“पापा आपको याद है न, शनिवार को मेरे कॉलेज का वार्षिक उत्सव है। मैंने भी लघुनाटिका में भाग लिया है। आप समय पर पहुँच जाना और हाँ उसके लिए आप नीले रंग का सूट ही पहनना । उसमें आप बहुत स्मार्ट लगते हैं।” तुषार ने पिता प्रकाश से कहा।
“मस्का।” प्रकाश ने हँसते हुए कहा।
“सच में पापा, आप उसमें बहुत सुंदर लगते हैं। याद है, कुछ दिन पहले आप किसी दावत में वह सूट पहनकर गए थे तो सबकी नज़रें आप पर ही थी।”
“ठीक है तुषार। हम दोनों ठीक समय पर पहुँच जाएँगे। वैसे ममता तुमने कौन-सी साड़ी चुनी है पहनने के लिए। वैसे मेरी मानो तो तुम गुलाबी रंग की साड़ी पहनना। सब देखते रह जाएँगें।” प्रकाश ने पत्नी ममता की ओर देखकर कहा।”
“आप भी बस कहीं पर भी शुरू हो जाते हैं। ज़रा तो शर्म कीजिए।” धीरे से प्रकाश से ममता ने कहा।
बेटे से कैसी शर्म। क्यों तुषार ठीक कहा न मैंने।”
“पिता जी, मम्मा का भला कॉलेज में क्या काम। मैंने तो सिर्फ आपको कॉलेज में आने को कहा है। “
ममता की आँखें बेटे तुषार की यह बात सुनकर भर आईं। वह सोचने लगी, क्या यह वही तुषार है, जो बचपन में माँ-माँ कहकर उसके आगे-पीछे डोलता रहता था। अपनी हर इच्छा उसी को बताता था, आज वही तुषार कह रहा है, मेरा उसके कॉलेज में क्या काम है।”
“तुषार, यह तुम क्या कह रहे हो? तुम अपनी माँ के बारे में ऐसा भी कह सकते हो, मुझे सुनकर बहुत हैरानी हो रही है।”
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“इसमें हैरानी की क्या बात है। मैं नहीं चाहता, मम्मा कॉलेज आएँ। उनके कॉलेज आने से मेरी दोस्तों के सामने क्या रेपुटेशन रह जाएगी।”
“क्या मतलब? मेरे कॉलेज आने से तुम्हारी रेपुटेशन पर क्या अंतर पड़ेगा तुषार! मैं समझी नहीं।” ममता ने भरे कंठ से पूछा।
“इसमें समझने की क्या बात है। मेरे सब दोस्तों की मम्मियाँ नौकरी करती हैं। आपकी तरह हाउसवाइफ नहीं है। साथ ही आपको न तो आज के फैशन की समझ है न स्मार्टनेस।”
“क्या हाउसवाइफ होना गलती है। वैसे तुम्हारी मम्मी हाउसवाइफ नहीं हाउसमेकर है। इनके बिना तो घर घर नहीं ईंट-गारे से बना मकान कहलाएगा।” प्रकाश ने बेटे तुषार से क्रोध से कहा।
पापा इसमें गुस्सा होने की क्या बात है। हाउसवाइफ कहें या हाउसमेकर बात तो एक ही है। सच तो यही है न मम्मा घर सँभालती हैं। घर तो एक अनपढ़ भी सँभाल सकता है। ऑफिस को या स्कूल, कॉलेज में काम करने से इज्जत बढ़ती है, घर पर रहने से नहीं।”
वाहहह बेटा, यह तुमने अच्छी कही। जिसकी कर्मण्यता से तुम यहाँ तक पहुँचे हो, उसकी अब कोई गिनती ही नहीं।”
“पिताजी आप गुस्सा क्यों कर रहे हैं?
मुझे भी अपनी रेपुटेशन का ध्यान रखना है न। मुझे तो इन्हें किसी को मिलवाते भी शर्म आती है। किसी ने पूछ लिया कि तुम्हारी माँ क्या काम करती है तो क्या कहूँगा।”
“बस बहुत हो गया। कुछ अंग्रेजी के शब्द क्या सीख लिए, लगे पढ़ाने। जनाब के दूध के दाँत नहीं टूटे नहीं कि सोच लिया, माँ का अपमान करने का लाइसेंस मिल गया। आज तुम मेरी पत्नी का, अपनी माँ का अपमान कर रहे हो, कल को तो मेरा भी अपमान कर दोगे।”
तुषार से कुछ कहते नहीं बना। उसे चुप देखकर प्रकाश ने आगे कहा, “जिसने तुम्हारी परवरिश में दिन-रात एक कर दिया, उसके बारे में इस तरह की बातें करके तुम अपमानित कर रहे हो। बता सकते हो, कौन तुम्हारे बीमार होने पर रात-रात भर जागकर तुम्हारी सेवा करता है,
कौन सुबह उठकर तुम्हारे सारे कार्य भाग-भाग कर करता है। कौन तुम्हारी सेहत का ध्यान रखता है? इन सबमें तुम्हारी माँ का ही हाथ है और तुम कह रहे हो इन्हें किसी से मिलवाते भी शर्म आती है।”
“यह करना तो माँ का कर्तव्य है न पिता जी।”
“और तुम्हारा क्या कर्तव्य है, इनका अपमान करना, इन्हें नीचा दिखाना, जिसका पद भगवान से भी ऊँचा माना गया है। दिखावे के चक्कर में तुम अपनी उस माँ को दुख दे रहे हो, जिसकी गोद में खेलकर तुम इतने बड़े हुए हो। मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। शायद हमारे दिए संस्कारों में ही कोई कमी रह गई होगी।”
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तुषार ने माँ से कहा, “मुझे माफ कर दो। मैं बहक गया था। मेरे दोस्त शान में कहते थे, मेरी मम्मी यह, मेरी मम्मी यह तो मैं हीनभावना में ग्रस्त होकर यह कह बैठा। आगे से कभी भी आपका अपमान नहीं करूँगा। पिता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, सही राह दिखाने के लिए। अब मैं सबको खुशी से बताऊँगा, मेरी माँ की मेरी जिंदगी में क्या जगह है।”
“ठीक है, ठीक है, देर आए दुरुस्त आए, पर वादा कर आगे से कभी मेरा दिल नहीं दुखाएगा। तेरे सिवाय मेरा है ही कौन।”
अच्छा जी। मेरा बोलते-बोलते मुँह थक गया और मेरी कद्र ही नहीं।” प्रकाश ने कहा।
आप तो मेरे प्यारे पापा हैं, जिन्होंने जुगनू की तरह मेरे मन पर छाए कोहरे को प्रकाश में परिवर्तित कर दिया।” तुषार ने लाड़ से मम्मी-पापा के गले लगते हुए कहा।
#अपमान
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)
मौलिक और अप्रकाशित