत्वना देने के प्रयास में देशराज जी के पास बैठ गया।तभी आकाश आया और देशराज जी से बोला-
भैय्या आज शाम तक आ पायेंगे,बाबूजी हम अंतिम संस्कार भैय्या के आने के बाद ही करेंगे।मैंने सोचा कि देशराज जी का दूसरा बेटा कही बाहर रहता है, सो स्वाभाविक रूप से उसका इंतजार तो करना ही होगा।
शाम तक उनका बेटा अभिजीत आ गया और तब देशराज जी की पत्नी का अंतिम संस्कार हो पाया। मैं भी अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिये सबके साथ ही शवदाह गृह गया।
वहां मुखाग्नि अभिजीत ने ही दी।मैं आकाश को बड़ा बेटा मान रहा था,कद काठी से वह अभिजीत से बड़ा लग भी रहा था,पर जब मुखग्नि अभिजीत ने दी तो मैंने उत्सुकता वश देशराज जी के टावर के अन्य निवासी से पूछा कि भाईसाहब देशराज जी की पत्नी को मुखग्नि बड़े बेटे आकाश ने न देकर छोटे बेटे अभिजीत ने क्यो दी है?
* उनके उत्तर से मैं चौक गया,मुझे बताया गया कि अभिजीत ही उनका इकलौता बेटा है,आकाश तो उनके बराबर वाले फ्लैट में रहता है।पर देशराज जी और उनकी पत्नी की पूरी सेवा आकाश ही करता रहा है।
हर बीमारी दुख में आकाश ही सबकुछ करता है।अभिजीत तो सिंगापुर में जॉब करता है,यहां ये दोनों ही तो रहते हैं।हमे लगता है,आकाश की निगाह जरूर उनके फ्लैट और उनकी धन दौलत पर होगी,नही तो कोई पराया इतना कुछ क्यों करेगा भला?मैंने बस इतना ही कहा-हो सकता है,आजकल सबकुछ सम्भव है।
* उक्त घटना के कई दिन बाद मुझे पार्क में आकाश मिल गया।उसने नमस्ते की तो मुझे भी उससे बात करने का बहाना मिल गया।बातचीत में पता चला कि आकाश के माता पिता नही है उसकी परवरिश भी उसके चाचा ने की है,जिनके खुद की औलाद नही थी,वे समस्त संपत्ति आकाश के नाम कर गये।
वे भी इस दुनिया मे नही रहे।यहां देशराज जी एवम उनकी पत्नी के रूप में उसे अपने मम्मी पापा की छवि दिखाई देती है।आकाश की आंखों से आंसू झर रहे थे,अपने माता पिता की याद में।रोते रोते वह कह रहा था कि देशराज जी की सेवा करके उसे अपने पिता की सेवा करने जैसी अनुभूति होती है।वे भी
मुझे पुत्रवत प्यार करते है।अंकल भगवान ने देर से ही सही पर पापा तो दे ही दिये हैं।मैं भी उसकी बातें सुन भावुक हो गया और उसके कंधों को थपथपाता हुआ,चला आया।मैं सोच रहा था कि जिसे अपने पिता तथा चाचा की पूरी संपत्ति मिल गयी हो,अपना फ्लैट ,गाड़ी हो,अच्छी बड़े वेतन वाली नौकरी हो
तो वह देशराज जी की संपत्ति पर क्यो निगाह रखेगा।एक माह तक अभिजीत अपने पापा के साथ रहा,फिर वह सिंगापुर चला गया,अबकी बार वह पापा को ढाढस बंधा कर गया कि वह भारत मे ही अपना जॉब तलाश करेगा।
* पत्नी के स्वर्ग सिधारने पर देशराज जी बिल्कुल अकेलेपन के शिकार हो गये।गुमसुम रहने लगे थे।आकाश उनका पूरा ध्यान तो रखता पर 24 घंटे तो वह नही दे सकता था,फिर भी अधिकतर समय वह देशराज जी के साथ ही व्यतीत करता।अधिक उम्र और जीवनसंगिनी के चले जाने के कारण देशराज जी टूट गये थे,कहते कुछ नही थे,पर उन्होंने जैसे जीने की लालसा ही समाप्त कर ली थी।
* आकाश उस दिन बड़ी ही हड़बड़ी में और घबराया सा मेरे पास आया और बोला अंकल पापा अचानक बेसुध हो गये हैं, मैं उनके लिये डॉक्टर की बताई दवाइयां लेने जा रहा हूँ,
आप कृपया कुछ देर उनके पास बैठ जाये।अंकल आप उन्हें निराशा के समुन्द्र से निकालने में सहयोग करे,अंकल प्लीज. अरे आकाश क्यो नही,मैं देशराज जी के पास बैठता हूँ, तुम निश्चिंत हो उनकी दवाइयों की व्यवस्था करो।थैंक्यू अंकल, कहते कहते आकाश वहां से दौड़ लिया।
* उस दिन के बाद मैं भी अक्सर देशराज जी के पास जाने लगा।मैं देख रहा था,आकाश देशराज जी के लिये जो कर रहा था,उनका बेटा अभिजीत भी उनके लिये नही कर पाता।
आकाश प्रतिदिन अभिजीत को भी पापा की सेहत आदि की जानकारी देता।अभिजीत एक फोन पर बोला, आकाश मेरे भाई बस 8-10दिन की बात है,मैं हमेशा के लिये भारत आ रहा हूँ,बस इतने दिन और पापा को संभाल लो।क्या कह रहे हो अभिजीत,मेरे भी तो सबकुछ वे ही हैं, तुम बेफिक्र रहो।
* देशराज जी की इच्छा शक्ति लगभग समाप्त हो गयी थी,उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा था,डॉक्टर बस यही कहते,इनके मन मे नैराश्य भाव है,इस कारण ये अवसाद की ओर जा रहे हैं, उम्र भी अधिक हो गयी है,बस दवाइयों के साथ इनके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करो,अकेला मत छोड़ो।
अभिजीत भी आने ही वाला था,सो प्रकाश आठ दिन का अवकाश लेकर देशराज जी के पास ही रहने लगा।पर अनहोनी किसी के रोके थोड़े ही रुकती है, जिस दिन अभिजीत सिंगापुर से वापस आ रहा था,सुबह ही देशराज जी ने दम तोड़ दिया।प्रकाश तो बदहवास हो गया,उसे लग रहा था,उसका सबकुछ लुट गया है।
मन को कड़ा कर आकाश ने देशराज जी समस्त रिश्तेदारों को सूचना दे दी,अंतिम संस्कार की तैयारी प्रारम्भ कर दी।अभिजीत आने ही वाला था,उससे पूर्व आकाश ने सब व्यवस्था पूर्ण कर ली।
* अभिजीत के आते ही तमाम रिश्तदारों के बीच वातावरण बेहद गमगीन हो गया था।शमशान गृह में चिता लगा दी गयी,देशराज जी का शव चिता पर रख दिया गया।पंडित जी ने मंत्रोचार करते हुए मुखाग्नि के लिये अभिजीत को पुकारा।अभिजीत सब रिश्तेदारों और मिलने वालों के बीच बोला,पंडित जी मुखाग्नि
आकाश भईया देंगे,वही इसके हकदार हैं।सब आश्चर्यचकित हो अभिजीत की ओर देखने लगे।रोते रोते अभिजीत बोला,अचरज मत करिये, मैं पापा का बेटा जरूर हूँ, पर मैंने उनके प्रति कोई फर्ज अदा नहीं किया है।
अपना सर्वस्य तो आकाश ने झोंका है।सही अर्थों में तो आकाश ही पापा का बेटा है।रिश्ते कोई मात्र खून से थोड़े होते हैं, रिश्ते दिल से,भावनाओ से,कर्म से भी होते हैं।पापा को मुखग्नि आकाश भैय्या ही देंगे।आंसुओ से भीगे चेहरे के साथ आकाश चल पड़ा पापा को मुखाग्नि देने को।
* बालेश्वर गुप्ता,नोयडा, मौलिक एवम अप्रकाशित
* #मन का रिश्ता साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी: